Wednesday, March 21, 2012

आर्ट ऑफ़ लिविंग और टाट पट्टी वाले स्कूल

http://web.archive.org/web/20140419214436/http://hindini.com/fursatiya/archives/2730

आर्ट ऑफ़ लिविंग और टाट पट्टी वाले स्कूल

हमारे देश की शिक्षा नीति रास्ते में पड़ी कुतिया है। जिसका मन करता है दो लात लगा देता है।– श्रीलाल शुक्ल
आज सुबह सुबह अखबार में श्री श्री रविशंकर का एक बयान पढ़ा। जीने की कला सिखाने वाले गुरु जी का कहना था कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई से नक्सलवाद को बढ़ावा मिलता है। सरकारी स्कूल बन्द करके उनकी जगह निजी स्कूल खोलने चाहिये।

जिस स्कूल का उद्घाटन करते हुये उन्होंने यह बयान जारी किया उसके जैसे स्कूल खोलने की बात कही गुरु जी ने।

पता नहीं आपको कैसा लगे यह लेकिन हमको यह समाचार पढ़कर बड़ा खराब लगा। कैसे बचकाना बयान जारी करते हैं ये गुरु जी। सरकारी स्कूलों को बन्द करने की बात इस आधार पर करते हैं कि वहां नक्सलवाद को बढ़ावा मिलता है। निजी स्कूल खोले जायें ताकि नक्सल समस्या हल हो सके।

ये तो गरीबी हटाने की जगह गरीब हटाने जैसी समझदारी की हो गयी।

अपने के जान पहचान के कई दोस्त हैं जो रविशंकर जी का गाना गाते हैं। उनके भक्त हैं। बताते हैं कि गुरुजी की सिखावन से उनका व्यक्तित्व बदल गया। वे सबके भले की सोचने लगे। अहम विलुप्त हो गया।

भली बात है। तगड़ी फ़ीस लेकर भी कोई गुरु किसी में इत्ता सुधार कर सके तो बहुत अच्छा काम है।

लेकिन कुल मिलाकर जैसी छवि उनकी मेरे मन में बनी है उसके हिसाब से वे अगर अपनी हर आर्ट ऑफ़ लिविंग सिखाने के लिये हमें भुगतान भी करें तब भी अपन उनकी जीने की कला सीखने न जायेंगे (भले ही इसे कोई अपन की बेवकूफ़ी कहे हमें कोई एतराज नहीं होगा उलटे हम समर्थन ही करेंगे इस बात)।

जबसे रवि शंकर जी के बारे में और भी बातें सुनी। इधर पिछले कुछ दिनों से रवि शंकर जी समझौता विशेषज्ञ के रूप में भी उभरे हैं। हाई प्रोफ़ाइल लोगों के अनशन तुड़वा के उनकी जान बचाने का पवित्र काम भी उन्होंने किया।

सरकारी स्कूलों की हालत अच्छी नहीं है यह सब जानते हैं। सुविधा विहीन, संसाधन विहीन सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की हालत मासाअल्लाह है। स्कूलों में अध्यापक पढ़ाते नहीं हैं। दूर दराज के स्कूलों में मास्टर लोगों ने अपनी पढ़ाई का काम आउटसोर्स कर दिया है। पढ़ाता कोई है पैसा किसी को मिलता है। पढ़ाने वाले को वेतन का कुछ हिस्सा देकर मास्साब मजे करते हैं। भ्रष्टाचार के पैमाने पर भी सरकारी स्कूलों के विभाग काफ़ी ऊंचे दर्जे में आयेंगे।

इन्हीं कारणों से अगर सुविधा हो तो लोग अपने बच्चों को किंडरगार्डेन से शुरु करके एबीसीडी वाले अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं।

लेकिन सरकारी स्कूल बंद करके निजी स्कूल खोलने से अगर नक्स्ल समस्या का हल निकल आये तो क्या कहने। सरकार अपने सारे पुलिस बल, अमला नक्सल प्रभावित इलाकों से वापस में बुला ले और कह दे कि लौटते हुये सारे स्कूल गिराते आना। वहां निजी स्कूल खोले जायेंगे और नक्सल समस्या निपट जायेगी।
ऐसे उत्तम बयान कोई अमीर आध्यात्मिक गुरु ही दे सकता है।

