Thursday, October 21, 2010

वर्धा – कंचन मृग जैसा वाई-फ़ाई

http://web.archive.org/web/20140419214752/http://hindini.com/fursatiya/archives/1730

वर्धा – कंचन मृग जैसा वाई-फ़ाई

….हां तो बात वर्धा सम्मेलन की हो रही थी।
image लोगों से मिलते-बतियाते-गपियाते हम उसई बड़े अंगने में बैठे रहे। दो-तीन चाय खैंच डाली। सेल्फ़ सर्विस रही। उड़ेल के केतली से कप में चीनी मिलाकर पीते रहे। लोग आपस में मिल-मिलाकर बतियाना-चहकना शुरू कर दिये थे। अविनाश वाचस्पति को चैन कविता जी मिलने की उत्सुकता थी लिहाजा वे उनके कमरे की घंटी बजाकर बोले- क्या आप सो रही हैं। कविताजी ने जागकर क्या जबाब दिया यह तो नहीं पता लेकिन वे फ़िर हम लोगों के जमावड़े में शामिल हो गयीं आकर।
इस बीच इंतजाम तत्पर सिद्धार्थ आ गये थे घटनास्थल पर! उन्होंने बताया कि वर्धा में संचार व्यव्स्था हाई-फ़ाई है। जगह-जगह लगा वाई-फ़ाई है। हमको उन्होंने तुरंतै नेट कनेक्शन भी मुहैया कराया। यूजर आई कमरा नंबर और पासवर्ड़ xxxxxxxx। नेट कनेक्शन मिलते ही हम हरकत में आ गये और अपना लोटपोट खोलकर अंतर्जाल से जुड़ने के लिये पसीना बहाना लगे। विवेक सिंह ने अपना हुनर जैसा कुछ दिखाया और नेट कनेक्ट हुई गवा।
इत्ते बड़े विश्वविद्यालय परिसर में हर इमारत में वाई-फ़ाई कनेक्शन बड़ी बात है। पता नहीं और जगहों पर है कि नहीं ऐसा। लेकिन  नेट कनेक्शन कंचनमृग सा छलावा देते हुये लीला करता रहा। कभी है और कभी नहीं है। जहां कहीं फ़ुल है उसके एक फ़ुट की दूरी पर निल है। मुझे तो राणा प्रताप के घोड़े चेतक की याद आई:
था अभी यहां अब वहां नहीं
किस अरि मस्तक पर कहां नहीं
थी जगह न कोई जहां नहीं
  इस मायावी नेट के समर्थन से हमने और साथियों ने पोस्टें जारी रखीं। शुरुआत यहां से करके अगली पोस्ट के लिये विवेक से कोई तुकबंदी करने को कहा। विवेक ने लिखा:
image टपके ब्लॉगर बहुत से, वर्धा में इक साथ
चमकाते हैं दांत सब मिला-मिलाकर हाथ।
मिला-मिलाकर हाथ, चाय सबने पी ली है
बाकी सब तो ठीक,कमी मच्छर जी की है।
विवेक सिंह यों कहें, नहीं वे अब तक चिपके
मच्छर काटे नहीं, यहां जोन ब्लॉगर टपके।

