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सचिन का खेल, संन्यास और गुस्सा
By फ़ुरसतिया on March 23, 2012
…और अब तेंदुलकर को भी गुस्सा आ गया।
तेंदुलकर के संन्यास लेने की बात पर नाराज होने वालों की भीड़ में सचिन भी शामिल हो गये। कल किसी के पूछने पर उन्होंने कहा – मुझे आलोचकों ने क्रिकेट खेलना नहीं सिखाया।
मतलब सचिन को संन्यास लेने की सलाह देने का हक सिर्फ़ उनके कोच रमाकांत अचरेकरजी को है।
यह वे पहले भी कई बार कह चुके हैं कि उनको जब तक क्रिकेट खेलने में मजा आता है तब तक वे क्रिकेट खेलते रहेंगे। जब मजा आना बन्द हो जायेगा तब वे संन्यास ले लेंगे।
क्या जब सौरभ गांगुली, राहुल द्रविड़, कपिल देव, गावस्कर आदि महारथियों ने संन्यास लिया तब उनको खेलने में मजा आना बन्द हो गया था? सबको खेलने में मजा आता है बशर्ते उनको खिलाते रहें लोग। अगर मजा न आता तो सौरभ गांगुली अब भी युवराज सिंह की जगह आई.पी.एल. में खेलने को काहे राजी होते।
अब बताओ भला सब रिकार्ड तोड़-फ़ोड़ देने के बाद लोगों के पास जब और कुछ नहीं बचा तो अगर लोग पूछते हैं – सचिन, आपके संन्यास का क्या प्लान है तो उसमें इत्ता नाराजगी काहे? क्या आपके बारे में सब कुछ जानने वाले लोग आपसे शोले फ़िल्म की तरह पूछेंगे- आपका नाम क्या है सचिन।
रिकी पॉंटिंग के शतक अगर सम्मान सहित (विद आनर्स) उत्तीर्ण हुये तो उसके मुकाबले सचिन के शतकों को घसीट-घसाट कर गुड सेकेंन्ड क्लास आयेगी।
हम कोई तेंदुलकर के आलोचक नहीं हैं। न हम यह कह रहे हैं कि उनको संन्यास
ले लेना चाहिये। और लोगों की तरह उनको खेलते देखना अच्छा लगता है। वो आउट
हो जाते हैं तो खराब लगता है। रिकार्ड बनाते हैं तो अच्छा लगता है। शतक
बनाते हैं तो और अच्छा। उनका शतक बनने के साथ भारत जीत जाये तो सबसे अच्छा!
कभी-कभी लोग कहते हैं ये तो अपने लिये खेलता है। रिकार्ड के लिये खेलता है। तेंदुलकर के साथ कुछ ऐसा है कि कई बार उनके शतक बनाने के बावजूद भारत हार जाता है। भगवान झूठ न बुलाये मेरे मन में यह बात बैठ गयी है कि कठिन मौंको पर तेंदुलकर चल नहीं पाते। इस बार ही विश्वकप के फ़ाइनल में जब सचिन जल्दी आउट हो गये तो मैंने तुरन्त कहा अब भारत जीत जायेगा। और भारत जीत गया। उसके पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि कठिन मौंको पर तेंदुलकर ने मैदान पर क्रीज पर क्रिकेट आ आनंद उठाने के बजाय ड्रेसिंग रूम से क्रिकेट का आनन्द उठाया।
तुलनात्मक अध्ययन भी मानव का सहज स्वभाव है। अपनी अच्छी चीज को भी लोग दूसरे की अच्छी चीज से तुलना करते हैं। कोई न कोई पहलू तो निकल ही आयेगा हर अच्छी से अच्छी चीज में जहां वह दूसरे के मुकाबली कम अच्छी होगी। ऐसे ही तमाम तुलनायें दुनिया के बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ियों में भी लोग करते हैं।
