Saturday, November 30, 2024

धनिया के पैसे नहीं लेंगे, जाओ मौज करो

 
शाम को सब्ज़ी लेने गए बाज़ार। गुमटी में कुछ काम था तो सोचा सब्ज़ी भी वहीं से ले लेंगे। रास्ते में सोचा सब्ज़ी विजय नगर से ही ले लें, बाक़ी सामान गुमटी से ले लेंगे। लेकिन फिर न्यूटन के जड़त्व के नियम का आदर करते हुए गुमटी की तरफ़ ही बढ़ लिए। 

गुमटी में भीड़ बहुत थी। गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं मिली मेन रोड पर। गली में घुसा दिए गाड़ी। गली में घुसते ही एक दुकान बंद हो रही थी। वहीं कुछ देर इंतज़ार करके,  दुकान का शटर गिरने पर गाड़ी खड़ी कर दी। 

गाड़ी करने के बाद सब्ज़ी वाली की तरफ़ गए। सब्ज़ी वाली गली में फल, अचार और परचून की भी दुकाने भी हैं। सड़क ठेलिया वालों के क़ब्ज़े में सहम-सिकुड़ गयी थी। सड़क से किसी गाड़ी की सहज रूप से गुजरना चुनौती का काम।

एक दुकान से कुछ सब्ज़ी ली। 240 रुपए हुए। आनलाइन भुगतान के लिए स्कैनर माँगा तो सब्ज़ी वाले ने कहा -'हम मोबाइल ही नहीं रखते। स्कैनर भी नहीं।' 

जब तक भुगतान के लिए पैसे निकालें सब्जीवाले ने थोड़ी धनिया थमा दी। हमें लगा -'दस रुपए की धनिया दे रहे हैं ताकि 250 रुपए हो जाएँ और भुगतान आसान हो जाए।'

धनिया हमारे गार्डन में लगी है। हमने कहा -'धनिया नहीं चाहिए।'

सब्ज़ी वाले भाई जी ने शाही  अन्दाज़ में कहा -'अरे धनिया के पैसे नहीं लेंगे। जाओ मौज करो।' 

हमने बहुत कहा धनिया के पैसे ले लो लेकिन उन्होंने लिए नहीं। 

हमने नाम पूछा तो बताया -'नरेश।'

हमने कहा -'नरेश माने राजा होता है। इसीलिए अन्दाज़ शाही है।'

नरेश बोले -'सब आप लोगों की दुआ है। '

वहीं खड़े एक ग्राहक ने बताया -'नरेश सबसे मस्त सब्ज़ी वाले हैं यहाँ। दरियादिल।सब लोग इसीलिए इनके पास आते हैं सब्ज़ी लेने। '

हमने 500 रुपए का नोट दिया। जब तक वो पीछे की परचून की दुकान से फुटकर कराएँ तब तक हमने सोचा गोभी भी यहीं से ले लेते हैं। गोभी हमें लेनी थी, हमने देख भी ली थी वहाँ लेकिन देखने में थोड़ा बड़ी लगी थीं इसलिए सोचा और दुकाने भी देख लें। लेकिन मुफ़्त की मिली धनिया ने हमें गोभी भी वहीं से लेने के लिए उकसा दिया। पचास रुपए की एक गोभी के हिसाब से दो गोभी ले ली। 

इस बीच एकाध ग्राहक और आए। उनको भी शाही अन्दाज़ में निपटाया सब्ज़ी वाले ने। 

हम और सब्ज़ी लेने के लिए दूसरे ठेलियों की तरफ़ गए। सब सामान ले लिए लेकिन मशरूम नहीं मिला कहीं। हमें याद आया कि नरेश की ठेलिया पर मशरूम थे कुछ। हम वापस गए। देखा केवल दो पैकेट बचे थे मशरूम के। हमने पूछा -'केवल दो ही हैं ?'

'कितने चाहिए ?' -पूछा नरेश ने।

हमने बताया -'पाँच पैकेट चाहिए।'

'दो मिनट रुकिए' कहकर नरेश उस तरफ़ चले गए जिधर और सब्ज़ियों की दुकानें थीं। उन दुकानों पर कहीं दिखा नहीं था मुझे मशरूम। हमें लगा वे  उनमें से ही किसी दुकान पर खोजेंगे और ख़ाली वापस आएँगे। लेकिन कुछ ही देर में नरेश तीन मशरूम के पैकेट लिए आए और हमारे सामने धर दिए। चालीस रुपए के एक पैकेट के हिसाब से दो सौ रुपए भुगतान करके कहा -'तुम्हारा दिया हुआ नोट तुम्हारे पास ही लौट आया।'

इस बीच एक महिला गोभी लेने आई। मोलभाव करने पर नरेश ने कहा -'अभी-अभी भाई साहब को पचास रुपए में दी है। आप पैंतालीस रुपए दे दो।'

लेकिन महिला और कम कराने पर तुली थी।उसने चालीस रुपए में देने को कहा। नरेश  पैंतालीस पर ही अड़े रहे। महिला ने फिर चालीस की ज़िद की। चालीस -पैंतालीस की रस्साकसी देखती हुयी  गोभी ठेलिया पर  शांत भाव से बैठी रही।

महिला ग्राहक और नरेश का मोलभाव देखकर हमको  याद आया कि नरेश ने हमको दस रुपए की धनिया मुफ़्त में दी थी। हमने चलते हुए कहा -'अरे दस रुपए हमसे वापस ले लो। गोभी दे दो ।'

नरेश ने हाथ जोड़ दिए। बोले -'आपकी दुआ बनी रहे। यही बहुत है।' 

हम चल दिए। देख नहीं पाए कि महिला को गोभी कितने में दी आख़िर में। 

अभी घर आकर हमको नरेश का अन्दाज़ याद रहा है -'धनिया के पैसे नहीं लेंगे। जाओ मौज करो।' 



No comments:

Post a Comment