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क्रिकेट बोर्ड और क्लीन चिट
By फ़ुरसतिया on August 5, 2013
भले आदमियों की इस देश में मरन है।
अब बताइये अदालत ने बीसीसीआई की क्लीन चिट भी खारिज कर दी।
सटोरियों , फ़िक्सरों, राजनीतिज्ञों के चुंगल में होने के बावजूद क्रिकेट अभी तक सभ्य यानि कि भले आदमियों का खेल माना जाता है। बीसीसीआई देश में क्रिकेट की सबसे जबर संस्था है। उसके आलाकमान की ’क्लीन चिट’ को भी अदालत ने ठुकरा दिया। अदालत को अच्छा नहीं लगा कि उनके रहते कोई दूसरा बीसीसीआई को ’क्लीन चिट’ दे। अगले को इत्ता भरोसा तो अदालत पर रखना ही चाहिये।
क्रिकेट बोर्ड को भी भरोसा है कि अदालत उसको अंतत: बेकसूर करार करेगी। लेकिन उसको अदालत की न्याय करने में देरी की सहज परम्परा का भी अनुभव है। जबकि बोर्ड फ़ौरन न्याय चाहता है। उसकी मानसिकता 20-20 ओवर के मैच वाली है इसलिये उसने अदालत के निर्णय का इंतजार नहीं किया और खुद के लिये ’क्लीन चिट’ निकाल ली।
तमाम लोग बोर्ड की खुद को क्लीन चिट देने की निंदा कर रहे हैं, खिल्ली उडा रहे हैं। उनको पता नहीं कि कथासम्राट प्रेमचंद ने लिखा था-
क्रिकेट बोर्ड जबसे संपन्नतर हुआ है तब से लोग उसके दुश्मन हो गये हैं। नित नये आरोप लगते रहते हैं। खेल की तो खैर छोड़ो , पैसा कमाना तक मुश्किल हो गया है। व्यक्तिगत सट्टे तक पर एतराज करते हैं लोग। जबकि सट्टा/जुआ तो महाभारत युग से चली आ रही परम्परा है। धर्मराज ने अपनी पत्नी तक को दांव पर लगा दिया था। यहां तो जनता से कमाया पैसा ही लगाते हैं लोग। ऐसे रोजमर्रा के आरोपों के लिये भी अगर अदालत के निर्णय का इंतजार करें तब तो हो चुका क्रिकेट। इसीलिये बोर्ड अपने लिये खुद ’क्लीन चिट’ निकाल लेता है। ’स्वयं सेवा’ काऊटर पर जैसे बटन दबाने पर चाय निकलती है वैसे ही ’क्लीन चिट’ निकल आती है। सबका समय बचता है।
लेकिन अदालत को बीसीसीआई की क्लीन चिट पर्याप्त क्लीन नहीं लगी। फ़टाफ़ट ’क्लीन चिट’ से अदालत की आराम से निर्णय करने की छवि भी खराब होती है। उसने उसे वापस ’जांच वासिंग मशीन’ में डाल दिया । वकील, पेशकार ,कानून का वासिंग पाउडर और पानी डाल दिया गया है। मशीन चला दी गयी है। महीनों/सालों चलेगी। ’क्लीन चिट’ और क्लीन होकर निकलेगी। निकलने पर देखने वाले कहेंगे- ऐसी सफ़ेदी और कहां?
क्रिकेट बोर्ड भले ही अदालत के लिहाज के चलते कुछ कहे भले न लेकिन उसको बुरा बहुत लग रहा होगा। सबसे अमीर बोर्ड है दुनिया का भाई। अगर अमीर लोगों की ’क्लीन चिट’ का भी अदालत भरोसा नहीं करेंगी तब तो अमीरों का भी न्याय व्यवस्था से विश्वास उठ जायेगा। पैसे वाले को भी मनमानी करने के लिये अगर अदालतों का मुंह देखना पड़ा तब तो हो चुका।
क्रिकेट बोर्ड का बस चले तो वो अपने लिये एक हाईकोर्ट और एक ठो सुप्रीमकोर्ट का भी इंतजाम कर ले। लेकिन फ़िलहाल तो अब जो व्यवस्था है उसी के अधीन चलना पड़ेगा। अदालत से ही ’क्लीन चिट’ का इंतजाम करना पड़ेगा बोर्ड का।
इसीलिये कहा कि भले आदमियों की इस देश में मरन है।
अब बताइये अदालत ने बीसीसीआई की क्लीन चिट भी खारिज कर दी।
सटोरियों , फ़िक्सरों, राजनीतिज्ञों के चुंगल में होने के बावजूद क्रिकेट अभी तक सभ्य यानि कि भले आदमियों का खेल माना जाता है। बीसीसीआई देश में क्रिकेट की सबसे जबर संस्था है। उसके आलाकमान की ’क्लीन चिट’ को भी अदालत ने ठुकरा दिया। अदालत को अच्छा नहीं लगा कि उनके रहते कोई दूसरा बीसीसीआई को ’क्लीन चिट’ दे। अगले को इत्ता भरोसा तो अदालत पर रखना ही चाहिये।