अब चूंकि मच्छर वाली बात इलाहाबाद में हुये सम्मेलन से जुड़ी थी और अरविंद मिश्र जी ने इसे उठाया था लिहाजा इसको पढ़ते ही वे फ़ौरन फ़ार्म में आ गये और फ़टाक से हड़का दिया-had hai bevkoofee kee ….! उनकी टिप्पणी देखकर हमें लगा कि:
१. जो लोग यह कहते हैं कि नेट पर पोस्टों की उमर एक दिन होती है वे गलत कहते हैं। आपकी कही गयी कुछ बातें कालजयी न सही सालजयी तो हो ही सकती हैं।
२.मिसिर जी को गुस्सा दिलाना बहुत आसान है। वे किसी भी बात पर जनता की मांग पर गुस्से की फ़्री डिलीवरी कर सकते हैं।
३. हमारा हास्य बोध बहुत छुई-मुई टाइप का। जरा सी बात पर हास्य बोध की एम.सी.बी. गिर जाती है।
सिद्धार्थ ने हम लोगों को एक अच्छे मास्टर की तरह समेटकर -जल्दी करिये, तैयार हो जाइये, नहा लीजिये, नाश्ता कर लीजिये, आप कहां तक पहुंचे, गाड़ी पहुंच रही है, अब बस चल दीजिये, बस आ रही है , आइये-आइये , ये बच्चा ये सामान कमरा में पहुंचाओ जैसी बातें कहते हुये हमको सभागार तक पहुंचाया।
जिस बस से हम गये और जो आगे भी दो दिन हमारी सेवा में रही वह अधेड़ उमर की स्कूली बस टाइप की बस थी। शायद अभी और चकाचक वाहन खरीदे जाने बाकी हैं। सभागार पास ही था। अभी वर्धा में निर्माण का काम शुरु हुआ है। जो  कुछ इमारतें पहले की बनी बतायीं गयीं वो किसी कैम्प आफ़िस सरीखी लग रहीं थीं। अस्थाई व्यवस्था वाली वो इमारतें देखकर लगा कि इनको तबेला जैसा लिखें लेकिन अच्छा नहीं लगता ऐसा लिखना। शुरुआती समय में ऐसा ही होता है लेकिन यह भी लगा कि दस में सिर्फ़ इतना ही निर्माण हो पाया। खैर वह उनकी कहानी वे जानें। हम तो बात करते हैं ब्लॉगर सम्मेलन की।
समय से ही कार्यक्रम शुरु हो गया। बिना किसी तामझाम के। सिधार्थ ने एकंरिंग शुरू की। उद्घाटन भाषण विभूति राय जी ने दिया। उन्होंने अपने उद्भोधन में और बातों के अलावा कहा- एक समझदार और सभ्य समाज के लिये जरूरी है कि उसके नागरिक अपनी लक्ष्मण रेखा खुद खींचे ताकि ऐसी स्थिति न आये कि राज्य को सेंसर लगाने की सोचना पड़े।
उनकी सलाह एक बड़े-बुजुर्ग की सलाह थी। इसमें उनके खुद के अनुभव भी जरूर शामिल रहे होंगे जब उनके  खिलाफ़ ऐसी भाषा में बहुत-कुछ कहा गया जो उनको  जरूर नागवार गुजरी होगी।
image विषय प्रवर्तन श्रीमती अजित गुप्ता ने किया। अजित जी ने अपनी बात जिस सहज तरीके से कही उससे कहीं नहीं लगा कि वे कोई ज्ञान बांटने की मंशा से कह रहीं हैं। अपने ब्लॉगिंग के कुछ दिनों के अनुभव की बात कहते हुये उन्होंने जो बातें कहीं वे एक सहज संवेदनशील मन की बातें थीं। उनका कहना था कि अपने ऊपर हमको अपने आप संयम रखना चाहिये। उन्होंने ब्लॉग जगत के लिये भी एक पंचायत जैसी कोई व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया। अजित जी अच्छी बातों का जिक्र करने का भी महत्व बताया।
अजित जी के बाद कविता वाचक्नवी जी ने अपनी बात कही और अपने अनुभवों के आधार पर बताया-
