Saturday, September 08, 2007

आओ ठग्गू के लड्डू खिलायें…

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आओ ठग्गू के लड्डू खिलायें…


ठग्गू के लड्डू
हम अभी कानपुर में ही हैं। तमाम ब्लागर दोस्त पूछ चुके हैं -कैसा रहा पूना का दौरा! कैसी रही दिल्ली यात्रा। :)
उधर जार्ज बुश भी भुलक्कड़ होने लगे हैं। आस्ट्रेलिया और आस्ट्रिया में लड़खड़ा गये। ब्लागरों से बराबरी करने का प्रयास कर रहे हैं।
हमारी दिल्ली यात्रा से पंगेबाज अरुण अरोरा कुछ ज्यादा ही उत्साहित हैं। पहले तो तरह-तरह की शक्लें बनाते रहे। फिर आज परकाया प्रवेश करके किसी माडल के माध्यम से खुशी जाहिर करने लगे। बोले हैं कल और खुशी जाहिर करेंगे। हम तो रास्ते में होंगे आप देखियेगा कैसे जंच रहे हैं।
इस चक्कर में वे देबाशीष का विरोध करना भी भूल गये। :)
कल जीतेंद्र का जनमदिन भी है। ऐसा शायद पहली बार हो रहा है कि वे इस शुभ अवसर पर हमारी खिंचाई से वंचित हैं। इसका हमें अफ़सोस है। लेकिन क्या करें
समय बलवान होता है। नहीं लिफ़्ट दी उसने। मेरा मन तो कर रहा था कि इस बार जीतेंन्द्र से इंटरव्यू करूंगा। उसमें कुछ सवाल ऐसे होंगे-
१. कैसा लग जब पहली बार तानाशाह, मनमानी करने वाला और इसी तरह की तमाम बातें लोगों ने तुम्हारे बारे में करीं?
२. पहले हर एक के साथ ई-मेल की दूरी पर रहते थे। अब दूरियां बढ़ाने की कोशिश क्यों हो रही हैं?
. लोग सही में तुम्हारे नाम से अपनी टिप्पणी कर जाते थे कि ये भी पब्लिसिटी स्टंट था?
४. ऐसी क्या बात है कि तुम अपनी तमाम महिला दोस्तों से बात करने के लिये हमारे नाम इस्तेमाल करते हो? क्या तुम्हारा नाम देखते ही वे भी नारद विरोधियों
की तरह भड़क जाती हैं।
५. सितम्बर में जन्म लेने वाले लोग आम तौर पर कलाकार होते हैं। तुम अपवाद कैसे हो?
६. ऐसे कैसे हुआ कि ऐन तुम्हारे जन्मदिन के दिन सुकुल तुम्हारी खिंचाई किये बिना दिल्ली फूट लिये?
सवाल तो और भी हैं लेकिन अभी उनको सबको बताने से क्या फ़ायदा? कभी सामने आयेंगे इंटरव्यू के रूप में। फिलहाल तो जीतेंन्द्र को जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनायें। कल दिल्ली में जीतेंद्र का नाम लेकर दिल्ली में ठग्गू के लड्डू खाये जायेंगे। आये जिसको खाना हो। देरी करने पर बचने की कोई गारन्टी नहीं।
सितम्बर में और भी तमाम महान लोग पैदा हुये हैं जैसे हम हैं, देबाशीष हैं (१२ सितम्बर) और भी तमाम लोग अपने बारे में बतायें भाई! लेकिन ९ सितम्बर को जीतेन्द्र के जन्मदिन से महानता का खाता गड़बड़ाया तो उसकी भरपाई करने के लिये ही शायद प्रत्यक्षाजी के यहां उनकी बिटिया पाखी का जन्म हुआ। यह संयोग है कि कल ही पाखी का भी जन्मदिन है। बिटिया पाखी को भी हमारी तरफ़ से जन्मदिन की मंगलकामनायें और शुभाशीष। :)
सितम्बर में सही में बहुत महान लोग पैदा हो गये। इस एक महीने में पैदा होने वाले लोगों की महानता से सारे साल भर का औसत ठीक हो गया। :)