सचिन और दुनिया के अन्य खिलाड़ियों के शतक बनाने पर सफ़लता के मामले में सचिन कई खिलाड़ियों से काफ़ी पीछे हैं। सचिन के शतक बनाने पर भारत की सफ़लता का प्रतिशत 53% के करीब है जबकि उनके प्रतिद्वंदी रिकी पॉंटिंग की शतक सफ़लता का प्रतिशत 77% है। मतलब रिकी पॉंटिंग के शतक अगर सम्मान सहित (विद आनर्स) उत्तीर्ण हुये तो उसके मुकाबले सचिन के शतकों को घसीट-घसाट कर गुड सेकेंन्ड क्लास आयेगी। प्रथम श्रेणी में भी नहीं पास हो पाये मास्टर ब्लॉस्टर के शतक।
सचिन
को लोग क्रिकेट का भगवान कहते हैं। भगवान से आशा की जाती है कि वो भक्तों
की मुसीबत में रक्षा करेगा। लेकिन अक्सर ऐसा हुआ कि मुसीबत में भगवान की
शक्तियां आचार संहिता में फ़ंस गयीं।
सचिन के नाम ऐसी शतकीय पारियां बहुत कम हैं जब उन्होंने अपने दम पर जीत
दिलाई हो। एक चेन्नई में खेली पारी के सिवा और कोई पारी उनके नाम मुझे याद
नहीं आती जब अकेले उनके दम पर टीम जीती हो। कपिलदेव की 175 रन सरीखी पारी
या फ़िर लक्ष्मण की आस्ट्रेलिया के खिलाफ़ खेली पारी जिसमें भारत फ़ालोआन के
बावजूद जीता हो सचिन के नाम नहीं हैं। पाकिस्तान के खिलाफ़ विश्वकप
सेमीफ़ाइनल में खेली पारी को जिसमें उन्होंने शुरु से ही सारे पाकिस्तान के
बालरों की हवा बिगाड़ दी थी कुछ कुछ यादगार पारी लगती है।
सचिन को लोग क्रिकेट का भगवान कहते हैं। भगवान से आशा की जाती है कि वो भक्तों की मुसीबत में रक्षा करेगा। लेकिन अक्सर ऐसा हुआ कि मुसीबत में भगवान की शक्तियां आचार संहिता में फ़ंस गयीं। कभी-कभी मुझे लगता है कि सचिन अभिशप्त देवता हैं क्रिकेट के जिनका शतक सफ़लता का औसत ( बावजूद तमाम शानदार प्रदर्शन के ) गुड सेकेन्ड क्लास ही होकर रह गया। क्या पता भगवान लोग भी मारे जलन के ऐन टाइम पर सचिन की सफ़लता के आगे लंगड़ी लगा देते हों यह जताने के लिये कि असल भगवान तो हमई हैं। देवता भी आपस में कम थोड़ी जलते हैं।
मुझे
लगता है कि सचिन अभिशप्त देवता हैं क्रिकेट के जिनका शतक सफ़लता का औसत (
बावजूद तमाम शानदार प्रदर्शन के ) गुड सेकेन्ड क्लास ही होकर रह गया।
कुछ लोग सचिन की आलोचना से भन्नाते हैं कि उनको सचिन की आलोचना का कोई
हक नहीं है। उनसे सवाल नहीं पूछे जाने चाहिये। अरे भाई काहे नहीं पूछेंगे।
वो हमारा भी उत्ता ही चहेता खिलाड़ी है जित्ता आपका। वो एक राहत इंदौरी का
शेर है देश के मामले में:
सचिन
सिर्फ़ एक महान खिलाड़ी ही नहीं हैं। वो एक सफ़ल उत्पाद भी हैं जिन पर तमाम
कम्पनियों का पैसा लगा हुआ है। जब तक उत्पाद सफ़ल रहेगा कंपनियां कभी नहीं
चाहेंगी कि वो खेलना बंद करें।
रही बात सचिन के संन्यास की तो उनके संन्यास पर सवाल करने वालों को यह
समझना चाहिये कि सचिन सिर्फ़ एक महान खिलाड़ी ही नहीं हैं। वो एक सफ़ल उत्पाद
भी हैं जिन पर तमाम कम्पनियों का पैसा लगा हुआ है। जब तक उत्पाद सफ़ल रहेगा
कंपनियां कभी नहीं चाहेंगी कि वो खेलना बंद करें। सचिन क्रिकेट इंज्वाय