खराब से खराब व्यक्ति को अच्छी चीज का आधिपत्य दीजिये वह उसे खराब कर देगा। और अच्छे व्यक्ति को खराब से खराब चीज दे दीजिये वह उसे अच्छा कर देगा। आचारसंहिता को आरोपित नहीं किया जा सकता। हां आप यह कर सकते हैं कि अनाचार पर दण्ड का विधान किया जा सकता है।
कविता जी की कही यह बात हमने हड़बड़िया चर्चा में गलत टाइप कर दिया था। बाद में खुशदीप के इशारे पर सही किया।
कविता जी के बाद आलोक धन्वा ने अपनी बात कही। वे हिन्दी के जाने-माने कवि हैं। ब्लॉगिंग के बारे में उन्होंने लोगों से जाना और इससे बारे में उनके विचार बड़े भले और धनात्मक हैं। उन्होंने ब्लॉगिंग को विस्मयकारी विधा बताते हुये आशा कि इसका सार्थक उपयोग होगा। बाद में उन्होंने यह भी कहा कि ब्लॉगिंग सबसे कम पाखण्ड वाली विधा है। आचार संहिता के सवाल पर उन्होंने कहा-
ब्लॉग जगत की अचार संहिता की जगह इंटरनेट की नैतिकता की चर्चा होनी चाहिये। जो अपने को अच्छा नहीं लगता उसे दूसरे से नहीं कहना चाहिये। आभासी दुनिया वास्तव में वास्तविक दुनिया का विस्तार है।
इस रिपोर्टिंग पर अपनी राय जाहिर करते हुये ज्ञानदत्त जी ने लिखा-
ओह, कागज और लेखन विधा वालों की महिमा से अभिभूत होना शायद नहीं जायेगा हिन्दी ब्लॉगरी में। दोयम रहने के लिये अभिशप्त रहेंगे बन्दे। लार टपकेगी कि अखबार के किसी चिरकुट कॉलम में नाम का जिक्र हो जाये! :)
यह बात अपनी पूर्वाग्रह के अनुसार तथ्य इकट्ठा करके कही गयी बात है। हिंदी ब्लॉगिंग के किसी मंच पर अगर कोई अपने समय अच्छा कवि/लेखक अपनी बात कहता है और हम उसको सुनते हैं तो इसका मतलब उसकी महिमा से अविभूत होना नहीं है। ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की एक विधा है। क्या इसमें आने वालों को यहां आकर सारी दुनिया से तखलिया कर लेना चाहिये? 
किसी अखबार के किसी कालम में जिक्र हो जाने पर लार टपकने वाली बात ज्ञान जी ही कह सकते हैं। कहते आये हैं! लेकिन जिन माध्यमों को देख-सुनकर हम बड़े हुये उनके प्रति सहज लगाव और उनमें अपने नाम का जिक्र पर किसी का उत्साहित होना सहज मानवीय स्वभाव है। क्या ब्लॉगिंग का मतलब अमेरिका हो जाना है- जो हमारे साथ नहीं है वह हमारा दुश्मन है।
वर्धा में हुई रिपोर्टिंग वहां की चुनिंदा बातों का जिक्र भर था। हर माध्यम की सीमायें होती हैं। वो यहां भी लागू थीं। दूर बैठे लोगों ने वहां की घटनाओं को कच्चे माल की तरह लिया और अपने मन की डाई में ठेल कर मनचाहे निष्कर्ष निकाले। कल्पना के घोड़े पर सवार उनके वर्णन इतने विश्वनीय लग रहे कि क्या कहने। मुझे अनायास सूरदास याद आये जिन्होंने अपनी मन की आंखों से कृष्ण जी की बाल लीलाओं का ऐसा अनुपम वर्णन किया  जैसा आंख वाले कवि नहीं कर पाये। ऐसे ही  कुछ लोगों ने जो वहां नहीं थे इतनी प्रामाणिक बातें लिखीं और इतने  सटीक सवाल उठाये कि उनकी कल्पनाशीलता को बरबस प्रणाम करने को मन करता है। :)
बहुत शुरु से हमें अपनी कही एक बात याद आती है अक्सर- जिसकी जैसी समझ होती है वो वैसी बात कहता है। यह बात यहां एक बार फ़िर सही सी लगी।
आगे जारी रहेगा तब तक अगर आपने न देखें हो फ़ोटो देख लें फ़िर से।

