Monday, May 22, 2006

अति सर्वत्र वर्जयेत्‌

http://web.archive.org/web/20110926075800/http://hindini.com/fursatiya/archives/133

अति सर्वत्र वर्जयेत्‌

मैं कई बार सुन चुके राहत इन्दौरी के शेर फिर से सुन रहा था-
दोस्तों से मुलाकात के नाम पर
नींम की पत्तियां को चबाया करो।
तब तक जीतेंदर फिर नमूदार हुये गूगल टाक पर। मिलते ही हमें हड़काने लगे।हड़काने में स्वाभाविकता लाने के लिये वो हकला भी रहे थे। बोले- बच्चों को हड़काते हो?
एक बारगी तो हम सही में हड़क गये। हमारी जानकारी के अनुसार जीतेंदर एक बच्ची के पिता हैं। ये झटके से ‘बच्चे’ कहां से आ गये। हमने सोचा शायद इसी का तनाव हो कि हकलाते हुये हड़काने का अभ्यास कर रहे हों।
खैर ,हमने पूछा- किसको हड़काया?
जीतेंदर बोले -अतुल को हड़काया।उसकी पोस्ट उड़वा दी।
हम बोले -लाहौलविला कूवत। हड़काने के लिये हमें अतुल ही मिले हैं?
इसके बाद हमने जो सवाल पूछने शुरू किये तो जीतू तुरंत हे हे हे मोड में आ गये। बोले-दिल पर मत लेना। गुस्सा मत करो। गाली दे लो। जो करो लेकिन मामला सेटल कर लो।
हम बोले -हमारा दिल तो हमारी बेगम लेकर टहलने गयीं हैं। दिल पर कैसे लेगें तुम्हारा हेहेहे! इसे तो वहीं परिचर्चा के किसी टापिक पर सेटल करो।
परिचर्चा का नाम लेते ही जीतेंदर ने हमें दुबारा पकड़ लिया जैसे किसी टोकरी से उछलते किसी मेढक उसके बाकी साथी मेढक जकड़ लेते हैं,बाहर नहीं जाने देते।बोले -यार,आओ उधर परिचर्चा में कविता-सविता कराओ। लिखाओ।
कविता के साथ सविता का कापीराइट स्वामीजी का है। हम यह सोच कर किनारा करने के लिये टरकाऊ डायलाग मार दिये- सोचकर बतायेंगे।
अब जीतेंदर पुराने सेल्समैन रहे हैं। गंजों को कंघी बेचते रहे हैं। सो कैसे हमें छोड़ दें। दूसरी बात इन्हें सोच-विचार से बहुत डर लगता है। हमारे सोचने की बात सोच के भी घबरा गये। घबराहट दबा के बोले -क्या भाभी से पूछोगे?
हम बोले-उनसे पूछेंगे तो ये ब्लागिंग भी बंद हो जायेगी। वो पहले ही कहतीं हैं -तुम्हें और कुछ कायदे का काम नहीं सूझता जो दिन भर खुटुर-पुटुर करते रहते हो।
जीतेंदर को हम कैसे समझायें कि कविता की मौज लेना और बात है कविता लिखना-लिखवाना और बात है। वो तो कहो कि उनको परिचर्चा का काम याद आ गया तो वे बोले -आओ उधर ही बतियाते हैं परिचर्चा मंच पर। हमें बचने का तरीका समझ में आ गया-हम बोले तुम चलो हम आते हैं।
इस तरह जीतू को तू चल मैं आया कहकर मैंने नेट से नाता तोड़ा तथा इधर खुटुर-पुटुर शुरू कर दी।
इस बातचीत के बीच तमाम हाँ-हूँ भी हुई। इसी दौरान हमने पूछा -किसने बताया कि मैंने अतुल को हड़काया?
जीतेंदर ने खुलासा किया- स्वामी ने बताया कि तुमने अतुल की पोस्ट पर कुछ कमेंट किया। फिर जी नहीं भरा तो मेल
लिखी इससे अतुल ने दुखी होकर पोस्ट को उड़न तस्तरी बना कर गलती संख्या ४०४ में तब्दील कर दिया।