अपन टाट पट्टी वाले सरकारी स्कूल में पढ़े हैं। कक्षा एक से पांच तक साल में बारह आने फ़ीस देकर ककहरा, गिनती-पहाड़ा सीखे और फ़िर अगले सरकारी स्कूल में कक्षा छह से दस तक पढ़े। आगे भी फ़ीस माफ़ वाले स्कूलों में ही पढ़े। पढ़ाई कभी खर्चीली नहीं लगी। आज अपन सोचते हैं कि अगर वो सरकारी स्कूलों की सुविधा न होती जहां अपन पढ़े हैं तो अपन भी कहीं ऐं-वैं टाइप काम करके दिहाड़ी कमा रहे होते। इंजीनियरिंग की पढ़ाई का तो सपना भी न देख पाते।

हमारे समय में समाज के ज्यादातर वर्ग के लोग एक सरीखे स्कूलों में पढ़ते थे। अमीर और गरीब के लिये एक ही स्कूल था। हमारे कई दोस्त बहुत पैसे वाले थे। कुछ के तो नौकर लगे थे स्कूल से लाने ले जाने के लिये। आपस में भेदभाव न भी हो लेकिन अमीर बच्चे गरीब बच्चों के साथ पढ़ते थे तो संवेदना में व्यापकता की गुंजाइश रहती थी। अमीर घर के बच्चों को यह समझने का मौका था कि गरीबी क्या होती है।

समय के साथ प्राइवेट स्कूल खुले और खूब खुले। स्कूल हैव्स और हैव्स नाट वाले स्कूलों में बंट गये। यथासंभव लोग अपने बच्चों को, भले ही अधकचरी शिक्षा मिले, अंग्रेजी स्कूलों में भेजने लगे। पहले पढ़ाई का खर्चा पता नहीं लगता था। बाद में वही सबसे बड़ा खर्चा लगने लगा। मियां बीबी दोनों लोग कमाते हुये भी अपने को हर तिमाही का पहला महीना बड़ा खराब लगता जब बच्चों की फ़ीस जमा करनी होती है।


जब सक्षम लोगों के बच्चे निजी स्कूलों में चले गये तो सरकारी स्कूलों का कोई माई बाप नहीं रहा। वहां वही बच्चे आते जिनके मां-बाप की औकात अपने बच्चों को मंहगे स्कूलों में भेजने की नहीं थी। जिन सरकारी स्कूलों से कई टापर बच्चे हर साल निकलते थे वहां के रिजल्ट शर्मिन्दा करने वाले हो गये।

अध्यापक वही हैं लेकिन बच्चे केवल वही आ रहे हैं जो और कहीं नहीं जा पाये।

निजी स्कूलों की भी कहानी लगे हाथ सुन ली जाये। सन अस्सी के बाद जब से कानपुर में प्राइवेट स्कूलों की बाढ़ आई तो मेरिट लिस्ट में अचानक प्राइवेट स्कूलों के बच्चों की बाढ़ आ गयी। सारी मेधा प्राइवेट स्कूलों में अंटी पड़ी थी।

पता लगा कि इन स्कूलों के प्रबंधकों ने अपने स्कूलों के अच्छे परिणामों के जबर मेहनत की। यह मेहनत बच्चों को दिन रात पढ़ाने के अलावा और भी अन्य क्षेत्रों में थी। जो बच्चे स्कूलों में अच्छे नंबर नहीं लाये उनको अपने यहां परीक्षाओं में बैठने नहीं दिया कि वे स्कूल का रिजल्ट खराब करेंगे। परीक्षा केन्द्र ऐसी जगह डलवाये ताकि बच्चों को हर तरह की सुविधा हो। इसके अलावा प्रायोगिक परीक्षाओं में बाहर से आने वाले परीक्षकों को मंहगे उपहार देकर अपने बच्चों के लिये मनमाफ़िक नम्बर जुटवाये। सरकारी स्कूलों में सिर्फ़ चाय-पानी। निजी संस्थानों में टेलीविजन सेट तक दिये गये मास्टरों को। फ़र्क तो होगा ही। इसके बाद कापी जहां जंचने गयी वहां भी मेहनत करके बच्चों को अच्छे नम्बर का इंतजाम किया। इतनी मेहनत के बाद जब बच्चे टाप किये तो स्कूलों में एडमिशन के लिये भीड़ लगी। फ़िर डोनेशन और तगड़ी फ़ीस। पैसा वसूल।

मिशनरी स्कूल छोड़ दिये जायें तो आमतौर पर सफ़ल निजी स्कूलों का किस्सा कुछ इसी तरह का रहा।

