Sunday, August 12, 2018

संपन्न होते देश की बढ़ती गरीबी

फुटपाथ पर देश का बचपन
सबेरे सड़क दर्शन को निकले। सड़क पर एक कुत्ता टहलता दिखा। टहलता कम घिसटता ज्यादा। आगे के दो पैर इंजन की तरह चलते। पीछे के पैर डब्बे की तर्ज पर घिसटते हुए।
आगे के पैर सीधे जा रहे थे। पीछे के पैर दाईं तरफ घिसटते हुए। आगे के पैरों की दिशा से समकोण बनाते हुए। परिणामी दिशा कहीं बीच की होगी लेकिन अंततः कुत्ता सीधे ही बढ़ रहा था। शायद किसी स्कूटर, मोटरसाइकिल ने ठोंक दिया होगा। कमर की हड्डी बोल गई होगी। किसी समर्थ घर में होता तो जानवरों के डॉक्टरों को दिखाया जाता। न्युरो इलाज होता। लेकिन सड़क के कुत्ते को यह कहां नसीब।
सामने से एक बच्चा बारिश से बचने के लिए थर्मोकोल का बक्सा ओढ़े चला जा रहा था। पूरी मुंडी बक्से के अंदर घुसी हुई। पहले बारिश से बचने के लिए लोग बोरा ओढ़ते दिखते थे। लेकिन वह भीगने के बाद भारी हो जाता होगा।
सड़क किनारे काली बरसातियों की तंबू नुमा झोपड़ियां बनी हुई है। लोग उनमें शरण लिए हुए सो रहे हैं। पालिथिन ने प्रदूषण बहुत मचाया है लेकिन पालीथिन 'गरीब मित्र' मने 'पुअर फ्रेंडली' है। सस्ती और टिकाऊ। जहाँ जगह दिखी, जमा दिया घर।
एक चाय की दुकान पर रुके। चाय पी। लोग ठेलिया के आसपास जमे, चौपाल लगाए चाय पी रहे थे। सड़क पर उकडू बैठे चाय पीते।
सामने फुटपाथ पर एक बच्ची कांच के ग्लास में चाय पीती दिखी। उससे बतियाये। आरती नाम है बच्ची का। मां-बाप कबाड़ बीनते-बेचते हैं।
हमने पूछा -'पढ़ने जाती हो?'
बोली -'नहीं।'
हमने पूछा -' क्यों?'
यहाँ पुलिस वाले रोज-रोज झोपड़ी तोड़ देते हैं। सब सामान उठा कर ले जाना होता है। ठेलिये पर ले जाते हैं। कुछ दिन बाद फिर आ जाते हैं। कुछ दिन बाद फिर आ जाते हैं। जगह तय नहीं इसलिए स्कूल नहीं जाती।
बगल की झोपड़ी में दो बच्चियां एक खटिया में गुड़ी-मुड़ी हुई सो रहीं थी। उनमें से एक स्कूल जाती हैं। दूसरी नहीं जाती। अपने देश का बहुत बड़ा हिस्सा इसी तरह जिंदगी जीता है। रोज उजड़ता-रोज बसता। इस हिस्से के लिए अनगिनत योजनाएं बनती हैं लेकिन वे सब की सब भटके हुए ड्रोन की तरह इन तक पहुंचने के पहले ही फुस्स हो जाती हैं।
हम इन जैसे बच्चों के पढाई के इंतजाम के बारे में सोचते हैं। संवेदना प्रकट करके जिम्मेदारी के पूरा होने का एहसास कर लेते हैं। आज भी यही किया। बहुत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद इस मामले में दिन पर दिन गरीब होते जा रहे हैं।
बच्ची की झोपड़ी के पास से नाली बहती है। संभ्रांत इलाके के पास होने के नाते उसमें बदबू और गैस नहीं बनती। लकड़ियां बीनकर खाना बनाता है परिवार। हमारे देखते ही लड़की चाय का खाली ग्लास लेकर उठकर बगल की झोपड़ी के लोगों से मिलने चली जाती है।
हम लौट आते हैं।
गंगा दर्शन बहुत दिन से नहीं हुए। आज देखने गए तो गंगा खूब पानीदार हो गयी हैं। गर्मी में सुस्त सी बहती, दुबली पतली गंगा अब खूब 'जल स्वस्थ' हो गयी हैं। दोनों किनारों तक विस्तार। पानी में तमाम कूड़ा-कचरा भी है। अचानक अमीर/ताकतवर हुये आदमी के पास दांए-बायें से भी संपत्ति/ताकत आती है उसी तरह अचानक बढ़ी हुई नदी में कूड़ा-कचरा भी आता है। ताकत के साथ नदी की तेजी भी बढ़ गयी है। बहुत तेजी से बह रही है। किसी की परवाह किये बिना।
सूरज भाई अभी दिखे नहीं हैं। दिखेंगे कुछ देर में। लेकिन दिन तो शुरू ही हो चुका है।

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