Tuesday, August 21, 2007

…और ये फ़ुरसतिया के तीन साल

http://web.archive.org/web/20140419215359/http://hindini.com/fursatiya/archives/324

…और ये फ़ुरसतिया के तीन साल

और ये लो फ़ुरसतिया के तीन साल पूरे हो गये।
तीन साल पहले रवि रतलामी के लेख ब्लाग-अभिव्यक्ति का नया माध्यम के झांसे में आकर लिखना शुरू किया था। धीरे-धीरे रमता गया,जमता गया। धंसना और फ़ंसना भी होता गया।
पहले हफ़्ते में एक लेख नहीं लिख पाते थे, अब सोचते हैं रोज एक ठेल दें।
इधर लिखने वाले बढ़ते गये। लेखकों में विविधता आयी है। अलग-अलग रुचि के लोग शामिल हुये हैं ब्लाग जगत में। कई लोग तो इतना रुचिकर लिखते हैं कि उनका लिखा पढ़ना अपने आप में एक शानदार अनुभव है।
इधर शामिल हुये लोगों में ज्ञानदत्तजी और आलोक पुराणिकजी तो सबेरे की चाय के साथी हो गये हैं।
ब्लागजगत में अभी भी कवियों की बहुतायत है। तमाम लोग अच्छी और बहुत अच्छी कवितायें लिखते हैं। लेकिन मेरी कविता की समझ उत्ती अच्छी नहीं है। यह भी लगता है कि जीवन जितना जटिल, बहुस्तरीय होता जा रहा है कवितायें उसके हिसाब से इकहरी और कम प्रभावी सी हैं। मुझे यह लगता है कि अपने ब्लाग जगत में लिखी जा रही कवितायें , कवितायें कम कविता के लिये कच्चा मसाला ज्यादा हैं।
यह मेरी अपनी समझ है। संभव है मुझे उतनी जानकारी न हो। इसको कविगण मेरी अल्पज्ञता समझ कर हंसी में उड़ा दें और अगली कविता लिखने में जुट जायें।
समीरलाल जैसे चंपू लेखक अपवाद हैं जो कविता के दरवाजे से घुसे और गद्य के दरवाजे पर भी अपना तंबू तान के बैठ गये। चंपू लेखक से बुरा मानने की जरूरत नहीं है। यह हम कल ही संस्कृत की कक्षा नौ की किताब में पढ़े कि जो गद्य और पद्य दोनों में लिखता है वह
चंपू लेखक कहलाता है।
वैसे समीरलाल जी शायद कुछ दिन और कविता-कानन में ही टहलते रहते अगर हम उनको गद्य लिखने के लिये अनुरोध न करते।
गद्य तो प्रियंकरजी भी बड़ा धांसू च फ़ांसू लिखते हैं। ऐसा बहता हुआ जिसकी तारीफ़ के लिये ही शायद लिखा गया है-बड़ा मुश्किल है जीवन की कहानी कहना/जैसे बहते हुये पानी पर पानी लिखना। लेकिन अफ़सोस अभी तक इनका ज्यादातर गद्य केवल टिप्पणियों के रूप में सामने आया है या फ़िर किसी की पोल खोलू लेखन के रूप में।
यह कुछ ऐसी ही बात है जैसे कोई मारवाड़ी अपनी दुकान में मौजूद शानदार कलम का इस्तेमाल अपनी पीठ खुजाने के लिये करे। इससे पहले कि उनको उनके अपराध की कोई सजा मिले, उनको संभल जाना चाहिये। :)
तमाम और लेखक हैं जिनको पढ़ना अपने आप में खुशनुमा अहसास है। प्रमोदसिंह की शब्दों की ड्रिबलिंग देखकर ताज्जुब होता है। पतनशील लबादा ऒढ़कर जो गद्य वे लिखते हैं उसकी पड़ताल करने वाला भी कोई होना चाहिये। हमारे ब्लाग जगत में विषय-वस्तु की तारीफ़ करने वाले तमाम लोग हैं लेकिन भाषा, कहने के अंदाज पर अपने विचार रखने वाले अभी आने बाकी हैं।
