Friday, March 04, 2011

स्वर्ग की सेफ्टी पॉलिसी

http://web.archive.org/web/20140419213725/http://hindini.com/fursatiya/archives/1916

स्वर्ग की सेफ्टी पॉलिसी

[४ मार्च को पूरे विश्व में संरक्षा दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर लिखा लेख इसके पहले भी एकबार ठेला जा चुका है । आज मौका भी है (संरक्षा दिवस का) और दस्तूर (ठेलने का) भी इसलिये उस ठेल को पांच साल होने पर इसे रिठेला जा रहा है। यह लेख उन लोगों के लिये है जिन्होंने इसे पहले नहीं पढ़ा था। जिन लोगों ने पढ़ रखा वे भी अगर पढ़ना चाहें तो कोई रोक नहीं है। यह लेख आज से 18 साल पहले कभी लिखा गया था। मेरा पहला व्यंग्य लेख टाइप का उत्पाद। जब यह लेख लिखा था तब एक नये अधिकारी के तौर पर अपने आसपास लोगों के काम करने और बड़े अधिकारियों के निर्णय लेने के अंदाज को लिखने की कोशिश की थी। आज इतने साल बाद भी लगता नहीं कि काम करने का और निर्णय लेने का तरीका कुछ बदला है। बहरहाल आप देखिये हो सकता है आप को पसंद आ ही जाये। :)]
ट्विटरिया ब्लागिंग के कुछ नमूने

  • वीणा की टुनटुनाहट के बीच अपने इस बार के मृत्युलोक डेपुटेशन के ओवरस्टे को स्वीकृत कराने के बहाने सोचते हुये नारद जी स्वर्गलोक के मुख्यद्वार पर पहुंचे। द्वाररक्षक ने उन्हें कोई टुटपुंजिया सप्लायर समझकर गेट पर ही रोक लिया। इस दौरे में इक्कीसवीं बार नारदजी ने अपना विजिटिंग कार्ड साथ लेकर न चलने की मूर्खता पर धिक्कारा। बहरहाल,कुछ देर तक तो वे इस दुविधा में रहे कि इसे वे अपना सम्मान समझें या अपमान। बाद में किसी त्वरित निर्णय लेने मे समर्थ अधिकारी की भांति, जो होगा देखा जायेगा का नारा लगाकर, उन्होंने इसे अपना अपमान समझने का बोल्ड निर्णय ले लिया। नारदजी ने पहले तो, अरे तुम मुझे नहीं पहचानते का आश्चर्यभाव तथा उसके ऊपर अपने अपमान से उत्पन्न क्रोध का ब्रम्हतेज धारण किया। अगली कडी के रूप में द्वाररक्षक का ओवरटाईम बन्द होने का श्राप इशू करने हेतु जल के लिये उन्होंने अपने कमंडल में हाथ डाला तो पाया कि जैसे किसी सरकारी योजना का पैसा गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही चुक जाता है वैसे ही उनके कमंडल का सारा पानी श्रापोयोग से पहले ही चू गया था। मजबूरन नारदजी ने अपने चेहरे की मेज से ब्रम्हतेज की फाईलें समेट कर उस पर दीनता के कागज फैलाये। उधर गेटकीपर ने,किसी देवता का खास आदमी ही बिना बात के इतनी अकड दिखा सकता है, सोचते हुये उन्हें अन्दर आने की अनुमति दे दी।
    नारदजी अन्दर घुसे। वहां किसी फैक्टरी सा माहौल था। कुछ लोग धूप सेंक रहे थे,कुछ छांह की शोभा बढा रहे थे। कुछ चहलकदमी कर रहे थे,गप्परत थे। कुछ ने अपने चरणों को विराम देकर मौनव्रत धारण किया था–मानों कह रहे हों इससे ज्यादा काम नहीं कर सकते वे। जो जितना फालतू था उसके चेहरे पर उतनी ही व्यस्तता विराजमान थी। नारदजी स्वर्ग को निठल्लों का प्रदेश कहा करते थे। यहां के निवासियों को कुछ करना-धरना नहीं पडता था। खाना-पीना, कपडे-लत्ते की सप्लाई मृत्युलोक के भक्तगण यज्ञ ,पूजा पाठ के माध्यम से करते थे।
