Thursday, January 12, 2012

रजाई अच्छी लगती है

http://web.archive.org/web/20140419214234/http://hindini.com/fursatiya/archives/2540

रजाई अच्छी लगती है

आजकल जाड़े का मौसम है। सब कुछ सिकु्ड़ा-सिकु्ड़ा सा हो रखा है। सर्दी के पहले अन्ना जी का आन्दोलन और क्रिकेट टीम की जीत की भूख बहुत फ़ैली थी। जाड़े के आते ही दोनों सिकुड़ गये। और तो और जाड़े के चलते मंहगाई के आंकड़े तक थोड़ा सिकुड़ गये। तेल के दाम ऊपर जाने वाले थे लेकिन मारे जाड़े के उसने भी अपनी आगे की यात्रा स्थगित कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि इस बार जाड़े के कारण कोई मौत नहीं होनी चाहिये। जाड़े के चलते वह आदेश भी बेचारा कहीं फ़ाइल में सिकुड़ के रह गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना हो रही है। लोग खुले आम खुले में जाड़े से निपट रहे हैं। पटापट मर रहे हैं।

लोग तेंदुलकर के महासैकड़े के कारण परेशान है। लग नहीं रहा है। लेकिन हमें लगता है कि उनके तो निन्न्यानबे के बाद तीन चार सैकड़े लग चुके हैं। तीन-चार सैकड़े लगे लेकिन मारे जाड़े के सारे के सारे सैकड़े सत्तर-अस्सी रन में सिकुडकर कर रह गये।

कहने को तो लोग यह भी कह रहे हैं कि तेंदुलकर अपना महाशतक आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के डर से नहीं लगा रहे हैं। कहीं चुनाव के मौसम में शतक लगाया और चुनाव आयोग ने इसे संज्ञान में ले लिया तो बेचारे का संभावित भारत रत्न न खतरे में पड़ जाये।

जाड़े के चलते बात करना भी आसान हो गया है। बात की शुरुआत ही जाड़े के सौन्दर्य वर्णन से होती है। जाड़ा बहुत है। इत्ता जाड़ा तो कभी नहीं पड़ा। सब कुछ सिकुड़ गया है। बातें जाड़े के आसपास केंद्रित होकर रह गयी हैं। लोगों के स्टेटस में जाड़े के सारे ताम-झाम पसरे हुये हैं। कोई सिगड़ी जला रहा है। कोई मूंगफ़ली चबा रहा है। कोई और जाड़े का हिसाब-किताब दिखा रहा है।
कवि लोग जाड़े में सर्दी वाली कवितायें निकाल रहे हैं। लम्बी-लम्बी कवितायें सिकुड़ के छोटी हो जा रही हैं। वे सूती कपड़ों की तरह सिकुड़कर बेडौल सी हो जा रही हैं। ऐसी उबड़-खाबड़ कविताओं को लोग अनगढ़ और मौलिक कहकर खपा दे रहे हैं। एक बड़ी कविता के मसाले से चार-चार पांच-पांच कवितायें फ़ूट रही हैं। फ़ूटते ही सब कवितायें मेले में बिछुड़े भाइयों की तरह अलग-अलग रास्तों पर चली जा रही हैं। कुछ कविताओं के बिम्ब मारे जाड़े के आपस में सटे जा रहे हैं। जाड़े के मारे वीर रस की कवितायें जरा नेपथ्य में चली गयी हैं। रोमांस की कविताओं का बाजार उठान पर है। हर अगला कवि अपनी अतीत में जाकर रोमांस की लकड़ियां बटोरकर सुलगा रहा है। लगाव के अलाव की मध्यम आंच से जाड़े का मुकाबला कर रहा है।

एक गद्यलेखक ने बीस-पचीस लाइनें लिखीं। मामला कुछ जमा नहीं। सारी पंक्तियां चुनाव के समय किसी राजनैतिक दल के नेताओं की तरह एक-दूसरे से गदर असहमत। किसी का ओर गायब तो किसी का छोर