सरकारी स्कूलों की आज भले हालत खराब है लेकिन आज भी अपने समाज के तमाम ऊंचे पदों पर बैठे लोग इन्ही टाटपट्टी वाले स्कूलों से निकले लोग हैं जिनको बंद करने की बात आर्ट गुरु ने कही।

निजी स्कूल खोलने की मनाही है कहां? कोई रोक थोड़ी है। लेकिन वहां कौन निजी स्कूल खुलेगा जहां लोगों के खाने के लाले पड़े हैं। जिनकी साल भर की आमदनी दस हजार रुपये नहीं है वे एक तिमाही का दस हजार कैसे देंगे? कहां से देंगे।

मेरा अपना यह मानना है कि देश के सारे स्कूलों में शिक्षा की एक समान व्यवस्था होनी चाहिये। शिक्षा मुफ़्त हो। हर वर्ग के बच्चे एक से ही स्कूलों में पढ़ें। फ़ीस चुकाने की औकात के हिसाब से स्कूल न बंटें। शिक्षा की खिचड़ी व्यवस्था फ़ौरन बंद होनी चाहिये।

बाकी श्री श्री रवि शंकर जी महान व्यक्ति हैं। उनके बारे में कुछ कहना अपन को शोभा नहीं देता। लेकिन सरकारी स्कूलों में नक्सलवाद पनपने वाली कहते समय शायद उनको पता भी न होगा कि पिछले कुछ समय में तमाम संपन्न निजी स्कूलों के बच्चों ने अपने साथियों की हत्यायें की हैं। अध्यापकों को पीटा है। जान ली है। कृत्य-कुकृत्य किये हैं। तो क्या कुछ कुछ उजड्ड बच्चों की बेहूदी हरकतों के चलते सारे निजी स्कूल बंद कर दिये जायें?
सरकारी स्कूलों में पढ़ने मात्र से अगर नक्सली बनते होते तो सारा देश में आज नक्सली ही होते। गुरुजी खराबी सरकारी स्कूलों में नहीं हैं। खराबी व्यवस्था में है। खराब व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिये ये नहीं कि व्यवस्था ही खतम कर दी जाये।

गुरुजी आप अपने आर्ट आफ़ लविंग वाले स्कूल चलाइये। पैसे वालों को जीने की कला सिखाइये। गरीबों के सरकारी स्कूल चलने दीजिये गुरुजी। स्कूल बंद होने पर ये बच्चे आपके आर्ट आफ़ लिविंग स्कूल में आने से रहे। :)
चलते चलते: पिछले दिनों अपने टाट-पट्टी वाले स्कूल के गुरु जी से मुलाकात हुई। उनके बेटे की शादी थी। सालों बाद मिलना हुआ। बातों-बातों में स्कूल की बात चली तो उन्होंने बताया कि जब तक मैं नगर शिक्षा अधिकारी रहा तब तक स्कूल चलता रहा। स्कूल जिस भवन में चलता था उसके मकान मालिक ने स्कूल बंद करके मकान खाली करवाने के बहुत प्रयास किये लेकिन वे नहीं माने और स्कूल बंद करने का आदेश नहीं दिया। बाद में पता चला कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद अगले नगर शिक्षा अधिकारी ने स्कूल भवन को खतरनाक बताकर वहां स्कूल चलाने की मनाही कर दी। स्कूल बंद हो गया। उसका सामान थाने में जमा हो गया। मकान ऊंचे दाम पर बिक गया।

उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल बंद करने का आदेश देने के लिये अगले नगर शिक्षा अधिकारी ने मात्र पांच लाख रुपये लिये। :)

64 responses to “आर्ट ऑफ़ लिविंग और टाट पट्टी वाले स्कूल”