क्रिकेट बोर्ड को भी भरोसा है कि अदालत उसको अंतत: बेकसूर करार करेगी। लेकिन उसको अदालत की न्याय करने में देरी की सहज परम्परा का भी अनुभव है। जबकि बोर्ड फ़ौरन न्याय चाहता है। उसकी मानसिकता 20-20 ओवर के मैच वाली है इसलिये उसने अदालत के निर्णय का इंतजार नहीं किया और खुद के लिये ’क्लीन चिट’ निकाल ली।
तमाम लोग बोर्ड की खुद को क्लीन चिट देने की निंदा कर रहे हैं, खिल्ली उडा रहे हैं। उनको पता नहीं कि कथासम्राट प्रेमचंद ने लिखा था-
“नेकनामी और बदनामी बहुत से लोगों के हल्ला मचाने से नहीं होती,सच्ची नेकनामी मन से होती है,अगर आपका मन बोले कि मैंने जो किया वही मुझे करना चाहिए था, इसके सिवा कोई दूसरी बात करना मेरे लिए उचित नहीं था, तो वही नेकनामी है।“तो यह क्लीन चिट प्रेमचंद की बातों का अनुसरण करके निकाली गयी है। जब बोर्ड का अंतकरण कह रहा है कि उसने कुछ गलत नहीं किया तो फ़िर खुद को ’क्लीन चिट’ से क्यों वंचित किया जाये? क्या समाज से बिगाड़ के डर में ईमान की बात न कही जाये? क्लीन चिट न दी जाये?
क्रिकेट बोर्ड जबसे संपन्नतर हुआ है तब से लोग उसके दुश्मन हो गये हैं। नित नये आरोप लगते रहते हैं। खेल की तो खैर छोड़ो , पैसा कमाना तक मुश्किल हो गया है। व्यक्तिगत सट्टे तक पर एतराज करते हैं लोग। जबकि सट्टा/जुआ तो महाभारत युग से चली आ रही परम्परा है। धर्मराज ने अपनी पत्नी तक को दांव पर लगा दिया था। यहां तो जनता से कमाया पैसा ही लगाते हैं लोग। ऐसे रोजमर्रा के आरोपों के लिये भी अगर अदालत के निर्णय का इंतजार करें तब तो हो चुका क्रिकेट। इसीलिये बोर्ड अपने लिये खुद ’क्लीन चिट’ निकाल लेता है। ’स्वयं सेवा’ काऊटर पर जैसे बटन दबाने पर चाय निकलती है वैसे ही ’क्लीन चिट’ निकल आती है। सबका समय बचता है।
लेकिन अदालत को बीसीसीआई की क्लीन चिट पर्याप्त क्लीन नहीं लगी। फ़टाफ़ट ’क्लीन चिट’ से अदालत की आराम से निर्णय करने की छवि भी खराब होती है। उसने उसे वापस ’जांच वासिंग मशीन’ में डाल दिया । वकील, पेशकार ,कानून का वासिंग पाउडर और पानी डाल दिया गया है। मशीन चला दी गयी है। महीनों/सालों चलेगी। ’क्लीन चिट’ और क्लीन होकर निकलेगी। निकलने पर देखने वाले कहेंगे- ऐसी सफ़ेदी और कहां?
क्रिकेट बोर्ड भले ही अदालत के लिहाज के चलते कुछ कहे भले न लेकिन उसको बुरा बहुत लग रहा होगा। सबसे अमीर बोर्ड है दुनिया का भाई। अगर अमीर लोगों की ’क्लीन चिट’ का भी अदालत भरोसा नहीं करेंगी तब तो अमीरों का भी न्याय व्यवस्था से विश्वास उठ जायेगा। पैसे वाले को भी मनमानी करने के लिये अगर अदालतों का मुंह देखना पड़ा तब तो हो चुका।
क्रिकेट बोर्ड का बस चले तो वो अपने लिये एक हाईकोर्ट और एक ठो सुप्रीमकोर्ट का भी इंतजाम कर ले। लेकिन फ़िलहाल तो अब जो व्यवस्था है उसी के अधीन चलना पड़ेगा। अदालत से ही ’क्लीन चिट’ का इंतजाम करना पड़ेगा बोर्ड का।
इसीलिये कहा कि भले आदमियों की इस देश में मरन है।
Posted in बस यूं ही | 7 Responses
हो गया आम आदमी का हैप्पी बड्डे !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..बस ऐसे ही…
आपै दे देबें क्लीन चिट……..
प्रणाम.
मान गये गुरू (जी) हैं आप…।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..आपकी प्रविष्टियों की प्रतीक्षा है
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..संकटमोचक मंगलवार
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..काउंसलिंग जरूरी है लेकिन किसकी ?