21 responses to “वर्धा – कंचन मृग जैसा वाई-फ़ाई”

  1. ajit gupta
    अच्‍छी रपट चल रही है। सभी क‍ुछ याद आ रहा है। आज भोपाल जाना है एक साहित्यिक आयोजन है। चार दिन बाद आकर आपकी दूसरी पोस्‍ट पढ़ पाएंगे। फोटोज भी सारी देख ली हैं।
  2. विवेक सिंह
    हर भले आदमी की एक रेल होती है, जो उसकी माँ के घर तक जाती है । शीटी बजाती हुई । धुआँ उड़ाती हुई ।
  3. satish saxena
    शुभकामनायें इस प्यारे अंदाज़ पर अनूप भाई !
    डॉ अरविन्द मिश्र को आप भूलते नहीं और अगर कोई भूल जाए तो भी याद दिला देते हो , मगर यह अंदाज़ बालीबाल खेलने जैसा है , अरविन्द जी की बाल भी आती होगी ……
    आपसे मिलना अविस्मर्णीय रहा …आभार स्नेह के लिए !
    satish saxena की हालिया प्रविष्टी..इस देश का यारो क्या कहना -सतीश सक्सेना
  4. संजय बेंगाणी
    यादों का दस्तावेजीकरण हो रहा है…. सही है.
    संजय बेंगाणी की हालिया प्रविष्टी..अपनी पहचान को लेकर घबराए हुए हैं मुस्लिम
  5. Sanjeet Tripathi
    ह्म्म, आलोक धन्वा जी को सुनना एक अच्छा अनुभव रहा, न केवल मंच से बल्कि साथ बैठकर भी। उनकी जो वीडियो रिकार्डिंग आपने की थी, उसे कब डालेंगे?
  6. मनोज कुमार
    अच्छी रिपोर्ट।
    सार्थक बहस की शुरुआत।
    अपनी आचार संहिता पहले हम अपने लिए बनाएं।
    जो हम दूसरों से नहीं चाहते वह हम नहीं करेंगे।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..देसिल बयना – 52 – चोर के अर्जन सब कोई खाए- चोर अकेला फांसी जाए !
  7. प्रवीण पाण्डेय
    कुछ कृतियाँ सालजयी होती हैं, क्योंकि सालती नहीं।
  8. jyotisingh
    वर्धा – चर्चा काफी दिलचस्प रही ,आपने इसे इस ढंग से हमारे सामने पेश किया कि अपने ना मौजदगी का अहसास ही नहीं हुआ ,चलिए हम बिन बुलाये शामिल हो गए आपकी मेहनत से ,वक़्त और पैसे तो बचे ही साथ में सफ़र के थकान से भी दूर रहे ,कुछ बाते काफी प्रभावशाली रही ,’चेतक’ नामक कविता की चंद पंक्तियाँ मुझे बचपन की ओर ले चली और मैं उसे याद कर गुनगुना डाली .
  9. dr.anurag
    आप तो पान की दूकान पर हुई मुलाकात को दिलचस्प बना देने का हुनर रखते है शुक्ल जी……पैना सा सेन्स ऑफ़ ह्यूमर जो है ….मिलते रहिये …..खुश रहिये ….इस पोस्ट में भी कई शानदार मसाले है …..
    लोगो का क्या है …उनकी कब एक मत राय हुई है…..मस्त रहिये…..
    dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..हकीक़तो के क्रोस फर्टीलाइजेशन
  10. audacity download
    You can edit audio files with audacity.
  11. arvind mishra
    कुत्ते की पूंछ और फुरसतिया की मूछ {पता नहीं है भी या नहीं ) !
  12. क. वा.
    अभी रंग और रौ आना प्रतीक्षित है
    क. वा. की हालिया प्रविष्टी..मर रहे हैं हाथ के लेखे हमारे
  13. भारतीय नागरिक
    सम्मेलन का लब्बो-लुआब यही रहा कि अपनी अचार संहिता खुद ही बनानी चाहिये. (आचार पढ़ा जाये अचार को).
  14. anitakumar
    जारी रखिए, हम पढ़ रहे हैं और फ़िर से इसी बहाने यादों को ताजा कर रहे हैं।
  15. Shiv Kumar Mishra
    एक और सुन्दर पोस्ट!
    आपका लिखा जितना पढ़ते हैं, लगता है कि थोड़ा और लिख देते तो क्या हो जाता? लेकिन फिर गाँधी जी ने कहा था कि मनुष्य को संतोष करना चाहिए. अब यह मत कह दीजियेगा कि गाँधी जी ने मनुष्यों को संतोष करने की सलाह दी थी, ब्लॉगर को नहीं:-)
    सक्सेना जी की बात महत्वपूर्ण है. बालीबाल वाली बात.
    Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..कश्मीर समस्या महत्वपूर्ण है
  16. sanjay
    शानदार च जानदार …… जारी रहिये ….. हम भी जमे हुए हैं .
    प्रणाम.
  17. रंजना.
    जारी रखिये चर्चा….सुखद लग रहा है….
  18. Abhishek
    “क्या ब्लॉगिंग का मतलब अमेरिका हो जाना है- जो हमारे साथ नहीं है वह हमारा दुश्मन है” … मतलब हो या नहीं, होता हुआ तो यही दीखता है मुझे.
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..टाइम ट्रेवेल कराती एक किताब
  19. Pramendra Pratap Singh
    आपके लेखन का तरीका आपके ब्लॉग पोस्ट की जीवन काल निर्धारित करता है, अच्छा और सदा बहार लेख सालो-साल पड़े जाते है. ऐसा तो मेरे साथ हो ही रहा है.
    Pramendra Pratap Singh की हालिया प्रविष्टी..एक कुत्ते की बात
  20. मेरे पास समय कम होता जा रहा है मेरी प्यारी दोस्त : चिट्ठा चर्चा
    [...] [...]
  21. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] वर्धा – कंचन मृग जैसा वाई-फ़ाई [...]

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Wednesday, October 20, 2010

…अथ वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन कथा

http://web.archive.org/web/20140419215202/http://hindini.com/fursatiya/archives/1719

