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ट्विटरिया ब्लागिंग के कुछ नमूने
By फ़ुरसतिया on March 1, 2011
- पता नहीं लोग ब्लागिंग में अच्छा लिखने के लिये काहे इत्ता हलकान रहते हैं। जबकि ब्लागिंग की नींव तथाकथित खराब लिखने वालों पर टिकी है।
- ब्लागिंग का भला चाहने वाले टोंक-टोंक कर इसकी स्वाभाविकता खतम करने का बुरा काम करते हैं।
- बिना रगड़-घसड़ के जब दुनिया नहीं चलती तो ब्लागिंग कैसे चल सकती है। लड़ाई-झगड़ा, अबे-तबे विहीन ब्लागजगत मुझे किसी अस्पताल की इंटेसिव केयर यूनिट सा डरावना लगता है।
- कुछ साधारण (घटिया नहीं लिख रहे हैं लेकिन अगर आप समझना चाहो तो समझ लो) कविताओं में तत्सम शब्दों की भरमार देखकर किसी ऐसे लोफ़र (जिसे उसके घर वाले मारे प्यार के क्यूट कहते रहते हैं) बच्चे की याद आती है जो भाव मारने के लिये अपने चाचा, ताऊ, मामा, भांजे के बड़े पदों पर होने का हवाला देकर प्रभाव डालना चाहता है। ( अगर आप कवि हैं और आपको लगता कि यह बात आपके लिये लिखी गयी है तो हमारा डिस्क्लेमर भी साथ में शामिल करे लें कि ऐसा कतई नहीं है। यह होना मात्र एक संयोग है! )
- अच्छा लिखने वाले और खराब लिखने वालों में से किसी एक को चुनना हो तो मैं खराब लिखने वाले को वोट दूंगा। एक तो इसलिये कि वे बहुमत में हैं और दूसरे इसलिये कि उनके अच्छे लिखने की संभवनायें हमेशा बनी रहती हैं।
- खराब लेखन और घटिया लेखन में अंतर सिर्फ़ मंशा का होता है। कुछ लोग अच्छी-अच्छी बातें भी इस तरह लिखते हैं जिसे देखकर लगता है कि कितनी घटिया बात लिखी है।
- अपने प्रेम. मोहब्बत और लगाव का हवाला देते समय मुझे सोने के गहने याद आते हैं जिनकी मजबूती बनाने/दिखाने के चक्कर में उनकी शुद्धता (कैरेट) कम हो जाती है।
- स्विस बैंक का पैसा आकर यहां करेगा क्या? आयेगा फ़िर वापस चला जायेगा! काहे के लिये किराया फ़ूंकना!
- काला रंग सब तरह के प्रकाश को सोख लेता है वैसे ही काला पैसा भी होता होगा क्या?
- स्विस बैंक के नोट बेचारे अंधेरे में फ़ड़फ़ड़ाते होंगे। फ़ड़फ़ड़ा भी नहीं पाते होंगे। वे एयरकंडीशन में पड़े कहीं कुड़बुड़ाते रहते होंगे। पड़े होंगे किसी कोने में सोचते कि कोई आयेगा उनको एक खाते से दूसरे में डाल देगा।
- एक खाते से दूसरे खाते में टहलते रहना ही स्विस बैंक के नोट की नियति है।
- स्विस बैंक के नोट टाफ़ी, कंपट, बिंदी, टिकुली की खरीद के लिये कभी इस्तेमाल नहीं हो सकते। उनको खर्च करके खुशी नहीं बल्कि और जुटाने की तृष्णा हासिल होती है।
- भारत-इंगलैंड मैच में दोनों टाई होने पर दोनों टीमों के प्रसंशकों की प्रतिक्रियायें देखकर लगा गैरबराबरी की भावना मानव का मूल स्वभाव है।
- बेचारा मुनफ़ पटेल एक रन कम लेकर जितनी गालियां पाया उसको देखकर लगा कि अगर कहीं उसने एक रन ज्यादा दे दिया होता तो क्या होता! शायद लोग उसका तो हुलिया बिगाड़ देते।
- शुरुआत में तेंदुलकर की धीमी बल्लेबाजी पर पान की
चुकानदुकान पर लोगों की प्रतिक्रियायें सुनकर लगा कि भले ही अपने यहां तेंदुलकर एक ही हो लेकिन उसके कोच बनने के लिये तैयार रमाकांत अचरेकर गली-गली में टहल रहे हैं।
Posted in बस यूं ही | 65 Responses
प्रणाम.
