Friday, October 14, 2016

दिखते नहीं, मिलते नहीं

कल सबेरे जरा बाहर निकले। सूरज भाई दिखे बहुत दिन बाद ! खिल गये। हंसते हुये हाल-चाल लिये दिये। उनके साथ की किरणें आसपास के पेड़,पौधों, फ़ूल, पत्तियों के साथ ’धूप खेला’ कर रहीं थीं। मुट्ठी-मुट्ठी भर धूप पेड़, पत्तियों, कली, घास, सड़क, मकान सबको फ़ेंक-फ़ेंक कर मार रही थीं। धूप के उजाले में सब खिल-खिला रहे थे।
एक आदमी बोतल में पानी लिये सड़क पर चला जा रहा था। चेहरा किसी अपराध बोध में झुका सा हुआ। इसके यहां लगता है न कोई सोच है न शौचालय! सूरज की किरणों ने उसके चेहरे पर भी धूप बिखेरी लेकिन वह वैसे ही सर झुकाये झाड़ियों के बीच से होता हुआ एक टूटी दीवार के अन्दर हो गया। अन्दर कहीं इत्मिनान से बैठकर ’बिना सोच वाले शौचालय’ में बैठ गया होगा!
सामने से सूरज भाई पूरे जलवे में दिखे। एक पेड़ के ऊपर अपना गाल धरे हमसे बतियाते रहे बहुत देर। वही सब शिकवे-शिकायतें। दिखते नहीं, मिलते नहीं।
सामने से तीन बच्चियां प्लास्टिक की बोरियां लिये सड़क पर आती दिखीं। वे कूड़ा बीनने निकली थीं। बोरियों की लम्बाई बच्चियों से ज्यादा थी। वे आपस में बतियाते हुये सामने से आ रही थीं। हमने पूछा- ’ क्या बीनने निकली हो?’ वे बोली- जो भी मिल जाये!’
हमने सामने से फ़ोटो लेने के लिये मोबाइल ताना। पहले तो वे पोज बनाकर खड़ी हो गयीं। इसके बाद अपना दुपट्टा चेहरे पर कर लिया। तीनों से। एक ने तो बोरी सटा ली मुंह पर। हमने कैमरा नीचे कर लिया। वे हमारे सामने से होते हुये सड़क पर चलती चली गयीं।
आगे लोग टहलते हुये दिखे। तेजी से आगे-पीछे हाथ हिलाते हुये। जितने टहलने जाते लोग दिखे उससे ज्यादा लोग निपटने के लिये जाते दिखे। हाथ में पानी की बोतल लटकाये हुये। कुछ लोग बोतल को इज्जत से लटकाये हुये थे, ज्यादातर उंगली से थामे हुये। यह हाल तो पानी भरी बोतल का था। लेकिन खाली बोतलों को उंगली में फ़ंसाये हुये ही चले जा रहे थे। खाली बोतल का हाल वोट डाल चुके वोटर की तरह हो जाता है। उसकी इज्जत पहले जैसी नहीं रहती।
एक साथ लोगों को टहलते और निपटने जाते देखकर मुझे ताज्जुब हुआ कि अभी तक किसी नेता ने यह बयान क्यों नहीं जारी किया -’घर-घर शौचालय बनने से लोगों का सुबह टहलना बंद हो गया है। लोगों के स्वास्थ्य खराब हो रहे हैं। 
मोड पर एक जगह दो लोग एक सुअर को पकड़ रहे थे। एक ने उसके दोनों पैर पकड़े दूसरे ने बांध दिये। पैर बांधते समय वह बड़ी तेज चिंचिया (सुअरिया ) रहा था। इसके बाद दोनों ने मिलकर उसका मुंह भी बंद कर दिया जैसे अखबारों के, समाचार चैनलों की आवाज विज्ञापन मिलने के बाद धीमी पड़ती जाती है वैसे ही सुअर की आवाज भी धीमी पड़ती गयी। हाथ-पैर और मुंह बंध जाने के बाद कुछ देर तक वह पीठ के बल आगे-पीछे सरकता रहा। इसके बाद अपने को नियति के हाथ सौंपकर चुपचाप लेट गया।
सुअर के चुप हो जाने के बाद दोनों लोगों ने उसको अपने साथ फ़टफ़टिया पर लादा। चालक और पीछे बैठी सवारी के बीच बंधे सुअर को लादकर वे घटनास्थल से गो, वेंट और गान हो गये।
घर के पास एक आदमी पुलिया पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। हमको वहां देखकर वह सकपका सा गया। मानो चोरी करते पकड़ा गया हो। उसकी साइकिल पास में खड़ी थी जिसका एक पैडल गायब था। कुछ देर उससे बतियाने के बाद हम तैयार होकर दफ़्तर चले आये।
रास्ते में पंकज बाजपेयी मिले। बोले- ’नकली पेरोल पर लोग रिहा हो रहे हैं। बजरिया थाने में रिपोर्ट हुयी है। जार्डन, कनाडा, लीबिया के लोग शहर में आये हुये हैं। बच्चों को पकड़ रहे हैं।"
हमने कहा- " अखबार में तो कहीं नहीं छपती आप जो बताते हैं वो खबरें।"
वे बोले-"अखबार वाले खबरें दबा देते हैं। बहुत दबाव है उनपर।"
हम उनकी बात से सहमत हों या असहमत यह सोचते हुये चलते रहे। आखिर में फ़ैक्ट्री पहुंचकर वहां जमा हो गये।
यह किस्सा था कल का, आज का कभी फ़िर। मने -शेष अगले अंक में। ठीक? आप मजे से रहिये ! 

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