  1. चंदन कुमार मिश्र
    पढ लिए।
    क्या कहें अब ?
    फेसबुक पर यह लिखे थे, यहाँ भी वही दुहराते हैं-
    निजी विद्यालयों में तो महान लोग पैदा होते हैं! रविशंकर साफ कहते कि बालमंदिर में पढायें!
    हालाँकि सरकारी विद्यालयों की आलोचना की जानी चाहिये ही। लेकिन रविशंकर का कहना उनकी वर्ग पक्षधरता को बताता है।
    यहाँ मैं एक सवाल सब लोगों से पूछना चाहूँगा कि जो रविशंकर की बात पर बोल रहे हैं, वे अपने बच्चों को कहाँ पढाते हैं! बुरा लगे, इससे पहले सवाल दुबारा फिर पढ लिया जाय।
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..अक्षरों की चोरी (कविता)
  2. प्रवीण पाण्डेय
    सरकारी स्कूलों में अब कुछ निकल भी पाता है, चर्चा इस पर होनी थी। जो भी निकलता है, वह ट्यूशन में खप जाता है।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..होली के उन्माद में नाचना
  3. sushma
    “लेकिन कुल मिलाकर जैसी छवि उनकी मेरे मन में बनी है उसके हिसाब से वे अगर अपनी हर आर्ट ऑफ़ लिविंग सिखाने के लिये हमें भुगतान भी करें तब भी अपन उनकी जीने की कला सीखने न जायेंगे ” हम भी न जायेंगे. चकाचक लेख. वैसे ये शर्मनाक है की आज़ादी के सिर्फ ६० सालों में सरकारी स्कूलों का इतना बड़ा इन्फ्रा स्ट्रक्चर ढह गया और अब शिक्षा सर्व सुलभ नहीं ही हो सकेगी, चाहे कितने निजी स्कूल खुल जाए. अब तक सरकारी स्कूलों से ही पढ़कर बड़ी मात्रा में गरीब और मध्यवर्ग के बच्चे अपने लिए कुछ रोजी रोटी के साधन ढूंढ सके है, ये नहीं रहेंगे तो सचमुच जंगलों में जाकर नक्सली बनाने का ही विकल्प बचेगा..
  4. भारतीय नागरिक
    एक -एक बात से पूरी तरह सहमत. पूरे देश की व्यवस्था को बड़े ऑपरेशन की आवश्यकता है. देखिये कब होता है ऐसा.
    भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..क्या ऐसा भी संभव है.?
  5. देवेन्द्र पाण्डेय
    त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभार। पोस्ट से पूर्णतया सहमत।
  6. आशीष श्रीवास्तव
    अब हम क्या कहें जी, वे बड़े आदमी है, “जीने की कला” जानते है। हम नक्सली है, जीने की कला से अज्ञान है, वे कह रहे होंगे तो सही कह रहे होंगे।
    बड्डे लोग , बड्डी बड्डी बातें!
    आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..सरल क्वांटम भौतिकी: क्वांटम यांत्रिकी
  7. ePandit
    सरकारी स्कूलों की खस्ता हालत के लिये व्यवस्था जिम्मेदार है लोग मास्टरों को कोस कर भड़ास निकाल लेते हैं। वरना मास्टर तो वही हैं जो पहले थे, कुछ नये छोड़कर फिर आखिर क्यों बदल गया सब कुछ। कारण कई हैं जिनमें से कुछ आपने गिनाये, कुछ और सरकारी नीतियाँ हैं जिन्हें सार्वजनिक रूप से हम कह नहीं सकते।
    नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली सरकारी स्कूलों को बम से उड़ाते रहते हैं। अगर वहाँ नक्सली तैयार होते तो वे ऐसा करने की बजाय उल्टे सभी को वहाँ जाने को कहते। उन्हें अपने ट्रेनिंग कैम्प खोलने की क्या जरूरत थी, वहीं काम हो जाता।
  8. Gyandutt Pandey
    रविशंकरजी बड़मनई हैं। विद्वान हैं। ठीक ही कहते होंगे।
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..फांसी इमली
  9. arvind mishra
    सचमुच श्री श्री का यह बयान बेहद विवादास्पद है और बिना सोचे समझे दिया गया है
    बिना सोचे समझे बयान पर यह सोची समझी पोस्ट अच्छी लगी !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..ये कैसी ‘कहानी’ है?