रवीशजी के संस्मरण लगभग सभी को अपने लगते हैं। अनामदास, हिंदीब्लागर,उन्मुक्तजी ,जगदीश भाटिया, संजीव ,संजीत, अरुण अरोरा, बिहारी बाबू, शुऐब और तमाम साथी वास्तव में ऐसा लिखते हैं जिनका पढ़ने के लिये और तमाम काम स्थगित किये जा सकते हैं। संजय तिवारी न दैन्यम न पलायनम के लेख नयी सोच देते हैं। सृजन शिल्पी सोचते बहुत हैं और इसीलिये सोचनीय हद तक कम लिखते हैं। शब्दों की डगर के माध्यम से नित नये अंदाज में पता चलता है। :)
महिला ब्लागरों में प्रत्यक्षाजी तो स्थापित लेखिका भी बनने की राह पर चल डगरी हैं। इसके अलावा बेजीजी, धुधुतीबासाती, सुनीताशानू, मानोशी, रचनाबजाज,रचनासिंह आदि भी महिला ब्लागरों का प्रतिनिधित्व शानदार तरीके से करती हैं। सुजाताजी(नोटपैड) अपने बिंदास लेखन से और नीलिमाजी अपने विचार लगातार शानदार तरीके से लिखती रहीं हैं।
अपने साथियों देबाशीष, जीतेंन्द्र, रविरतलामी जैसों के बारे में क्या कहें! उनकी तारीफ़ इतनी कर चुके कि हम ही बोर हो गये। देबाशीष ने पिछले दिनों ब्लागजगत की प्रवृत्ति पर जो लेख लिखा था वह अपने आप में एक दस्तावेज है। स्वामीजी तो लगता है रमणकौल तथा अतुल अरोरा का साथ पकड़ लिये, दिखते नहीं।
न दिखने वालों में आशीष, निधि और रत्नाजी भी शामिल हैं। रचना बजाज शायद कुछ दिन बाद फ़िर सक्रिय हों।
लिस्ट बहुत लम्बी है। यह नामपुराण अतंत है। अत: इसे छोड़ते हुये दूसरी बातें की जायें। समय कम है। लेख भी लंबा हो जायेगा न! मेरा विचार है कि सारे ब्लागर साथियों के लेखन पर परिचयात्मक लेख लिखूं।
पिछले दिन ब्लागजगत के विवाद के भी रहे। तमाम विवाद उछले, लोगों ने संवाद उछाले, प्रतिवाद हुये।
सबसे ज्यादा विवाद नारद को लेकर रहे। वह सब ब्लागजगत में दर्ज है। उस विवाद के बहाने तमाम लोगों के विचार सामने आ गये। आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार का मानना है कि हिंदी ब्लाग जगत में गाली गलौज शुरू हो गया। यह इस बात का सूचक है कि हिंदी ब्लागजगत अंग्रेजी के ब्लागजगत जैसा पापुलर होने की राह पर है।
जगदीश भाटियाजी ने अपने एक लेख में पूछा था कि ब्लाग बढ़ रहे हैं लेकिन पाठक कम हो रहे हैं। मुझे लगता है कि ऐसा इसलिये हुआ कि पाठक वही हैं जो ब्लागर हैं। ब्लाग बढ़ने के साथ उनके पास विकल्प बढ़े हैं। अत: लोग अपनी पसंद का पढ़ते हैं। पाठक शायद तभी बढ़ें जब गैर लेखक लोग भी पाठक की हैसियत से जुड़ें।
बातें बहुत सी हैं। लेकिन जब भी मैं स्मृतियों की बात करता हूं तो लोग टोंकने लगते हैं कि कहां चले गये पुराने में। इसलिये फिर कभी। अभी आफिस जाना है। इस बीच अगर आपको हमसे कोई शिकायत हो तो उसे रवि रतलामी के खाते में डालें क्योंकि उन्हीं के उकसावे पर लिखना शुरू किया। जिनके नाम जिक्र करने छूट गये वे केवल समयाभाव के कारण। :)

