Wednesday, February 09, 2022

रिज़वान से मुलाक़ात

 रिजवान मिले थे जयपुर में। जयपुर के पाकड़ वाले हनुमान मंदिर के पास पक्षियों के लिए दाना, पानी , रोटी का चूरा रखने रोज आते हैं। छोटे पक्षियों, चूहे आदि का दाना-पानी दूसरे न खा जाएं इसके लिए वहां रुककर रखवाली भी करते हैं। पांच-छह साल से आ रहे हैं नियमित। पांच-छह किलोमीटर दूर घर से आते हैं। घण्टे-डेढ़ घण्टे अपनी देख रेख में दाना-पानी देते हैं। बताया कि वहां एक नाग-नागिन का जोड़ा भी है वहां। दिखता रहता है।

पक्षियों और छोटे जानवरों को दाना-पानी देने का सिलसिला कोलकाता से शुरू हुआ जहां वे मछलियों को दाना देते थे। वहां चूड़ियों का काम करते थे।
पिताजी की देखभाल के लिए कोलकता से जयपुर आये रिजवान। कोलकाता में मछलियों को चारा देने का सिलसिला यहां पक्षियों को दाना देने से शुरू हुआ। पहले सड़क किनारे दाना डालना शुरू किया। वहां उसकी बर्बादी देखकर यहां हनुमान मंदिर के पास पेड़-पौधों के पास चिड़ियों , चूहों आदि को दाना देने लगे।
जीव मात्र से जुड़ाव और छोटे जानवरों के भोजन की बड़े जानवरों से रक्षा करने का भाव बहुत प्यारा है। रिजवान जैसे लोग हर समाज में सकारात्मकता की उम्मीद जगाते हैं।
रिजवान का मतलब होता है -जन्नत का दरोगा। रिजवान जैसे लोग जहां होते हैं वहां स्वर्ग बनता है।
वसीम बरेलवी जी लिखा है:
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
वसीम साहब ने जब यह लिखा होगा तो उनके जेहन में रिजवान जैसे लोग ही उभरे होंगे।
रिजवान से हुई बातचीत का वीडियो नीचे पोस्ट है।

