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सदा रहे मंगलमय जीवन
By फ़ुरसतिया on May 8, 2007
दो दिन पहले जब हम अपनी बिटिया भतीजी स्वाति के विवाह के लिये बरतन आदि खरीदने गये तो तमाम शब्दों से एक बार फिर रूबरू हो रहे थे। द्वारचार के बरतन, करसावन के बरतन, पंचहड़ के बरतन! दरवाजे पर लगाने के दुकान पर लगाकर देखे जा रहे थे। पांच, सात, नौ जैसी औकात हो वैसे बरतन। बरतन खरीदने के बाद कुछ बरतनों पर नाम लिखने के लिये वहीं दे दिये गये। हमने नाम पूछने वाले के पेशे के नाम के बारे में पूछा। बताया गया इनको नाम लिखने वाला ही कहते हैं।
हम अनामदास की पोस्ट के बारे में सोच रहे थे। जो जितना ज्यादा बाहर घूमता है उसकी शब्द संपदा उतनी ही बढ़ती है। कई शब्द हमनये सिरे से सीख रहे थे। एक कटोरा खरीदा गया। बताया गया कि कटोरा कांसे का होना चाहिये। एक की आकृति को देखकर हमारी श्रीमतीजी बोली -ये कटोरा देंगे लड़के वालों को? ये तो भीख मांगने का कटोरा लगता है। कटोरा बदला गया।
हमें राहत इंदौरी का शेर याद आया-
हमें राहत इंदौरी का शेर याद आया-
वो खरीदना चाहता था कांसा मेरा,
मैं उसके ताज की कीमत लगा के लौट आया।
हमें लगा शायद पहले भिक्षापात्र कांसे के बनते हों।
बहरहाल, जैसा आज राकेश खंडेलवालजी ने बताया कि आज हमारी भतीजी का विवाह होना तय हुआ है। बिटिया स्वाती हमारे बड़े भाई की बिटिया है। बचपन से हमारे साथ रही। पली-बढ़ी-पढ़ी-लिखी। अब उसका विवाह /कन्यादान हमें ही करना है।
यह संयोग है कि मैं अपने भाइयों में सबसे छोटा हूं लेकिन अपने परिवार की अगली पीढी़ के पहले विवाह की जिम्मेदारी हमें निभानी है।
यह संयोग है कि मैं अपने भाइयों में सबसे छोटा हूं लेकिन अपने परिवार की अगली पीढी़ के पहले विवाह की जिम्मेदारी हमें निभानी है।
जो मिलता है कहता है- कन्यादान बड़े पुण्य का काम है। अगर ऐसा है तो परसाई जी क्यों कहते- हमारे समाज की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है। यह भी अजीब विडम्बना है कि इस कन्यादान का पुण्य लूटने के फेर में लोग बड़े-बड़े पाप करते हैं। तमाम लोग इसीलिये आय से अधिक सम्पत्ति के फेर में पड़ जाते हैं क्योंकि उनको ढेर सारी सम्पत्ति कन्यादान का पुण्य कमाने में खर्च करनी पड़ती है। कन्या के पिता की स्थिति बयान करते हुये हमारे अजयगुप्त जी लिखते हैं-
सूर्य जब-जब थका-हारा ताल के तट पर मिला,
सच कहूं मुझे वह बेटियों के बाप सा लगा।
बहरहाल हमारी भतीजी स्वाति की आज आठ मई को होना तय हुआ है। हमने कुछ मित्रों को निंमंत्रण पत्र ई-मेल से भेजे हैं।
उनमें मसिजीवी ने इस निमंत्रण को वीरता पूर्वक स्वीकार किया और कानपुर आने के लिये कमर कसी। आने को तो प्रत्यक्षाजी भी आतीं लेकिन उनके आने में मजबूरी थी। घर परिवार की व्यस्तताओं के चलते आ नहीं पायीं।
उनमें मसिजीवी ने इस निमंत्रण को वीरता पूर्वक स्वीकार किया और कानपुर आने के लिये कमर कसी। आने को तो प्रत्यक्षाजी भी आतीं लेकिन उनके आने में मजबूरी थी। घर परिवार की व्यस्तताओं के चलते आ नहीं पायीं।
कुछ दोस्त इसलिये नहीं आ पा रहे क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं है लिहाजा वे व्यस्त हो गये। बहरहाल मसिजीवी आ रहे हैं। उनका स्वागत है। उनको हम राजीव टंडनजी से मिलवायेंगे, आशीषगर्ग से भी मिलन होगा। विनोद श्रीवास्तव से भी मुलाकात होगी। फिर इस मुलाकात का आंखों देखा बयान किया जायेगा।
हम जितना व्यस्त हैं उससे ज्यादा हमें दिखाना पड़ रहा है। वर्ना कोई मानता ही नहीं कि बिटिया की शादी करने जा रहे हैं। आज सोचा कि जो लोग बचे हैं उनको खुला निमंत्रण भेज दिया जाये आने का यह कहते हुये-
भेज रहा हूं नेह निमंत्रण प्रियवर तुम्हें बुलाने को,
हो मानस के राजहंस तुम भूल न जाना आने को।
आप सभी इस अवसर सादर, सप्रेम आमंत्रित हैं। पते और कार्यक्रम के लिंक दिये हैं।आज जब कुछ घंटों के बाद ही स्वाति का विवाह संस्कार संपन्न होना है तब तमाम स्मृतियां उमड़ रही हैं।तमाम सवाल भी।
साल भर पहले जब मेरे मामाजी डा.कन्हैयालाल नंदन घर आये थे तब उन्होंने अपनी आवाज में अपनी बेटी के लिये लिखे छंद हमें सुनाये थे जिसे मैंने टेप कर लिया था। अब अपनी बिटिया के लिये भी वही छंद मैं दोहरा रहा हूं-
बेटी को वाणी से संवार दे ऒ वीणा पाणि!