उसने वे पंक्तियां मजाक-मजाक में अपने एक आशु कवि मित्र को थमा दीं। उसने उन पंक्तियों के अल्पविराम,पूर्णविराम दायें-बायें करके उनसे पंद्रह-बीस आशु कवितायें निकाल लीं। जहां कुछ ज्यादा झोल दिखा वहां समय, समाज, बाजार, निष्ठुर, अमानवीय, अकल्पनीय की बल्लियां लगाकर मजबूती प्रदान कर दी। कविताओं के अंत में फ़ुटनोट सटा दिया- अपने अमुक मित्र से गुफ़्तगू के बाद उपजे मन के भाव।
शहरों का तो हाल ये है कि हर सर्दी पीड़ित शहर शिमला/मसूरी/नैनीताल बन गया है। सूरज और कोहरे में घमासान मचा हुआ है। कभी कोहरा सारी सब चीजों को ऐसे ढक लेता है जैसे भ्रष्टाचार सारे देश में पसरा है। अंधकार कोहरे की सहायता करता है। इसके उलट कभी सूरज कोहरे की चादर तार-तार करके अंधकार तत्वों की तुड़ैया करते हुये रजाई की रूई की तरह धुनकर उनको दिवस मंच के नेपथ्य में पटक देते हैं। दोनों का संग्राम मीडिया चैनल की बहस सा बिना किसी नतीजे पर पहुंचे जारी है।

और तो और मारे जाड़े के नये घपले-घोटाले तक निकलकर सामने नहीं आ रहे हैं। सब जाड़े के परदे के पीछे छिपे परदे को अपने दांतों के बीच फ़ंसाये बेशर्मी से मुस्करा रहे हैं। जाड़े का परदा गिरते ही सब बाहर आयेंगे।
जाड़े के मौसम में सबसे अच्छी चीज रजाई लगती है। रजाई और गद्दा आपस में लस्टम-पस्टम पड़े रहते हैं। कोई एतराज नहीं करता जाड़े के मौसम में। सब खुल्ली छूट। हालांकि कहने को आप कह सकते हैं कि केवल रजाई ही क्यों? स्वेटर, मफ़लर, इनर,कोट, गद्दा, तकिया, कम्बल,हीटर,गीजर आदि ने कौन अपराध किया है जिसके अच्छे लगने की बात नहीं की गयी है। तो हम तो यही कहना चाहेंगे कि भाई अपनी-अपनी पसंद है। हमको रजाई पसंद है। आपको जो पसंद हो वो करिये।

और ज्यादा लिखने की हिम्मत नहीं है। जाड़ा बहुत जोर पड़ रहा है। :)
चित्र फ़्लिकर से साभार! :)

31 responses to “रजाई अच्छी लगती है”