कुछ दिन पहले हमने अमेरिकी जीवन के बारे में एक लेख लिखते हुये कामना की थी कि अपने प्रवासी साथी वहां के जीवन के बारे में लिखें। इसके पहले अतुल
ने बहुत सारे लेख अमेरिकी जीवन के बारे में लिखे हैं। अब इस कमी को पूरा करने के रजनी भार्गव जी आगे आयी हैं। अनूप भार्गव जी उनका सहयोग करेंगे। वैसे सहयोग क्या करेंगे लोग तो (खासकर उनकी मुंहबोली बहन मानसी) यह कहते रहे कि अनूपजी तो रजनी भाभी की कवितायें अपने नाम से छपवाते हैं। सच जो भी हो लेकिन हमें उनका जोड़ेदार ब्लाग अमेरिकन डायरी बहुत उम्दा लगा। डाकिया चार्ली का स्केच देखिये-
जब हम इस घर में आए तब हमारा परिचय हुआ हमारे डाकिए से जिसका नाम चार्ली है, पैंसठ वर्ष के करीब आयु होगी,बाल और दाढ़ी दोनो सफ़ेद हो चुकी हैं। जब से हम आए हैं तब से इसे ही देख रहे हैं। हमारे परिवार में सब को जानता हैं ।पोस्ट आफ़िस की ओर से जीप मिली हुई है। डाक डालने के लिये दरवाज़ा खटखटाने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि हमारा मेल बाक्स सड़क के किनारे हमारे घर के आगे लगा हुआ है। यदि मेल हमारे सुंदर,सुदृढ़ मेल बाक्स में नही आती है या फिर बर्फ़ इतनी गिरी हो कि उसका हाथ वहाँ तक नहीं पहुँचे तो उसे दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है” दरवाज़ा खुलते ही पूछ लेते हैं कि सब कैसे हैं, हमारे बेटे के साथ विडीयो गेम्स की भी अदला-बदली करते थे । इनका बेटा भी हमारे बेटे के बराबर ही है। क्रिसमस के समय इन्हे सब पड़ोसियों से गिफ़्ट मिलती है। कोई किसी दिन और डाकिया आए तो चार्ली चर्चा का विषय बन जाते हैं कि कहीं वो रिटायर तो नहीं हो गए या फिर तबीयत ठीक नहीं लगती है। चार्ली और मेल अब एक दुसरे के पूरक हैं।
आशा है अमेरिकन डायरी नियमित रहेगी।
अमेरिका से ही एक और सुखद समाचार मिला। अपनी तत्काल एक्स्प्रेस जिसका जिक्र मैंने कुछ दिन पहले किया था अव फिर चलने लगी है। विजय ठाकुर अब एक बार फिर से मैदान में आ गये हैं लेखन के। आशा है यह एक्सप्रेस अपने डिब्बों को साथ में लेकर हिंदी ब्लाग पटरी पर नयी मंजिले हासिल करेगी।
आज पाण्डेयजी की गड़बड़ रामायण पढ़कर यही अफ़सोस हुआ कि हम उसी तर्ज पर ब्लागर रामायण लिख न् सके। लौट के सही। फिलहाल शुरुआत करके जा रहे हैं-
तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई। अब तौ करौ टिप्पणी भाई।।

18 responses to “आओ ठग्गू के लड्डू खिलायें…”

  1. समीर लाल
    जीतू भाई को जन्म दिन की शुभकामनायें.
    पाखी को भी जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई.
    ब्लॉगर रमायाण के पहले छंद के आदेशानुसार टिप्पणी किये दे रहे हैं, ठग्गू के लड्डू ड्यू रहे.
    यात्रा के लिये मंगलकामना पुनः. :)
  2. Amit
    सितम्बर में और भी तमाम महान लोग पैदा हुये हैं जैसे हम हैं, देबाशीष हैं (१२ सितम्बर) और भी तमाम लोग अपने बारे में बतायें भाई!