  10. संतोष त्रिवेदी
    हमें तो लगता है कि बात का बतंगड़ बनाया गया है.जैसी हालत आज सरकारी-स्कूलों में है,घोर अनुशासनहीनता व्याप्त है,पढाई के अलावा बाकी सारे काम हो रहे हैं,ऐसे में माहौल के हिंसक होने की ज़बरदस्त आशंका है या यूँ कहिये सम्भावना है !
    …वैसे सरकारी-स्कूल में ,टाटपट्टी में हम भी पढ़े हैं और देखो अब तो काफी-कुछ नाम कमा रहे हैं !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..मोहब्बत है या तिज़ारत ?
  11. राहुल सिंह
    समाज में सक्रिय रहते हुए अपने को प्रासंगिक बनाए रखना ही असल आर्ट आफ लिविंग है.
    राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..ताला और तुली
  12. Nishant
    ऐसा नहीं हो सकता. डबल श्री ऐसा नहीं कह सकते. उनकी बात को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है. और यदि उन्होंने कहा भी हो तो वह उनकी निजी राय होगी. :)
    बकिया, नर्सरी से एम ए तक मैंने अपनी पढाई में जित्ता खर्चा किया उससे ज्यादा मैं अपने बेटे को नर्सरी में पढ़ाने में लगा चुका हूँ. अन्य बातों पर विद्वान् जन पहले ही बहुत कह चुके हैं. सबसे सहमति.
  13. देवांशु निगम
    हम भी लगभग टाट-पट्टी वाले स्कूल में ही पढ़े (लगभग इसलिए की न तो वो पूरा सरकारी था न पूरा प्राइवेट, उस टाइम में एक पुराने स्कूल की बिल्डिंग जो खाली पड़ी थी उसी में चलता था हमारा स्कूल), १२वीं तो एक दम सरकारी स्कूल से किये |
    अब श्री श्री ने जो बयान दिया वो क्यूँ दिया वो तो वही जाने, पर उसपे आपकी प्रतिक्रिया से सहमत हूँ | वैसे ही शहरों में सरकारी स्कूल के बच्चों और प्राइवेट स्कूल के बच्चों का जो अंतर बढ़ता जा रहा है वो कहीं न कहीं बच्चों के मन में कुंठा पैदा कर रहा है | इस अंतर को मिटाने की ज़रुरत है | जैसे कुँए में गिरे इन्सान को अपने बराबर लाने के लिए उसे कुँए से निकलना पड़ता है (न की खुद कुए में कूदना :) ), उसी तरह सरकारी स्कूल की व्यवस्था में सुधार लाना ही होगा | हर इंसान अपने बच्चों को महंगे प्राइवेट स्कूल में नहीं भेज सकता, इसकी वजह से उस बच्चे का विकास रुकना नहीं चाहिए |
    और जिन प्राइवेट स्कूल की बातें की जा रही हैं, वहां पर आज तथाकथित “उच्च श्रेणी” की शिक्षा के नाम पे “ज़बरदस्ती” बातें रटाई जा रही हैं वो बच्चों को कहीं का नहीं छोड़ रही हैं | कुछ दिनों पहले एक सर्वे में पढ़ा था कि भारत ने बच्चों का औसत बौद्धिक स्तर गिर रहा है | श्री श्री क्या ये बताएँगे कि इतने प्राइवेट स्कूल्स के होते हुए ऐसा क्यूँ हो रहा है | शायद शिक्षा में “आर्ट ऑफ़ थिंकिंग” की कमी हो गयी है |
    एकदम “ढिचक्याऊँ” पोस्ट है !!!!! :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..हाँ!!!वही देश, जहाँ गंगा बहा करती थी…
  14. प्राइमरी के मास्साब
    मौज से परे आपने कई बड़े मुद्दे…उठाये हैं ! जाहिर है एक पोस्ट में इसे निपटाना बड़ा मुश्किल कार्य है!
    श्री श्री का वीडियो देखने के बाद मुझे घोर आपत्ति है …उनके बयान पर ! शायद वह उस निजी स्कूल की तथाकथित नैतिक बाउंड्रीवाल से प्रेरित होकर जो कहना चाहते थे ….सही ढंग से कह नहीं पाए !
    एक टाट पट्टी वाले सरकारी स्कूल के मास्टर के रूप में इतना ही कह सकता हूँ कि सरकारी स्कूल जहाँ सरकार की लोक लुभावन नीतिओं के केंद्र बन चुके हैं या बना दिए गए हैं …….वहीं प्राइवेट स्कूल इस मान्यता को परे रखकर कमाई के जरिये बने हुए हैं …..कि शिक्षा को भी कमाई का जरिया बनाया जा सकता है !