  1. देवांशु निगम
    जड़ा गए हम तो पोस्ट पढ़के!!!! मारे जाड़े के काँप रहे हैं :) :) :)
    अपने यहाँ तो मूर्तियों को भी ठण्ड लगने लगी, सिफारिश करनी पड़ी कि हमको चद्दर उढाओ नहीं तो ठण्ड के मारे गिर पड़े तो लेने के देने पड़ जायेंगे :) :)
    — आपकी पोस्ट पढनें के बाद उपजे मन के भाव। :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..वो “सात” दिन : मुख्य अंश और एक “एक्सक्लूजिव” साक्षात्कार…
  2. satish saxena
    ठण्ड लग रही है, हम भी चले रजाई में ….
    शुभकामनायें आपको !
  3. amit srivastava
    ये मुई रजाई ,बड़ी जालिम होती है | अन्दर ही अन्दर बड़े गुल खिलाती है और तमाम कहानियाँ जन्म लेती है ,इसके भीतर |
  4. संतोष त्रिवेदी
    इस बरफ-सी ठण्ड में ,टीप भी सिकोड़ दी,
    लिख देते वर्ना,पेज-दो-पेज हम !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..विज्ञान सेमिनार में ब्लॉगर-मिलन !
  5. सलिल वर्मा
    लगता है कानपुर में धूप निकल आयी है, तभी आपकी पोस्ट उतनी नहीं सिकुड़ी जितना हम सिकुड़े पड़े हैं दिल्ली में!! सोचा तो बहुत मुछ लिखने को, लेकिन कुछ विचार सिकुड गए, कुछ शब्द, कुछ प्रतिक्रियाएं.. लिहाजा धूप में गरमा कर इसे पूरे विस्तार के साथ देखें.. बाकी तो सब चकाचक है!!
    सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..कन्फ्यूज़न
  6. Shikha Varshney
    हाँ और जाड़े में एक ऐसी अच्छी पोस्ट का जनम भी हो जाता है :)..हम भी जा रहे हैं मूंगफली खाने .
    Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..यूँ ही …..कभी कभी…
  7. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    जाड़े में सिकुड़े बैठे आदमी को कोई जोर की गुदगुदी कर दे तो क्या होगा?
    अगर संभल नहीं पाया तो शायद अस्त-व्यस्त हो जाएगा। लेकिन हँसते हँसते शरीर में थोड़ी गर्माहट जरूर आ जाएगी।
    .
    ..
    आपने यह पोस्ट लिखकर ऐसी ही गुदगुदी कर दी है।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..जाओ जी, अच्छा है…
  8. प्रवीण पाण्डेय
    जाड़े की रजाई यहाँ नहीं है, कितनी कोशिश कर लें, ठिठुरन आती ही नहीं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ऐसी सजनी हो
  9. देवेन्द्र पाण्डेय
    बड़ी मस्त पोस्ट लिखी है। रजइये में पढ़ रहा हूँ अउर गरम हो रहा हूँ। :)
  10. भारतीय नागरिक
    देखिये न हम भी एक पेज की टीप देने जा रहे थे, बेचारी सिकुड़ गई और चंद लाइनों में ही सिमट गई. लेकिन वर्तमान समय तो शर्म का है. मैं तो शर्म के चलते चलते पानी पानी हो रहा हूँ. और यह टीप भी कुपोषण का शिकार हो गयी है.
  11. मनोज कुमार
    सुना है एक राज्य में मूर्तियों को चद्दर ओढ़ाया जा रहा है। कहीं वह भी जाड़े से बचने-बचाने के लिए तो नहीं … ?!
  12. anita
    :) टिप्पणी सिकुड़ गयी है, जाड़े की जय हो
  13. काजल कुमार
    सब कुछ सिकु्ड़ा-सिकु्ड़ा सा हो रखा है (सर्दी के सिवा)
    :)
  14. arvind mishra
    रजाई पर पोस्ट को रजाई में ही पढी -हैं न कुछ अलंकारिक?:)
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..लोकतंत्र के महायज्ञ में धनबल और बाहुबल की आहुति
  15. Anonymous
    लगाव के अलाव में जुराव हो रहा है………………
    बरी धिन्चक पोस्ट है जी………
    प्रणाम.
  16. sanjay jha
    लगाव के अलाव में टिपण्णी का जुराव कर रहे हैं ……………..