    हम भी हूँ सर जी, २३ सितंबर!! :)
  3. लावण्या
    अनूप जी,
    अरे …आप की यात्रा गाडी रुकी हुई क्यूँ है ?
    आपके सारे पुराने साइकिल के यात्रा पृष्ठ पढकर, आपके लिखे के हम प्रसँशक हो गये हैँ ..
    खास कर के, को लेख के साथ , जो कविताओँ आप साथ मेँ देते हैँ, सभी उम्दा लगीँ …
    और वैसा ही “अमेरीकन डायरी ” ..रजनी भाभी का नया ब्लोग भी बहुत पसँद आया …
    देखते हैँ अनुप भाई क्या लिखते हैँ ..इँतज़ार है …
    और, …जीतू भाई को साल गिरह पे …..
    ” आप जीयेँ हज़ारोँ साल, साल के दिन होँ पचासोँ हज़ार ” ~
    बिटिया पाखी को ” आशिश व ढेर सारा प्यार ….हेप्पी बर्थ्डे ” के साथ ~~ (केक उधार रहा प्रत्यक्षा जी :)
    ठग्गू के लड्डू अभिषेक और ऐश्वर्या ने तो खा लिये !! हमेँ न जाने कब मिलेँगे ! तो वे भी रहे उधार ~
    सितम्बर के माह के सभी महापुरुषोँ व महादेवीयोँ व सुकन्याओँ व सुकुमारोँ को …वर्षगाँठ की बधाईयाँ .
    – लावण्या
  4. Laxmi N. Gupta
    ठग्गू के लडडू सुन कर मुँह में पानी आगया। हमेशा की तरह बढ़िया लिखा है। जितेन्द्र को जन्मदिन की बधाई।
  5. RC Mishra
    आपकी यात्रा (यें) सुखद और मंगलमय हों।
  6. अजित वडनेरकर
    साहेब, ठग्गू के लड्डू का संदर्भ तो चार दिन पहले आपसे हुई बातचीत में निकला था। आज जब ब्लागवाणी पर ठग्गू नज़र आए तो हम भी चले आए। अब लड्डू तो मांगलिक चिह्न है सो आपकी पोस्ट पर दो दो मंगल सूचनाएं मिलीं। जीतूजी के जन्मदिवस की और प्रत्यक्षा जी की बिटिया (पाखी बहुत संदर नाम है )के जन्मदिन की। दोनों को बहुत बहुत बधाईयां। अब आप कानपुर में क्या कर रहे हैं, जाइये घूम आइये :)
  7. अजित वडनेरकर
    पुनश्चः – इस डिब्बे पर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था इसे क्या चिढ़ाने के लिए ऊपर चेंप रखा है ? आपकी जानकारी के लिए विकास हमारा हमउम्र ही है, हम उसे अपने से छोटा समझते थे मगर दीदी ने कल ग़लतफहमी मिटा दी। जीजाश्री को आप कुछ-कुछ याद आते से लगे। आपसे अब दूसरी किस्म की रिश्तेदारी हो गई है, कुछ तो लिहाज़ करें , यूं न चिढ़ाइये हुजूर ….
  8. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    पन्गेबाज ने कहा है – पानी-पन्खा, लालटेन-टॉर्च लेते जाना. ठीक ही तो कह रहे हैं. माडल वाला सीन तो भीड़ जमाने को था.
    और ये तत्काल एक्सप्रेस ने तो सीटी ही बजाई है. चले तो पता चले कि पुराने टाइम-टेबल पर चलेगी या नये पाथ पर. :)
  9. जीतू
    अरे सुकुल, तुम तो ऐसे ही टरक लिए। सवालों के जवाब भी लिए जाओ भाई, ताकि सनद रहे और वक्त जरुरत काम आएं। बड़ी मुश्किल से तो कोई हमारा इन्टरव्यू लेने को राजी हुआ, वो भी बिना सवालों के जवाब लिए भाग रहा है। बहुत नाइन्साफ़ी है भाई।
    १. कैसा लग जब पहली बार तानाशाह, मनमानी करने वाला और इसी तरह की तमाम बातें लोगों ने तुम्हारे बारे में करीं? 
