By फ़ुरसतिया on January 2, 2012
नया साल कल से शुरु हो गया। हमने भी इसके स्वागत की तैयारियां कर रखीं थी। मोबाइल में संदेश बाउचर भरवा लिये और पैसे भी। सोचा कुछ को फ़ोनियायेंगे, कुछ को अपनी तरफ़ से संदेशा भेजेंगे। बाकी जिसका जैसा होगा वैसा ही थैंक्यू, सेम टू यू कर देगे। नये साल के संदेशिया हमले का मुकाबले के लिये हम एकदम तैयार हो गये थे। दो दिन पहले से ही।
जब नया साल आया तो सबसे पहला गच्चा संदेश वाउचर ने दिया। हमारे एक मित्र का संदेश आया। संदेश की अंग्रेजी इतनी कड़क और मुलायम एक साथ कि हमें लगा कि न तो इसे हमारे मित्र ने भेजा और न ही यह हमारे लिये है। बहरहाल हमने उसे श्रद्धापूर्वक पढ़कर थैंक्यू, सेम टू यू के साथ कुछ और शुभ-शुभ अंग्रेजी नत्थी करके भेज दिया। अच्छे आगाज से हम खुश होने ही वाले थे कि मोबाइल बैलेंस से पैसे कटने का संदेशा आ गया। मोबाइल की जेब से पचास पैसे निकल गये थे। जानकारी की तो पता किया कि नये साल के मौके पर संदेश वाउचर काम नहीं करता। हमने कहा- हत्तेरे की। लगा कि देश के सब लोग सचिन के फ़ालोवर हो गये। ऐन टाइम पर क्लिक नहीं करते। इस पूछा-ताछी में दो रुपये का चूना और लग गया। दो रुपये मतलब चार अखिलभारतीय हैप्पी न्यू ईयर। लोकल करते तो दस पैसे और लगाकर सात दोस्तियां निभ जातीं।
अब हमको अपने मोबाइल पर आता हर संदेशा गोली की तरह लगता। जिसका जबाब देने का मन होता भी और नहीं भी होता। मोबाइल पर संदेश आता। टप्प से आवाज होती। उत्सुकता से खोलते। पढ़ते। पढ़ते ही लगता कि अब इसका भी जबाब देना पड़ेगा। शुभकामनायें पाने की खुशी जबाब देने के काम के बोझ के नीचे दब जातीं।
श्रीमतीजी के सुझाव पर हमने जिसके-जिसके संदेशे आये थे उन सबको फ़ोनियाना शुरु किया। सोचा जहां खर्चा वहां सवा खर्चा। कौन नया साल रोज-रोज आता है। कुछ फ़ोन फ़ौरन मिल गये। फ़ोन पर शुभकामना प्रोजेक्ट पूरा होते ही उसका संदेशा मिटा दिया। इसका तो काम पूरा हो गया। जिसका फ़ोन नहीं मिला वो बड़ा भला लगा। हालांकि ऐसे फ़ोन दुबारा भी मिलाये। लेकिन मन में डर हमेशा लगा रहा कि कहीं फ़ोन मिल न जाये। जब कोई फ़ोन नहीं मिला तो पहले तो सुकून की सांस ली। फ़िर उसको नये साल का संदेशा भेजा। मोबाइल से संदेशे के पैसे जैसे ही कटे वैसे ही उसका शुभकामना संदेश मन के इनबाक्स में सुरक्षित करके मोबाइल से उसे तिड़ी कर दिया।
कुछ संदेशे ऐसे आये भी आये थे जिनसे भेजने वाले का पता नहीं चला। इसके पीछे हमारा भी दोष है। पिछले साल हमारे मोबाइल ऐसे बदले जैसे कि हर साल के संकल्प बदलते हैं। कुछ मित्रों ने अपने नाम लिखे लेकिन अधूरे। एक ही पहले नाम वाले कुछ दोस्तों से एकदम अलग-अलग प्रोटोकाल वाले संबंध हैं। कुछ से अमेरिका जैसे कुछ से पाकिस्तान जैसे। एक से आंख उठाकर भी देखने पर आंख निकाल लेने वाले और दूसरे से कपड़े उतरवा लेने पर भी इट्स नाट फ़ेयर भर कहकर रह जाने वाले। कुछ से अबे-तबे वाले और कुछ से एकदम साइबेरियन गर्मजोशी वाले। ऐसे सारे मित्रों से बातचीत अंधेरे कमरे में टटोलते हुये मोमबत्ती खोजने सरीखी रही। जिनका फ़ोन नहीं मिला उनको सुकून से संदेशा भेजकर उनका नया साल मुबारक कर दिया।