    नारदजी स्वर्ग के सबसे प्रभावशाली देवता विष्णुजी से मिलने के लिये उनके चैम्बर की तरफ बढे। नारदजी ने देखा कि विष्णुजी अपने सिंहासन पर किसी सरकारी अधिकरी की तरह पडे-पडे कुछ सोच रहे थे। नारदजी को देखकर उन्होंने अपने चिन्तन को गहरा कर लिया, व्यस्तता बढा ली तथा नजरें अपने चैम्बर में उपलब्ध एक़मात्र कागज में धंसा लीं। पहले तो नारदजी ने सोचा कि कि विष्णुजी शायद अपने शेयर पेपर्स देख रहें हों या फिर शाम को खुलने वाली महालक्ष्मी लाटरी के नंबर के बारे में अनुमान लगा रहे हों। वे एक सिंसियर स्टाफ की तरह बाअदब, बामुलाहिजा चुपचाप खडे रहे। देर होने पर नारदजी ने कनखियों से झांककर देखा कि विष्णुजी की नजरें तो एक खाली कागज पर टिकी हैं। उन्होंने फुसफुसाहट ,सहमाहट में थोडी हकलाहट मिलाकर विष्णुजीको दफ्तरी नमस्कार किया।
    विष्णुजी ने अपनी नजरें कागज की गहराइयों से खोदकर नारदजी के चेहरे पर स्थापित की। अपने चेहरे पर मुस्कराहट की छटा बिखेरी तथा ‘हाऊ डु यू डु से लेकर ओ.के.देन सी यू ‘की ड्रिल एक मिनट में पूरी कर ली। इसके बाद वो अपने चेहरे की मुस्कराहट का बल्ब आफ करने वाले ही थे कि उन्हें यह ध्यान आया कि नारदजी तो इस बार मृत्युलोक होकर आये हैं जहां वे खुद,यदा यदा हि धर्मस्य….संभवामि युगे-युगे,का बहाना बनकर कई बार डेपुटेशन पर जा चुके हैं। उन्होंने अपने मन के कारखाने में एक अर्जेन्ट ‘वर्क आर्डर ‘ प्लेस करके मृत्युलोक और नारद जी के प्रति प्रेम पैदा किया। अपने कमरे के बाहर लाल बल्ब जलाया। अर्दली को नरक की कैन्टीन से चाय लाने के लिये भेज दिया और नारदजी से इत्मिनान से बतियाने लगे।
    विष्णुजी: और सुनाइये मि.नारद ,इस बार कहां घूम के आये?
    नारदजी: साहब,इस बार मैं धरती पर स्थित स्वर्ग भारत देश की यात्रा करके आया हूं।
    विष्णुजी: धरती पर स्वर्ग !क्या भारत स्वर्ग हो गया?क्या वहां के लोग भी स्वर्ग के निवासियों की तरह कुछ काम-धाम नहीं करते? खाली बैठे रहते हैं?
    नारदजी:-नहीं साहब! ऐसी बात नहीं हैव लोग कामचोरी , लडाई-झगडा, खुराफात,चुगलखोरी आदि जरूरी कामों से फुर्सत पाकर काम-धाम को भी कृतार्थ करते हैं। पर ऐसा कम ही होता है कि लोग जरूरी खुराफातें छोडकर काम-धाम में समय बरबाद करें।
    इसके बाद नारदजी ने चाय की चुस्कियों के बीच अपने डेपुटेशन से जुडी जानकारियां दी.विष्णुजी ने भी,व्हेन आई वाजा देयर ड्यूरिंग रामावतार/ कृष्णावतार ….. , कहते-कहते शेयर कीं। नारदजी ने उन्हें मुम्बई में हुये फिल्म महोत्सव के बारे में भी बताया। वीणा की धुन पर मस्त-मस्त गाने सुनाये। फिल्म महोत्सव के बारे में सुनकर विष्णुजी उदास हो गये। उस दौरान उन्होंने पृथ्वी पर धर्म की बढती हानि और अधर्म के बढते उत्पादन को देखते हुये धर्म की संस्थापना के लिये अपने डेपुटेशन का प्रस्ताव पेश किया था। अपना पीताम्बर वगैरह प्रेस करवा कर जाने की तैयारी कर ली थी। वे इन्तजार करते रहे। फिल्म महोत्सव निकल गया पर प्रस्ताव की फाइल लौट के नहीं आई। उन्होंने तमाम दूसरी योजनाऒ की तरह धर्म की स्थापना का इरादा भी मुल्तवी कर दिया।
    विष्णुजी ने नारदजी से पूछ- और सुनाओ आजकल भारत में क्या हो रहा है?