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Tuesday, February 08, 2022

गंगा की रेती पर एक दिन



अक्सर अपने पुराने दिनों को याद करते हुए हम लोग कहते हैं , अब वे दिन कहाँ? अब वे खेल नहीं खेले जाते।
लेकिन अक्सर ही होता यह भी है कि हमारे परिवेश से निकल चुके वे दिन, खेल किसी दूसरी जगह ,भले ही बदले रूप में मौजूद होते हैं।
रूप परिवर्तन सिर्फ गिरगिटों ,वायरसों और नेताओं की ही बपौती नहीं।
इतवार को एक फर्रुखाबाद किनारे गंगाघाट जाना हुआ। समाज विविध रूप में घाट पर मौजूद। लगा कि किसी को अपने समाज के बारे में जानना हो तो नदियों किनारे घाटों की यात्रा करनी चाहिए।
गंगा किनारे रेती पर बच्चे तरह-तरह के खेल खेलते दिखे। एक जगह गुल्ली-डंडा जैसा खेलते दिखे बच्चे। पास गए तो दिखा कि गुल्ली की जगह छुटकी प्लास्टिक की बोतल थी और डंडे की जगह वहीं कहीं पड़ी लकड़ी उठाकर खेल रहे थे बच्चे।
गुल्ली दोनों तरफ नुकीली होती है। बनाई जाती है। बिकती है। पैसे खर्च होंगे खरीदने में। लेकिन प्लास्टिक की बोतल गंगा किनारे ही कहीं पड़ी मिल गयी होगी। लोग इसमें गंगा जल ले जाते होंगे। सहज उपलब्ध बोतल और वहीं कहीं से मिल गए लकड़ी के डंडे को मिलाकर खेल शुरू हो गया।
बच्चे को खेलते देखा तो फोटो ले लिया। उसमें दूसरे बच्चे को चिल्लाते हुए बताया-'अबे ये फोटो ले लिहिस।'
हमने उनको फोटो दिखाया। वे देखकर फिर खेलने लगें।
पास ही कुछ और बच्चे घर बसाने जैसा कोई खेल रहे थे। कडकको जैसा। पैसे का भी लेन-देन हो रहा था। पैसा आजकल हर खेल में घुस गया है। जिस खेल में पैसा नहीं होता वह आगे नहीं बढ़ पाता।
चुनाव और समाजसेवा के खेल में भी पैसा हचक के घुस गया है। इसीलिए यह क्षेत्र बहुत गन्दा हो गया है। इससे गन्दगी दूर करने के लिए यहां से पैसे की लाइन काटनी होगी। लेकिन ऐसा होता दिखता नहीं। अब तो पैसा हर जगह घुस रहा है, मुंडी उठाये हर हल्के में घुसकर उसको कब्जे में लेता जा रहा है।
दो साइकिल के टायर चलाते , भागते दिखे। उनका वीडियो बनाया लेकिन गड़बड़ा गया।
गंगा किनारे सामान बेचते लोग भी दिखे। एक जगह जादू टाइप दिखाते हुए एक आदमी मर्दानगी की दवाएं बेच रहा था। लगता है जादूगर ही अब मर्दानगी के होल सेल एजेंट बन गए हैं।
एक जगह ठेले पर एक बच्ची बैठी गमछे बेंच रही थी। पांच बेचे गमछे सुबह से। बताया स्कूल जाती थी। बन्द हो गए स्कूल । अब मदरसे जाती है। उर्दू सीख रही है। हमने पढा -'अलिफ, बे, ते....।' आइसा ने टोंका -'अलिफ , बे नहीं -बा होता है।'
हम कुछ और पूंछे तब तक वह ठेले से उतरकर कहीं चली गयी बहन के साथ लपकती हुई।
गंगा किनारे रेती पर राजनीति भी जबरदस्त चल रही थी। हर पार्टी के समर्थक अपने पक्ष के इतने चुटीले बयान जारी कर रहे थे, बिना किसी प्रांप्टर के, कि लगा नेताओं को भाषण देना सीखने के लिए घाटों पर पहुंचना चाहिए।
एक भाई मजे से कह रहे थे-' वोट हम नहीं देंगे। देंगे तो उसको ही लेकिन सरकार उसकी ही बनेगी।' जिस पार्टी को वोट न देने की कसम खा रहे हों, उसी के जीतने की भविष्यवाणी कर रहे थे भाई जी। यह अपने यहां ही दिख सकता है।
एक नाई उस्तरे से लोगों के बाल मूँड़ रहा था। जिनके घर में गमी हुई थी उस घर के लोग बाल बनवा रहे थे। जिस आदमी ने बाल कटवाने का उद्घाटन किया वह गंगा की रेती पर ही पड़े एक अध्दधे पर बैठने की कोशिश में लड़खड़ाया , फिर कोशिश की और अंततः बैठ ही गया। मुझे कविता याद आई-'कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।'
नाई ने उसके बाल बनाने शुरू किए। बने हुए बाल वहीं रेती पर जमा होते गए। इस बीच दूसरे आदमी ने अपने बाल गीले करने शुरू कर दिए। दो-तीन घण्टे में नाई ने 25-30 लोगों के बाल मूढ़ने के बाद पैर फैलाते हुए बीड़ी सुलगाई। बीड़ी पीते हुए निस्संग भाव से सामने बहती गंगा को देखता रहा। यह भी हो सकता है कि देख कुछ और रहा हो, सोच कुछ और रहा हो लेकिन हमें गंगा की ही याद आई।
पैसे मिल जाने के बाद नाई ने अधजली बीड़ी गंगा की रेती के हवाले की। अपना उस्तरा, कैंची और पानी की कटोरी एक कपड़े में लपेटी और खरामा-खरामा टहलता हुआ चला गया।
घाट पर अंत्येष्टि के लिए आते लोग आवाज लगा रहे थे -'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है।'
इन सबसे निर्लिप्त गंगा जी चुपचाप बह रहीं थीं। न जाने कितनी सदियां बीत गई उनको यही सब देखते हुए।

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कुछ ज्यादा ही कड़ा होता है इम्तहान मोहब्बत का

 