शुक्रिया। वैसे ये शाट तो धोनी ही मारते हैं अच्छे से।
बिलकुल सही फरमाया आपने
यहाँ पर यही चलता है औने पौने पोस्ट लिखने वाले अपनी अपनी दूकान खोल कर बैठे है कि ” आओ तुम्हे ब्लॉगर बनाये जिस तरीके से लिखते हो उसको कोई पढने वाला नही उसमे जरा छौंक बघार करो किसी पोस्ट को छिछिया दो मस्त पोस्ट बन जायेगी गुरु”.
पवन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..जरा कुछ देर ठहरो तुम अभी तो बात बाकी है
हरेक की अपनी-अपनी कोर कम्पीटेंन्सी होती है। किसी की छिछियाने में किसी की छुछुआने में। किसी से उसका हुनर थोड़ी छीना जा सकता है भाई!
आनंद देने के लिए आपका दिली आभार !
लिखते रहो फुरसतिया सर ! आपकी समझ का जवाब नहीं……
सारी दुनियां को अपनी तरह मानते हो वाकई समदर्शी हो भाई जी !
लिखते रहो कबाडियों के बीच, उनके बीच चमकते दमकते कभी तो अच्छा भी लिखोगे ! )
अफ़सोस यह है कि लोग आपसे मौज लेने की हिम्मत नहीं कर पाते …
इससे अधिक मौज लेने की मेरी हिम्मत नहीं
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..हताश अपेक्षाएं – सतीश सक्सेना
हम तो अपने मजे के लिये लिखे इसे। आप को भी आनंद मिल गया। वाह! आप महान हैं!
अच्छा लिखने का आरोप हम पर अक्सर लोग लगाते हैं लेकिन हम कोशिश करके हमेशा फ़िर खराब लिख ही लेते हैं। हमेशा लिखते रहेंगे।
हमसे मौज लेने के लिये हिम्मत की नहीं खुले मन की जरूरत है। रमानाथ अवस्थी जी की कविता है न:
“कुछ कर गुजरने के लिये मौसम नहीं मन चाहिये।”
हम कोई बघर्रा थोड़ी हैं कि किसी को खा जायेंगें। कोई नहीं लेता तो हम खुद ले लेते हैं अपनी मौज! आखिर कब तक किसी के भरोसे रहेंगे।
शुक्रिया। तुम्हारा कमेंट भी मस्त कर गया हमें।
बधाई!
“पता नहीं लोग ब्लागिंग में अच्छा लिखने के लिये काहे इत्ता हलकान रहते हैं। जबकि ब्लागिंग की नींव तथाकथित खराब लिखने वालों पर टिकी है।”
बिल्कुल सही लिखे हैं. इसके लिए एक ठो बिल्कुल बधाई.
एक ठो बिल्कुल बधाई के लिये एक ठो बिल्कुल धन्यवाद!
हम भी बहुमत मे है
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..अनुपात का सिद्धांत और दानवाकार प्राणी- परग्रही जीवन श्रंखला भाग ७
सही है। सरकार आपकी ही है। जलवा है!
इस तरह नम्बर लगाकर वोट मांगने में खतरा है। अगर कहीं मैं चार नम्बर वाली बात को पांच नम्बर वाली बात से बदल दूं पोस्ट में तब क्या करोगे/कहोगे?