    क्या श्री श्री गाँव में जाकर अपने स्कूल खोलने को तैयार होंगे …..बगैर किसी लाभ के ? कम से कम दू दू ठो श्री लगाने के बाद इत्ता तो करना ही था
    1. प्राइमरी के मास्साब
      वहीं प्राइवेट स्कूल इस मान्यता को परे रखकर कमाई के जरिये बने हुए हैं …..कि शिक्षा को कमाई का जरिया भी बनाया जा सकता है !
  15. प्राइमरी के मास्साब
    वहीं प्राइवेट स्कूल इस मान्यता को परे रखकर कमाई के जरिये बने हुए हैं …..कि शिक्षा को भी कमाई का जरिया नहीं बनाया जा सकता है !
  16. Smart Indian - अनुराग शर्मा
    @जब सक्षम लोगों के बच्चे निजी स्कूलों में चले गये तो सरकारी स्कूलों का कोई माई बाप नहीं रहा।
    भारत की अनेक समस्याओं की जड़ में भाग्यविधाताओं की यही संगदिली रही है – जिस गाँव उन्हें खुद नहीं जाना, वहाँ की सड़क नक्शे में भी क्यों बनाई जाये …
    Smart Indian – अनुराग शर्मा की हालिया प्रविष्टी..चौपद
  17. सतीश सक्सेना
    @ अपन टाट पट्टी वाले सरकारी स्कूल में पढ़े हैं। कक्षा एक से पांच तक साल में बारह आने फ़ीस देकर ककहरा, गिनती-पहाड़ा सीखे और फ़िर अगले सरकारी स्कूल में कक्षा छह से दस तक पढ़े।
    अपन भी ….
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..बेटी या बहू ? – सतीश सक्सेना
    1. रवि
      अपना भी यईच हाल है, और अगर श्रीघात2 यह कह रहे हैं तो हम लोगों से बड़ा नक्सली कोई नहीं!
  18. सतीश पंचम
    मैं अर्ध-सरकारी स्कूल में पढ़ा हूँ….डबल श्री की नजर में हो सकता है मैं आधा ही नक्सली होउं :)
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..हाऊ टू कम्पलेन दीदी…..
  19. सलिल वर्मा
    सुकुल जी! पट्टी पढ़ना/पढ़ाना तो अब सिर्फ मुहावरों में ही याद होगा लोगों को.. हमें तो आज भी नहीं भूलता काठ की तख्ती पर खडिया के घोल से सरकंडे की कलम की वो लिखाई.. वो पहाड़े.. वो प्रार्थनाएं और वो कवितायें.. अपन तो उसी “आर्ट ऑफ लिविंग” में आजतक जी रहे हैं..
    सरकारी स्कूल की दुर्दशा तो स्व. श्रीलाल शुक्ल से बेहतर कोई बयान ही नहीं कर सकता, लेकिन दुर्दशा नक्सलवाद की ओर ले जा रही है और फाइव-स्टार स्कूल वहाँ गैर-नक्सलियों की मैन्युफैक्चरिंग करेंगे..ये बात तो हाजमोला खाकर भी हजम नहीं होने वाली…
    मेरे पड़ोस का एक बच्चा मुझसे हिन्दी की एक कविता पढ़ने आया जिसे करने का होम-वर्क उसे अंग्रेज़ी में लिखकर दिया गया था.. Write a poem of Sumitra Nandan Pant. बच्चा मेरे पास आकर बोला कि अंकल मुझे “सुमित्रा नंदन की पैंट” वाली कविता हिन्दी में लिखनी है!!
    आज समझ में आया कि बड़ा होकर सुमित्रा नंदन की वही पतलून पहनकर वो बच्चा नक्सलियों का सफाया करेगा.
    सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..सम्बोधि के क्षण
  20. sanjay jha
    हूँ….. तो लब्बो-लुआब ये के व्यवस्था में ९० फीसदी हम लोग नक्सली हैं……..
    बात तो ऊँची कह दी श्री घातजी २ ने ……..
    इस संवेदनशील विषय पर त्वरित लेख के लिया आभार स्वीकारें .
    प्रणाम.
    और हाँ ‘शुक्लजी’ का उधृत पंक्ति ……… २१ तोप का सलामी लेने वाला है……..
  21. Anonymous