…अथ वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन कथा

…और इस तरह संपन्न हुआ वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन!
लोगों ने अपने अपने अनुभव लिखे। अच्छे। खराब! जो लोग वहां थे उन्होंने अपने अनुभव लिखे। ज्यादातर लोगों ने आत्मीय और लोगों से मिलकर खुश होने के अनुभव बयान किये। जो वहां नहीं थे वे इधर-उधर से चिंदी-चिंदी बिन-बिन कर अपने  डिजाइनर अनुभव बयान कर रहे हैं। हिंदी पाठक सहज विश्वासी होता है। उदार च! वह दोनों अनुभव को समान आदर प्रदान कर रहा है।
image पहले वर्धा सम्मेलन  की तारीख सितंबर में तय थी। हम फ़ट से करा लिये थे रिजर्वेशन। बाद में पिछले साल की तरह तारीख फ़िर बदली। इस बार मारे नखरे के बहुत दिन तक टिकट नहीं कटाये। नखरे का  खामियाजा भी भुगते । लौटानी का रिजर्वेशन झांसी तक का ही मिला। उसको भी पचास बार देखना पड़ा। आ.ए.सी. से कन्फ़र्म होने तक। झांसी के बाद ट्रेन बदल के आना पड़ा। हालांकि कोई परेशानी नहीं हुई। आये ट्रेन से ही। कोई पैदल यात्रा नहीं करनी पड़ी। लेकिन यह कहने से हमें कौन रोक सकता है कि बहुत कष्ट हुआ। इसके बाद यह भी कह सकते हैं ऐठते हुये- आयोजकों को सम्मेलन की तारीखें मर्द की जबान की तरह तय करनी चाहिये। एक बार तय किया तो बदलने का सवाल ही नहीं। लेकिन लिखने में खतरा है। पता चला कि आयोजक आजकल के किन्हीं मर्दों की तरह कह दें- कौन सी तारीख, कौन सा सम्मेलन? आपको अवश्य कोई धोखा हुआ होगा। आप मेरी बात गलत समझ गये। हम तो अपनी साइट में टेस्ट पोस्ट करके देख रहे कि सम्मेलन करवायेंगे तो कैसे आमंत्रित करेंगे देश-विदेश के लोगों को। :)
सम्मेलन में जाना तय था। लेकिन जैसे-जैसे तारीख नजदीक आती गयी न जाने के बहाने रूपा फ़्रंट लाइन की बनियाइन पहनकर सामने आने लगे। हम सारे बहानों  –तो चलो आगे कहते रहे। लेकिन बाद में सब बहानों को किनारे करके बैठ गये टेम्पो में वर्धा जाने के लिये। रास्ते का जाम एक तरफ़ तो खुशी प्रदान कर रहा था कि कानपुर अब तो बड़ा शहर हो गया दूसरी तरफ़ यह भी लग रहा था कि कहीं इसी बड़े बनते शहर से फ़ोन करके सिद्धार्थ की डूबी आवाज न सुननी पड़े-  आप भी फ़ुरसतिया! जैसे-जैसे स्टेशन पास आता जा रहा ट्रेन छूटने का खतरा बढ़ता जा रहा था। साथ ही हम यह भी पक्का करते जा रहे थे कि अब तो घर वर्धा होकर ही लौटना है- चाहे जैसे जायें। बहरहाल हम अगले दिन वर्धा में थे।

image वर्धा के फ़ादर कामिल बुल्के छात्रावास के सामने आंगन में पहुंचते ही कई साथी मिले। सबसे पहले विवेक सिंह को देखकर हमें लगा कि ये यशवंत सिंह क्लीन शेव हो गये क्या? अनिता जी सुबह ही आ गयीं थीं। कविता जी पहले से ही थीं। यशवंत सिंह भी वहीं जमे थे। अविनाश वाचस्पति जी अपनी छोड़ना शुरु कर दिये थे- तुकबंदियां। उनकी तुकबंदी क्षमता से प्रभावित होकर शिवकुमार मिश्र ने उनको प्रणाम भेज दिया हमारे मोबाइल पर। हमारे मोबाइल से अपने लिये आया प्रणाम कलेक्ट करके अविनाश जी ने उनसे बातचीत करके उन्हें अनुग्रहीत किया। हमनें भी हेलो-हाय कर लिया। अब हम यहां यह भूल रहे हैं कि इस वार्तालाप मोबाइल में किसका इस्तेमाल हुआ था। अगर अविनाश जी का हुआ था तब तो लिखना चाहेंगे कि बातचीत करके मन खुश हो गया। अगर हमारा इस्तेमाल हुआ था तो क्या कहेंगे आप कयास लगाइये । लेकिन ई त पक्का है कि हम ई कब्भी न कहेंगे कि आयोजकों को आयोजन स्थल पर एक टेलीफ़ोन की व्यवस्था रखनी  चाहिये जिससे कि आमंत्रित ब्लॉगर देश दुनिया से जुड़े रह सकें।
चाय पीते-पीते सुरेश चिपलूनकर और संजय बेंगाणी से मुलाकात हो गयी। सुरेश जी के लेखों में जितनी आग और जित्ता आक्रोश है उसका प्रमाण अपने चेहरे पर दिखाने में असफ़ल रहे। हम सोचे कि इस बात पर आश्चर्य प्रकट करें लेकिन बाद में मटिया दिये। हां यह जरूर कहे कि सुरेश भाई आपकी पोस्टों में जित्ती आग है कि अगर कहीं गैस खतम हो जाये तो आपकी पोस्टों नीचे रखकर उसकी आग में खाना पकाया जा सकता है।  बाद में सुरेश जी के भले व्यवहार से प्रभावित होकर लोगों ने उनको उनके ब्लॉग वाला तीखा फोटो हटाने की गुजारिश की। जनता के बेहद मांग पर सुरेश जी ने ऐसा कर भी डाला।
इस बीच संयोजक महाराज सिद्धार्थ त्रिपाठी भी पधारे। हमने गौर किया कि हमने पिछले सम्मेलन में उनको जो सलाह दी थी उसको वे अभी तक अमल में नहीं ला पाये हैं। हमने सलाह दी थी-
भैये कुछ तो लिहाज करो। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक हो। जरा हड़बड़ाये , हकबकाये से रहो। तुम मिलते ही हमको पहचान लिये। चाहिये तो यह था कि तीन बार कमरे में आधी दूरी तक आते और बाहर चले जाते। इसके बाद हमसे ही पूछते कि अनूप शुक्ल आ गये क्या? इसके बाद कहते अरे भाई साहब दिमाग काम नहीं कर रहा है। माफ़ करियेगा।

