Wednesday, August 21, 2013

हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने

http://web.archive.org/web/20140403135311/http://hindini.com/fursatiya/archives/4639

हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने


वाल मार्ट
जब मॉल आने का हांका हुआ था तो लग रहा था कि उसके आते ही बाजार में रामराज्य स्थापित हो जायेगा। लेकिन मॉल का हिसाब-किताब तो ऐसा गड़बड़ निकला कि उसके सामने पंसारी भी पानी भरे।
अब आप कहेंगे कि ऐसा कैसे कह सकते हैं आप? त पहिली बात त ई है कि हम कुछ कह नहीं रहे हैं। लिख रहे हैं। अपना अनुभव बता रहे हैं। पढियेगा और मुलाहिजा फ़रमाइयेगा।
हुआ यह कि हमारे इहां कानपुर में कई मॉल हैं। दो ठो घर के पास हैं। दो-तीन घर से दूर हैं। सबमें सामान एक्कै तरह का मिलता है लेकिन जैसे कि दूर के ढोल सुहावने माने जाते हैं वैसे ही हमारे घर में भी सबसे दूर वाला मॉल सबसे अच्छा माना जाता है। कारण भी है – वहां ज्यादा जाने की सोचते हैं, आने-जाने में ज्यादा परेशान होना पड़ता है, ज्यादा बड़ा है, पैसा ज्यादा खर्चा होता है। इस तरह कई ज्यादा जुड़े होने के चलते जब कोई बहुत उत्साहित हो जाता है तब भाग के उस वाले मॉल की तरह निकल लेते हैं।
हम बता चुके हैं कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे शापिंग मॉल जैसी जगहें शहर में स्थित सबसे वाहियात जगहों में से लगती है। उसमें से कुछ कारण ये हैं:
  1. जो चाय बाहर तीन रुपये की मिलती है उससे कई गुना घटिया चाय शापिंग मॉल में तीस रुपये में मिलती है।
  2. मॉल में सिवाय सफ़ाई, रोशनी और एअरकंडीशनिंग के बाकी सब स्थितियां अमानवीय लगती हैं। न ग्राहक और न सेल्सस्टाफ़ किसी के बैठने का कोई जुगाड़ नहीं होता।
  3. एक ही चीज के दाम जिस तरह वहां बदलते हैं उस तरह तो जनप्रतिनिधियों के बयान भी नहीं बदलते।
ये जो तीसरा कारण है उसको मॉल वाला अक्सर डिस्काऊंट सेल के नाम से बताते हैं। जब देखो तब किसी न किसी चीज पर छूट का हल्ला मचा देते हैं।
डिकाउंट सेल भी कई तरह की होती है। कभी प्रतिशत छूट, कभी बम्पर सेल और कभी एक के साथ एक/दो/तीन फ़्री वाली। आज कल देश भी तो पूरा बाजार में बदल रहा है। कौन जाने कल को कोई इतिहास वाला पढ़ाये कि देश ने आजादी एक के साथ एक मुफ़्त वाली सेल में पायी जो कि बाद में मोलभाव करने पर एक के साथ दो फ़्री हो गयी। सेल का आकर्षण और आतंक इत्ता भीषण होता है कि आदमी वह सब खरीदने के लिये पिल पड़ता है जो उसकी जरूरत नहीं।
ऐसे ही एक दिन मॉल के डिस्काउंड ऑफ़र की बाढ़ में हमारा परिवार फ़ंस गया। हर तरफ़ छूट ही छूट। हर कपड़े के साथ दो कपड़े फ़्री। बच्चे के लिये कुछ कपड़े लेने थे। छूट इतनी कि बच्चे के कपड़े के साथ मेरे भी ले लिये गये। जबकि हम घटना स्थल पर थे भी नहीं। लेकिन हमारी नाप/नंबर तो थी। सो हमारे लिये भी कपड़े लेने का त्वरित और बोल्ड निर्णय लिया गया। निर्णय पर अमल भी फ़ौरन हो गया।
पुतलाकपड़े के मामले में तो हम मैनीक्वीन हैं। जो पहनने के लिये कहा जाता है, पहन लेते हैं। खरीदने के लिये भले भुनभुनाने का नाटक करें लेकिन खरीदे हुये कपड़े पहनने से मना करने के समय हम उसी तरह नहीं उठाते जैसे सैकड़ों पत्रकारों के निकाले जाने पर दूसरे बड़का पत्रकारों की तरह चुप रहते हैं। घर में रहकर कपड़ा खरीदने वाले की नाराजगी कौन मोल ले?