हमें लगा कि स्वामी लोग देश का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। खबरें इधर-उधर कर रहे हैं।बहरहाल ,बात अतुल की की जाये।
ये जो हमारे अतुल हैं उनका ‘सेंसिटिविटी इन्डेक्स’ बहुत ऊंचा है। जो लोग कहते हैं कि दुनिया की सबसे ऊंची चीज एवरेस्ट शिखर है वो गलतफहमी में हैं। उन्होंने हमारे अतुल का ‘सेंसिटिविटी इन्डेक्स’ नहीं देखा। देखा होता तो एवरेस्ट को दूसरे नंबर पर रखते।
तो हुआ कुछ यूं कि अतुल ने एक पोस्ट लिखी अक्षरग्राम पर। उस पोस्ट में जानकारी दी गयी थी कि कैसे कुछ शरारती लोगों ने भारत में स्थित देबाशीष के नाम से अमेरिका में स्थित रमण कौल के फोन से अमेरिका में ही डेरा जमाये स्वामीजी को फोन किया।
अब पोस्ट करने के बाद हमें दिखाई गयी तो हमें लगा कि कुछ कमेंट करना जरूरी है। सो हमने अपना टिप्पणी धर्म निभाया। टिप्पणी कुछ ऐसी ही थी सलाहनुमा जिससे कुछ बुरा लगा होगा अतुल को।लिहाजा उन्होंने प्रतिटिप्पणी की । हमें लगा कि अब उपदेश मुद्रा में आया जाय ।लिहाजा हमने मेल लिख मारी। वैसे भी हमारी टाइपिंग स्पीड रविरतलामी के आसपास ही हो रही होगी।
हमारी मेल मिली तो हमारे अतुल जी का ‘ सेंसटिविटी इंडेक्स ‘ आपरेटिव हो गया। उन पर लक्ष्मीगुप्तजी के उन गुरू जी की आत्मा आ गयी जो चेलों की गलती पर खुद को पीटने लगते थे।
और अतुल ने अपने ब्लागजगत के अनुभवों की दूसरी पोस्ट का कत्ल कर दिया।नये लोगों की जानकारी के लिये बता दें कि पहले भी अतुल पोस्ट करने के बाद अपनी एक बेहतरीन पोस्ट उड़ा चुके हैं।
इनकी पोस्ट के साथ हमारे भी एक कमेंट का खून हो गया। हमने सोचा किसी थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखायें लेकिन फिर यह सोचकर कि जमानत भी हमें ही लेनी पड़ेगी ,हम रुक गये।जानकारी के लिये यह भी बता दें कि अतुल दो अनूप के बीच घिरे रहते हैं। इनके साथ विडम्बना है कि इनके छोटे भाई का नाम भी अनूप है तथा हमें ये भाई साहब कहते हैं वो भी अनूप हैं।
हमने यह भी सोचा कि इस विषय पर अनुगूँज का आयोजन किया जाय या परिचर्चा पर बिना बात के बहस की जाय कि पोस्ट लिखने के बाद उसे कमेंट के सहित उड़ा देना कहां तक जायज है?
मुझे लगता है कि पोस्ट कितनी भी खराब हो,उडा़ई नहीं जानी चाहिये। यहाँ तो खराबी की बात ही नहीं सोच का फरक था। खराब पोस्ट भी रहनी चाहिये ताकि सनद रहे ।
बहरहाल पोस्ट के चक्कर में मुख्य बात तो रह ही गयी।
तो जैसा कि बताया गया कि रमन के फोन से किसी ने स्वामी को फोन किया जिसमें परिचय दिया गया कि वो देबाशीष बोल रहा है।देबाशीष पूना में रहते हैं। वे अमेरिका में नहीं हैं। ऐसे में अमेरिका में रहने वाले रमन के फोन से स्वामी को देबाशीष के नाम से फोन करने वाला कौन हो सकता है?
भारत में तो आम बात है कि झुमरी तलैया का फोन रामनगर लग जाये । लेकिन अमेरिका में भी ऐसा होना लगा -कमाल की बात है! लेकिन यहां फोन ही नहीं लगा बात भी हुई। तब माज़रा क्या है?