करते रहेंगें और कम्पनियां अपने उत्पाद की सफ़लता।
जैसा कि लोग बताते हैं कि उनके अन्दर अभी बहुत क्रिकेट बची हुई है। वे इतने स्वार्थी भी नहीं कि बची हुई क्रिकेट अपने साथ लेकर रिटायर हो जायें। अपनी सारी क्रिकेट वे पिच पर उड़ेलकर ही जायेंगे।
मुझे तो सचिन को खेलते देखना अच्छा लगता है। उनका समर्पण, विनम्रता, खेल के प्रति उत्साह और अन्य तमाम गुण अनुकरणीय हैं, दर्शनीय हैं, वंदनीय हैं । उनके जैसे खिलाड़ी विरले होते हैं। जिस भी देश, समाज में ऐसे खिलाड़ी पाये जाते हैं वह उन पर गर्व करता है। उनसे तमाम आशायें रखता है।
सचिन को जब तक मन करे तब तक क्रिकेट खेलता रहना चाहिये। लेकिन अपनी अच्छी आदतों को तलाक नहीं देना चाहिये।
आज तक वे अपने आलोचकों को बल्ले से जबाब देते आये हैं। अब चला-चली की बेला में बल्ले का काम जबान को नहीं सौंपना चाहिये। जरूरी नहीं कि उनकी जबान भी उतनी ही सक्षम हो जित्ता सक्षम उनका बल्ला रहा।
WHAT HAPPENED TO THE TIMES OF INDIA POLL
IN WHICH AROUND 70% PEOPLE SAID DAT SACHIN SHOULD RETIRE FROM ODI’s??
SALUTE TO SACHIN’S PASSION..SACHIN’S DEDICATION…SACHIN’S FOCUS…AND DEVOTION TOWARDS THE COUNTRY…LOTS TO LEARN FROM HIM..SURELY THE NUMBER WONT STOP HERE…
SACHIN ONCE SAID,”SOMETIMES THERE ARE STONES THROWN AT YOU..IT’S ABOUT CONVERTING THOSE STONES INTO MILESTONES..”
HE PROVED IT TODAY..
PROUD TO BE A SACHIN FAN
PROUD TO BE AN INDIAN..!!
ऐसे समर्थन वाले खिलाड़ी को किसी आलोचना की चिन्ता क्यों होनी चाहिये?
तेंदुलकर के संन्यास लेने की बात पर नाराज होने वालों की भीड़ में सचिन भी शामिल हो गये। कल किसी के पूछने पर उन्होंने कहा – मुझे आलोचकों ने क्रिकेट खेलना नहीं सिखाया।
मतलब सचिन को संन्यास लेने की सलाह देने का हक सिर्फ़ उनके कोच रमाकांत अचरेकरजी को है।
यह वे पहले भी कई बार कह चुके हैं कि उनको जब तक क्रिकेट खेलने में मजा आता है तब तक वे क्रिकेट खेलते रहेंगे। जब मजा आना बन्द हो जायेगा तब वे संन्यास ले लेंगे।
क्या जब सौरभ गांगुली, राहुल द्रविड़, कपिल देव, गावस्कर आदि महारथियों ने संन्यास लिया तब उनको खेलने में मजा आना बन्द हो गया था? सबको खेलने में मजा आता है बशर्ते उनको खिलाते रहें लोग। अगर मजा न आता तो सौरभ गांगुली अब भी युवराज सिंह की जगह आई.पी.एल. में खेलने को काहे राजी होते।
अब बताओ भला सब रिकार्ड तोड़-फ़ोड़ देने के बाद लोगों के पास जब और कुछ नहीं बचा तो अगर लोग पूछते हैं – सचिन, आपके संन्यास का क्या प्लान है तो उसमें इत्ता नाराजगी काहे? क्या आपके बारे में सब कुछ जानने वाले लोग आपसे शोले फ़िल्म की तरह पूछेंगे- आपका नाम क्या है सचिन।
