मेरी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा यह है कि विश्व के अमर सहित्यकारों में मेरी गणना हो। तो अपने जीवन काल मे यह होता दिखाई नहीं देता। विश्व-साहित्य के संदर्भ में हिंदी-साहित्य नगण्य समझा जाता है। वैसे न तो वह नगण्य है न अन्य साहित्यों से नीचा है। लेकिन हम भारतवासी एक विकृति से बुरी तरह ग्रस्त हैं। हमें आत्महंता-योग प्राप्त हुआ है, यानी हम सब आत्मघाती हैं। अपने साहित्य और साहित्यकारों के हमीं सबसे बड़े दुश्मन हैं।
-भगवती चरण वर्मा अपने आतकथात्मक उपन्यास 'धुप्पल' में
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