अब रमन,स्वामी,देबाशीष इतनी प्रसिद्ध हस्तियाँ तो हैं नहीं कि इनके फोन के पीछे दुनिया भर के हैकर पड़ जायें तथा इनके फोन से बतियाने का जुगाड़ करें। न इससे कुछ आर्थिक लाभ होने वाला है किसी को।
जैसा कि अतुल ,स्वामी,रमन का सोचना है शायद यह काम किसी सयाने बनने वाले किसी ब्लागर का है जो अपनी तकनीकी काबिलियत की धाक जमाना चाहता है।
अगर मामला ऐसा ही है तो यह काबिलियत प्रदर्शन की हरकत बाजार में कपड़े उतार के ध्यान आकर्षित करने तथा साथ में ‘बोल्डनेस’ की ट्राफी जीतने की इच्छा रखने जैसा है मामला।
जो भी यह बचपना कर रहा है उससे यही कहा जा सकता है-ये अच्छी बात नहीं है।कहा भी गया है-अति सर्वत्र वर्जयेत्‌।
हैकिंग तो चोरी है। सेंधमार के किसी के घर में घुसने कोई बहादुरी है क्या ?
हो सकता है कि कल को हमारे ब्लाग का पासवर्ड उड़ा के कोई बहादुर चोर हमारे नाम से लिखने लगे। लोग कहने लगें कि क्या लिखते हो यार!
हम फिर भी कहेंगे लिखो बबुआ,हमसे अच्छा लिख सकते हो ,हमसे खराब लिख सकते हो लेकिन हमारे जइसा कैसे लिखोगे?
लेकिन यह इतना आसान नहीं है। चोर कोई न कोई सुराग जरूर छोड़ जाता है।
हम गैर तकनीकी ब्लागर तो ऐसे भोले भंडारी हैं कि जाने कितनो को अपना पासवर्ड दिये हैं हमें खुद ही याद नहीं। फकीरों को क्या चोरी का डर!
बात कुछ खास नहीं है लेकिन कहना चाहता हूँ कि सयानापन खतरनाक भी हो सकता है।
बकौल स्वामीजी-
मै अपने शब्द आपके मूह मे डालने की गुस्ताखी नही कर रहा और बिना मांगी सलाह देने से भी बचना चाहता हूं – लेकिन हमारी प्रतिक्रिया यही होनी चाहिए की हम विस्मित या प्रभावित होने के बजाए दु:खी हैं की कोई हिंदीप्रेमी अपना समय हिंदी की सेवा मे लगाने के बजाए इस तरह के गिमिक्स में लगा रहा है. कोड क्रैक करने से ज्यादा मज़ा किसी नए ब्लागर को पहली बार हिंदी लिखत देखने से मिलती है और उन्हे सहायता करने से मिलती है – सो नए प्रोग्रामर्स को अपनी उर्जा सही जगह लगानी चाहिए. इसका मतलब ये नही की हैकिंग-क्रैकिंग मत करो – करो लेकिन अलग सर्वर बनाओ उस पर करो. जो सीखना चाहें उन्हे सिखाओ – गैरकानूनी काम मत करो. अभी हाल ही में एक जवान पट्ठा पांच साल के लिए अंदर हो गया – ज्यादा श्याणपत या ओवर स्मार्टनेस भारी पड जाती है! तीन और हाल ही में फ़िर धरा गए हैं – इन बेवकूफ़ों को पता नही है की किस आग से खेल रहे हैं.
हम और कुछ नहीं कहेंगे सिवा इस बात के कि अतुल अपना गुस्सा अपनी पोस्टों पर मत उतारा करो। तुम्हारी पोस्टें वैसे भी भारत में कन्याओं की संख्या की तरह कम होती जा रही हैं। कन्याओं की संख्या कम होने से आशीष जैसे बालक अन्ना को पीछे लगाये हुये हैं।और तुम्हारी पोस्टों की संख्या कम होने से इस तरह की फालतू पोस्टें बढ़ रही हैं। अगर गुस्सा उतर गया हो तो फिर से लिखो अपना सारा वार्तालाप जो होगा देखा जायेगा।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