44 responses to “…और ये फ़ुरसतिया के तीन साल”

  1. ज्ञान दत्त पाण्डेय
    “आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार का मानना है कि हिंदी ब्लाग जगत में गाली गलौज शुरू हो गया। यह इस बात का सूचक है कि हिंदी ब्लागजगत अंग्रेजी के ब्लागजगत जैसा पापुलर होने की राह पर है।”
    यही सबसे चिंताजनक पहलू है. और यही इस विधा से विमुख होने को बार-बार उकसाता है. बड़ी ही क्षीण डोर से बन्धे हैं इस विधा से. और कब यह छूट जाये – कह नहीं सकते. आपने तीन साल निभाया और लगता है जीवन पर्यंत निभायेंगे – यह समझकर ईर्ष्या होती है.
    @ज्ञानजी, गालीगलौज शुरू हुआ है लेकिन मुख्यधारा में नहीं आया है। न आ पायेगा। डोर आपकी मजबूत होती जायेगी और आप तमाम लोगों के ईर्ष्या के पात्र बन जायेंगे। साल खत्म होने से पहले ही। :)
  2. mamta
    तीसरी वर्षगांठ के लिये हार्दिक बधाई और भविष्य के लिये शभकामनायें!
    @ममताजी,बधाई और शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद!
  3. pankaj bengani
    बधाई हो चाचु! जुग जुग जीयो चिट्ठाजगत में… आमीन.
    @ शुक्रिया ! :)
  4. संजय बेंगाणी
    समयाभाव बड़ा बेरहम है, कई महान ब्लोगरों के नाम आपसे छुट गए, किसने कहा, यह मैं अपने लिए कह रहा हूँ? :) :)
    रवि रतलामी जी को तो…. हे भगवान किसने कहा था फुरसतीलाल को लम्बा लम्बा लिखने के लिए उकसाए.
    तीसरा साल पुरा कर जाना और फिर भी जमे रहना मुबारक हो. क्या लिखाड़ आदमी है, यार.
    @ संजय भाई , आप जैसे महान ब्लागरों के नाम तो अलग से खासतौर से लेने के लिये हैं। लोग लेते भी रहे हैं। अभी कुछ खामोशी है। रवि रतलामी ने सही में बहुत खराब काम किया। :)
  5. जीतू
    बहुत सही शुकुल। स्माइली लगाकर सबको सही टिकाए हो।
    तीन साल पूरे होने पर फुरसतिया को बहुत बहुत बधाई। आज भी मेरे सबसे प्रिय लेखक, फुरसतिया ही है, (बाकी लोग बुरा मत माने, बस मेहनत करें और ये स्थान हासिल करके दिखाएं)
    फुरसतिया के रुप मे चिट्ठाकार जगत को एक पितामह मिल गया है। समस्याओं को सुलझाने की क्षमता, सहनशीलता जित्ती शुकुल मे है उत्ती किसी मे नही। शुकुल की तारीफ़ करना समझो सूरज को दिया दिखाने के बराबर है, इसलिए शुकुल की जितनी तारीफ़ की जाए कम है, इसलिए जाओ हम भी नही करते।
    ईश्वर से प्रार्थना है कि शुकुल इसी तरह हिन्दी ब्लॉगजगत के आकाश पर सूर्य की भांति दमकते रहे और इसी तरह हम सभी का मार्गदर्शन करते रहे।
    @ जीतू, हम कहां टिकाये किसी को। हम तो सबकी तारीफ़ किये। पितामह कहकर हमें कबर में पांव लटकाने की साजिश न करो। इसके लिये देबाशीष, आलोक सही उम्मीदवार हैं। :) मार्गदर्शन की किसी को दरकार नहीं है। सब अपने-अपने कोलम्बस हैं। अपना-अपना अमेरिका खोजकर मस्त हैं। :) :)
  6. sanjay tiwari