कभी-कभी लोग कहते हैं ये तो अपने लिये खेलता है। रिकार्ड के लिये खेलता है। तेंदुलकर के साथ कुछ ऐसा है कि कई बार उनके शतक बनाने के बावजूद भारत हार जाता है। भगवान झूठ न बुलाये मेरे मन में यह बात बैठ गयी है कि कठिन मौंको पर तेंदुलकर चल नहीं पाते। इस बार ही विश्वकप के फ़ाइनल में जब सचिन जल्दी आउट हो गये तो मैंने तुरन्त कहा अब भारत जीत जायेगा। और भारत जीत गया। उसके पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि कठिन मौंको पर तेंदुलकर ने मैदान पर क्रीज पर क्रिकेट आ आनंद उठाने के बजाय ड्रेसिंग रूम से क्रिकेट का आनन्द उठाया।
तुलनात्मक अध्ययन भी मानव का सहज स्वभाव है। अपनी अच्छी चीज को भी लोग दूसरे की अच्छी चीज से तुलना करते हैं। कोई न कोई पहलू तो निकल ही आयेगा हर अच्छी से अच्छी चीज में जहां वह दूसरे के मुकाबली कम अच्छी होगी। ऐसे ही तमाम तुलनायें दुनिया के बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ियों में भी लोग करते हैं।
सचिन और दुनिया के अन्य खिलाड़ियों के शतक बनाने पर सफ़लता के मामले में सचिन कई खिलाड़ियों से काफ़ी पीछे हैं। सचिन के शतक बनाने पर भारत की सफ़लता का प्रतिशत 53% के करीब है जबकि उनके प्रतिद्वंदी रिकी पॉंटिंग की शतक सफ़लता का प्रतिशत 77% है। मतलब रिकी पॉंटिंग के शतक अगर सम्मान सहित (विद आनर्स) उत्तीर्ण हुये तो उसके मुकाबले सचिन के शतकों को घसीट-घसाट कर गुड सेकेंन्ड क्लास आयेगी। प्रथम श्रेणी में भी नहीं पास हो पाये मास्टर ब्लॉस्टर के शतक।
सचिन को लोग क्रिकेट का भगवान कहते हैं। भगवान से आशा की जाती है कि वो भक्तों की मुसीबत में रक्षा करेगा। लेकिन अक्सर ऐसा हुआ कि मुसीबत में भगवान की शक्तियां आचार संहिता में फ़ंस गयीं। कभी-कभी मुझे लगता है कि सचिन अभिशप्त देवता हैं क्रिकेट के जिनका शतक सफ़लता का औसत ( बावजूद तमाम शानदार प्रदर्शन के ) गुड सेकेन्ड क्लास ही होकर रह गया। क्या पता भगवान लोग भी मारे जलन के ऐन टाइम पर सचिन की सफ़लता के आगे लंगड़ी लगा देते हों यह जताने के लिये कि असल भगवान तो हमई हैं। देवता भी आपस में कम थोड़ी जलते हैं।
सभी का खून शामिल है यहां किसी की मिट्टी में,अब बताओ भला जो लोग जब सचिन खेलता है तो करवट/जगह नहीं बदलते इस डर से कि कहीं इसके चलते सचिन आउट न हो जाये उनको उसकी आलोचना का अधिकार किसी से मांगना पड़ेगा। जो यह मानकर चलते हैं कि अभी सचिन खेल रहा है भारत जीते सकता है उनको उसकी आलोचना का अधिकार के लिये क्या इस्टाम्प पेपर पर दर्खास्त देनी पड़ेगी? रमाकांत अचरेकर जी ने तो सचिन को तब खेल सिखाया जब वो बच्चा था। आज यहां हर शाट पर लाखों लोग उसको समझाइश देते हैं कि ये वाला शाट उसको ऐसे नहीं वैसे खेलना चाहिये था- खेल में मशगूल सचिन उसे सुने भले न।
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है।
जैसा कि लोग बताते हैं कि उनके अन्दर अभी बहुत क्रिकेट बची हुई है। वे इतने स्वार्थी भी नहीं कि बची हुई क्रिकेट अपने साथ लेकर रिटायर हो जायें। अपनी सारी क्रिकेट वे पिच पर उड़ेलकर ही जायेंगे।