    नारदजी: मार्च में सेफ्टी माह मनाने की तैयारी हो रही ह।
    सुनते ही विष्णुजी उछल पडे। नारदजी को लगा कि कहीं विष्णुजी अपने खर्चे पर तो नहीं धर्म की स्थापना करने चल पडे या फिर किसी सफेद हाथी ने तो नहीं पुकारा जिसकी रक्षा के लिये भगवान उछलकर जाना चाहते हैं। बहरहाल कुर्सी की आकर्षण शक्ति ने उन्हें पुनर्स्थापित किया। नारदजी विष्णुजी के उछलने का कारण जानने के लिये अपने चेहरे पर हतप्रभता स्थापित कर पायें इसके पहले जी विष्णुजी ने सवाल दागने शुरु कर दिये:
    ये सेफ्टी माह क्या होता है? कैसे मनाया जाता है? किस देवता की पूजा करनी पडती है? कितने दिन का व्रत रखना पडता है? इसे मनाने वाले को क्या फल मिलता है? मैनें तो किसी शास्त्र/पुराण में इसकी चर्चा सुनी नहीं। विस्तार से बताओ नारद–मुझे जानने की इच्छा हुयी है।
    नारदा उवाच: पहले तो मैं आपको सेफ्टी के बारे में बताता हूं। किसी दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा हल्ला जिस चीज का मचता है उसे सेफ्टी कहते हैं। सेफ्टी का जन्म दुर्घटना के गर्भ से होता है।
    विष्णुजी: सो कैसे?
    नारदजी: जब तक कोई दुर्घटना नहीं होती तब तक सेफ्टी का कोई नामलेवा नहीं होता। सेफ्टी अल्पमत में होती है। दुर्घटना के बाद बहुमत सेफ्टी की आवश्यकता की तरफ हो जता है। अत:सेफ्टी के महत्व के लिये दुर्घटनायें बहुत जरूरी हैं।
    विष्णुजी: पर आप तो कह रहे थे कि सेफ्टी से दुर्घटनायें कम होती हैं।
    नारदजी:-दरअसल यह अफवाह सेफ्टी पालिसी का बहुमत विभाजित करने के लिये फैलाई जाती है। सेफ्टी पालिसी के न होने पर दुर्घटना होने पर सब लोग एक मत से कहेंगे कि सेफ्टी पालिसी का ना होना ही दुर्घटना का कारण है। सेफ्टी पालिसी के होने पर बहुमत विभाजित हो जायेगा। दुर्घटना होने पर कोई कोई कामगार को कोसेगा, कोई मशीन को दोष देगा, कोई अपने कर्मों को, कोई सेफ्टी पालिसी को और कोई इसे आपकी (भगवान की)मर्जी मानेगा। दुर्घटना के कारणों की मिली-जुली सरकार बन जायेगी। किसी एक कारण की तानाशाही नहीं रहेगी।
    विष्णुजी:-सेफ्टी माह कैसे मनाया जाता है?
    नारदजी:-यह मार्च माह में मनाया जाता है। भाषण,सेमिनार,वाद-विवाद,कविता,पोस्टर प्रतियोगिता आदि आयोजित होती हैं। सेफ्टी बुलेटिन निकाला जाता है। 4मार्च को संरक्षा दिवस (सेफ्टी डे)मनाया जाता है। संरक्षा शपथ ली जाती है।
    विष्णुजी: यार,यह तुमने अच्छा बताया। चलो हम भी इस बार सेफ्टी माह मनाते हैं। तुम ऐसा करो फटाफट एक स्वर्ग की सेफ्टी पालिसी बना लाओ।
    नारदजी: साहब ,सेफ्टी पालिसी की जरूरत तो वहां होती है जहां दुर्घटनायें होती हैं और दुर्घटनायें वहां होती हैं जहां कुछ काम-धाम होता है । स्वर्ग में कोई काम-धाम तो होता नहीं है। स्वर्ग में सेफ्टी पालिसी की क्या जरूरत !
