पेड़ से अलग हुआ पेड़ धूप में आराम करता हुआ |
कल झंडा फहराते हुए घर लौटे। रास्ते में एक पेड़ दिखा। धूप में आराम सा करता हुआ। उसकी भी छुट्टी रही होगी। हवा में टांग फैलाकर अलसाया पेड़।
हमको पेड़ अलसाया, सोता और आराम करता दिखा। किसी को पेड़ से अलग हुआ पेड़ दिखेगा। अलग मतलब बड़े पेड़ की पार्टी छोड़कर छोटा पेड़ बना। अलग हुआ पेड़ अलफ़ नँगा पसरा था जैसे समुद्र तटों पर सैलानी धूप स्नान करते हैं। सैलानी तो फिर भी एकाध कपड़े पहने रहते हैं, पेड़ तो एकदम मुक्त अर्थव्यवस्था की तर्ज पर पूरा दिगम्बर। कोई कहेगा, बेहया है, बेशर्म है। दूसरे कहेंगे बोल्ड है, ब्यूटीफुल है। आप क्या कहते ?
सड़क और फुटपाथ से उतर कर दो रिक्शेवाले अपने रिक्शे में बैठे बतिया रहे थे। आम तौर पर स्कूली बच्चों को लाने का काम करते हैं। आज उनकी छुट्टी तो इनकी भी । बतिया रहे है तसल्ली से।
फुरसत से गप्पाष्टक |
हमने पूछा आज छुट्टी तो रिक्शा लिया क्यों? किराया बेकार में दोगे। बोले -'आज किराया नहीं पड़ता।
आसपास के जिलों के रहने वाले रिक्शेवाले पता नहीं क्या बतिया रहे होंगे। गुफ्तगू का विषय क्या होगा हम कल्पना नहीं कर सकते। उन्होंने लालकिले का भाषण सुना नहीं होगा, चुनाव चर्चा भी नहीं करते लगे, अंतरिक्ष मे जाने का भी कोई प्लान नहीं दिखा उनके चेहरे पर। पता नहीं क्या कुछ बतिया रहे होंगे लेकिन उनकी तसल्ली देखकर बड़ा सुकून लगा। बिना किसी शिकायती अंदाज में तसल्ली से किसी को बतियाते देखना भी सुकून देह है।
वहीं फुटपाथ पर पानी का पाउच हाथ में लिए एक और आदमी दिखा। अपनी मर्जी से ही उसने देश के हाल पर कमेंट्री शुरू कर दी। लब्बोलुआब यह कि सब अमीर लोग खुश हो रहे हैं, गरीब पिट रहे हैं। कोई किसी की चिंता नहीं करता, सब अपना पेट भरने में लगे हैं।
'नानक दुखिया सब संसार' कहते हुए बोले --'किसी के सामने अपना दुखड़ा नहीं रोना। सबके पास अपने रोने हैं। तुम नौ आने का दुख सुनाओगे अगला बारह आने का पेल देगा। उसके दुख की बाढ़ में तुम्हारा दुख बह जाएगा। इसलिए अपने में मस्त रहो।
नानक दुखिया सब संसार |
बतियाने पर पता चला कि वो ज्ञानी बुजुर्ग ओएफसी से 2012 में रिटायर हैं। सेल मशीन में थे। गोला छीलते थे। शाम को लौट कर अपनी पान की दुकान चलाते थे। आज भी बैठते हैं पर शाम को। साहू पान भंडार ।
हमने उस समय के अधिकारियों के नाम लेते हुए पूछा सुशील ठाकुर जी को जानते हो? ए एन श्रीवास्तव को जानते हो?
बोले - ठाकुर साहब को कौन नहीं जानता। वो तो अब रिटायर हो गए। श्रीवास्तव साहब भी बहुत बढिया अफसर था। हमारे लिए रेस्ट रूम बनवाया। खूब काम किया, करवाया।
सुशील ठाकुर जी हमारे पहले बॉस थे। अकेले ऐसे अधिकारी जिनकी मेहनत के चलते हम उनका अदब करने के साथ डरते भी थे।
ए एन हमारे साथ के हैं। आजकल अंबाझरी में हैं। डिपार्टमेंट के सबसे कुशल अधिकारियों में से एक।
हमने बताया - हम भी वहीं थे। आजकल ओपीएफ में हैं।
हमारा हाथ जबरन अपने सर पर धरकर आशीर्वाद ले लिए।
उसी समय हमने ए एन से बात की। बताया कि उनके फैन सड़क पर, फुटपाथ पर मिले। संयोग यह भी कि आज ही सुबह सुबह ठाकुर साहब ने हमारी पुरानी पोस्ट्स पढ़ने के बाद हमको फोन किया यह कहते हुये-- 'तुम्हारी पोस्ट पढ़ने में मजा बहुत आता है। रिटायरमेंट के बाद पढ़ते हुए समय बढिया कटता है।'
आगे हीर पैलेस के सामने झंडे बिक रहे थे। टीवी पर स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम आ रहे थे।
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