और अच्छे बुरे लेख नहीं कर्म होते हैं आप के कैसे हैं सविस्तार से चिंतन करे
rachna की हालिया प्रविष्टी..क्रिकेट वर्ल्ड कप मे दिल्ली कि टीम क्यूँ नहीं हैं अगर इंग्लॅण्ड कि हैं तो
हम समझ गये। वैसे किसी की इसके बाद क्या हिम्मत जो सचिन को कुछ कह सके।
अच्छे-बुरे लेख नहीं कर्म होते हैं सही है लेकिन कुछ लोगों का सारा कर्म लेखन ही होता है। हम कैसे हैं यह हमसे ज्यादा दूसरे लोग जानने का दावा करते हैं। वे बहुमत में हैं इसलिये अक्सर लोग उनकी बात ही मान लेते हैं ,चाहे सही हो या गलत।
और हमारे जैसे लेखकों का सपोर्ट करने के लिए स्पेशल धन्यवाद रहेगा…
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..छुट्टी कथा
शुक्रिया है आपका ! धन्यवाद भी।
शुक्रिया वैसे आप खुद गुणी-ज्ञानी हैं! हम क्या आपको ज्ञान देंगे।
सोमेश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..फ़र्ज़ और फर्क
भाईजी, जो पंच आपको अच्छे लगे उसके लिये शुक्रिया। लेकिन ऐसा मैने जानबूझकर नहीं किया। बस हो गया उसके लिये मुझे दोषी न माना जाये! हां साधारण वाले जो लिखे वो मेरा सहज लेखन है।
१०० % सहमत……
@अच्छा लिखने वाले और खराब लिखने वालों में से किसी एक को चुनना हो तो मैं खराब लिखने वाले को वोट दूंगा। एक तो इसलिये कि वे बहुमत में हैं और दूसरे इसलिये कि उनके अच्छे लिखने की संभवनायें हमेशा बनी रहती हैं
चलिए अपना तो एक वोट पक्का
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..घूमता पहिया वक्त का
आपकी सहमति के लिये शुक्रिया।
आपके तो बहुत सारे वोट हैं। सरकार बनाने लायक!
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..तिरंगे लहरा ले रे
शुक्रिया। रोने-धोने का पेटेंन्ट हमारे पास नहीं है। उसके होलसेल एजेंट हमारे दूसरे साथी हैं। उनके कार्य व्यापार में दखल देकर हम उनको दुखी नहीं करना चाहते।
घुटना कभी-कभी बहुत दर्द करता है तो उसका बुद्धि बाहर निकाल के धर देते हैं। वही ससुर उचक के कभी-कभी ब्लाग पोस्ट पर पसर जाती है।
रामचन्नर गुहा जी से खाली हिन्दुस्तान अखबारै का संबंध है अपन का। विनोद जी मेहता मामा के निधन पर आखिरी बार मिले थे। उसके बाद दिखाये तक नहीं। हम सच्ची कह रहे हैं इन बड़े लोगन से हमारा कौनौ संबंध नहीं है।
विन्डो सेवेन अभई कहां से! हम अभी विन्डो एक्स पी के जमाने में टहल रहे हैं साहब जी।
…..कूड़ा कहना, नाक बंद कर निकल जाना आसान है ( अक्सर बुद्धिजीवी ऐसा ही किया करते हैं ) मगर कू़ड़े में फूल खिलाने का काम तो माली ही कर सकता है।
…..इस पोस्ट को पढ़कर ब्लॉगिंग के आलोचक कुछ सीख सकते हैं।
ब्लागिंग के आलोचक खैर क्या सीखेंगे। उनके अपने विचार हैं उससे अलग हटकर सोचेंगे तो उनकी तबियत खराब हो जायेगी। आपकी पोस्ट देखते हैं फ़िर से ।
Sanjeet Tripathi की हालिया प्रविष्टी..बुद्धिजीवियों से लेकर चश्मे और टंगी गर्दन के नाम
शुक्रिया!
हम भी इसी के कायल हैं, इसीलिये नींव का पत्थर बनने की कोशिश कर रहे हैं
प्रयासरत रहिये! संभव है आप भी हमारी तरह खराब लिखने लगें। अभ्यास से क्या नहीं हो सकता।
और ब्लागरों का भला चाहनेवाले भी टोंक-टोंक कर उनकी स्वाभाविकता ख़त्म करने पर तुले हुए हैं.