मुझे तो सचिन को खेलते देखना अच्छा लगता है। उनका समर्पण, विनम्रता, खेल के प्रति उत्साह और अन्य तमाम गुण अनुकरणीय हैं, दर्शनीय हैं, वंदनीय हैं । उनके जैसे खिलाड़ी विरले होते हैं। जिस भी देश, समाज में ऐसे खिलाड़ी पाये जाते हैं वह उन पर गर्व करता है। उनसे तमाम आशायें रखता है।
सचिन को जब तक मन करे तब तक क्रिकेट खेलता रहना चाहिये। लेकिन अपनी अच्छी आदतों को तलाक नहीं देना चाहिये।
आज तक वे अपने आलोचकों को बल्ले से जबाब देते आये हैं। अब चला-चली की बेला में बल्ले का काम जबान को नहीं सौंपना चाहिये। जरूरी नहीं कि उनकी जबान भी उतनी ही सक्षम हो जित्ता सक्षम उनका बल्ला रहा।
चलते-चलते:
मेरा छोटा बच्चा अनन्य सचिन का बहुत बड़ा फ़ैन है। इम्तहान की तैयारी के लिये भी सचिन के मैच का लाइव शो जरूरी है। सचिन के स्कोर के बारे में पता करता हुये मैं उससे पूछता हूं और तुम्हारे भाई साहब ने कित्ते रन बनाये? सचिन का सौंवा शतक बनने पर उसने अपने फ़ेसबुक की दीवार पर यह संदेशा लगाया:WHAT HAPPENED TO THE TIMES OF INDIA POLL
IN WHICH AROUND 70% PEOPLE SAID DAT SACHIN SHOULD RETIRE FROM ODI’s??
SALUTE TO SACHIN’S PASSION..SACHIN’S DEDICATION…SACHIN’S FOCUS…AND DEVOTION TOWARDS THE COUNTRY…LOTS TO LEARN FROM HIM..SURELY THE NUMBER WONT STOP HERE…
SACHIN ONCE SAID,”SOMETIMES THERE ARE STONES THROWN AT YOU..IT’S ABOUT CONVERTING THOSE STONES INTO MILESTONES..”
HE PROVED IT TODAY..
PROUD TO BE A SACHIN FAN
PROUD TO BE AN INDIAN..!!
ऐसे समर्थन वाले खिलाड़ी को किसी आलोचना की चिन्ता क्यों होनी चाहिये?
Posted in बस यूं ही | 48 Responses
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..क्या ऐसा भी संभव है.?
sanjay @ mo sam kaun…? की हालिया प्रविष्टी..मूल्य…
हम तो कमेन्ट लिखना शुरू भी कर चुके थे तब अचानक याद आया कि हेलमेट लगा लें.. खोजकर हेलमेट निकाले हैं, तब लगाकर लिखने बैठे हैं..
स्पष्ट कर दें कि हम ‘सचिन धर्म’ के अनुयायी नहीं हैं, भले ही धर्म निरपेक्ष देश में जीवित हैं. और आज अपने प्रिय देवेन्द्र पाण्डे जी से भी असहमत हो रहे हैं कि सचिन के बाद इस क्रिकेट देखना ही छोड़ देंगे लोग..इंदिरा गांधी के बाद कौन, गावस्कर के बाद कौन, लता मंगेशकर के बाद कौन जैसे सवाल का तो जवाब है इस देश में, फिर सचिन के बाद कौन तो हमरे हिसाब से ‘आउट ऑफ सिलेबस’ सवाल नहीं है..
सुकुल जी, सेंचुरी और जीत का आंकड़ा तो सदी के इस “महानतम” खिलाड़ी का व्यक्तिगत आंकड़ा है, देश का क्रिकेट इतिहास उठाकर देख लीजिए.. कोई भी “महान” खिलाड़ी तब नहीं रिटायर हुआ जब लोग बोल रहे हों कि आप काहे रिटायर हो रहे हैं, बल्कि तब रिटायर हुआ है जब लोग कहने लगे हैं कि ससुरे रिटायर काहे नहीं हो रहे!!