पिट चुका है कई बार वो उठाईगिरी के चक्कर में ,
हर बार कहा उसने, इसमें साजिश है रकीबों की।
कुछ ज्यादा ही कड़ा होता है इम्तहान मोहब्बत का,
ऐन इम्तहान के पहले सिलेबस बदल जाता है।
मोहब्बत के न जाने कितने इम्तहान हुये मेरे
हर बार सुना परचा आउट था इम्तहान दुबारा होगा।
पीटा मुझे बे- बात के तेरे मोहल्ले वालों ने,
तू कहे हो तो इसे मोहब्बत के खाते में चढ़ा लूं!
-कट्टा कानपुरी

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Monday, February 07, 2022

किताबों के बहाने

 



कई दिनों से फेसबुक पर कोई पोस्ट लिखी नहीं। लगता है इसीलिए फेसबुक की रेटिंग गिरी और अरबों का नुकसान हुआ फेसबुक का।
इधर बीच Priyanka Dubey की हिमांशु बाजपेई Himanshu Bajpai से बातचीत सुनी बजरिये Vineet Kumar . हिमांशु बाजपेई यू ट्यूब पर 'क से किताब' के जरिये नामचीन लोगों से किताबों के बारे में बात करते हैं। कौन पसंदीदा किताब, लेखक, पढ़ना क्यों जरूरी है आदि सवाल । अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय किताबों के बारे में।
जब किसी किताब के बारे में सुनते हैं तो लगता है कि यह किताब फौरन आनी चाहिए। अक्सर सुनते-सुनते आर्डर भी कर देते हैं। किताब आते ही उलट-पुलट भी लेते हैं। कई बार पढ़ भी जातें हैं पूरी किताब लेकिन अक्सर रह भी जाती हैं। इधर-उधर न जाने किधर-किधर रखी किताबें पढ़े जाने के इंतजार में रहती हैं।
किताबें साथ हैं तो लगता है कि बहुत कुछ साथ है। ताबीज की तरह होती हैं किताबें। तमाम अलाय-बलाय से बताती हैं किताबें।
प्रियंका दुबे की बात पहली बार सुनते हुए Jack Kerouac की आन द रोड आर्डर की। किताब आ गयी तो पढ़ना भी शुरू कर दिया। लेकिन किताब अंग्रेजी में है लिहाजा स्पीड अटकी हुई है। अंग्रेजी में पढ़ने में हाथ जरा तंग है।
'क से किताब ' की और बातचीत भी सुनी। नसीरुद्दीन शाह जी ने Gyan Chaturvedi जी की बारामासी की तारीफ की। वो किताब है हमारे पास। बारामासी और ज्ञान जी की बाकी किताबें पढ़कर कभी-कभी लगता है कि ज्ञान जी ने किताब एक ही लिखी बारामासी -बाकी सब इस किताब की टीकाएं हैं। हमको पता है कि यह बात अहमकपन की है लेकिन लग गया मन को तो लिख दिया।
बेवकूफी की बातें करने का अधिकार केवल जनप्रतिनिधियों तक थोड़ी सीमित है। 🙂
प्रियंका दुबे को दुबारा सुना तो कालिदास समग्र भी खरीद लिया। एकाध दिन में आयेगा।
किताबें इसके पहले भी खूब खरीदीं। Chandra Bhushan जी की तिब्बत पर लिखी किताब 'तुम्हारा नाम क्या है तिब्बत' पढ़ना शुरू किया तो लगा कि कितना कुछ जानने, देखने, घूमने और लिखने को बचा है दुनिया में। बेहतरीन किताब है तिब्बत के बारे में। किताब पढ़ते हुए अपने अमेरिका के किस्से पूरे करके किताब की शक्ल देने की बात फिर याद आई। देखिए कब पूरी होती है।
नसीरुद्दीन शाह जी ने अपनी बातचीत में एक बात कही। उन्होंने कहा कि जब हम परफार्म करते हैं तो सिर्फ कैमरे के सामने होते हैं। दर्शकों की बात सोचेंगे तो अपेक्षा होगी उनसे प्रतिक्रिया की। इससे इंसान अपना शतप्रतिशत नहीं दे पाता एक्टिंग को। यही बात लिखने पर भी लागू होती है।कई बार हम अपने लिखने का स्तर प्रतिक्रियाओं से तय करते हैं। प्रतिक्रिया देने वाले अक्सर अपने दोस्त लोग ही होते हैं। लिखने में हुई मेहनत का इनाम तारीफ करके दे देते हैं। इससे बहुत खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए।
किताबें और भी बहुत सी आईं पिछले दिनों। Ashok Pande की लपूझन्ना तो Alankar को दे दी। हम फिर मंगा लेंगे। उनकी दूसरी किताब 'तारीख में औरत' बेहतरीन किताब है। इसकी कई प्रतियां ख़रीदनी हैं। मित्रों को भेंट करने के लिए बेहतरीन किताब है यह। अशोक पांडे ऐसे लेखक हैं कि सिर्फ उनको पढ़ने भर के लिए फेसबुक पर बने रहना चाहूंगा।
हिमांशु जी को 'क से किताब' के लिए अशोक पांडे जी से भी बात करना चाहिए।
किताबें और भी तमाम हैं। उनके बारे में फिर कभी विस्तार से। Kamlesh Pandey की 'डीजे पे मोर नाचा' भी मिली पिछले हफ्ते। अभिषेक ओझा की 'लेबन्टी चाह' किसी नामचीन समीक्षक का इंतजार कर रही है।
किताबों की बात चली तो बताते चलें कि हमारे अनूप मणि त्रिपाठी Anoop Mani Tripathi हमसे शाश्वत खफा रहते हैं कि उनकी किताब के बारे में हम नहीं लिखते। जबकि उनकी दूसरी वाली किताब हमने अमेरिका में रहने के दौरान आर्डर की थी। लिखेंगे भाई लिखेंगे। बड़े लेखकों पर तसल्ली से लिखा जाता है।
जिन किताबों के फोटो यहां डाल रहे वे एकदम पास हैं। नजदीकी का फायदा तो मिलता ही है।