    जब लंबा लिखने की बारी आयी तो छोटे में निपटा गये. तीन सालों की पड़ताल होती तो दस्तावेज बन जाता. चौथे साल पर कर सकते हैं या फिर पांचवे साल में पंचामृत बनाकर बांट दीजिएगा.
    किसी पुराने चिट्ठाकार से बिना लगा लपेट विवरण की अपेक्षा है. अभी और इंतजार करते हैं.
    @संजयभाई, पुराने किस्से बताते चलेंगे। इसके लिये नियमित लेख माला चालू करेंगे। इंतजार का फ़ल मीठा हो इसका प्रयास किया जायेगा। :)
  7. kakesh
    नहीं जी नहीं इस बार टोकेंगे भी नहीं रोकेंगे भी नहीं…बस कभी कभी मौज ले लेते हैं…:-) इसको और लंबा लिखते फुरसतिया स्टाइल में तो ज्यादा अच्छा लगता.खैर मुबारक हो आपको ये तीन साल ..आप तीन सौ साल तक लिखते रहें यही कामना है.
    @काकेशजी, मौज लेने की हमेशा छूट है, हरेक को। इसी बहाने हमें भी न्यूटन का तीसरा नियम सत्यापित करने का मौका मिलता है। :) शुभकामनाओं के लिये आभार!
  8. pramod singh
    बधाई, पंडिजी. जमे रहिये. आपके और समीर भइया के स्‍नेहनद को हिंदी ब्‍लॉगजगत जब ले रहेगा, याद करेगा. प्रियंकर पर कही सारी बातें एकदम दुरुस्‍त है.. उनके अपने गद्य लेखन के इस्‍तेमाल पर इस पंक्ति में आपने सब कह ही दिया- यह कुछ ऐसी ही बात है जैसे कोई मारवाड़ी अपनी दुकान में मौजूद शानदार कलम का इस्तेमाल अपनी पीठ खुजाने के लिये करे- तो उस व्‍यक्ति को डंडा मारने की ज़रूरत है. अपनी तरफ़ से अलबत्‍ता मैं बीच-बीच में फेंककर मारता रहता ही हूं. दूसरे लोग भी मारें.
    मेरे लेखन को आप कमतर बता गए, उससे ज़ाहिर है हताश और हतप्रभ हूं, मगर फिर सोचता हूं, हिंदी में लिखनेवाला हताश और हतप्रभ नहीं हुआ तो बेहतर है, दुकान में बैठकर अपनी कलम से पीठ ही खुजाता रहे (शानदार या चिरकुट जैसी भी), लिखना तो भूल ही जाए.
    @ प्रमोदजी, शुक्रिया। प्रियंकरजी उकसावे में आकर लिखना शुरू करें तो यह उपलब्धि ही होगी। डंडा मारते रहिये। आपके लेखन को कमतर नहीं बताया। हम तो ई कह रहे थे कि ऐसे लोगों की जरूरत है जो आप जैसे हीरे की परख करने के लिये जौहरी का काम कर सके। हतप्रभ और हताश काहे होंगे। हम तो अपने दोस्तों के साथ जबरिया लिखते रहेंगे हमार कोई का करिहै! :)
  9. प्रत्यक्षा
    तीन साल का लेखाजोखा बडी संक्षिप्तता से निपटाया । फुरसतिया (पुराना )पुराण नहीं लगा ।
    @प्रत्यक्षाजी, फ़ुरसतिया पुराण लिखते तो लोग अगले साल पढ़ते! :)
  10. vimal verma
    सारी बातें आ गई हैं कुछ लोग छूट गये हैं उनके बारे में अगली बार जब भी मौका लगे ज़रूर लिखियेगा…. आपका विश्लेषण मुझे अच्छा लगा.
    @विमलजी, शुक्रिया। विस्तार से आगे लिखना जारी रहेगा। :)
  11. रवि
    पहले तो आपको 3 साल पूरे करने पर 3 बार बधाई.
    इस अवसर पर आपने मुझे 3 बार कोसा है – पर इससे आप अपने कर्मों से पीछा नहीं छुड़ा सकते. ये क्या कि तारीफ तो आप लूंटें और आलोचनाएँ मेरे खाते में – कि कारण तो ये हैं!