तो किस्सा कोताह यह कि जब कपड़े हमारे ऊपर चढाये गये तो हाल वही हुआ जैसा स्केच के आधार पर मुजरिम पकड़ने निकली पुलिस का होता होगा। शर्ट पहनी तो सहमते हुये पूछा कि आजकल क्या बनियाइन में भी सामने जेब और कालर फ़ैशन में हैं? पैंट चढाने पर श्रीमती जी खुद बोलीं – ये चूड़ीदार पायजामा लगता है गलती से आ गया।
बहरहाल हमेशा की तरह एक बार फ़िर हीरामन की तरह कसम खायी गयी कि बिना ट्रायल के आगे से किसी के कपड़े नहीं खरीदे जायेंगे । कपड़े बदलने के लिये वापस चल दिये। मॉल में जब पहुंचे तो हर अगला हमें शक की निगाह से देखता पाया गया।
किसी की निगाह में साफ़ लिखा दिखा -डिस्काउंट पर सामान खरीदते हो और वापस भी करना चाहते हो?
किसी की निगाहों का हिन्दी अनुवाद था- इत्ते दिन बाद वापस कैसे होगा?
एक ने कहा – बिना बिल कैसे वापस होगा। उस काउंटर पर बात कर लीजिये।
उस काउंटर वाले ने कहा- इस काउंटर पर नहीं उस पर चलिये अभी आते हैं (मतलब ठंड रख)
उस काउंटर पर संकट कटै मिटै सब पीरा वाले हनुमत वीरा को सुमरते रहे। फ़िर पता चला कि इस काउंटर पर नहीं उस काउंटर पर यह पवित्र काम होगा। आखिर में काउंटर-काउंटर भटकते हुये तय हुआ कि कपड़े बदल सकते हैं। जित्ते के कपड़े थे उत्ते का वाउचर बनवाकर (साथ में हिदायत कि खबरदार जो इत्ते से कम के कपड़े खरीदे) कपड़े लेने कपड़ों के जाम में एक बार फ़िर से धंस गये।
कपड़ों के काउंटर पर पहले तो सेल्समैन ने ठेलुहई करते हुये मौज टाइप ली कि ऐसे कैसे बिना नाप के कपड़े तौला लिये। फ़िर पसीज कर दिखाये। कमीजें और पैंट अपने साथ लेकर हम फ़िर विजेता भाव से आगे बढे।
काउंटर पर शर्टें तो बदल गयीं लेकिन पैंट का पांयचा डिस्काऊंट की झाड़ी में फ़ंस गया। पता चला कि जिस चूड़ीदार पैंट को हम वापस करना चाहते थे उसके साथ जो पैंटे ली गयीं थीं वे हमारे बेटे के लिये थीं। वो अपने साथ लेकर चला गया था। हमारी वाली फ़्री वाली थी। बताया गया कि वापसी तभी संभव है जब सब कपड़े बरामद हों। मजबूरन हम चूड़ीदार पैंट को झोले में धरकर और अपना मुंह झोले जैसा लटकाये वापस आ गये। अब उस पैंट का क्या किया जाये यह समस्या हमारे घर के लिये कश्मीर समस्या सरीखी उलझी हुई है।
हमें लगा कि मॉल से भले तो अपने मोहल्ले के पंसारी जो सामान खराब होने की शिकायत पर घर आकर वापस करते हैं। शर्मिंन्दा होने की एक्टिंग अलग से। यहां मॉल में सामान वापस करना तो अलग सॉरी/ एक्सक्यूज/वी आर हेल्पलेस तक बोल के टरका देते हैं।
जब से हमारे साथ यह हादसा हुआ हम गाते फ़िर रहे हैं- हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने।
आपका क्या कहना है ?

