कानपुर में मेरे मित्र श्री बालकृष्ण शर्मा नवीन थे, निहायत औला-मौला आदमी। एक दिन कानपुर में उन्होंने कौशिकजी की मंडली में अनातोल फ़्रांस के ’थाया’ उपन्यास की बड़ी तारीफ़ की। तो जब मैं हमीरपुर पहुंचा तो वहां श्री भडकांकर कलेक्टर थे- इन्दौर की सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती कमलाबाई के दामाद। श्रीमती कमलाबाई मेरी कविताओं से बड़ी प्रभावित थीं, तो उन्हीं के रिश्ते से मैं मिस्टर भडकांकर से मिला। कुछ रूखे से सहृदय आदमी, वह मुझे मानने लगे। उनकी एक निजी लाइब्रेरी थी। उस लाइब्रेरी में ’थाया’ उपन्यास की एक प्रति मुझे दिख गई, तो मैं उसे ले आया। मैं उसे आद्योपांत पढ भी गया और पढने के बाद मुझे लगा कि वह उतना महान उपन्यास नहीं है जितना नवीन ने बतलाया था। मैं भी वैसा उपन्यास लिख सकता हूं।
तो मैं हमीरपुर में सुबह अपने आफ़िस में बैठा। मेरे मुंशी मुवक्किल फ़ंसाने के लिये बाजार में निकल गये थे। एक अजीब ऊब-सी अनुभव कर रहा था। एकाएक सर को झटका दिया। वहीं बाजार से दो आने की एक कॉपी खरीद लाया, और उसमें मैंने लिखा- श्वेतांक ने पूछा , और पाप?"
उस समय मुझे क्या पता था कि मैं एक क्लासिक का श्रीगणेश कर रहा हूं। मैंने ’चित्रलेखा’ को लिखना आरम्भ कर दिया। उस उपन्यास को पूरा करने में मुझे दो वर्ष लगे। उन दो वर्षों में मैं कितना भटका, कितना घूमा इसकी अलग कहानी है।
भगवती चरण वर्मा के आत्मकथात्मक उपन्यास ’धुप्पल’ से।
* चित्रलेखा उपन्यास की शुरुआत करते समय भगवती चरण वर्मा की उमर थी कुल जमा 27 साल। पूरा करते 29 साल हो गयी होगी। आपको भी अगर कभी ऊब-सी महसूस हो तो इसको एक कालजयी सृजन का संकेत मानिये और कुछ लिखना शुरु कर दीजिये।
इसी बात पर अपने लेख- ’बोरियत जो न कराये’ का यह वाक्य याद आ गया-"दुनिया में जो भी होता है सब बोरियत से बचने के लिये होता है।" लेख का लिंक कमेंट बक्से में।’
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10214025567446714
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