    और आपने इस शुभअवसर पर् ये बात नहीं बताई कि पत्र पत्रिकाओं में आपके लेखन की मांग की शुरूआत हो चुकी है और पत्रम्-पुष्पम भी आने लगे हैं!
    पत्रम्-पुष्पम की एक अतिरिक्त बधाई.
    @ रविरतलामीजी, देखिये हम उन लोगों में नहीं हैं जो श्रेय देने में कंजूसी बरतें। :) न किसी से डरते हैं इसीलिये कहते हैं कि हमारा ब्लाग लेखन आपके लेख को पढ़कर ही शुरू हुआ। शुरुआत मात्र नौ शब्दों से पहली पोस्ट लिखकर की। अब सबसे लंबे चिट्ठे लिखने वाले के रूप में बदनाम हैं। इसलिये श्रेय लेने में शरमायें नहीं। पत्रमं पुष्पम की बधाई के लिये धन्यवाद!
  12. अभय तिवारी
    अरे.. अपने तीन सालों के लेखन का तो कुछ जायज़ा दिया नहीं आपने.. वह क्या, कैसे, क्यूं बदला..? सालगिरह का मौका है इसलिए जाने दे रहे हैं.. वरना दो चार निर्मल बातें उगल देने का मन था हमारा..आप तो जानते ही हैं हमारे निर्मल होने का राज़..
    @अभयजी, आप निर्मल मन से अपनी बातें कहते रहा करिये। बंदिश न लगायें। तीन सालों का लेखा-जोखा लिख रहे थे। आपने भी टोका था। अब कहा इसलिये फिर से लिखेंगे। :)
  13. अफलातून
    बधाई !
    @अफलातूनजी, धन्यवाद!
  14. आलोक पुराणिक
    वक्त बहुत तेजी से गुजरता है, अगर अच्छा कटे तो।
    तीन साल यूं बहुत होते हैं, पर तीन साल में हिंदी ब्लागिंग एक हजार ब्लागरों का आंकड़ा पार करने के आसपास पहुंच गयी है। हिंदी ब्लागों के पाठक सिर्फ ब्लागर ही ना हों, दूसरे भी हों, इस पर कुछ काम होना चाहिए। एक परिचर्चा, डिबेट, इस पर चलायी जानी चाहिए कि कैसे हिंदी ब्लागिंग के पाठकों की संख्या बढ़ायी जाये। कहां से कैसे, घेर बटोर कर पाठक लाये जायें। यह विषय खासा महत्वपूर्ण है। किसी फुरसत में इस पर भी सोचिये।
    @आलोकजी, वक्त बढ़िया ही गुजरा इतने दिन कैसे बीत गये ,पता ही न चला! पाठकों को ब्लागिंग से जोड़ने के प्रयास होने चाहिये। धीरे-धीरे इसके तरीके भी सामने आते जायेंगे। :)
  15. Amit
    वाह जी वाह, तीसरी वर्षगाँठ पर बहुत-२ बधाई। केक न सही, मिठाई ही खिलाईये, वो ठग्गू के लड्डू कहाँ हैं? :)
    @अमित, धन्यवाद! मिलेंगे, लड्डू भी मिलेंगे। :)
  16. Jagdish Bhatia
    तीन साल का लेखा जोखा इतने सस्ते में निपटा दिया? यूं लगता है आफिस के लिये तैयार होते होते हड़बड़ी में लिखा गया है।
    हिंदी चिट्ठाजगत के संस्मरण न सही अगले तीन सालों में हिंदी चिट्ठे कैसे होंगे इस बारे में अपने अनुभव से जरूर लिखें।
    शानदार तीन साल पूरे होने पर बहुत बहुत बधाई। तीन सालों में हिंदी चिट्ठाकारिता की चोटी पर रह कर आपने जो योगदान दिया है वह सिर्फ यह चिट्ठा फुरसतिया ही नहीं है और भी बहुत कुछ है। आपने बहुत को लिखने की प्रेरणा दी और बहुतों ने कैसे लिखना है इस बात की प्रेरणा आप से ली।
    एक बात और आपके इस चिट्ठे के साथ वर्डप्रैस वाले भी आज ही के दिन अपना जन्मदिन मना रहे हैं ।