21 responses to “हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने”

  1. देवांशु निगम
    हमारे ऑफिस के पास में एक मॉल है नाम है “स्टार मॉल” | चाय पीते पीते चले जाते हैं अक्सर | गलती से शोपिंग भी हो जाती है कभी कभी | वहाँ पर १००० रूपये की खरीद पर व्हील ऑफ फोर्च्यून घुमाने को मिल रहा था , हम घुमाए तो फ्री पार्किग निकला | हमने कहा खड़े करने के लिए फिलहाल तो साइकिल भी नहीं है , का करें | बड़ी मिन्नतें की तब जाकर १५० रूपये का पिज्ज़ा डिस्काउंट कूपन मिला | वही बात हो गयी “आये थे हरि भजन को , ओटन लगे कपास ” |
    बाकी गुडगाँव में मॉल की कोई कमी नहीं है , ना शोपिंग करने वालों की | माहौल चकाचक रहता है | अपन लोग तो वीकेंड में गर्मी से बचने के लिए भी निकल लेते हैं मॉल | विंडो शोपिंग हमारी फेवरेट है :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..१५ अगस्त का तोड़ू-फोड़ू दिन !!!
  2. shakuntala sharma
    मॉल भी कोई जगह है जाने की ? जेब में चाहे जितना माल हो मुआ मॉल किसी न किसी तरह लूट ही लेता है ।मुझे तो लगता है कि उसकी आँखों में सर्च-लाइट लगा हुआ है । पैसा आप कहीं भी छिपा कर रखें , वह आप से निकलवा लेता है । मैं तो मॉल जाती हूँ तो उतना ही पैसा ले जाती हूँ जितना मुझे खर्च करना होता है और यदि पैसे कम पडे भी तो साथ में फ्रेन्ड्स तो रहते ही हैं और वे हमें उधार देने के लिए एक पैर पर खडे रहते हैं ।
  3. Alpana
    कपड़े के मामले में तो हम मैनीक्वीन हैं। जो पहनने के लिये कहा जाता है, पहन लेते हैं। ”——–
    मेनिक्विन से तुलना करना!वाह!..यह बात बहुत बढ़िया लगी.
    मॉल कल्चर ने भी आम आदमी का बजट बिगाड़ रखा है.
    Alpana की हालिया प्रविष्टी..क्या बदला है अब तक? क्या बदलेगा आगे?
    1. eswami
      ये फुरसतिया जी का पुराना डायलॉग है – २००६ में हम हंस लिए इस पे .. और इस लेख में था – दोनों बच्चो के फोटो के नीचे वाले पैरा में ..
      http://hindini.com/fursatiya/archives/163
      कोइ बात नहीं!
      eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
  4. नीरज दीवान
    कंपनी से हमने एक राष्ट्र मांगा था.. उसने buy one get one free दे दिया। मज़ेदार शैली में जो विडंबनाएँ टिकाई हैं- रचना को चार चांद लग गए।
    ….खरीदने के लिये भले भुनभुनाने का नाटक करें लेकिन खरीदे हुये कपड़े पहनने से मना करने के समय हम उसी तरह नहीं उठाते जैसे सैकड़ों पत्रकारों के निकाले जाने पर दूसरे बड़का पत्रकारों की तरह चुप रहते हैं।
    ….मजबूरन हम चूड़ीदार पैंट को झोले में धरकर और अपना मुंह झोले जैसा लटकाये वापस आ गये। अब उस पैंट का क्या किया जाये यह समस्या हमारे घर के लिये कश्मीर समस्या सरीखी उलझी हुई है।
    …मॉल में सिवाय सफ़ाई, रोशनी और एअरकंडीशनिंग के बाकी सब स्थितियां अमानवीय लगती हैं। न ग्राहक और न सेल्सस्टाफ़ किसी के बैठने का कोई जुगाड़ नहीं होता।
    ग़ज़ब ढाए हो भैया.