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Saturday, February 05, 2022

निकल बेवजह-घुमक्कड़ी का आह्वान गीत



हमारे छोटे सुपुत्र अनन्य Anany Shukla घुमक्कड़ी से जुड़े हैं। घूमने -घुमाने के अपने जुनून को पूरा करने के लिए उन्होंने अमेरिकन कम्पनी गोल्डमैन सैक्स की नौकरी छोड़कर घूमना शुरू किया। पिछले वर्ष से अपने मित्रों के साथ मिलकर फिरगुन ट्रेवेल्स नाम की कम्पनी बनाई। हिब्रू भाषा के शब्द फिरगुन का मतलब होता है जिसको आप चाहते हों उसकी सफलता पर महसूस होने वाली ख़ुशी। कम्पनी बनाने से लेकर अब तक अनन्य 20 ट्रिप लीड कर चुके हैं। आजकल बंगलोर के पास गोकर्ण में अपनी टीम के साथ हैं।
पिछले दिनों अनन्य ने एक गीत लिखा - निकल बेवजह । गीत एक तरह से घुमक्कड़ी का आह्वान गीत है। अनन्य के गीत को आवाज़ दी है अनन्य के मित्र अर्जित आनंद ने। गीत सुनकर जो भाव आए उसका बयान मुश्किल है। गीत के आख़िर में अनन्य की आवाज़ में आह्वान -'एक सफ़र खुद के लिए तय कर' सुनकर लगा कि अब बस निकल ही लिया जाए। गीत पढ़िए। गीत का लिंक टिप्पणी बक्से में दिया है। गीत सुनिए आपको अच्छा लगेगा। उचित लगे तो नई पीढ़ी को अपना आशीष और शुभकामनाएँ दें।
निकल बेवजह
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खुद से लड़- लड़ के, मैं खुद से जीत गया
थोड़ा सा ही सही, अब खुल रहा हूँ मैं,
निकला तनहा था, तारों का साथ मिला
एक नया एहसास मिला, अब खुल रहा हूँ मैं!
बाँट ली है सारी ख़ुशी, पोंछ के मेरे आंसू सभी
दूर था मैं खुद से कभी, अब मिल रहा हूँ मैं !
खुद से लड़ लड़ के, मैं खुद से जीत गया,
थोड़ा सा ही सही, अब खुल रहा हूँ मैं !
बेफ़िक्री के एक आँगन में, लिपटे हैं हम एक चादर में
तारों की इक बारात गयी, उसने हमने एक बात कही
तू जो हंसे तो चलती हवा ,आंसू गिरे तो लागे सजा
खुद पे हो जो यक़ीन तेरा, तो निकल बेवजह !
पंछी जागे हैं , तेरा रस्ता ताके हैं
तुझे रोज़ पुकारे हैं , क्यूँ सुन रहा है तू
एक सफ़र खुद के लिए तय कर। जो पीछे सारे ख़ौफ़ अब फहत कर। भूल जा कि क़िस्मत जैसा कुछ होता है। जब गलती तेरी नहीं तो क्यों रोता है । ये सपनों का कमरा तेरा है, इसे खुद सजा। जा, किसी अनजान शहर में एक नया दोस्त बना। तेरी जो लहरें कब से शांत पड़ी हैं, उनमें एक बवाल मचा। मेरे मुसाफ़िर अब तू निकल बेवजह। निकल बेवजह।
अनन्य इसी तरह गीत लिखते रहें। अर्जित इसी तरह गीतों को सवार देते रहे हैं। जीवन में नई ऊँचाइयाँ छुएँ। खुश रहें और अपने से जुड़े लोगों की ख़ुशियों का कारण बने। फिरगुन भाव का प्रसार करें।

