बन्द होने की कगार पर बहुत दिनों से बन्द लाल इमली |
हर शहर अपने में अनूठा है। कानपुर भी। सालों साल हो गए लाल इमली को देखते। किसी कम्युनिस्ट देश की सरकार सी जमी खड़ी है। हर साल चलाने चलने की खबर आती है। इसके पीछे ही बन्द होने की खबर चल जाती है। एक दूसरे पर जमी ईंटें आपस में गपियातीं होंगी -इन लोगों का कोई ठिकाना नहीं, कब कौन खबर चला दें।
नुक्कड़ पर होर्डिंग है। मोबाइल नम्बर लिखा है। विज्ञापन के लिए जगह खाली है। मन जगह खरीद ले और अपना विज्ञापन चिपका दें। अच्छा मान लो अपना विज्ञापन करते हैं तो लिखेंगे क्या ? बताइये इनमें से कुछ हो सकता है:
1. अनूप शुक्ल के शहर कानपुर में आपका स्वागत है।
2. अनूप शुक्ल की अगली किताब - कानपुर जिंदाबाद
3. बोर होने के लिए पढ़ते रहिये अनूप शुक्ल को
4. बेसिर पैर की हंकाई का ठिकाना
5.
2. अनूप शुक्ल की अगली किताब - कानपुर जिंदाबाद
3. बोर होने के लिए पढ़ते रहिये अनूप शुक्ल को
4. बेसिर पैर की हंकाई का ठिकाना
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तमाम और विज्ञापन हो सकते हैं। आप बताइए। लेकिन हम फोन तो किये नहीं जगह के लिए। क्या पता बिक गयी हो जगह। आजकल कब, कोई कितने में बिक जाए कुछ पता नहीं चलता।
विज्ञापन के लिए जगह खाली है |
लेकिन लफड़ा यह भी है कि कहीं कोई कानपुर से जुड़ा हमारा विज्ञापन देखकर ग़दर न काटने लगे -'कानपुर क्या इनके बाप का है। क्या कानपुर में स्वागत करने का ठेका इस फुरसतिये को किसने दिया?'
लाल इमली के अगल-बगल दो स्कूल हैं जहां हम 6 से 12 तक पढ़े। एक तरफ राजकीय इंटर कॉलेज, दूसरी तरफ बीएनएसडी इंटर कॉलेज। राजकीय इंटर कॉलेज में 10 तक पढ़े। इसके बाद दो साल बीएनएसडी में। बीएनएसडी में हमको सबसे बढ़िया गुरु जी मिले। आज भी मन करता है एफ वन सेक्सन में जाकर बैठ जाएं। लेकिन यह सोचकर मन मार देते हैं कि अब वे गुरुजी कहाँ होंगे।
तिराहे पर एक महिला टेम्पो वाले से अपने दो रुपये मांग रही थी। साथ में बच्चा था। दस दिए होंगे, आठ हुये होंगे। टेम्पो वाला किराया कुछ कह रहा होगा। महिला कुछ और। आखिर में लेकर ही मानी। जबर विश्वास।
समय से आगे चलती केसा की घड़ी। सुबह ग्यारह बजे समय बता रही साढ़े तीन। |
आगे केसा की घड़ी उसके हमेशा समय से आगे चलने की कहानी कह रही थी। ग्यारह बजे थे सुबह के। घड़ी साढ़े तीन बजा रही थी। ये बड़ी घड़ियां रखरखाव के लिहाज से बवाल ही हैं।
सामने बस स्टैंड टाइप शेड में एक आदमी नंगे बदन बैठा था। पेट अंदर पिचका। मानो कपाल भाती करते हुये हवा पूरी तरह बाहर करते हुए किसी ने उसके पेट को स्टेच्यू बोल दिया हो। लंबी दाढ़ी। थूक-बलगम लगा हुआ। हम सड़क पर गाड़ी में। वह सड़क, खुदी हुई नाली, फुटपाथ पार करके शेड में बैठा था। इतनी दूरी बहुत होती है सम्वाद हीनता के लिए। कुछ देर उसको देखते रहे चुपचाप। उसने तो हमको देखा भी नहीं। फिर चले आये।
एक रिक्शा वाला बर्फ की सिल्ली लादे चला जा रहा था। सिल्ली चुपचाप आंसू बहाती चली जा रही थी। सूरज भाई उसको चुप करने की कोशिश में और पिघलाएं दे रहे थे। अब तक तो ठिकाने लग गयी होगी। उसके टुकड़े होकर किसी के पेट में, फिर नालियों में होते हुये गंगा में मिल गए होंगे।
लाल इमली वाली फोटो फिर से देखी। लिखा है जल है तो कल है। देखकर और सोचकर डर लगा। कल क्या होगा?
जल पर संकट है, कल पर संकट है
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https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10214744040008079
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