9 responses to “अति सर्वत्र वर्जयेत्‌”

  1. अतुल
    भाई साहब क्या गजब कर रहे हैं, आशीष भी सच्चे हिंदी प्रेमी है, तेजी से मात्रासुधार की ओर प्रयासरत है, अब इतनी भी रैगिंग न करिये कि ब्लागिंग छोड़ के भाग जाये।
    आशीष भाई तुम लगे रहो, कमेंटियाने के लिये हम और जीतू हैं ।
  2. eswami
    यह पूरा प्रकरण एक साथ बहुत मनोरंजक समझदारियों और बेवकूफ़ियों से लद-फ़द रहा है! मामला गंभीर है पर मनोरंजक भी है – लेकिन जैसा आपने कहा “अति सर्वत्र वर्जयेत!”
  3. समीर लाल
    मामला कुछ गंभीर टाइप का दिख रहा है, मगर विवरण के आभाव मे, सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगा, लिखा अच्छा है और मामला तूल ना पकडे, इसलिये शुभकामनाऎं.
  4. नारद मुनि
    तुम बाज नही आए, शुकुल। जब तुमको हड़काया था और तुम हड़क गये तो फिर गाना गाने की का जरुरत? काहे दुनिया को बता रहे हो कि हड़का दिया।तुम तो कल गच्चा देकर निकल गये, अब आना बेटा आनलाइन।
    और भौजी तुम्हारा दिल वापस लेकर आ गयी होंगी,उनसे दिल वापस लेकर साफ़ सूफ़ कर लेना और दिल से पूछ लेना कि अब का करना है?
    अरे यार, वो कानपुर मे रिक्शे और ट्रकों के पीछे बहुत गजब गजब के शेर लिखे होते है, यार एक पोस्ट उस पर भी लिखो, फ़ोटू के साथ।
  5. आशीष
    माना कि हम हैंकिंग के उस्ताद है, लेकिन हमारी जिंदगी मे आयी कन्याओ की कसम “ये कारनामा हमारा नही है !”
    रही बात हम और कन्याओ कि आज हम भी राज खोल ही देते है कि हमारी जिन्दगी मे कन्या आते आते एन मौके पर भाग क्यो खडी होती है.. बस इंतजार किजीये …..
  6. debashish
    गुरुजी मज़ाक मज़ाक में गहरी बात करने की आप की कला का कोई सानी नहीं!
  7. एक महाब्लॉगर से मुलाकात at नुक्ताचीनी
    [...] कुछ दिन पहले अनूप का ईमेल आया, बोले जिन किताबों को भेंट करने का वायदा किया था वो देने स्वयं आ रहा हूँ। ज़ाहिर है जिन चिट्ठा मित्र से अब तक केवल फोन पर बातचीत हुई या फिर चित्रों में ही जिन्हें देखा हो उनसे मिलने की बात पर मन उत्साहित तो था ही, पर बड़भैया से मुलाकात के पहले थोड़ा सहमा भी था। जीवन और साहित्य के निचोड़ से ओतप्रोत उनके लेख तो कई मर्तबा इस तुच्छ बुद्धि के सर से चार इंच उपर ही तिरते रह जाते हैं, उन पर टिप्पणी करने का माद्दा हमेशा नहीं जुट पाता, अब भई जिनके ब्लॉग पर टिप्पणी करने पर भी डर लगता हो और जिनकी हल्की डपट से अतुल अपनी पोस्ट हटा देते हों, ऐसे महाब्लॉगर से मिलने के लिये थोड़ा साहस तो जुटाना ही पड़ता है। पर जब मुलाकात हुई तो अपेक्षा से भी अधिक मन को भा गये अनूप। दो दिनों में कई बार भेंट हुई और वस्तुतः अनूप ने मेजबान की ही जम कर मेहमान नवाज़ी कर डाली। [...]
  8. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] बेतरतीब विचार 6.आवारा भीड़ के खतरे 7.अति सर्वत्र वर्जयेत्‌ 8.एक पोस्ट हवाई अड्डे से 9.अथ पूना [...]

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