सही है आपकी बात से पूरी तरह सहमत! इसई लिये हम अपने किसी ब्लागर साथियों को कभी नहीं टोंकते।
पत्र-पत्रिकाओं और ब्लागिंग का लेखन कैसे एक-दूसरे को प्रभावित करेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। अभी तो पत्र-पत्रिकायें ब्लागिंग को अपने सांचे में ढ़ालकर ही छापने का मन बनाती हैं। हमारी भिन्नता क्या! समय बतायेगा कि कुछ दिन बाद इसको पढ़ते हैं क्या?
“छपास की उत्कण्ठा छपास की योग्यता पर हमेशा हावी होती है.” जैसे कुछ से शुरुआत होगी! चलिये इस हवन में इसे हमारी ओर से ही एक आहूती मान लीजिये.
eswami की हालिया प्रविष्टी..सबटरेनियन रीवर्स
ये पोस्ट तो ऐसे ही मजाक-मजाक में लिख गयी। इसके लिये नीरज बधवार (http://vyanjana.blogspot.com )का उनके फ़ेसबुक पर लिखा संदेश जिम्मेदार है। आज उन्होंने लिखा था:
“दोस्तों, twitter पर अकाउंट तो कुछ वक्त से बनाया हुआ है मगर इतना इस्तेमाल नहीं कर रहा था। सोच रहा हूं कि अब उसी पर वन लाइनर लिखा करूं। आप लोग भी जुड़ेंगे तो खुशी होगी:) ”
हमने सोचा जब नीरज बधवार ट्विटरिया सकते हैं तो हम काहे नहीं! इसके बाद ट्विट किये दो-चार। ज्यादा निकल आये तो इधर पोस्ट पर ठेल दिये। इधर-उधर की उठापटक में क्या तेवर दिखेंगे। बाकी तुम्हारा आहुति इधर ही मौजूद है। कभी छपास के लिये मन हुड़केगा तो कागज और स्याही का खर्चा बचाने के लिये फ़िर से पढ़ लेंगे। शायद बच ही जाये।
सत्य वचन… इससे साबित होता है कि “कम लेना” ज्यादा ठीक है, बजाय “ज्यादा देने” के…
Suresh Chiplunkar की हालिया प्रविष्टी..“साम्प्रदायिक” तो था ही- अब NDTV द्वारा न्यायपालिका पर भी सवाल… NDTV Communal TV Channel- Anti-Judiciary- Anti-Hindu NDTV
अब आपकी बात कैसे काट सकते हैं! कहीं ऐसी हिमाकत की तो डर है कि आप भाईसाहब कहकर कुछ कह न दें।
पान की चुकान क्या बला है!
ये तो ट्विटर ब्लागिंग की आड़ में लिखी एक बेतरतीब पोस्ट है। एक ट्विट से दूसरी का कोई संबंध होना अनाड़ी ट्विटरिंग की पहचान है इसई लिये ब्लागिंग के साथ स्विस बैंक घुसा दिया वहां फ़िर क्रिकेट भी धर दिये और बाकी वह जो हादसा हुआ वह आप देख ही चुके हैं।
चुकान तो हमारी हडबड़ ब्लागिंग का नमूना है। सबेरे पोस्ट करके दफ़्तर भागे। शाम तक देखे नहीं और अब आये तो देखा “दुकान” की जगह “चुकान” लिख गये।
धन्यवाद इस टाइपो को सुधरवाने के लिये।
आयेगी हिस्टीरिया ब्लागिंग पर भी पोस्ट आयेगी। इत्ते केस हैं आसपास उनका अध्ययन करके कोई न कोई लिखेगा ही हिस्टीरिया ब्लागिंग के किस्से। कोई और न लिखेगा तो मैं हूं न
बहुत दिन बाद सुने ठहाके! अच्छा लगा।
इसे ठीक कर लें नहीं तो ….
नहीं तो …..
आपको भी हम
“तथाकथित खराब लिखने वालों”
की श्रेणी मे रख देंगे। (जो कि आप हैं नहीं)!
