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घर से बाहर जाता आदमी
By फ़ुरसतिया on January 17, 2012
घर से बाहर जाता आदमी
घर लौटने के बारे में सोचता है।
घर से निकलते समय
याद आते हैं तमाम अधूरे छूटे काम
सोचता है एकाध दिन और मिलता
तो पूरा कर लेता ये भी और वो भी।
तमाम योजनायें बनाता है मन में
सब कुछ एक आदर्श योजना जैसी बातें।
घर से बाहर जाता आदमी
सोचता है बच्चे को नियमित पढ़ने को कहेगा
रोज पूछेगा क्या किया बेटा आज दिन में
क्या पढ़ा क्या लिखा!
वो सोचता है बाहर रहकर फ़िर से
पढाई करेगा ताकि बच्चे को
पढ़ा सके जब कभी वापस घर जाये।
घर से बाहर जाता आदमी
तमाम ऐसे-ऐसे काम करने की सोचता है
जो घर में रहते हुये कभी सोचे ही नहीं उसने।
बहुत भला सा आदमी हो जाता है
घर से बाहर जाता आदमी!
घर से निकलता आदमी
देखता है
बच्चे का अचानक समझदार हो जाना
उसका जिद छोड़कर फ़ौरन सहमत हो जाना
कुछ ही क्षणों में उसका अचानक बड़ा हो जाना।
घर से बाहर निकलता आदमी
एस.एम.एस. करता है पत्नी को-
किसी बात की चिंता मत करना
हमेशा मुस्कराती रहना!
बच्चे को लिखता है-
मम्मी को तंग मत करना
उनका ख्याल रखना!
घर से बाहर निकलता आदमी
सोचता है मन में
पत्नी को रोज एक खत लिखेगा
जिसमें होगा दिन भर का सारा मोटा महीन हिसाब
किससे मिला, क्या किया और किससे बातें की।
और वो सब तमाम बातें
जो साथ रहने पर स्थगित होती रहीं
यह सोचते हुये कि
साथ ही तो हैं
कभी कर लेंगे तफ़सील से।
घर से बाहर जाता आदमी
घरवालों की
वो सब शिकायतें दूर करने की सोचता है
जिनको घर में रहते हुये
कभी शिकायत समझा ही नहीं उसने।
सोचता है कि बाहर रहने के दौरान
मां की तबियत पूछेगा
दिन में कम से कम एक बार।
समय से पहले भेज देगा दवाईयां
जो हफ़्तों लाना टालता रहा
साथ रहते हुये।
सोचता है कि
दोस्तों को फ़ोन करेगा
बतायेगा नयी जगह के बारे में
और यह भी उनकी याद आती है अक्सर।
घर से बाहर जाता आदमी
घर लौटने के बारे में सोचता है।
इस कविता को सुनने के लिये नीचे क्लिकियाइये:
समय: 2.58 मिनट
रिकार्ड किया: 27.10.13
रिकार्ड सटाया:27.10.13
शहर: जबलपुर
आवाज: अनूप शुक्ल
घर लौटने के बारे में सोचता है।
घर से निकलते समय
याद आते हैं तमाम अधूरे छूटे काम
सोचता है एकाध दिन और मिलता
तो पूरा कर लेता ये भी और वो भी।
तमाम योजनायें बनाता है मन में
सब कुछ एक आदर्श योजना जैसी बातें।
घर से बाहर जाता आदमी
सोचता है बच्चे को नियमित पढ़ने को कहेगा
रोज पूछेगा क्या किया बेटा आज दिन में
क्या पढ़ा क्या लिखा!
वो सोचता है बाहर रहकर फ़िर से
पढाई करेगा ताकि बच्चे को
पढ़ा सके जब कभी वापस घर जाये।
घर से बाहर जाता आदमी
तमाम ऐसे-ऐसे काम करने की सोचता है
जो घर में रहते हुये कभी सोचे ही नहीं उसने।
बहुत भला सा आदमी हो जाता है
घर से बाहर जाता आदमी!
घर से निकलता आदमी
देखता है
बच्चे का अचानक समझदार हो जाना
उसका जिद छोड़कर फ़ौरन सहमत हो जाना
कुछ ही क्षणों में उसका अचानक बड़ा हो जाना।
घर से बाहर निकलता आदमी
एस.एम.एस. करता है पत्नी को-
किसी बात की चिंता मत करना
हमेशा मुस्कराती रहना!
बच्चे को लिखता है-
मम्मी को तंग मत करना
उनका ख्याल रखना!
घर से बाहर निकलता आदमी
सोचता है मन में
पत्नी को रोज एक खत लिखेगा
जिसमें होगा दिन भर का सारा मोटा महीन हिसाब
किससे मिला, क्या किया और किससे बातें की।
और वो सब तमाम बातें
जो साथ रहने पर स्थगित होती रहीं
यह सोचते हुये कि
साथ ही तो हैं
कभी कर लेंगे तफ़सील से।
घर से बाहर जाता आदमी
घरवालों की
वो सब शिकायतें दूर करने की सोचता है
जिनको घर में रहते हुये
कभी शिकायत समझा ही नहीं उसने।
सोचता है कि बाहर रहने के दौरान
मां की तबियत पूछेगा
दिन में कम से कम एक बार।
समय से पहले भेज देगा दवाईयां
जो हफ़्तों लाना टालता रहा
साथ रहते हुये।
सोचता है कि
दोस्तों को फ़ोन करेगा
बतायेगा नयी जगह के बारे में
और यह भी उनकी याद आती है अक्सर।
घर से बाहर जाता आदमी
घर लौटने के बारे में सोचता है।
इस कविता को सुनने के लिये नीचे क्लिकियाइये:
समय: 2.58 मिनट
रिकार्ड किया: 27.10.13
रिकार्ड सटाया:27.10.13
शहर: जबलपुर
आवाज: अनूप शुक्ल
Posted in कविता, पाडकास्टिंग, बस यूं ही | 54 Responses
सुनने में पढ़ने से ज्यादा आनंद आया..
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