Saturday, December 05, 2015

'हम न मरब' -बेहतरीन उपन्यास

अभी खत्म किया यह उपन्यास। हाल के दिनों में पढ़ा सबसे बेहतरीन उपन्यास। अद्भुत।

ज्ञान चतुर्वेदी जी( Gyan Chaturvedi ) के सभी उपन्यास मैंने पढ़े हैं। अलग-अलग कारणों से वे पसन्द आये। लेकिन 'हम न मरब' पढ़ने का अनुभव सबसे अलग रहा। इस उपन्यास को पढ़ना अपने समय की विद्रूपताओं को नजदीक से देखना जैसा है।

'हम न मरब' के बारे में और कुछ लिखना मुश्किल है फिलहाल। इसके लिए इसे फिर से पढ़ना होगा इसे। लेकिन आम जीवन का का इतना सच्चा बयान इसके पहले कब पढ़ा यह याद नहीं।
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उपन्यास पढ़ने के पहले इसके बारे में हुई आलोचनाएं पढ़ने को मिली थीं। इसकी आलोचना करते हुए कहा गया कि इसमें गालियां बहुत हैं। लेकिन उपन्यास पढ़ते हुए और अब पूरा पढ़ लेने के बाद लग रहा है कि गालियों के नाम पर उपन्यास की आलोचना करना कुछ ऐसा ही है जैसे किसी साफ़ चमकते हुए आईने के सामने खड़े होकर कोई अपनी विद्रूपता और कुरूपता देखकर घबराते हुए या मुंह चुराते हुए कहे- 'ये बहुत चमकदार है। सब साफ-साफ़ दीखता है।'

उपन्यास पढ़ने के बाद मन है कि अब इसे दोबारा पढ़ेंगे। इस बार ठहर-ठहर कर। पढ़ते हुए सम्भव हुआ तो इसकी सूक्ति वाक्यों का संग्रह करेंगे। जैसे की आखिरी के पन्नों का यह सूक्ति वाक्य:
"महापुरुष के साथ रहने को हंसी ठट्ठा मान लिए हो क्या? बाप अगर महापुरुष निकल जाए तो सन्तान की ऐसी-तैसी हो जाती है।"

इस अद्भुत उपन्यास का अंग्रेजी और दीगर भाषाओं में अनुवाद भी होना चाहिए। 500-1000 की संख्या वाले संस्करण की हिंदी पाठकों की दुनिया के बाहर भी पढ़ा जाना चाहिए इस उपन्यास को।

327 पेज का यह उपन्यास राजकमल प्रकाशन की बेवसाइट rajkamalprakashan.com से आनलाइन मंगाया जा सकता है। कीमत है 495 रूपये।

ज्ञान जी ने अपने इस उपन्यास के समर्पण में लिखा है:
"........और व्यंग्य में आ रही नई पीढ़ी को भी/
बहुत स्नेह और विश्वास के साथ समर्पित/
मुझे विश्वास है कि मैं कभी नहीं मरूंगा/इस नई पीढ़ी में, हमेशा ही जिन्दा रहने वाला हूँ मैं।"

जैसा उपन्यास लिखा है ज्ञान जी ने उससे उनकी यह हमेशा जिन्दा रहने का विश्वास सच साबित होगा। जब तक पढ़ने- लिखने का सिलसिला चलता रहेगा और जब तक जीने-मरने की कहानी जारी रहेगी तब तक उनका यह उपन्यास 'हम न मरब' प्रासंगिक रहेगा।

ज्ञान जी के बारे में लिखते हुए उनकी अगस्त में एक इंटरव्यू में कही बात याद आ रही है जब उन्होंने कहा था-" हम आज जो हैं उससे बेहतर होना है हमें। हमें बेहतर इंसान होना है, बेहतर पिता, बेहतर पुत्र, बेहतर पति, बेहतर लेखक होना है। हम आज जो कुछ भी आज हैं उससे बेहतर होना है।"

उस दिन उनकी कही बात सुनकर लगा था कि कितनी अच्छी बात कही है। आज फिर लग रहा है यह सोचते हुए।

उपन्यास अगर न पढ़ा हो तो मंगाकर पढ़िये। अच्छा लगेगा।

ज्ञान जी बहुत-बहुत दिनों तक लिखते रहें। दीर्घायु हों और स्वस्थ बनें रहें। मंगलकामनाएं।

1 comment:

  1. हम चार पॉंच बार पढ चुके हैं लेकिन दिल है कि मानता नहीं - कमाल का उपन्यास है अब तक दस बारह प्रतियाँ तो ख़रीद कर इष्ट मित्रों में बॉंट चुके हैं

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