    @जगदीश भाटिया, सस्ते में इसलिये कि सही में आफिस जाते हुये लिखा गया। संस्मरण आगे लिखे जायेंगे। वर्डप्रेस वाले जन्मदिन हमारे साथ मना रहे हैं, वाह! क्या संयोग है! :)
  17. उन्मुक्त
    तीन साल पूरे करने की बधाई। आप आगे भी लिखें यही कामना।

    @उन्मक्तजी, बधाई के लिये शुक्रिया, शुभकामनाऒं के लिये आभार! :)
  18. नितिन बागला
    हार्दिक बधाई!

    @नितिन बागला, हार्दिक धन्यवाद!
  19. बोधिसत्व
    गुरुदेव अर्थात पंडित जी त्रौलोक्य विजयी हों। तीन पूरे हो गये। बधाई भी लें।
    @ बोधिसत्वजी, बधाई, शुभकामनाऒं के लिये धन्यवाद, आभार!
  20. Sanjeet Tripathi
    बधाई तीन साल पूरे होने होने पर!! उपरवाला आपको फ़ुरसत में लिखने के लिए तमाम उम्र फ़ुरसत उपलब्ध करवाता रहे और हमें आपका पढ़ने के लिए!! प्रियंकर जी के लिए आपकी कही गई बात से अक्षरश: सहमत हूं ,शिकायत है मुझे भी उनसे कि वह गद्य तभी क्यों लिखते हैं जब पोल खोल हो या फ़िर लंबी टिप्पणी!!
    @संजीत भाई, शुक्रिया! ये ऊपर वाला फ़ुरसत नहीं देता। झटक लेते हैं हम नीचे वालों से। :) प्रियंकरजी लिखना शुरू करेंगे। इंशाअल्लाह जल्दी ही।
  21. masijeevi
    हमारी ओर से मुबारकवाद स्‍वीकार करें।
    जमे रहें, मजे में रहें

    @मसिजीवी, मुबारकबाद स्वीकारी। आप धन्यवाद संभालो। :)
  22. श्रीश शर्मा
    यह कुछ ऐसी ही बात है जैसे कोई मारवाड़ी अपनी दुकान में मौजूद शानदार कलम का इस्तेमाल अपनी पीठ खुजाने के लिये करे। इससे पहले कि उनको उनके अपराध की कोई सजा मिले, उनको संभल जाना चाहिये।
    हा हा क्या मिसाल दी है। वैसे प्रियंकर जी की गद्य शैली की झलक उनके ब्लॉगर मीट वाले लेख में मिल गई थी। ब्लॉगर मीट के ऐसे मजेदार संस्मरण कम ही पढ़ने को मिलते हैं।
    जिनके नाम जिक्र करने छूट गये वे केवल समयाभाव के कारण।
    ठीक है जी मान ली आपकी बात, अगली बार थोड़ा और फुरसत से लिखना। :)

    @श्रीश शर्मा, बात मानने के लिये आभार!
  23. नीरज दीवान
    बधाई तीन साल पूरे होने पर।
    चौथा साल शुरू हो गया और संकेत मिल रहे हैं कि साबूनुमा लेख चौथे बरस में नहीं दिखेंगे। उक्त गुटखालेख से ही काम चलेगा।

    @नीरजदीवान, धन्यवाद! हां अब चाचा चौधरी अपना रंग दिखायेंगे। :)
  24. समीर लाल
    बहुत बहुत बधाई चिट्ठे की वर्षगांठ पर.
    अरे, आप तीन साल के हो गये इतनी जल्दी फुरसतिया जी.
    आजकल जैसे जैसे आप बड़े हो गये हैं वैसे वैसे थोड़ा फार्मल टाईप भी होते जा रहे हैं कि बुरा न मानना आदि. अरे महाराज, पूरी ताकत से मौज लें. :)
    कविता-कानन में ही टहलते रहते अगर हम उनको गद्य लिखने के लिये अनुरोध न करते।-बिल्कुल सत्य वचन और मार्गदर्शन करते हुये यहाँ तक लाने का हृदय से आभारी हूँ. :)
    ३ साला विवरण के हिसाब से, और वो फुरसतिया जी की कलम-यह तो गद्य हाईकु कहलाया. जरा लम्बी कहानी लाई जाये. जिनको यहाँ कवर कर लिया है, उन्हें भी फिर से कवर करना मत भूलियेगा.
    अनन्त शुभकामनायें.

    @समीरजी, बहुत-बहुत बधाई के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद! :)
    ये फ़ार्मल होना फ़ार्मलिटी नहीं है, डर है। आजकल लोग न जाने जाने कौन-कौन तरीके से नाराजगी जाहिर करते हैं समझ ही नहीं आता। :) वैसे मौज लेने में ताकत की जरूरत नहीं पड़्ती हमको।
    स्मूथ रहता मन ! आपकी बात मानी हमने, कबर किया जायेगा सबको कबर किया जायेगा :)
  25. सागर चन्द नाहर
    तीन साल पूरे होने पर बधाई :)
    कैसा संयोग है कि हिन्दी चिठ्ठाजगत में तीन साऽऽऽल पूरे हो जाने में ब्लॉगर बुजुर्गों में गिना जाने लगता है। यानि आप भी अब….. ;)