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Sunday, January 23, 2022

अलंकार रस्तोगी से मुलाक़ात

 लखनऊ से Alankar Rastogi शाहजहाँपुर आये तो बहुप्रतीक्षित मुलाकात हुई। बातचीत बतकही हुई। ढेर लंतरानी ,जिसका कोई रिकार्ड न होने के चलते कहा जा सकता है , उच्च कोटि का व्यंग्य विमर्श हुआ। पांच व्यंग्य संग्रह और तमाम इनामों को हासिल कर चुके अलंकार रस्तोगी का जलवा है व्यंग्य में। अपना ताजा व्यंग्य संग्रह ' जूते की अभिलाषा' भी भेंट करते हुए मेरे लिए लिखा - 'व्यंग्य की तोप और हमारी होप'। हमने 'व्यंग्य की तोप' को 'व्यंग्य की तोंद' समझा। हालांकि लिखा इस तरह है कि 'तोप' और 'तोंद' दोनों ही पढा जा सकता है। इससे लगा कि लिखाई में भी 'श्लेष अलंकार' हो सकता है। इससे लगता तो यह भी है कि तमाम लोग जो अपने को अपने हल्के का खलीफा मने तोप समझते हैं वो वस्तुतः उस इलाके की तोंद ही होते हैं।

🙂
भीषण सर्दी में एक गर्मजोशी भरी मुलाकात अलंकार रस्तोगी के साथ।

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Tuesday, January 04, 2022

बुरहानपुर का ताजमहल



कहीं जाते हैं, किसी से मिलते हैं तो उसके बारे में लिखने का मन होता है। यही रोजनामचा हमारे लिखने का अंदाज है। हमारी अधिकतर लिखाई इसी अंदाज की है। तुरंता लेखन। अभी देखा, अभी मिले, अभी लिखा।
जो तुरन्त नहीं लिख पाते वह रह जाता है। 1983 में साइकिल से भारत घूमे, कुछ दिन डायरी में लिखा, बाकी रह गया तो रह ही गया। लेह लद्दाख गए, काफी लिखा , बहुत रह गया। अमेरिका गए, बहुत कुछ नियमित लिखा फिर भी कुछ छूट गया। इसी चक्कर में कितबिया बाकी है जिसका नाम भी तय हो चुका है -कनपुरिया कोलम्बस।
पिछले दिनों जयपुर गए, वहां के किस्से भी पूरे नहीं हुए। बुरहानपुर गए वहां भी कुछ लिखा , काफी छूट गया।
लोगों से मिलते हुए, स्थानों को देखते हुए जो भाव तुरन्त आते हैं, उनको लिखने में मजा आता है मुझे। बाद में तो बस रह ही जाता है।
बात बुरहानपुर की याद से। बुरहानपुर गए तो सोचा था वहां बनाया ताजमहल की अनुकृति वाला घर देखेंगे। ताजमहल जिन मुमताजमहल की याद में बनना था वो बुरहानपुर की ही थीं। उनकी याद में ताजमहल बुरहानपुर में ही बनना था। लेकिन सुनते हैं यहां की जमीन भुरभुरी होने, ताप्ती नदी का पाट कम चौड़ा होने (जिससे उसकी छाया नदी में नहीं दिख पाती) और मकराना जहां से पत्थर आने थे ताजमहल के लिये वो यहां से दूर होने के कारण ताजमहल वह यहां नहीं बना, आगरा में बना।