  5. amit kumar srivastava
    हमें तो यह ‘माल’ शब्द में ही लोचा लगता है । कोई होंठ गोल कर ‘मॉल’ कहता है ,कोई शुद्ध देहाती की तरह ‘माल’ कहता है । इन शॉपिंग मॉल के आने से पहले पहाड़ों पर रमणीक स्थलों पर ‘मॉल रोड’ के प्रति जिज्ञासु रहे कि उसे मॉल रोड क्यों कहते थे ( पहले तो अनाड़ीपन में वही समझे जो सब समझते हैं …जहां माल -वो माल रोड , हमारी कोई गलती नहीं ,बचपन से रेलवे कॉलोनी में रहे , रेलवे मालगोदाम के सामने की सड़क को आज भी माल रोड कहते हैं क्योंकि वहां माल आता जाता है ) । बाद में विद्वजनो ने बताया जहां अंग्रेज घूमते थे और वहां भारतीयों का जाना वर्जित था ,वह मॉल रोड कहलाता था । अब यह शॉपिंग मॉल ….जहां अनेक दुकानों का एक बड़ा काम्प्लेक्स हो उसे ‘प्लाज़ा’ कहते हैं । अब जब प्लाज़ा और बड़ा हो जाए तो मॉल कहलाता है । पर अब इस मॉल में किसी का प्रवेश वर्जित नहीं है । बस जेब में माल होना चाहिए ऐसे मॉलों में जाने के लिए ।
    अधिकतर लोगों का अनुभव आप जैसा ही रहता है पर संकोच से चुप ही रहते हैं ।
    amit kumar srivastava की हालिया प्रविष्टी..“यादों के पिटारे से …….रक्षाबंधन “
  6. भारतीय नागरिक
    माल की बहार, शापिंग मजेदार.
    ग्राहक त्रस्त, मालिक मस्त……
    भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..नाग ने आदमी को डसा ….
  7. प्रवीण पाण्डेय
    पूरी व्यवस्था है लूट की। एसी के लिये बहुत अधिक धन वसूल लेते हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..मन – स्वरूप, कार्य, अवस्थायें
  8. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    मॉल में फिलिम देखने का अनुभव भी कुछ ऐसा ही होता है जैसे जेब कटवाकर आये हों।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..सेमिनार फ़िजूल है: विनीत कुमार
  9. Rekha Srivastava
    मॉल तो हम जैसे लोगों के लिए नहीं है , लेकिन मॉल में घूमते हुए लोग कुछ अधिक ही ताने हुए दिखलाई देते हैं. बस खरीदारी में मॉल के मेंटिनेंस का पैसा जोड़ कर वसूल कर लिया जाता है. अगर पैसा बहुत ज्यादा हो तो उसे बहार के बाजार में भी खर्च कर मनपसंद चीज खरीदी जा सकती है .
    Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर !
  10. arvind mishra
    ओह बनारस के माल याद आये
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..ब्लागिंग का ‘गर्भकाल’ और फुरसतिया को बधाई!
  11. सतीश पंचम
    मॉल तब बहुत काम आता है जब जोर की एक नंबर लगी हो और आस पास कहीं मुत्रालय आदि न मिले। कभी-कभी तो मॉल की बढ़ती संख्या देख लगता है सरकार जान बूझकर शौचालयों की बजाय मॉल बनवाने के लिये तरजीह देती है ताकि लोगों को शौचालय, मुत्रालय आदि के भी लाभ सर्वसुलभ हों :-)
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..बनारस यात्रा 10 – समापन किश्त
  12. Swapna Manjusha
    मॉल जाईये और माल न गंवाईये, ई का बात भई ?
    इस सम्पूर्ण ग्रह-मंडल वही तो एक मात्र स्थान है, जहाँ ग्रह-ग्रसित, ग्राहक की प्रतीक्षा में ग्राह बैठे रहते हैं :)
    जब मेनिक्विन होकर गीत गा रहे हैं, मेनकिंग होकर का गज़ब करते होंगे !!:)
    Swapna Manjusha की हालिया प्रविष्टी..बुलंदियों से कुछ मंज़र, साफ़ नज़र नहीं आते हैं ..!
  13. sanjay @ mo sam kaun
    चूड़ीदार पायजामा वाली आपकी फ़ोटो तो दिखाईये.
    sanjay @ mo sam kaun की हालिया प्रविष्टी..चाच्चा बैल
  14. Anonymous
    नेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
    भाद्र पट के आगमन की वधाई !!
    अच्छा प्रस्तुतीकरण !
  15. devdutta prasoon
    नेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
    भाद्र पट के आगमन की वधाई !!
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