    विष्णुजी: देखो यार जहां तक काम-धाम की बात है तो स्वर्ग में काम-धाम का कल्चर तो कोई पैदा नहीं कर सकता। लोग-बाग जुगाड लगाकर यहां आते ही इसी लालच में हैं कि कुछ काम ना करना पडे। काम-काज की परम्परा शुरु हो जायेगी तो लोग यहां आना ही बंद कर देंगे। पर दुर्घटनाऒ की चिन्ता तुम ना करो। उनका इन्तजाम मैं कर दूंगा। अभी मेरे सुदर्शन चक्र में इतनी धार बाकी है। मैं एक बार जो सोच लेता हूं वो करके रहता हूं। मृत्युलोक में धर्म की स्थापना के लिये बार-बार मुझे यों ही नहीं बुलाया जाता। कहते-कहते विष्णुजी की आवाज गनगना उठ।
    नारदजी जानते थे कि , जो सोच लेता हूं वह करके रहता हूं ,कहने के बाद विष्णु जी की सोच-समझ की दुकान बन्द हो जाती है तथा सारी बुकिंग फिर जिद के बहीखाते में होने लगती है। इस समय उनकी स्थिति उस सरकारी अफसर की तरह हो जाती है जो अपनी तारीफ में आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त कर चुका होता है। ऐसी दशा में तारीफ के अलावा किसी दूसरी फ्रीक्वेन्सी की आवाज उन्हें नहीं सुनायी देती।
    नारद जी ने ,तू दयालु दीन हौं ,की मुद्रा धारण करके विनयपूर्वक निवेदित किया- साहब आप दुर्घटनायें क्यों करायेंगे? लोग तो आप का नाम लेकर भवसागर पार करते हैं। पर मुझे सेफ्टी पालिसी का कोई उपयोग नहीं समझ में रहा है । इसका कोई जस्टीफिकेशन ना होने पर कागज ,समय तथा पैसे की बरबादी के लिये आडिट आब्जेकशन होगा।
    विष्णुजी: यू डोन्ट केयर फार जस्टीफिकेशन.बन जायेगी तो पडी रहेगी। कभी ना कभी किसी काम आयेगी ही। अब मान लो कोई कल्पतरु के नीचे खड़े होकर स्वर्ग की सेफ्टी पालिसी मांग ले और वह कह दे–”सारी आई डोन्ट हैव सेफ्टी पालिसी “। तो कैसा लगेगा? कल्पवृक्ष /स्वर्ग की तो इमेज चौअट हो जायेगी। मृत्युलोक में लोग कहेंगे–क्या फायदा माला जपने. तपस्या करने,यज्ञ में घी-तेल, अन्न फूंकने से जब इसके फलस्वरूप स्वर्ग जाने पर कल्पतरु एक सेफ्टी पालिसी तक नहीं दे सकता। ये तो अच्छा हुआ तुमने बता दिया वर्ना हम धोखा खा सकते थे। ‘एनी वे’जाओ जल्दी करो । एक हफ्ते में सेफ्टी पालिसी बनाकर ले आओ।
    नारदजी ने अपना अन्तिम हथियार इसतेमाल करते हुये एकदम बाबुई अन्दाज में कहा-साहब आप कहते हैं तो बनाने की कोशिश करता हूं पर एक हफ्ते में सेफ्टी पालिसी नहीं बन सकती। काम ज्यादा है।
    बाबू के जवाब में अफसर कडका– आई डोन्ट वान्ट टु हियर एनी थिंग। यू गेट लास्ट एन्ड कम बैक आफ्टर वन वीक विथ सेफ्टी पालिसी आफ स्वर्गा। .
    वीणा उठाकर गेटलास्ट होते-होते नारदजी ने दृढ विनम्रता से कहा। साहब आप कह रहे हैं तो कर देता हूं। पर यह काम हमारा है नहीं। हमारा काम तो आप लोगों की स्तुति/चापलूसी करना, लोगों की निन्दा करना ,टूरिंग जाब करके खबरें इधर-उधर करना है। लिखाई-पढाई करना मेरा काम नहीं है । यह काम तो चित्रगुप्त ,सरस्वती जी का है–जिन्हें आपने कलम सौंपी है।
    यह कहते हुये नारदजी विष्णुजी के कमरे से बाहर आ गये। उनकी वीणा से निकलते ‘हरे कृष्ण गोविंद हरे मुरारी ‘के स्वर विष्णुजी के कानों में गुदगुदी करने लगे थे।
    एक सप्ताह बाद नारदजी द्वारा बनाई स्वर्ग की सेफ्टी पालिसी पढते समय विष्णुजी को एक नियम दिखा-अपने शरीर के किसी भी अंग को किसी भी चलती मशीन/वस्तु के संपर्क में ना लायें।.