लेकिन साल बीत गया फ़िर भी सिद्धार्थ  ने हमारी बात नहीं मानी। वे वर्धा में उतने ही बल्कि कुछ और ज्यादा फ़िक्ररहित, निश्चिंत, आश्वस्त और इत्मिनान से नजर आ रहे थे जितना पिछले साल इलाहाबाद में दिखे थे।

आगे के किस्से जारी। तब तक आप यहां वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन में खैंचे गये फोटू देखें।

32 responses to “…अथ वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन कथा”

  1. sanjay
    वर्धा पर आई सभी रपट पढ़ा ….. कुछ अच्छा था ….. कुछ बहुत अच्छा था ….. लेकिन ये सबसे अलग है.
    आप के रपटने के इंतजार में हम कई बार परेसान हो जाते हैं लेकिन जैसे ही आपका रपट आता है , सब कुछ
    भूल जाते है . आप आपे लिख्हे पे निगाह दीजिये खुद वाह कर उठेंगे …….
    हां यह जरूर कहे कि सुरेश भाई आपकी पोस्टों में जित्ती आग है कि अगर कहीं गैस खतम हो जाये तो आपकी पोस्टो नीचे रखकर उसकी आग में खाना पकाया जा सकता है.
    बस भाईजी थोरा इंतजार की दूरी कम करिए.
    प्रणाम.
  2. काजल कुमार
    हम्म तो यह पोस्ट उसंहार है. :)
  3. विवेक सिंह
    फोटूज पर किए गए कमेण्ट्ज़ पोस्ट्ज़ पर भारीज़ हैं ।
    विवेक सिंह की हालिया प्रविष्टी..जली तो जली पर सिकी भी खूब
  4. मुन्ना हुआ बेलगाम
    जारी रहे…
    मेरा पक्क से मुँ खोल देना अभी उचित नहीं ।
  5. संजय बेंगाणी
    आपकी पोस्ट की प्रतिक्षा थी. सोचा मौज मौज में जैसे हमें निपटाएंगे हम भी वैसे ही निपटाएंगे सॉरी मेरा मतलब है निपट लेंगे. मगर आप फिर संस्कारवान साबित हुए. :) स्नेह बनाए रखा. (यह स्नेह अभी तक ठग्गु के लड्डु में नहीं परिवर्तित हुआ यह अलग बात है :) )
    जो बात अलग पोस्ट बना कर डालते वह यहाँ लिख देते है. आजकल जब जब लिखने का सोचा कभी पोस्ट लिख नहीं पाए.
    आपका स्नेह शुरूआत से ही बना रहा. आपने राष्ट्रवादी की पहचान स्थापित करने में जाने अनजाने सहयोग भी दिया. मन में सम्मान था तो, आपसे मिलने की बेहद इच्छा भी रही, मिले तो लगा बस गले लग जाए, चरण स्पर्श की इच्छा भी दबा गए. इन सब के लिए शायद कानपुर आना पड़ेगा….
  6. arvind mishra
    बिन-बिन कर या बीन बीन कर
    आयोजको आजकल के किन्हीं मर्दों- वाक्य रचना दुरुस्त नहीं है
    इस वार्तालाप मोबाइल किसका इस्तेमाल हुआ थी।-यह कैसा वाक्य ?
    आयोजकों आयोजन स्थल पर एक टेलीफ़ोन की व्यवस्था रखनी -को छूट गया
    मटिया दिये-फिर तो बहटिया लिख देते
    सिधार्थ-नाम तो दुरुस्त कर ही लें
  7. Anonymous
    तगड़ी धुलाई का इरादा लगता है। :)
    इस बार ब्रेक कुछ ज्यादा जल्दी लेके डाल दिए।
  8. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    लगता है इस बार तगड़ी धुलाई का इरादा है। :)
    ललकार सुनायी दे रही है।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..प्रयाग का पाठ वर्धा में काम आया… शुक्रिया।
  9. मनोज कुमार