    @सागर चन्द नाहर, धन्यवाद! हम बुजुर्गियत से इन्कार करते हुये मौज लेने लायक बने रहना चाहते हैं।:)
  26. हिंदी ब्लॉगर
    आपके लेखने को पढ़ते हुए मेरे भी तीन साल पूरे हुए. आप भले ही कहें कि आपको कविताओं की अच्छी समझ नहीं है, लेकिन मैंने जितनी बड़ी संख्या में अच्छी कविताएँ आपके लेखों के पुछल्लों के रूप में पढ़ी हैं, उतनी किसी किताब या पत्रिका में मुश्किल से मिल पातीं. सदैव लिखते रहिए. शुभकामनाएँ!
    @हिंदीब्लागरजी, शुभकामनाऒं के लिये धन्यवाद। मैंने जो कवितायें पोस्ट की वे जाने-माने कवियों की रही हैं। मेरा अफ़सोस इस बात के लिये है कि तमाम ब्लागर साथी कवितायें लिखते हैं मैं उनको समुचित समझ से ग्रहण नहीं कर पाता शायद!
  27. bhuvnesh
    बधाई :)
    आशा है भविष्य में भी आप फ़ुरसत से ऐसे ही लेख लिखते रहेंगे और हम फ़ुरसत से बांचते रहेंगे… :)

    @भुवनेश, बधाई के लिये धन्यवाद! अब ये झेलना-झिलाना तो चलता ही रहना चाहिये। है कि नहीं। :)
  28. Shiv Kumar Mishra
    तीन साल पूरा होने पर बधाई…
    हम तो आपकी पोस्ट आपकी पंच लाईन ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै?’ को याद रखते हुए पढते हैं….इन तीन सालों पर एक और पोस्ट का इन्तजार करेंगे, रविवार को..
    शिवकुमारजी, धन्यवाद! ये पंचलाइन हमारे स्वामीजी ने हमारे ही एक लेख से उड़ा के सजा दी थी। कभी इसबारे में भी लिखेंगे। इन तीन सालों पर पोस्ट लिखते रहेंगे। :)
  29. प्रियंकर
    बधाई! बहुत-बहुत बधाई!
    तो आपने भी अपना ‘क्या भूलू क्या याद करूं’ लिख ही डाला . मैं आपकी भाषा का तो कायल हूं ही, ‘विरुद्धों में सामंजस्य’ की आपकी सामर्थ्य पर तो बलिहारी हूं . अब बरास्ते ‘सीनियरिटी’ और ‘सीआर’ आप इस हिंदी चिट्ठा-जगत के आभासी परिवार के पुरखा होने की कगार पर हैं तो शुभकामनाओं की बड़ी गठरी खोलता हूं और अविलम्ब प्रेषित करता हूं .
    ईश्वर करे आप गलती करके भी बच निकलते रहें . आपका आभासी अश्वमेधी घोड़ा कभी लुट-पिटकर न लौटे . आपकी चिट्ठा-सेना के पैदल,घुड़सवार,रथारोही,महारथी सभी दिन-दूनी रात-चौगुनी तरक्की करें और आपके माफ़िक रहें . ज्ञानजी आप पर ऐसे ही कृपालु बने रहें और प्रमोद जितने हैं उससे थोड़ा और कृपालु हों . अफ़लातून आपको माफ़ कर दें और घर-मालकिन आपको मुस्कुरा-मुस्कुरा कर जब-तब प्रेम से डांटती रहें . ज़िंदगी चकाचक कटै . बिना काऊ टेंशन के .
    कुल मिलाकर आपने इन तीन वर्षों के सभी सहयात्रियों को वाज़िब ढंग से समेट लिया . मुझसे सम्बंधित आपकी चुटकी जोरदार रही . मुझे उसकी अमोघता का असर देखना है . एक बार पुनः बधाई!
    आमीन!
    प्रियंकरजी, धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद! शुभकामनाऒं के लिये आभार! आपकी सारी शुभकामनायें पूरी हों। :) डंटाई तो चलती ही रहती है, कभी प्रेम से कभी झुंझलाते हुये। दिल लगा रहता है। आप अपना भी देख लें आपके ग्द्य के लोग कितने मुरीद हैं। अब विलंब केहि कारण कीजै। :)
  30. Bhor
    बाप रे बाप इतना शोर, भाई राह से गुज़र रहे थे यहाँ इतना हो हल्ला देखा तो रुक गया, यहा तो तो तारीफों के पुल फूलो की मालाएं गुलदस्ते की बौछार और महकता हुआ माहोल सभी से आप का अभिवादन हो रहा है, इन सब के बीच मेरा भी अदना सलाम स्वीकार कीजीए सच्ची आपको दिली मुबारकबाद।