    विष्णुजी चौंके.नारदजी को बुलाया। बोले – यह तो मेरी शक्तिहरण का षडयंत्र है। अगर यह नियम रहेगा तो मैं अपना सुदर्शन चक्र कैसे चलाऊंगा? पापियों का नाश कैसे करूंगा, दुष्टों का संहार कैसे करूंगा? अधर्म का नाश तथा धर्म की स्थापना कैसे करूंगा?
    इस पर नारदजी बोले: साहब जिससे नकल करके मैने यह सेफ्टी पालिसी बनाई है उसमें तो यही नियम है। इसे कैसे हटा दूं मुझे समझ नहीं आता। जानकारी नहीं है मुझे। आप या तो सेफ्टी पालिसी बनवा लें या धर्म की स्थापना कर लें।
    विष्णुजी बोले: फिलहाल तो मैं धर्म की स्थापना पर ही ध्यान दूंगा। तब तक तुम कोई ऐसी सेफ्टी पालिसी खोजो जिससे मेरे सुदर्शन चक्र के संचालन में कोई बाधा ना पडे।
    तबसे नारदजी ऐसी सेफ्टी पालिसी की तलाश में हैं जिसकी नकल करके वो स्वर्ग की सेफ्टी पालिसी बना सकें। मुझसे भी पूंछ चुके हैं कि क्या मैं उनकी सहायता कर सकता हूं?
    क्या आप उनकी सहायता कर सकते हैं?

  • 34 responses to “स्वर्ग की सेफ्टी पॉलिसी”

    1. ashish
      अरे इ तो दुसरे सुरक्षा की बात हुई रहिन इहाँ . हम तो समझे रहे की बहिन जी हमरा जैसा आम जनता खातिर सुरक्षा का कवनो परबन्ध करने का बिलवा लाई है . रिठेल हमने पहली बार झेली . एकदम( राप्चिक). साभार मुम्बैया बीडू .
    2. ashish
      अब मै क्या करूँ. तत्सम दोष है ये . मुझे तो सुरक्षा ही लगा . हा हा
    3. sanjay jha
      अभी पढना सुरु किये हैं………
      प्रणाम
    4. Ghanshyam Maurya
      बहुत ही बढ़िया लेख. हास्य में गंभीरता और गंभीरता में हास्य कैसे उत्पन्न किया जाता है यह आपसे सीखा जा सकता है. आपके लेख की एक लाइन मुझे अच्छी लगी. “जो जितना फालतू था उसके चेहरे पर उतनी ही व्यस्तता विराजमान थी.” इसे पढ़कर श्री लाल शुक्ल जी के उपन्यास ‘राग दरबारी’ की एक पंक्ति याद आ गयी. “गाड़ी से एक चपरासीनुमा अफसर और एक अफसरनुमा चपरासी नीचे उतरे.”
    5. sanjay jha
      ओह हो …… पूरा पढने के बाद याद आया ………. बीते दिनों कई बार पढ़ा है ……. किती बार ये याद नहीं आ रहा ………………………………………………………………………………………………………………………
      शास्वत लेखन/रचना कभी बासी/ फीकी नहींहोती………………………………………………………………….
      …………………………………………………………………………………………………………………………..
      आपके सोचने के अंदाज़ को कॉपी राईट करवा लें देव …………………… बी पी ओ वाले आउट-सोर्स के वास्ते
      खोज-बीन कर रहे हैं ……बाद में न कहें……बालक ने बताया नहीं………………
      …………………………………………………………………………………………………………………………….