इस आलेख में आपका युग बोध खुलकर प्रकट हो रहा है। व्यंग्य अपनी तीक्ष्ण धार लिए है।
चुकान को दुकान अरविन्द मिश्र जी के बताने पर सही कर लिया था। फ़िर भी शुक्रिया दे रहे हैं इसे बताने के लिये।
हमें तथाकथित खराब लिखने वालों में रखने से आप कब तक नकारेंगे। आखिर कभी तो हमको आप बहुत खराब लिखने वालों से खराब लिखने वालों शामिल करेंगे। कोई तो ए सी पी करेंगे हमारे लिये भी -सात साल होने को आये ब्लागिंग में।
आनंद आ गया।
जितेन्द्र भगत की हालिया प्रविष्टी..इन दिनों !!
शुक्रिया। सही में बहुत दिन बाद दर्शन हुये आपके।
हमहूँ अच्छा लिखे के सँभावना टोहे निकरे हन ।
कल बड़ा मन रहा, कि प्रणबबाबू के घसीटी,
लेकिन अबहिन तो हम खुदै घिसटा रहे है ।
एक ठईं हमारौ ट्विटरिया आहुति ले लेयो ।
” पहले भी अपना जूस निकरा आगे भी अपनी ही निकलेगी, खामखा बज़ट का जूस निकारे से फायदा ? “
थोड़ा ऑफ़ द लेंग्थ है, लेकिन चले देयो । चर्चा से सबै चर्चाकार फ़रार हैं कि कोनो की ज़मानत वमानत होय गयी । कल्ह चर्चा पर मिलो ।
रामघसीटे की हालिया प्रविष्टी..तो आज लग जाये एक शर्त
रहै देव प्रणव बाबू का अभै। न उई कहूं भागे जा रहे हैं न डा.अमर कुमार। तनिक ठीक हुई जाइये फ़िर घसीटा जाय कायदे ते सबका एक-एक करिके।
चर्चा के वीर बालक देखिये जल्दी ही मिलते हैं! शायद कल ही। आप जल्दी ठीक हो जाइये फ़िर आपै सम्हारौ मोर्चा।
http://twitter.com/Shrish/status/४२७६७४६८०१५५२१७९२
“उपयोगी ब्लॉग पोस्ट पर हमेशा कम टिप्पणियाँ आती हैं और फालतू पोस्ट पर ज्यादा।”
ePandit की हालिया प्रविष्टी..गिम्प – सर्वश्रेष्ठ मुफ्त ग्राफिक्स ऍडीटर- हिन्दी-इण्डिक यूनिकोड समर्थन सहित
http://twitter.com/Shrish/status/42767468015521792
मैं बहुत देर हैरान होता रहा कि ये लिंक में हिन्दी-अरबी अंक देवनागरी अंकों में कैसे बदल गये।
ePandit की हालिया प्रविष्टी..गिम्प – सर्वश्रेष्ठ मुफ्त ग्राफिक्स ऍडीटर- हिन्दी-इण्डिक यूनिकोड समर्थन सहित
ई है सौ टके की बात.हमारे यहाँ पूरे विश्व की समस्या को चौराहे पर चाय पीते हुए लोग निपटा देते हैं.
बढियां लगी आपकी पोस्ट.
पंकज नरुला की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी रशियन भाई भाई
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..हे संविधान जी नमस्कार…
मजा आ गया इस पोस्ट में… आपने तो कवियों की क्लास ही ले डाली… हम वैसे भी बहुमत में हैं… और हमारे में संभावनाएं भी बहुत हैं… पर इतना भिगो कर नहीं मारना चाहिए था… बहुते मजेदार पोस्ट…
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगर-सर्वे – सहयोग की अपील
लेकिन फ़ुरसतिया ब्रांड पोस्ट और इस ट्विटरिया पोस्ट में वैसा ही अंतर लगा जैसा नौ गज के घाघरे और मिनी स्कर्ट में। अपन ठहरे ‘स्कूल ऑफ़ ओल्ड थोट्स’ वाले, आपकी लंबी चौड़ी पोस्ट्स ज्यादा आनंद देती हैं।
संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..अमर प्रीत – एक पुरानी कहानी