याद होगा जब हमरे प्रिय गुंडप्पा विश्वनाथ के बारे में कहा जाने लगा था कि ये जिस स्थान पर खेल रहे हैं उससे बेहतर तो इनको हटाकर शांता रंगास्वामी (तत्कालीन महिला क्रिकेट कप्तान) को रख लेना चाहिए और महान गावस्कर की तो बात ही निराली थी..
हम तो मन की भावना दबाये बैठे थे.. आप बोले तो हमरी भी जुबान से कुछ फूटा!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..सम्बोधि के क्षण
गुंडप्पा रंगनाथ विश्वनाथ के आखिरी दिनों के बारे में शरद जोशी जी ने एक रोचक लेख भी लिखा है।
आशीष श्रीवास्तव ‘झालीया वाले!’ की हालिया प्रविष्टी..सरल क्वांटम भौतिकी: क्वांटम यांत्रिकी
गुस्सा तो आना भी नहीं चाहिए.अभी राहुल भैया खूब गुस्सा किये और देखो बिला गए
वैसे सचिन की तरह और किसी को इत्ते साल मिलने भी नहीं …!
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..एक फेसबुकिया परिचर्चा
क्रोध आना एक स्वाभाविक बात हैं और ये लक्षण सब में होते हैं पर क्रोध के साथ अपने लक्ष्य की पूर्ति कितने करपाते हैं
आज सचिन ने जो मील का पत्थर क्रिकेट के रास्ते पर लगा दिया हैं वहाँ जब क़ोई और पहुँच जाए और उसको छू ले तो बस वही अधिकारी हैं सचिन से आगे जाने का
बाकी वो कहते हैं
तू कौन
मै खामखाँ
rachna की हालिया प्रविष्टी..नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए — अनदेखा सच
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प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..उपलब्धि रही यह जीवन की
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..ताला और तुली
वैसे लता दीदी भी खूब झल्लाईं थीं सचिन के संन्यास की अफवाह पर
मुझे तो सचिन खिलाड़ी से ज्यादा उत्पाद ही नज़र आने लगे हैं अब हर खिलाड़ी केवल अपने रिकॉर्ड पर ध्यान लगाए रहता है, हार-जीत जाए भाड़ में सचिन ने भी खूब मन लगा के रिकॉर्ड कमाए हैं. अच्छा है. वैसे मैच-फिक्सिंग काण्ड के बाद से क्रिकेट से मन उचाट हो गया है, सो अब कौन क्या कह रहा है, किसके लिए कह रहा है, इससे हमें तो कोई फरक नहीं पड़ता भाई पोस्ट चकाचक है
जरूरी नहीं कि उनकी जबान भी उतनी ही सक्षम हो जित्ता सक्षम उनका बल्ला रहा।
अब कहने वाले तो बहुत कुछ कहते हैं कि वो टाइम पे नहीं चलते | कई बाते हैं | सुबह आपकी पोस्ट पढ़ने के बाद क्रिक इन्फो पे तरह तरह की एनालिसिस कर मारी |
टेस्ट की बात करें तो ५२ में से ११ सचिन के शतक ऐसे हैं जिसमे भारत हारा है | और अगर उन ११ मैचेस की बात करें तो सचिन ने 1467 रन बनायें हैं | जबकी उनके अलावा उन मैचेस में बाकी खिलाडियों ने मिलकर केवल २५ शतक लगाये हैं | और गेंदबाजी का तो सबको पता है कि हमारी काफी धारदार है
वन डे की बात करें तो कहानी वहां भी कुछ वैसी ही है , सचिन के कुल १४ शतक बेकार गए हैं जबकि बाकियों ने उन मैचेस में केवल २२ शतक ही लगाये हैं | गेंदबाजी की कहानी यहाँ भी अच्छी नहीं है | हाँ कोच्ची में एक बार सचिन ने ५ विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीत दिलाई थी |
तो मुझे नहीं लगता कि उन मैचेस में हराने कि जिम्मेदारी केवल सचिन की है !!! क्रिकेट एक टीम खेलती है