शक्ति दे, शालीनता दे और संस्कार दे,
लक्ष्मी तू भर दे घर उसका धन-संपदा से
गणपति से कहकर सब संकट निवार दे!गौरी, तू शिव से दिला दे वरदान उसे
दाम्पत्य पर अक्षत तरुणाई वार दे,
मेरे सुख सपनों के सारे पुण्य ले ले मां तू ,
अपने हाथों से उसकी झोली में डाल दे!
आपसे अनुरोध है कि अपनी उपस्थिति और आशीष से नव-दम्पति को उनके भावी जीवन के लिये मंगलकामनायें प्रेषित करें।
मेरी पसंद
मेरी पसंद में आज भाई राकेश खंडेलवाल का मनोहारी आशीर्वचन जो उन्होंने खास तौर पर स्वाति-निष्काम के लिये लिखा-
मेरी पसंद
मेरी पसंद में आज भाई राकेश खंडेलवाल का मनोहारी आशीर्वचन जो उन्होंने खास तौर पर स्वाति-निष्काम के लिये लिखा-
सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ।बिछें पंथ में सुरभित कलियाँ,
रसमय दिन हों रसमय रतियाँ,
रसभीनी हो सांझ सुगन्धी,
गगन बिखेरे रस मकरन्दी,
जिसमें सदा बहारें झूमे,
ऐसा इक उपवन देता हूँ।सदा रहे मंगलमय जीवन,
शुभ आशीष तुम्हे देता हूँ।जो पी लें सागर से गम को,
धरती पर बिखरे हर तम को,
बँधे हुए निष्काम राग में,
छेड़ें प्रीत भरी सरगम को,
जो उच्चार करें गीता सा,
ऐसे अधर तुम्हें देता हूँ।सदा रहे मंगलमय जीवन,
शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ।जो सीपी की आशा जोड़े,
लहरों को तट पर ला छोड़े,
जो मयूर की आस जगाये,
सुधा तॄषाओं में भर जाये,
जिसमें घिरें स्वाति घन हर पल,
ऐसा गगन तुम्हें देता हूँ।सदा रहे मंगलमय जीवन,
शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ।सुरभि पंथ में रँगे अल्पना,
मूरत हो हर एक कल्पना,
मौसम देता रहे बधाई,
पुष्पित रहे सदा अँगनाई,
फलीभूत हो निमिष निमिष पर,
ऐसा कथन तुम्हें देता हूँ।सदा रहे मंगलमय जीवन,
शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ।
-राकेश खंडेलवाल
Posted in बस यूं ही | 33 Responses
नवदम्पति को मेरे परिवार की ओर से ढ़ेरों मंगलकामनाएं, शुभाशिष.
घुघूती बासूती
बाली उमर में ससुर बनने की बधाई। सारी जनता आपको ससुर के पोज में पगड़ी लगाये बारातियों का स्वागत करते , मिलनी करते , आशीष देते देखने को व्याकुल है। विदाई के बाद दो चार घँटे तान के सो लिजीयेगा और फिर फोटू पोस्ट कर दीजियेगा। साथ भी भाजी वाले लड्डू मठरी की फोटू कतई न भूलियेगा , यहीं से दर्शन करके तृप्त हो लेंगे।
वर-वधु को हार्दिक शुभकामनाएं और आपको बाली उमर में ससुर बनने के लिये बधाई!
नवदंपत्ति के चित्र भी हम सबके साथ बांटियेगा!
व बधाई !
” अचल होही अहिवात तुम्हारा, जब लगि बहे गँग यमुन जल धारा ”
आदरणीय डा.कन्हैयालाल नंदन जी आपके मामाजी हैँ ?
सुनकर लगा, उन्हेँ भी प्रणाम कहती चलूँ -
स – स्नेह,
लावण्या
अनिल सिन्हा
राकेशजी की पंक्तियाँ अद्भुत हैं, ऐसा लगा मानो हमारे ही मन की बात कह रही हों।
शक्ति दे, शालीनता दे और संस्कार दे,
लक्ष्मी तू भर दे घर उसका धन-संपदा से
गणपति से कहकर सब संकट निवार दे!
दाम्पत्य पर अक्षत तरुणाई वार दे,
मेरे सुख सपनों के सारे पुण्य ले ले मां तू ,
अपने हाथों से उसकी झोली में डाल दे!