उधर फ़ेसबुक और ईमेल पर भी शुभकामना मोर्चा खुला था। फ़ेसबुक पर कई मित्रों ने अपने शुभकामना संदेशों के साथ हमारा नाम नत्थी कर दिया था। इसे भले लोगों की भाषा में टैगिंग कहते हैं। होता यह कि उस टैग में जित्ते भी लोग शामिल हैं उनमें से किसी का भी मन होता तो वह कभी भी तड़ से शुभकामना का गोला दाग देता। वो गोला टप्प से हमारे मोबाइल पर बजता। हम खोजते कि गोला दगा कहां है- फ़ेसबुक पर, ट्विटर पर या एस.एम.एस. बक्से में। जिस भी बक्से में दगता गोला वहां सितारे की तरह निशान बन जाता। जाकर उसे खोलते तो संदेश बक्सा फ़िर जैसे थे हो जाता।
ये फ़ेसबुक की टैगिंग भी न हमको ऐसी लगती है जैसी किसी लचर सी घटना में पूरे गांव को किसी मुकदमें में नामजद कर दिया गया हो। घटना से संबंध हो न हो लेकिन हर तारीख में सम्मन जरूर आयेगा। टैग करने वाले बेचारे सोचते हैं कि अगर कई लोगों को फ़ेसबुक पर टैग करके जुलूस न बनाया तो सूचना अकेली पड़ जायेगी। घटना का जुलूस निकल जायेगा। टैगिंग से लोगों को सामूहिकता का एहसास होता है। लगता है इत्ते लोग हैं साथ में। सूचना सुरक्षित रहेगी। सूचना के साथ कोई ऊंच नीच न होगी। दुर्घटना से बचाव रहेगा। टैगिंग फ़ेसबुक में विचरते लोगों में सुरक्षा का एहसास देती है।
कभी-कभी लगता है टैग जहां हुये वहां से अपना नाम हटा लें। कह दें इस सूचना या घटना से हमारा कोई संबंध नहीं है। लेकिन इतना निष्ठुर बना नहीं जाता। लगता है जिसने इतने विश्वास से नत्थी किया उसका विश्वास कैसे तोड़ दें। उसके प्रेम के धागे को कैसे चटका दें।
बहरहाल इसीतरह नये साल का पहला दिन बीत गया। इसी तरह साल भी बीत जायेगा। नये साल के अवसर पर कोई संकल्प न लेने का संकल्प हम पहले ही कर चुके थे। उसी को निभाया गया। इस बीच शुभकामना संदेश आते जा रहे हैं। टैगिंग रेस्पांस चालू आहे। फ़ोन लाइने व्यस्त रहने का बहाना खतम हो गया है। नया साल एक दिन पुराना हो गया है।
ये तो रहे हमारे नये साल के किस्से। आपका कैसा बीता नया साल का पहला दिन?
नोट: फ़ोटो फ़्लिकर, फ़ेसबुक और निरंतर से साभार।
Posted in बस यूं ही | 49 Responses
ashish की हालिया प्रविष्टी..ओ दशकन्धर
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..एलिस इन वंडरलैंड
समंदर नदी को बहुत प्यार देना
ये ऊंचे घराने से आई हुई है.
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..नया साल और लदर फदर यात्री
टैगिंग हमें भी बहुत परेशान करती थी इसलिए हमने सेटिंग बदल दी. आप भी कर दीजिए. या वहाँ जाकर अपना टैग हटा दिया कीजिये, कोई बुरा नहीं मानेगा. सूचना आप तक पहुँच गयी बस.
aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…
टैगिंग से बचने के लिये सेटिंग क्या बदलें। चलने दिया जाये। दोस्त ही तो हैं।
नये साल की मंगलकामनायें।
नया साल मुबारक हो. हैपी न्यू ईयर.