    @श्रीधरजी, आपकी मुबारकबाद का दिल से शुक्रिया। आप लिखना भी शुरू करिये न! :)
  31. राजीव
    फुरसतिया जी, तीन वर्ष सफलता पूर्वक पूरे करने पर बधाई, आशा है कि ऐसे कई और वर्ष भी निकलें और दौड़ती रहे आपकी लेखनी (कुंजी-पटल)!
  32. फुरसतिया » आपने शुभकामनायें दीं तो हम भी कहते हैं शुक्रिया…
    [...] हमारे लिखने के तीन साल पूरे हुये तो हमने एक ईमानदार लेखक की तरह सूचना दी- और ये …और ये फ़ुरसतिया के तीन साल [...]
  33. Amit
    @अमित, धन्यवाद! मिलेंगे, लड्डू भी मिलेंगे।
    ठीक है, माने लेते हैं आपकी बात, हम प्रतीक्षा कर रहा हूँ। :)
  34. प्रमेन्‍द्र
    देर से बधाई के क्षमा चाहूँगा।
    हार्दिक बधाई स्‍वीकार कीजिऐ
  35. लावण्या
    अनुप भाई,
    ३ साल पूरे करना बहुत लँबा अँतराल होता है !
    और हिन्दी ब्लोग जगत के सभी साथी, आपकी विलक्षण शैली के,ज़बर्दस्त, प्रशँसक हैँ.
    बधाई आपको और आगामी वर्षोँ मेँ , अबाध गति से लेखन कार्य चलता रहे उसकी शुभ कामना –
    स स्नेह,
    – लावण्या ( कोलम्बस निकले थे भारत की खोज मेँ पर पहुँच गये, अमरीका ! ;-)
  36. सृजन शिल्पी
    बधाई!
    आपकी फुरसतिया सक्रियता इसी तरह हिन्दी चिट्ठा जगत को धन्य और प्रेरित करती रहे!
  37. अरुण अरोरा
    बधाई टिकाये जी हम अभी देखे है आप तीन साल पुराने बुड्ढे है जी ,..:) वैसे पढने और देखने मे तो अभी जवान लगते है…:)
  38. अजित वडनेरकर
    बधाई जी , बधाई
    तीन साल बिता दिए आपने इस तिलिस्म में….पूरी ऐयारी आ गई है, सीख ली है आपने।
    हमारी पहली पोस्ट पर आपकी ही टिप्पणी आई थी आज से साढ़े पांच माह पहले और आपने जो उक्ति हमने हैडर में लगाई है उसके हिज्जे दूरुस्त कराने का संकेत किया था। तब से आज तक आपका साथ खुशनुमा है। ईश्वर करे चलता रहे ये सफर । एकबार फिर बधाइयां।
  39. ...और ये फ़ुरसतिया के चार साल
    [...] वर्षगांठ के अवसर पर जो लिखा वो लगता है अभी कल ही [...]
  40. …और ये फ़ुरसतिया के पांच साल
    [...] धकिया के। पूरी शराफ़त से निकले एक , दो ,तीन , और चार को रास्ता [...]
  41. : …और ये फ़ुरसतिया के छह साल
    [...] छह साल निकल लिये! पूरी शराफ़त से !एक , दो ,तीन , और चार और पांच को रास्ता [...]
  42. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] …और ये फ़ुरसतिया के तीन साल [...]
  43. : …और ये फ़ुरसतिया के सात साल
    [...] कोई गड़बड़ नहीं भाई इसके पहले एक , दो ,तीन , और चार , पांच और छह भी निकले इज्जत के [...]
  44. …और ये फ़ुरसतिया के आठ साल
    [...] एक , दो ,तीन , चार , पांच , छह और सात साल के पूरे होने [...]

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