    अच्छा लगा यह विवरण पढकर।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..देसिल बयना – 52 – चोर के अर्जन सब कोई खाए- चोर अकेला फांसी जाए !
  10. रंजना.
    आभार भैयाजी….आपने दिग्दर्शन करा दिया..
    बहुत अफ़सोस है कि इसमें सम्मिलित नहीं हो पाए…
    रंजना. की हालिया प्रविष्टी..आन बसो हिय मेरे
  11. shikha varshney
    अथ श्री वर्धा प्रथम अध्याय समाप्तम.:)
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..पर्दा धूप पे
  12. rachna
    मुझे हिंद्तुववादी ब्लॉगर बनादिया आप ने और कहीं भी इसका उल्लेख नहीं . अब क्युकी मे हिन्दुत्व वादी ब्लॉगर बन गयी हूँ सो आप निसकोच मेरे ऊपर लिख सकते हैं नारीविरोधी का ताना नहीं लगेगा . और अपनी ईमेज सही करे वरना ऐसा ना हो आज जो आप को नारी समर्थक ब्लॉगर कहते हैं कल को आप को फ्लर्ट भी कहने लगे .
  13. jai kumar jha
    इस सम्मलेन में एक बात मुझे आपकी सबसे प्रभावित कर गयी वह थी आपका श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी से यह कहना की ” मैं दाद देता हूँ सिद्धार्थ जी की जिन्होंने इलाहबाद के ब्लोगर संगोष्ठी के बाद भारी मात्रा में गलियां खाने के बाबजूद दुबारा इस तरीके के उम्दा संगोष्ठी के आयोजन का साहसिक प्रयास किया ” दरअसल सिद्धार्थ जी जैसे लोग ही हैं जो इस तरीके के आयोजन सफलता पूर्वक किये जा रहें हैं ..और कोई जरा इस तरह का आयोजन कर या करवाकर देखे फिर पता चलेगा की किसी के काम में खामियां निकालना कितना आसान होता है …! संपरीक्षा अधिकारी तो और भी विश्वविध्यालय में हैं तथा कुलपति महोदय भी हैं लेकिन इस तरह का साहस कोई कोई रखता है ..नमन है ऐसे प्रयास करने वालों को चाहे वो सिद्धार्थ जी हो या कोई और …
  14. ajit gupta
    अच्‍छा वर्णन है। मेरी इस पोस्‍ट पर आपकी निगाह नहीं पड़ी है इधर भी देखें
    http://ajit09.blogspot.com/2010/10/blog-post_17.html
  15. क. वा.
    वाह!
    हम भी पढ़ रहे हैं टिप्पणियों समेत कथा. देर से प्रतीक्षा थी. फोटो वोटो तो तभी देख भाल लिए गए थे. अब इंतज़ार पूरा हुआ.
  16. प्रवीण पाण्डेय
    पिक्चर अभी बाकी है, शनिवार को चलेगी। वैसे वर्धा का अनुभव अलग था कई प्रकार से, और अलग अनुभव होते रहना चाहिये जीवन जीते रहने के लिये। आप वहाँ चेतना बन ब्लॉगर समाज में विद्यमान रहे, सामूहिक आभार।
  17. लावण्या
    मेहनत और लगन के लिए १०० / में से १०० मार्क ! वर्धा रपट शानदार रही –
    - लावण्या
  18. अविनाश वाचस्‍पति
    मोबाइल स्‍पाइस कंपनी का इस्‍तेमाल हुआ था और कनेक्‍शन एयरटेल अथवा एमटीएनएल का। आयोजकों ने टेलीफोन की व्‍यवस्‍था की थी, पर आप वहां तक पहुंचे ही नहीं। जहां आप चाय पी रहे थे, वहां नहीं, जहां चाय बन रही थी वहां। टेलीफोन की संपूर्ण व्‍यवस्‍था रही, आप आप पहुंचे ही नहीं। इसमें दोष आयोजकों का नहीं है, टेलीफोन कंपनी का भी नहीं है। यह आपको ही सोचना है कि अगर दोष है तो किसका है, अगर दोष नहीं है तो किसका नहीं है।
    आप तो बस इस का मजा लूटिये