नया साल आपौ को मुबारक हो! शुभ हो! हैप्पी हो।
नववर्ष के लिये शुभकामनायें।
वैसे हम जरा कंजूस टाईप के शुभकामनावादी हैं, लोग हैं कि अपनी टिप्पणीयों में बारहों महीने शुभकामनाएं देते रहते हैं, वो अनयूज्ड वाउचर ऐसे लोगों को दे दिजिये ताकि वे उसी में से आपको सालभर कामनायें लौटाते रहें
नया साल आपको भी मुबारक हो।
अब हम इत्ते भी वो नहीं हैं कि अपना वाउचर और फ़ोन का गठबंधन जरा सी बात पर तोड़ दें। हमारे वाउचर हमारे ही फोन पर पड़े हुये हैं। कभी न कभी काम आयेंगे ही। जायेंगे किधर?
और मैंने भी नए साल पर की संकल्प न लेने का संकल्प पहले ही कर लिया था
abhi की हालिया प्रविष्टी..यादों में एक दिन : गिफ्ट
फ़ोन के रेस्पोस्न्स ने सुभकामनाओं के बमबार्डिंग से आपको खूब बचाया……………कुछ अतरिक्त फ़ोन पे खर्च करी जाई……….
प्रणाम.
खर्चा किया जायेगा फोन पर भी।
शुभकामनायें।
कुश भाई “टैगिंग पीड़ित ” की हालिया प्रविष्टी..कहानी के इस भाग के प्रायोजक कौन है ?
जिस-जिसने मुझे उपकृत किया उसे यही मेल टिका दिया। ऑटोमेटिक।
यह मात्र एक सुझाव है जिसपर मैं अमल नहीं कर पाया।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..जाओ जी, अच्छा है…
सही है। अभी न कर पाये तो नये साल पर करियेगा। सुझाव पर अमल तो होना ही चाहिये।
आप और कुछ अन्य लोगों को मेल पर ही सन्देश दे मारा,कुछ को चैट में पेस्ट कर दिया.इस तरह मिला-जुला कर ,फेसबुक का भी सहारा लेकर ,नए की औपचारिकता मना ली.
सच में,साल का पहला दिन मेरे लिए तो बड़ा व्यस्त और तनावपूर्ण रहा ,फिर भी आपको यह साल और मालामाल करे ,ऐसी कामना पुराने मंदिर वाले बाबा से है !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..गया साल ,नया साल
हमारा तो नया साल मजेदार रहा। कौनौ तनाव नहीं।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ध्यान कहाँ है पापाजी ?
dhiru singh की हालिया प्रविष्टी..टारगेट ……अचीवमेंट ……इंसेंटिव
नये साल की मंगलकामनायें।
साल के पहले दिन दफ़्तर न जाना पड़े, तो अच्छा होना ही था।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..आ गया है साल नूतन
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..टाइम, स्पेस और एक प्री-स्क्रिप्टेड शो
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..व्यक्तित्व रहस्य
“टैगिंग” का हिंदी रूपांतरण…नत्थी करना ..वाह वाह ….
टैगिंग से मई भी काफी परेशान हूँ, पता नहीं , कौन कब कहाँ से और काहे टैग कर दे पता नहीं, (कई-कई बार तो “अमानुष” बनना ही पड़ता है, कैरेक्टर पे सवाल खड़े हो जाते हैं )
नए साल की ढेरों शुभकामनायें!!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..रिसर्च-ए-पियक्कड़ी
हमारा न नभी फ़ोहीं मिला
हमारा भी फोन नहीं मिला
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..राजधानी में सर्दी का प्रकोप – नपुंसक जनता एक बार फिर गिलाफ में गुस गयी
हम कहे बस करो, फुरसतीया ही हैं जो वाउचर इस्तेमाल कर रहे हैं
“हुए इस तरह तहज्जुब , कभी घर का मुंह न देखा,
कटी उम्र होटलों में, मरे अस्पताल जाकर ”
और विशुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाय तो हर बार फोनियाने पर हमारा दिमाग उतने समय के लिय कुछ वाट रेडियो तरंगों को सोखता है. यह दीगर बात है की इसके दुष्परिणाम की बात करने में हर वैज्ञानिक डरता है, उसे पिछड़ा और तकनीक का दुश्मन न घोषित कर दिया जाय .
–कम से कम जहाँ बिना सेल फ़ोन से काम चल जाय, वहाँ तो इसका उपयोग न ही करना उचित है.
Abhyudaya की हालिया प्रविष्टी..First Date