      प्रणाम
      ====
    6. वन्दना अवस्थी दुबे
      अभी तो बस यहाँ की सेफ्टी का जायज़ा लेने आये थे, व्यवस्था से सम्बंधित विस्तृत रिपोर्ट की
      प्रतीक्षा करें. :)
      वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..एक दाढ़ का व्रत
    7. dr.anurag
      चका चक लेख…..आपके खजाने में काफी माल पड़ा है ….किसी दिन फुर्सत से टटोलेगे ….ऐसे मूड में ही रहा करिए लिखने का फ्लो बना रहता है …..
      dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..कभी चलना आसमानों पे मांजे की चरखी ले के
    8. shikha varshney
      पुराना उत्पाद भी खासा ताज़ा दिखा…..मस्त व्यंग आलेख है.
      shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..बस एक लौ
    9. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
      अपने लिए तो ताजे माल रहा….. खूब मजा लिए….
      नारद बाबा के सहायता के लिए तो दो-चार इधर उधर का सेफ्टी-पॉलिसी टटोलना पडेगा.. ससुरा ई इंटरनेट कॉपी-पेस्ट का आदत लगा दिया है…
      सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..छुट्टी कथा
    10. Shiv Kumar Mishra
      अद्भुत!
      बहुत फेवरिट लेख है मेरा. पहले भी पढ़ा था आज फिर से पढ़ा. मस्त है एकदम!!
      Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..हम मार्च मना रहे हैं
    11. Dr.ManojMishra
      गजब का लिखा है आपनें,यह पुरानी कहाँ हैं,एक दम ताज़ा है…
      Dr.ManojMishra की हालिया प्रविष्टी..गंवई शादियों में आइटम और आउटिंग
    12. सतीश पंचम
      इस लेख को पहले भी पढ़ चुका हूं…..संरक्षा और सुरक्षा वाला लफ़ड़ा बहुत चऊचक लफड़ा है……इसे निपटाने में अभी और कई हिंदी के सूरमाओं को होम होना पड़ेगा लगता है :-)
      बहुतै मस्त लेख।
      सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..बदनाम गली से गुज़रते हुएजैसा देखाजैसा समझा
    13. रकाब पर पांव

      ब्लॉग-फ़्रेन्डली रिसाइकिल्ड पोस्ट ।
      आपने तो शीर्षकवे को सार्थक कर डाला प्रभु !
    14. चंद्र मौलेश्वर
      `नारदजी अन्दर घुसे.वहां किसी फैक्टरी सा माहौल था.कुछ लोग धूप सेंक रहे थे,कुछ छांह की शोभा बढा रहे थे.कुछ चहलकदमी कर रहे थे,गप्परत थे कुछ ने अपने चरणों को विराम देकर मौनव्रत धारण किया था–मानों कह रहे हों इससे ज्यादा काम नहीं कर सकते वे.’
      खेद है कि पांच साल बाद भी स्थिति नहीं बदली :)
      चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगर-सर्वे – सहयोग की अपील
    15. काजल कुमार
      वाह ! कलम वो तलवार है जो अट्ठारह साल बाद, भोथरी होने के बजाय कहीं और ज़्यादा तेज़ ही होती जाती है.
      मेरे लिए यह लेख नया है.
    16. वन्दना अवस्थी दुबे
      न. इतने अद्भुत लेखन पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती. जितनी जल्दी हो सके, इन्हें पुस्तक रूप में समेटिये. संजय जी की सलाह पर भी ध्यान दिया जाए. कॉपी राईट करवा ही लें , वर्ना बहुत जल्द हम सब इसी शैली में लिखते दिखाई देंगे, तब दोष न दीजियेगा :)
      पूरी पोस्ट कॉपी-पेस्ट के लायक है सो किसी एक पंक्ति की तरफ ध्यान दिलाना दूसरी के प्रति अन्याय है, ये अन्याय हम तो नहीं ही कर सकते :) आपकी बहुत सी पुरानी पोस्ट हैं, जिन्हें “रि-पीट” कर हमें लाभान्वित करें :)
      वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..एक दाढ़ का व्रत
    17. प्रवीण पाण्डेय
      दुर्घटना के पहले का और बाद का हल्ला मचाना, सेफ्टी कहलाता है।
    18. भारतीय नागरिक
      ये तो सरकारी उत्सव हैं… कई वर्ष पहले एक विभाग में किसी विभाग ने दूरदर्शन पर विज्ञापन जारी किये.. अफसरों ने उस पर निगाह रखने के लिये टीवी खरीद लिये… जो बाद में उनके ड्राइंग रूम में चले गये…
    19. anitakumar
      खालिस अनूपिया पोस्ट्…वंदना अवस्थी दूबे से सहमत, अपनी शैली का पेटेंट निकलवा ही लीजिए, अपने पुराने खजाने को पुस्तक का रुप दीजिए…॥बाकी डिमान्डस बाद में बतायी जायेगीं…:)
    20. एक और आशीष
      बहुत करार व्यंग्य है, चोट करता हुआ |
      पर अफ़सोस कुछ भी नहीं बदला , इन १८ सालो में,
      लगे रहो फुरसतिया जी दो चार भी सुधर गए तो बहुत है ||
      आशीष श्रीवास्तव
    21. एक और आशीष
      और इस चोट के बावजूद ……………..