    बड़ी मुश्किल है …. 20.10.2010 को आई नैक्‍स्‍ट में प्रकाशित व्‍यंग्‍य

    बीस दस बीस दस : यह तो लय है जी, लय की जय है जी : पहेली बूझें
  19. प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
    बढ़िया है आपकी नजरों से हाल …..पढ़ के ना मुस्कराते तो थोडा आश्चर्य होता ?
    शुभ रात्रि!
    प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI की हालिया प्रविष्टी..आलोचना ≈ तारीफ
  20. सतीश पंचम
    बढ़िया विवरण है जी।
    अफ़सोस होता है कि हम क्यों न पहुंच पाए।
    जय कुमार झा जी की टिप्पणी बहुत सही लगी।
    जरा इस तरह का आयोजन कर या करवाकर देखे फिर पता चलेगा की किसी के काम में खामियां निकालना कितना आसान होता है …
    बढ़िया।
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..वर्धा के बाद अब एक और ब्लॉगर बैठकी का आयोजन हो रहा हैअब शिकायत न करें कि हमें आमंत्रण नहीं मिलाइस पोस्ट को ही आमंत्रण समझें सतीश पंचम
  21. gayatri sharma
    अच्छी पोस्ट पर पोस्ट से कई गुना अधिक प्रभावी तस्वीरे। जिन्हें देखकर मेरी वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन की यादें ताजा हो गई। सच कहूँ तो मुझे आयोजक और आयोजन दोनों से कोई शिकायत नहीं है।
    वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन के चित्रों में मौजूद सभी महानुभावों को मेरा प्रणाम।
  22. शरद कोकास
    यह तो बहुत अच्छा हुआ । आपकी नज़र से भी इस सम्मेलन को देख लिया ।
    शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी..खून पीकर जीने वाली एक चिड़िया रेत पर खून की बूँदे चुग रही है
  23. rishabha deo sharma
    विवरण को रोचक कैसे बनाया जाए, यह सीखने के लिए आपकी पोस्ट पढ़ने की सिफारिश मैंने कई मित्रों/छात्रों से की है.
    rishabha deo sharma की हालिया प्रविष्टी..रूसी साहित्यकार चेखव के १२ नाटकों के ६ भारतीय भाषाओं में अनुवाद हेतु कार्यशाला
  24. Abhishek
    बढ़िया है… आगे चर्चाइये और.
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..टाइम ट्रेवेल कराती एक किताब
  25. Ram
    अच्छा प्रवाह बंधा दिख रहा है …..
    Ram की हालिया प्रविष्टी..गांधी और मेरे पिता
  26. : वर्धा – कंचन मृग जैसा वाई-फ़ाई
    [...] }); }….हां तो बात वर्धा सम्मेलन की हो रही [...]
  27. shefali
    ये हुई रिपोर्ट …..
  28. Shiv Kumar Mishra
    सुन्दर पोस्ट. बधाई!
    अविनाश वाचस्पति जी से बात करके बहुत अच्छा लगा. हम आपके आभारी हो गए जो आपने उन्हें मेरे एस एम् एस के बारे में बताया.
    मिश्र जी की बातों पर ध्यान दिया जाय. गिरिजेश जी की अनुपस्थिति में ‘वर्तन’ सुधार करने का भार उठाने के लिए उनका आभार!
  29. Sanjeet Tripathi
    ल्लो जी, हम भी आ गए इत्थे।
    इस बात से तो सहमत हूं कि पूरे आयोजन के दौरान श्री त्रिपाठी जी कहीं से भी आयोजक का आवरण ओढ़े नजर ही नईं आए। जब भी दिखे सहज, प्रफुल्लित ही दिखे। ऐसा आयोजन, वह भी इतने बड़े आयोजन का आयोजक तो पहली बार देखा अपन ने। जय कुमार झा जी सही कह रहे हैं। जाता हूं अब अगली किश्त पढ़ने
  30. अविनाश वाचस्‍पति
    एक कथा यहां भी हैं
    इनके बिना कथा
    का संपूर्ण आनंद नहीं आता है
    हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के एक सेमिनार में शामिल ब्‍लॉगरों के हथियारों की झलक
    अविनाश वाचस्‍पति की हालिया प्रविष्टी..मेरे जन्‍मदिन को हंसीदिवस के रूप में मनायें – खूब खिलकर खिलखिलायें
  31. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] …अथ वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन कथा [...]
  32. : वर्धा राष्ट्रीय संगोष्ठी -कुछ यादें पहल किस्त
    [...] – न भूतो न भविष्यतनुमा। दूसरा 2010 में वर्धा में जहां हमने आलोकधन्वा, जो ब्लॉगिंग [...]

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