ये फोटो विजयनगर का है। सड़क के दोनों तरफ फल की दुकानें हैं। 'अतिक्रमण हटाओ' के चलने पर फुटपाथ दिखने लगती है। दुकाने हट जाती हैं।
ये सांड भाई अपनी मुंडी प्लास्टिक की डलिया में घुसाये कुछ खा रहे हैं। शायद कुछ फल हों और उसके छिलके भी। क्या पता प्लास्टिक भी उदरस्थ कर रहें हो कुछ अनजाने में। मुफ़्त के माल में वायरस तो आएगा ही न।
सांड की फोटो खींचते हुए देखे वहीं पर एक ठेलिया पर फल बेचने वाला नोट गिन रहा था। नोटबंदी के समय खुलेआम , सरे-सड़क किसी का नोट गिनना अपने में दुर्लभ घटना है। लेकिन उसका फोटो हम लिए नहीं। क्या पता कोई छापा मारने पहुंच जाए कि इत्ते नोट आये कहां से।
वहीँ दो बच्चियां एक-दूसरे के कन्धे में हाथ धरे 'पक्की सहेली-मुद्रा' में सामने से आती दिखीं। हमने उनका फोटो लेना चाहा तो दोनों बड़ी तेज भागी। ऐसे जैसे जरीबचौकी क्रासिंग पर माँगने वाले बच्चे मोबाईल कैमरा देखकर तिड़ी-बिड़ी हो जाते हैं। भागकर दूर से वे हमको छिपकर देखती रहीं। गोया हम कोई 'खतरा टाइप' आइटम हों।
उनको ऐसे हमसे बचते देखकर ख्याल आया कि क्या पता कल कोई जनप्रतिनिधि किसी गाँव जाए और जनता उसको देखकर अपने गाँव से भागकर ऊसर-बीहड़ में छिप जाए कि कहीं नेता कुछ भला न कर जाए। कोई समाज सेवा न कर डाले। हो तो खैर इसका उल्टा भी सकता है कि जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र की जनता को देखकर फूट ले कि कहीं जनता उसके कामों का हिसाब न माँगने लगे।
है कि नहीं ?
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