आज सुबह निकल ही लिए। साइकिल में हवा कल की भरी थी। पैडल मारते ही स्टार्ट हो गई। टनाटन चल दी। सड़क पर आ गए।
कहने का मन हुआ कि हमारी साइकिल किसी संस्थान की कोई मशीन थोड़ी है जो कुछ दिन न चलने पर कबाड़ हो जाये। इत्ती कि उसको चलाने की जगह नई खरीद की बात चले।
रामलीला मैदान के दोनों तरफ लोग कसरत में जुटे थे। एक आदमी गर्दन इधर-उधर हिलाते हुये गर्दन व्यायाम कर रहा था। दूसरा रस्सी कूद रहा था। एक जगह खड़े-खड़े थोड़ा उचक जाता। रस्सी नीचे से निकल जाती। कोई झुकने उठने वाला व्यायाम भी करते दिखे लोग। सूरज भाई सबके चेहरे पर रोशनी डालकर उनके चेहरे के पसीने को चमका रहे थे।
एक मोड़ पर कुछ कौवे फुटपाथ पर बैठे कुछ मिस्काउट सी करते दिखे। हमको देखते ही उड़ लिए। जरूर किसी गड़बड़ी की योजना बना रहे होंगे। हमको देखकर डर गए। गड़बड़ करते हुए लोग डरपोक होते ही हैं। जरा सा हड़का दो, तितर-बितर हो जाते हैं।
एक मैदान में उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बस आराम कर रही थी। सड़क से करीब बीस मीटर दूर खड़ी। शायद काफी दिन रहना हो उसे वहां, इसीलिए सड़क से किनारे हो गयी।
फुटपाथ पर एक आदमी औंधा पड़ा था। आंख मूंदे। लगा नशे में धुत्त होगा। लेकिन मेरा सोचना गलत भी हो सकता है। हो सकता है नींद में हो। किसी के बारे में राय बनाना ठीक नहीं। नशे में भी हो तो क्या। कवि कह गए हैं:
तुम नशे में डूबना
या न डूबना
लेकिन डूबे हुओं से मत ऊबना।
आगे एक गाड़ी में बड़ा सा ट्रांसफार्मर रखा था। अस्थाई इंतजाम बिजली की सप्लाई का। बड़े-बड़े तार निकले थे। खम्भे से जुड़े। बिजली धड़ल्ले से आ-जा रही होगी।
ट्रांसफार्मर के बगल में ही फुटपाथ पर बैठे बुजुर्गवार हमको देखते ही बतियाने लगे। कहने लगे -'आज देश में 99% बेईमान हैं, 95% बेवकूफ हैं, 60% लड़कियन की कमाई खाते हैं।'
इतने आत्मविश्वास से बोलने वाला इंसान जरूर काटजू जी जुड़ा होगा। पता चला 72 साल के पंडित जी कचहरी में मुंशी हैं। महोली वाले पंडित जी के नाम से कचहरी में सब जानते हैं।
आम बुजुर्गों की तरह पंडित जी को जमाना दिन पर दिन खराब होता लगता है। आधे वकील बेबकूफ हैं। खाली डिग्री खरीद लिहिन्ह हैं, आवत-जाट कुछ है नहीं। काला कोट पहिन के सारे आ जात हैं कचहरी मां। अहमक हैं। वकीलों को उन बालों की उपमा भी दी पंडित जी ने, जिनको बोलचाल में भले न माना जाए लेकिन लिखत-पढ़त में परहेज किया जाता है।
पंडित जी अपने संघ के सचिव भी हैं। पर्चा भरा तो लोग बोले -'बाहिर के हौ, जमानत जब्त हुई जइहै।' पंडित जी बोले -'जौन होई , दीख जाई।' लेकिन जलवा ऐसा कि कोई दूसरा आया नहीं पर्चा भरने। निर्विरोध सचिव चुने गए। बाद में अध्यक्ष डकैती में जेल चला गया तो मानद अध्यक्ष भी बन गए। अभी तक बने हुए हैं।
पंडित जी की घरैतिन होमगार्ड में हैं। हमने पूछा -'आप 72 के वो क्या 60 से कम हैं।' बोले हां एकाध साल कम लिखी है उम्र। अगले साल रिटायर है।
पंडित जी को नई पीढ़ी से सख्त नाराजी है। बोले -'कच्ची दारू, पुड़िया और मोबाइल ने 60% लड़कों को बर्बाद कर दिया है।' 200 रुपये की पुड़िया खा जाते हैं। इत्ते में बढ़िया मक्खन खाएं तो सेहत बने।
खिरनी बाग में रहने वाले 72 साल के मोहाली वाले पंडित जी बोले -'हम अभी भी बिना चश्मा अखबार पढ़ लेते हैं। न्यायपथ के आदमी हैं। किसी से डरते नहीं। सब जानते हैं ।'
कचहरी का मुंशी न्यायपथ का आदमी है सुनकर बहुत भला।लगा।
आगे बस स्टेशन मिला। सवारियों की चहल-पहल से गुलजार। एक व्हीलचेयर पर एक बुजुर्ग को धकियाते हुए एक बच्चा ले जा रहा है। आगे व्हील चेयर समेट कर ऑटो में बैठ गए। रोजा जा रहे थे।
एक मोबाइल जी दुकान पर नाम लिखा था 'नेता जी मोबाइल वाले।' कितने तरह के नेता होते हैं अपने यहाँ।
एक पेट्रोल पंप के पास कुछ मजदूर खड़े ट्रक का इंतजार कर रहे थे। उससे लोहा उतरवाना है उनको। एक बुजुर्ग ने लम्बी अंगड़ाई लेते हुए बांहे फैलाई। हमको कविता याद आई:
ले अंगड़ाई उठ हिले धरा,
करके विराट स्वर में निनाद।
रास्ते में कुछ बैलगाड़ियों में भूसा लदा दिखा। बिकने के लिए आया है शहर में। सब भूसा खप जाता है। जानवरों के खाने के अलावा दिमाग में भी तो भरना होता है।
फैक्ट्री के पास सड़क गुलजार थी। लोग काम पर आ रहे थे। सूरज भाई भी पूरी सड़क को रोशनी से चेकोलाइट कर रहे थे।
सुबह हो गई है।
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