Saturday, March 21, 2015

लात खाती शिक्षा नीति


1983 में हम साइकिल से भारत दर्शन के सिलसिले में बिहार भी गए। एक अध्यापक से बिहार की शिक्षा व्यवस्था , नकल की समस्या आदि पर बात हो रही थी। नकल की बात पर उनका कहना था-


" हमको यह चिंता नहीं है कि यहां नकल होती है। हमारी फ़िकर यह है कि अगर ऐसे ही नकल होती रही तो अगली पीढ़ी को नकल कौन करायेगा"

दो दिन से बिहार के स्कूल में जोखिम उठाकर नकल कराने वाले फ़ोटो देखकर लगा कि उनका शक निर्मूल था। अगली पीढ़ी को नकल कराने की व्यवस्था जारी है।

यह घटना शिक्षा व्यवस्था की खामी कहकर प्रचारित की गयी। शिक्षा व्यवस्था की खामी से अधिक यह घटना भारतीय राजनीति में बढ़ते भ्रष्टाचार की कहानी है।

प्रदेश शिक्षा विभाग के अधिकारी जो लाखों रूपये खर्च करके अपनी पोस्टिंग कराते हैं। उनको अपना खर्च निकालना होता है।अगली पोस्टिंग के लिये पैसे का इंतजाम करना होता है।

एक शिक्षा अधिकारी निर्धारित पैसा खर्च करके पोस्टिंग कराकर आये। खर्च की वसूली उन्होंने तेजी से शुरू की।शिकायत हुई। बुलाया गया। पांच लाख और खर्च करना पड़ा अधिकारी को। अधिकारी के लिए सन्देश था- "कमाई करो उससे कोई एतराज नहीं। लेकिन शिकायत नहीं आनी चाहिए।"

प्राइवेट स्कूल बनवाने वाले को अपना खर्च निकालना होता है। मान्यता दिलाने में हुआ खर्च निकालना होता है। इसके लिए आसान तरीका यह होता है कि वह अपने स्कूल को परीक्षा केंद्र बनवाये। वहां बच्चों को पास कराने की गारंटी के साथ फ़ार्म बनवाये।

बच्चों को भी पास होने का प्रमाण पत्र चाहिए होता है।दो,चार ,दस हजार में जुगाड़ हो जाए तो क्या बुरा?

अधिकारी,स्कूल प्रबंधक और किसी तरह पास होने की इच्छा रखने वाले बच्चों का साझा प्रयास का उत्कृष्ट नमूना है यह दृश्य जिसमें दूसरी,तीसरी मंजिल पर चढ़कर खिड़कियों से नकल पर्ची सप्लाई हो रही थी।

इस घटना के बाद कुछ होमगार्ड सस्पेंड हुए। वे बेचारे अस्थाई कर्मचारी होते हैं। पैसा देकर ड्यूटी पाते हैं। कुछ पैसा पाकर नकल में असहयोग नहीं कर रहे थे।बहाली के लिए पैसे का इंतजाम करना पड़ेगा उनको।जितने दिन बहाली नहीं होगी उतने दिन कोई दूसरा काम धंधा करेंगे।बहाल होने पर नुकसान की भरपाई करेंगे।

स्कूल के प्रबन्धक का खर्च बढ़ जाएगा। अगले कुछ साल उसके स्कूल को परीक्षा केंद्र नहीं बनाया जाएगा। जिस अधिकारी ने उस स्कूल को परीक्षा केंद्र बनाया वह अपनी सेटिंग कर रहा होगा। संपर्कों के रसूख से या फिर पैसे से।

यह घटना बिहार की है। लेकिन अपने देश के तमाम प्रादेशिक बोर्डों की हालत उन्नीस बीस ऐसी ही है। सब जगह पैसा पीटने की होड़ है। बेसिक शिक्षा में अध्यापकों के तबादले पोस्टिंग की इतनी महीन और खुली व्यवस्था है कि बड़े बड़े अर्थशास्त्री शर्मा जाएँ।

इस घटना का बिहार बोर्ड से पढ़े बच्चों की काबिलियत से कोई सम्बन्ध नहीं है। सच तो यह है कि बिहार और यू पी बोर्ड से देश के सबसे प्रतिभाशाली बच्चे भी निकलते हैं। किसी बोर्ड का प्रतिभा से कोई लेना देना नहीं।
बरबस श्रीलाल शुक्ल जी का राग दरबारी में लिखा वाक्य याद आ रहा है-"हमारे देश की शिक्षा नीति रास्ते में पड़ी कुतिया है जिसे कोई भी लात लगा देता है।"

बिहार की इस घटना के बाद देश की शिक्षा नीति दो दिन से लात खा रही है।

4 comments:

  1. अपने देश के तमाम प्रादेशिक बोर्डों की हालत उन्नीस बीस ऐसी ही है। सब जगह पैसा पीटने की होड़ है। बेसिक शिक्षा में अध्यापकों के तबादले पोस्टिंग की इतनी महीन और खुली व्यवस्था है कि बड़े बड़े अर्थशास्त्री शर्मा जाएँ।

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  2. सार्थक पोस्ट

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  3. हैरान हूँ आप जैसे सीनियर और पुराने ब्लोगर के लेखन से अब तक महरूम कैसे रही ..खैर देर आई दुरुस्त आई :)

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  4. बुरा हाल है शिक्षा का ...
    चिंतनशील प्रस्तुति ...

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