Saturday, March 31, 2018

परदेशन से मुलाकात

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, मुस्कुराते हुए, खड़े रहना, बच्चा और बाहर
परदेशन अपनी फोटो देखती हुई

कल शाम टहलने निकले। कार से। खरामा-खरामा टहलते हुए सड़क के नजारे देखते।
एक ठेलिया वाला अपनी ठेलिये के पिछवाड़े को उचकाए चला जा रहा था। पिछले पहिये टेढ़े हो गए थे। सड़क पर चलते पहिये तो 'सरल आवर्त रेखा' बनाते।
एक आदमी भरी सड़क पर बैठ-बैठकर चल रहा था। हाथ के बल उचकते हुए। शायद उसकी टांगे खराब हो गईं थीं। चलने में तकलीफ थी।
कलट्टरगंज की तरफ निकले। चौराहे पर सिग्नल पर रुके। एक बच्चा गाड़ी पोंछने के लिए लपका। हमने उसको रोका तो उसने बेवश नाराजगी से मुझे देखा। आदत हो जाने के बावजूद के हम थोड़ा असहज हुए। सिग्नल हो गया। सैंट्रो सुन्दरी में बैठा जवान आगे बढ़ गया।
कलट्टरगंज हमेशा की तरह ऊंघ रहा था। 'झाड़े रहो कलट्टरगंज' , झड़ा हुआ कलट्टरगंज' लग रहा था। सड़क के दोनों तरफ दुकानों में से ज्यादातर में मुनीम, कैशियर बस्ते पर सर धरे सोते/ऊंघते दिखे।
कलट्टरगंज आने का कारण 'परदेशन' को उसकी फोटो देना था। पिछले साल एक सिंघाड़े की दुकान पर काम करते हुए मिली थी। फोटो खींचते हुए उनको फोटो देने का वादा किया था। महीनों पहले डेवलप कराई थी।लेकिन देने नहीं जा पाए थे। टलता रहा मामला। कल गए।
जहां परदेशन काम करते दिखी थीं वहां सन्नाटा था। पता किया काम बंद है अभी। सिंघाड़े का सीजन ख़त्म। सब मजदूर गांव लौट गए हैं।
हमने परदेशन का फोटो दिखाया तो दुकान वाले ने बताया आगे सौंफ की दुकान में काम करती है। अभी मिल जाएगी।
गलियों में होते हुए पहुंचे तो एक कोठरी में बैठी थीं परदेशन। अपने लिए 'बेना' बना रही थी। सरकंडो को सिलते हुए गर्मी में झलने के लिए पंखा। अधबना पंखा हाथ में लिए हुए झोपड़ी से निकली। फ़ोटो दिए तो खुश हो गयी।
फोटो देखते हुए आसपास आते-जाते लोगों को दिखाते हुए कहती -'देखो भैया हमार फोटो ले आये। तुम कहत रहव कि न अइहैं।'
लोग भी फोटो देखते हुए मजे लेते रहे-'तुम तो हीरोइन हुई गई परदेशन।'
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, मुस्कुराते हुए, खड़े रहना
चाय हो जाये
पास की चाय की दुकान पर चाय पी हम लोगों ने। बताया कि लोग कह रहे थे -' वो अखबार के लोग थे। फोटो अखबार में छप गयी होगी। कौन देने आएगा। हम भी सोच रहे थे कि फ़ोटो देने आये नहीं। अब बच्चों को दिखायेंगे कि ये देखो फ़ोटो। ये बहुत बढिया काम किये भैया तुम। फ़ोटो लै आये।'
चाय की दुकान 40 साल पुरानी। दुकान वाले ने बताया कि जब शुरू किए थे दुकान तो यहां जगह नहीं थी चलने की। चवन्नी की चाय बिकती थी। आज पांच रुपये की चाय।
परदेशन की फ़ोटो देखकर चाय की दुकान में एक ने चाय की दुकान पर लगा एक फ़ोटो दिखाते हुये हमारे लिये चुनौती उछाली - ऐसी फ़ोटो खैंचकर दिखाओ। श्वेत श्याम फ़ोटो में कोई आदमी किसी मंदिर में पूजा कर रहा था। हमने चुनौती अस्वीकार करके चाय पर ध्यान देना उचित समझा। चाय चकाचक बनी थी।
परदेशन ने पूछा -'भैया हमार आधार कार्ड खो गवा है। दवाई लेन जाओ तो आधार माँगत हैं सब। कैसे बनी?'
हमने पूछा नाम, पता या नम्बर हो तो बन जायेगा दूसरा। क्या नाम से है?
बोली -'कइयो तो नाम हैं। परदेशन, मुन्नी , चन्दा। अब याद नहीं कौन नाम लिखा है कार्ड मा। हां नम्बर शायद बैंक की पासबुक मा लिखा है। गांव मा है पासबुक।'
हमने कहा-' नम्बर मंगवा लेव। फिर बन जाई दूसर कार्ड।'
चलते हुए सकुचाए अंदाज में फ़ोटो के पैसे के लिए पूछा -'भैया कुछ पैसा पड़े हुएहैं फ़ोटो बनवाई। दे देब। लै लेव। '
हमने मना किया। तो बोली -'इत्ती दूर ते आये हौ। पेट्रोल ख़र्च हुआ होई।'
हम बोले-'मुलाकात हो गई। यही ख़र्च का भुगतान हो गया।'
गली तक विदा करने आई परदेशन। नम्बर दे आये हैं। आधार कार्ड की जानकारी मिलने पर बनवाने का आश्वासन देकर। आश्वासन देने में कुछ से जाता थोड़ी है।
सोचा मन में -'साल भर लगे फोटो देने में। कार्ड बनवाने में कित्ती देर लगाओगे। आलसी बहुत हो सुकुल। '
पिछली पोस्ट का लिंक यह रहा
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