ताजमहल भले बुरहानपुर में नहीं बन पाया लेकिन उसी तरह का घर बनवाया है बुरहनपुर के शिक्षाविद और उद्योगपति आनंद प्रकाश चौकसे ने। उन्होंने इसे बनवाकर अपनी पत्नी को भेंट किया है, जैसा धनी लोग करते हैं।
हम इस इमारत को देखने गए। चौकसे जी के बनवाये अस्पताल और स्कूल के बगल से रास्ता है। चौकसे जी ने बुरहानपुर में अस्पताल और स्कूल शानदार बनवाया है। अस्पताल में आक्सीजन बनाने का भी इंतजाम है।।उनके स्कूल में सम्पन्न घरों के बच्चे पढ़ते हैं। बहुत काबिल अधयापक रखे हैं उन्होंने। बच्चों की पढ़ाई का ख़र्च सुनते हैं लाख रुपये महीने है। लाख रुपये मतलब दस दिहाडी मजदूरों का महीने का वेतन।
चौकसे जी व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत यह बताई गई कि उनका मानना है कि किसी काम को पूरा करने की सबसे बड़ी शर्त है मेहनत और लगन। कोई काम अगर दस घण्टे रोज लगकर नहीं हो रहा तो पंद्रह घण्टे मेहनत की जाए। काम कैसे नहीं होगा। यह काम की सीख मिली।
बहरहाल हम गए देखने यह इमारत तो चौकीदार ने रोक लिया। हमारे साथ हमारे भाई थे। Krishna Narayan Shukla उन्होंने कहा चौकसे जी से बात करके देखवाते हैं। लेकिन हम दूर से ही देखकर खुश हो लिये।
लौटते में चौकसे जी का रेस्टोरेंट भी देखा। दोपहर होने के चलते भीड़ नहीं थी। लेकिन बहुत अच्छा लगा। वहीं काउंटर पर मौजूद बच्ची से बात हुई। त्रिपुरा की रहने वाली बच्ची ने आसाम से पढ़ाई की। कुछ दिन केरल नौकरीं की । फिर यहाँ आ गयी। घर परिवार के बारे में बात हुई। बुरहानपुर अभी कुछ दिन ही हुए आये लेकिन अच्छा लगता है। कई भाषाओं की कामचलाऊ जानकारी है बच्ची को। उसकी मुस्कान और खुशनुमा चेहरा देखकर उसके फोटो लिए। शादी की बात करने पर बच्ची ने बताया -' मुझे लगता है। अभी मैं उतनी मैच्युर नहीं हूँ कि शादी के बारे में सोचूं।'
एक इंसान कई प्रांतों में रहते हुए, घूमते हुए , काम करते हुए कितनी परिपक्व हो सकता है यह उस बच्ची से बात करके लगा।
लौटते में कुछ उजाड़ पड़ी इमारतें दिखीं। यह भी मुगल काल में बनीं होंगी। कभी इनका जलवा रहा होगा। आज उनमें कोई रहने वाला नहीं, देखने वाला। जलवा किसी का स्थायी नहीं होता। सब कुछ बराबर हो जाना है एक दिन। इसलिए ज्यादा गुरुर नहीं करना चाहिए। मस्त रहना चाहिए और सहज।
इतनी बड़ी कायनात में अपनी औकात न के बराबर भी नहीं है। लेकिन जितनी है उतने के हिसाब से अपना काम करते रहें यही बहुत है। है कि नहीं।

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