    असल में ये सब असली के गुरु तो हैं नहीं. प्रायवेट स्कूल के उदघाटन में गए तो सरकारी स्कूल बंद करने की सिफारिश कर आये, सरकारी के प्रोग्राम में जाते तो प्रायवेट स्कूलों की वाट लगा आते. सच तो ये है कि इन्हें देश की शिक्षा-व्यवस्था से कोई मतलब ही नहीं है. मतलब है तो सिर्फ अपने आर्ट ऑफ लिविंग से या दूसरे गुरुओं को अपने लाभ से.बाकी सब जाएँ भाड़ में. उन्हें पता ही नहीं कि सरकारी स्कूलों में तो बच्चे केवल मध्यान्ह भोजन के लिए जाते हैं :) पढने-पढ़ाने या स्कूल में टिके रहने का समय कहाँ है उनके पास? नक्सली बनने की ट्रेनिंग कब लेंगे? स्कूल भी अब रसोई ज्यादा विद्यालय कम दीखता है.
    “लेकिन कुल मिलाकर जैसी छवि उनकी मेरे मन में बनी है उसके हिसाब से वे अगर अपनी हर आर्ट ऑफ़ लिविंग सिखाने के लिये हमें भुगतान भी करें तब भी अपन उनकी जीने की कला सीखने न जायेंगे ”
    सही है. हम भी न जायेंगे भाई :)
    भारतीय शिक्षा व्यवस्था की तमाम कमजोरियां हैं लेकिन गुरु जी को अपना बयान खुद इतना कमज़ोर लगा की आज सुबह ही पल्टी खा गए :)
    वैसे एक बात बताएं, गुरु जी के नक्सलवादी-बयान पर तो हमें भी एतराज है, लेकिन स्कूलों के निजीकरण के तो हम भी हिमायती हैं. ४०-४० हज़ार पाने वाले टीचर ४० रुपये तक की पढाई नहीं करा रहे :(
    वैसे पोस्ट बहुत शानदार है. चकाचक टाइप :) :) :)
  22. ashish
    श्री श्री सच में बडमनई है . क्या पता उनको कुछ विश्व स्तरीय पञ्च तारा स्कूल खोलने का मन हो वो भी बारह आने की वार्षिक फीस पर . धन्य है वो .
  23. Sanjeet Tripathi
    मुझे लगता है ये “बाबा” और “गुरु” लोगन को जब लगता है मीडिया भाव नई दे रहा, तब कुछ भी बोल दो, बवाल होगा तो लाइमलाईट में आ ही जाएंगे। और बस यही इनकी ख्वाहिश होती है, लाइमलाईट में बने रहने की, प्रासंगिक बने रहने की। अब आज श्रीश्री का फट से यह बयान आ गया है कि वे ओडिशा में नक्सलियों के बंधक बनाए गए इतालवी नागरिकों को छुड़ाने मध्यस्थ बनने को तैयार हैं ( सरकार या किसी ने पूछा भी नहीं, बस खुद ही कह दिया) फिर रहेंगे खबरों में।
  24. G C Agnihotri
    ये रवि शंकर जी जैसे गुरु लोगों की मति भ्रष्ट हो गयी है. आज भी हिंदुस्तान में ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते हैं. बाकि बाबा लोग खा पी के टुन्न हैं, आजकल सर्कार को लतिया कर एन जी ओ गीरी का जमाना है. टी ए डी ए में घपला करने वाली किरण बेदी रिटायर होकर इमान की वली वारिस हैं, उनको अन्ना जी भी नमन करते हैं. सुविधाभोगी बाबाओं और एन जी ओ के मठाधीशों के जब तक आकंठ लट्ठ नहीं घुसेगा तब तक लोजिक नृत्य करता रहेगा और बाबा लोग दिन को रात और रात को दिन बनायेंगे.
  25. Anonymous
    सरजी प्रणाम मन बाग़ बाग़ हो गया आपने सच्चाई को पूरी मजबूती के साथ कहा है
  26. मनोज कुमार
    जब से यह समाचार पढ़ा-सुना है, तब से मुझे मेरे स्कूल पर और भी गर्व होने लगा है।
    टाट पट्टी वाले गुरु जी से तो मिल लिए, कभी छात्र से मिलना हो तो मुझे बुला लीजिएगा।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..सूफ़ियों की प्रेमोपासना-2
  27. Anonymous
    आर्ट ऑफ़ लिविंग पर लेक्चर देने और ज़िन्दगी जीने के संघर्षों में कितना फ़र्क़ है ये बातें इस ऊंचाई से बैठ कर समझ में नहीं आतीं
    नक्सलवाद सरकारी स्कूलों में नहीं पनपता उन स्कूलों के बच्चों के साथ हुए अन्याय या फिर ग़लत वातावरण से पनपता है ,इतने बड़े बुद्धिजीवी के ज़हन से इतनी सी बात कैसे उतर गयी ??
    लेकिन