      परसाई जी के शब्दों में, “ये फुरसतिया है , ही राईट फनी थिंग्स.”
      आशीष श्रीवास्तव
    22. seema gupta
      तबसे नारदजी ऐसी सेफ्टी पालिसी की तलाश में हैं जिसकी नकल करके वो स्वर्ग की सेफ्टी पालिसी बना सकें। मुझसे भी पूंछ चुके हैं कि क्या मैं उनकी सहायता कर सकता हूं?
      ” हा हा हा हा हा नारदजी जी की सहायता आप ही कर सकते हैं…..हा हा हा हा ”
      regards
    23. rahul
      आप ने तो पुरे हे पुरे सरकारी दफ्टर का चरित्र चित्रण कर दिया है. साथ ही साथ यह भी बता है की हम आपने आप को तीस मर खान न ही समझे तो बेहतर होगा क्यों की हम हमारे पूर्वजो ( याने की पुराने सरकारी कर्मचारी) की हरमखोरी के स्कूल के फिच्ली बेंचे पैर बैठे हुए फिसड्डी छात्र है /
      ज्यादा से ज्यादा आपनी सव्स्थ्य हरामखोरी की परंपरा को आगे बदने में लगे है/
      आफसोस की ये ईतिहास नहीं है/
      लेख को व्यंग कहने की तथा नहीं है/
    24. Zakir Ali Rajnish
    25. hamarivani.com
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      अधिक जानकारी के लिए पढ़ें:
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    26. ashokgupta4
      प्रिय अनूप भाई ,
      व्यंग के तो बादशाह हो. क्या चित्र खिंचा है . हर वाकया में एक पञ्च है . लाफ्टर शो वालों से बच कर रहना पकर ले जायेंगे .
      एक बार तो एसा लगा मैं स्वर्ग में ही खरा हूँ .
      सरस्वती एंड गणेश जी आपके इस तेवर को बनायें रहें , यही कामना है .
      अशोक गुप्ता
      दिल्ली
      ashokgupta4 की हालिया प्रविष्टी..बधाई हो ! एक भारतीय नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित
    27. हिन्दी ब्लागिंग का वीरबालकवाद : चिट्ठा चर्चा
      [...] भी होता ही है। यही तो सेफ़्टी पालिसी है जैसा कि कहा गया है – किसी दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा [...]
    28. G C Agnihotri
      बहुत उर्वर दिमाग है
    29. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
      [...] स्वर्ग की सेफ्टी पॉलिसी [...]
    30. सिद्धार्थ जोशी
      अब आग लगी है तो सेफ्टी पॉलिसी बनके रहेगी।
      स्‍वर्ग में नृत्‍यांगनाओं के नृत्‍य के आग लग जाती है, ऐसे में विशिष्‍ट प्रकार के चश्‍मे तैयार किए जाएं, ताकि अप्‍सराओं के नृत्‍य के दृश्‍य पूरे कपड़ों में दिखाई दें। इससे स्‍वर्ग में अपेक्षाकृत सेफ माहौल बनेगा।
      कृपया कर यह संदेश नारद मुनि तक पहुंचाएं। बहुत फायदा होगा स्‍वर्ग का…
      सिद्धार्थ जोशी की हालिया प्रविष्टी..इंद्रियों को जीतने वाले के आगे अप्‍सराओं का नृत्‍य
    31. ajit gupta
      इसे फुर्सत से पढती हूं।
      ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..हम चिड़ियाघर की तरह अपने-अपने कक्ष में बैठे हैं
    32. अनूप शुक्ल
      किसी दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा हल्ला जिस चीज का मचता है उसे सेफ्टी कहते हैं।

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