    ये तो बरी धिन्चक पोस्ट है जी
    प्रणाम.
  17. प्राइमरी के मास्साब
    बहुते जड़ही पोस्ट निकली !
    पढतेहे किटकिटा गए !
    प्राइमरी के मास्साब की हालिया प्रविष्टी..लीजिए हाजिर है ब्लॉगर.कॉम पर थ्रेडेड कमेन्ट सिस्टम : बिना किसी टोटके के !
  18. rachna
    सर्दी गर्मी या हो बरसात
    अनूप शुक्ल को लड़कियों के फोटो मिल ही जाते हैं चेपने को
    अफ़सोस
    rachna की हालिया प्रविष्टी..अतीत से वर्तमान में , नारी की स्थिति
  19. shefali
    :]
  20. Laxmi N. Gupta
    अनूप जी,
    नया साल मुबारक हो। बहुत बढ़िया लिखा है; मज़ा आ गया। जाड़ के बारे में दो कहावतें याद आ रही हैं:
    जाडु जाय रुई कि जाड़ु जाय दुई।
    लरिकन का हम छेड़तेन नाहीं, ज्वान लगैं सग भाई।
    बूढ़ेन का हम छोड़तेन नाहीं, चहै ओढ़ैं सात रजाई।।
    लक्ष्मी
  21. Kalimullah
    Very interesting
    जाड़ा अगर इनसानों की मुसीअबतें भी सुकेड़ दे तो बात बने, वरना हर मॊसम अच्छा लगता हॆ
    दिल का मॊसम सुन्दर होना चाहिये
  22. Dr. Utsawa K. Chaturvedi, Cleveland, USA
    जाड़े , रज़ाई-गद्दे और उसे बनाने वाले धुनियें के सन्दर्भ में अपने कुछ पुराने शेर याद आ गये !
    ऐ नए साल ! ये दस्तूरे-ज़माना क्या है,
    मांगता भीख जो संसार को खिलाता है.
    दूसरों के लिए गद्दे बना बना कर भी,
    रात धुनियाँ सदा फ़ुटपाथ पर बिताता है.
  23. Abhishek
    :) पोस्ट सच में सिकुड़ गयी लगती है :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..२०११…
  24. अंतर्मन
    वाह शुक्ल जी मान गए| खिचड़ी एवं नव वर्ष की शुभकामनाएं!
  25. Sanjeet Tripathi
    अजी, बस कांपते हुए ही रात के डेढ़ बजे आपकी यही पोस्ट पढ़ रहे हैं, हमें तो वैसे भी और लोगों से ज्यादा ठण्ड लगती है, छत्तीसगढ़ में एक शब्द है “जरजुडहा”, अपन दी सेम हैं ;) अब आप हमारे ब्लॉग पे तलाशो कि अपन ने इस शब्द का उपयोग अर्थ बताते हुए किस पोस्ट में किया कि तब प्रत्यक्षा जी ने भी आके कहा कि वो भी “जरजुडहा” हैं… अपन तो चले रजाई में ;) टाटा गुडनाईट
  26. आशीष श्रीवास्तव
    मज़ा आ गया जी पढ़कर ……
    लगता है हाथी नहीं सिकुड़ा , नहीं तो ढकने के पैसे बच जाते …..
    आशीष श्रीवास्तव
  27. indra
    “सर्दी गर्मी या हो बरसात
    अनूप शुक्ल को लड़कियों के फोटो मिल ही जाते हैं चेपने को
    अफ़सोस”
    इस कमेन्ट का मतलब और और इस पोस्ट से इसका सम्बन्ध ढूँढने के लिए रजाई से निकलना पड़ेगा – लगता है कोई बड़ी ऊंची बात है इसमें.. :-)
    1. soniya
      लगता हैं नयी अहाट हैं ब्लॉग जगत में आप की वर्ना नीची बात का उंचा मतलब ना खोजेते
  28. : तुम्हारी याद गुनगुनी धूप सी पसरी है
    [...] मेरी पोस्ट पर रचना जी की टिप्पणी थी: सर्दी गर्मी हो या बरसात अनूप शुक्ल को लड़कियों के फोटो मिल ही जाते हैं चेंपने के लिये अफ़सोस [...]
  29. atamprakashkumar
    अति सुंदर |
    मेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं |
    अपनी प्रतिक्रिया आवश्य दें |
    http://kumar2291937.blogspot.com
    atamprakashkumar की हालिया प्रविष्टी..लड़ रहे नेता यहाँ संसद भवन में
  30. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] रजाई अच्छी लगती है [...]

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