और सचिन की बढ़िया पारियां भी बहुत हैं , जो इसलिए भी याद नहीं रहती क्यूंकि एक टाइम पे जब जब सचिन खेले तब तब जीत आसान होती गयी | कभी पता ही नहीं चला कि मुश्किल से जीते | शारजाह का एक मैच याद आता है , जब फाइनल से ठीक पहले वाले मैच में हेनरी ओलांगा ने ५ विकेट लेकर इंडिया को बुरी तरह हराया था | फाइनल में इंडिया ने मैच १० विकेट से जीता था, सचिन ने शतक ठोका था | १९९२ के पर्थ टेस्ट को भी नहीं भूला जा सकता , जब पूरी टीम के पैर उखड गए थे , और सचिन अकेले खेले थे | शतकीय पारी नहीं थी वो पर उसके बाद से उनका टेस्ट खिलाड़ी के रूप में दबदबा बढ़ा था | और भी पारियां हैं , आस्ट्रेलिया शारजाह के दो मैच नहीं भूल सकती, दोनों में शतक जड़े थे सचिन ने |
हाँ!! उनके गुस्सा होने वाली बात पर मैं आपसे मैं सहमत हूँ | शायद नहीं होना चाहिए था | पर पिछले २२ सालों से चुप ही तो हैं वो | और पोंटिंग की बात करें तो उनका गुस्सा अक्सर भड़कता रहा है | प्रसिद्द सिडनी टेस्ट के बाद उन्होंने एक पत्रकार पे “उंगली” उठाते हुए कहा था कि “यू कैन नाट क्वेस्चन माई इंटेग्रिटी” | और भड़क गए रहे |
भले ही आपसे असहमत हूँ, पर पोस्ट हरबार की तरह “चकाचक” है
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..हाँ!!!वही देश, जहाँ गंगा बहा करती थी…
ये तो हमारी नजर है। जिस नजर से हमने सचिन को देखा।
जितने रन बनाये सचिन ने उसके हिसाब से उन मैचों में भारत जीत नहीं पाया यह एक दुर्भाग्य ही रहा सचिन का।
अक्सर तुलना करते समय तुलना के मापदण्ड असमान हो जाते हैं। रिकी पॉंटिंग अगर एक दिवसीय मैचों में ओपनर होते तो उनके भी कुछ शतक और होते।
क्रिक इन्फ़ो से हो सके तो वह सूचना भी निकालो कि अगर सचिन वन डे में ओपनिंग की जगह पोंटिंग की तरह बाद में खेलने आते तो उनके कित्ते रन बनते।
यह भी कि अगर सचिन भारत की जगह आस्ट्रेलिया से खेलते तो क्या वे इत्ते मैच खेल पाते? क्या उनको किसी दौर में टीम से बाहर न किया गया होता।
और रही बात ऑस्ट्रेलिया से खेलने की तो सचिन पता नहीं इत्ते मैच खेल पाते या नहीं पर हम भी उनके रिटायर्मेंट की वकालत कर रहे होते
अनन्य बेहतर है
शुभकामनायें आपको !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..बेटी या बहू ? – सतीश सक्सेना
अनन्य बेहतर है इसमें क्या शक!
अर्जुन और सचिन के बीच एक शतकीय साझेदारी हो जाती टेस्ट मैच में तो वाह! क्या आनंद आ जाता। जैसे डाक्टर अपने बेटे को हॉस्पिटल का चार्ज सौंपता है…वकील अपना चेंबर सौंपता है..नेता अपने पुत्र को ताज पहनाता है..वैसे ही सचिन भी अपना स्थान अपने बेटे को दे पाता हम तो भैया फैन हैं, अंत तक लटके रहेंगे।
आलोचकों का तो काम है आलोचना करना
(सचिन के बाद खेलना शुरू कर के , पहले गायब हो जाने वाले भी आलोचक बन गए है ) …
सचिन को यदि उनके बनाये मानको से न देखे तो आज भी उनका प्रदर्शन अंतिम ११ के काबिल है , जीत हार एक के हाथ में नहीं होती ….
आशीष श्रीवास्तव
आपके बेटे के लिए एक लिंक..चूँकि वो सचिन का बड़ा फैन है, बिलकुल हमारे तरह इसीलिए
http://abhi-cselife.blogspot.in/2012/03/blog-post_17.html
abhi की हालिया प्रविष्टी..आखिरी मुलाकात