    @मेरा अपना यह मानना है कि देश के सारे स्कूलों में शिक्षा की एक समान व्यवस्था होनी चाहिये। शिक्षा मुफ़्त हो। हर वर्ग के बच्चे एक से ही स्कूलों में पढ़ें। फ़ीस चुकाने की औकात के हिसाब से स्कूल न बंटें।
    क्या आप को ऐसा लगता है कि ये संभव है ? आज शिक्षा व्यवस्था जहां पहुँच चुकी है ,जब शिक्षा को केवल कमाई का साधन और व्यापार समझा जाने लगा है क्या मुफ़्त शिक्षा की बात किसी तरह संभव हो पाएगी ?
    हम ने भी उसी टाट पट्टी वाले स्कूल से अपनी पढाई की शुरुआत की थी लेकिन हमारा बच्चा प्रायवेट स्कूल में ही पढ़ रहा है क्योंकि ये जानते हुए भी कि हम शायद अपने उसूल ख़ुद तोड़ रहे हैं ,हम अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने की हिम्मत ही नहीं कर पाए . आप ने तो बड़ी ही आदर्श स्थिति की बात की है ,फिर भी उम्मीद पर दुनिया क़ायम है शायद ऐसा दिन कभी आए :)
  28. आशीष श्रीवास्तव
    TV पर ये न्यूज़ आ रही थी और हमें वो रानी याद आ रही थी जिसने पूछा था ” ये लोग रोटी क्यों मांग रहे है केक क्यों नहीं खाते ”
    श्री श्री बड़े आदमी है कल को ये गरीब बच्चो से पूछ सकते है “तुम लोग सरकारी स्कूलों में क्यों पढ़ रहे हो पब्लिक स्कूल या convant क्यों नहीं जाते ”
    फिर इसे तोड़ मरोड़ भी सकते है
    बड़े लोगो की इसी मासूमियत की ही तो बलिहारी है
    आशीष श्रीवास्तव
  29. पवन कुमार मिश्र
    गुरुजी बन रहे गुरु घंटाल देखिये
    झऊवा भर काट रहे माल देखिये…….
  30. आशीष
    सही कहा है अनूप जी, लेकिन मुझे तो लगता है की निजी स्कूलों में भी शिक्षा के नाम पर कूड़ा ही परोसा जा रहा है, वहां से कौन से न्यूटन और आइन्सटाइन निकल रहे हैं.. यहाँ कुछ अपन ने भी लिखा है
  31. आशीष
  32. जीतू
    अब रविशंकर जी कह रहे हैं तो सही ही कह रहे होंगे, फिर अगर वो पलट लिए तो भी सही ही पलट रहे होंगे, आप भी जानकार हैं, आप भी सही कह रहे होंगे. आप भी टीवी वालों एक साक्षात्कार दे डालिए, यकीन मानिये, आधे आपके पक्ष और आधे विरोध में खड़े होंगे, ये लोग वही होंगे, जो टीवी देखकर प्रतिक्रिया देने में विश्वास रखते हैं, अगर प्रतिक्रिया नहीं दी, या दो चार लोगों से बहस न किये तो खाना हज़म न होगा. ये लोग आम जनता न होकर खास लोग होते हैं.
    आम आदमी को इन सबसे लेना देना नहीं होता, वो रो नून तेल और लकड़ी के चक्कर में लगा रहता है. हम भी आम जनता है, इसलिए हम तो कहेंगे वो भी सही, आप भी सही.
  33. arun chandra roy
    श्री श्री जी को देश के भूगोल का ज्ञान नहीं है. मेट्रो से बहार जो नहीं गए अरसे से….
  34. Abhishek
    हाँ सेंट बोरिसीय हैं. हम कैसे असहमत हो सकते हैं इस आलेख से !
  35. Vivek
    हम भी एक निजी स्कूल में पढ़ाते हैं, और दावे के साथ कह सकते हैं कि वहम के छात्र किसी भी तरह सरकारी स्कूल से बेहतर नहीं हैं. वजह वो ललक और जुझारूपन का ना होना जो कि सरकारी स्कूल के गरीब बच्चों में पाई जाती हैं. वैसे डबल श्री जी अब इस मामले में चुप हैं. क्योंकि डर है कि कहीं दो-चार स्कूल मुफ्त में खोलने न पड़ जाएं. उनकी living की art ये नहीं सिखाती.
  36. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] आर्ट ऑफ़ लिविंग और टाट पट्टी वाले स्कूल… [...]
  37. girish lesharwani
    श्री श्री रविशंकर प्रसाद केवल बड़े लोगों को आर्ट ऑफ़ लिविंग सिखाएं तो अच्छा है,रोज कमाने खाने वाले लोगों का वे दुःख दर्द क्या जानें |

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