    सच पूछो तो बहुत अच्छा लगा, तानाशाह मतलब गद्दी पर बैठा कोई व्यक्ति, कम से कम किसी ने गद्दी पर बैठाने लायक तो समझा।
    २. पहले हर एक के साथ ई-मेल की दूरी पर रहते थे। अब दूरियां बढ़ाने की कोशिश क्यों हो रही हैं? 
    हमारी तरफ़ से या उनकी तरफ़ से? हम तो हमेशा से ही एक इमेल की दूरी पर रहते है, अलबत्ता ’कुछ’ लोगों को एलर्जी हो गयी है। लेकिन ये थोड़े दिन की है वो गाना नही सुने “आखिर तुम्हे आना है, जरा देर लगेगी…”
    ३. लोग सही में तुम्हारे नाम से अपनी टिप्पणी कर जाते थे कि ये भी पब्लिसिटी स्टंट था?
    वो कोई जुगाड़िया नाटकबाज था, थोड़े दिन का खेला किए था, लेकिन फिर भी लोग-बाग काफी लाभान्वित और प्रोत्साहित हुए थे। है ना?
    ४. ऐसी क्या बात है कि तुम अपनी तमाम महिला दोस्तों से बात करने के लिये हमारे नाम इस्तेमाल करते हो? क्या तुम्हारा नाम देखते ही वे भी नारद विरोधियों की तरह भड़क जाती हैं। 
    नही ऐसा नही है, तुम्हारा आईडी ही इत्ता “कूल” है कि का करें। और हाँ वो मिशीगन(अमरीका) वाली का तीसरा हसबैंड भी छोड़ कर चला गवा। वो भारत यात्रा पर आना चाहती है….अब का करोगे?
    ५. सितम्बर में जन्म लेने वाले लोग आम तौर पर कलाकार होते हैं। तुम अपवाद कैसे हो? 
    गलतियां हर जगह होती है, ऊपर वाले के कम्प्यूटर मे भी वायरस आ गया होगा, तभी तो हमे ला पटका इधर। वैसे कलाकार हम भी कम नही है, लेकिन क्या है पारखी नज़रों की तलाश है बस।
    ६. ऐसे कैसे हुआ कि ऐन तुम्हारे जन्मदिन के दिन सुकुल तुम्हारी खिंचाई किये बिना दिल्ली फूट लिये? 
    ये सुकुल का बड़प्पन है या कहो तो गिव-एन्ड-टेक का आफर है, कि अब मेरे जन्मदिन पर तुम मेरी खिंचाई मत करना।
    खिचाई सही किए हो, नोट किया गया।
  10. मेरा पन्ना » फुरसतिया के सवाल और हमरे जवाब
    [...] फुरसतिया जी ने अपनी पोस्ट ठग्गू के लड्डू पर हमरी तरफ़ कुछ सवाल दागे है, अब हम जवाब देने की कोशिश तो किए, लेकिन शायद टिप्पणी माडरेशन मे चली गयी है, इसलिए हम यहाँ भी छाप देते है ताकि बाकी जनता का भी ज्ञानवर्धन हो सके। तो लो जी झेलो आप भी फुरसतिया के साथ साथ: [...]
  11. Sanjeet Tripathi
    मस्त!!
    आदेशानुसार टिप्पणी हाजिर हैं!!
  12. अभिनव
    बढ़िया ज्ञानवर्धक पोस्ट,
    आपको, जीतूजी, देबाशीष, अमित और सितंबर के महीने में धरा पर अवतरित हुए सभी दवलोक के भद्रजनों को जन्मदिवस की अनेक शुभकामनाएँ।
    हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की।
  13. अनूप भार्गव
    सितम्बर के महिने में पैदा होने वाली विभूतियों की महानता का औसत गिरानें में इस नाचीज़ को भी गिन लें ।
  14. फुरसतिया » ईमानदारी की कीमत
    [...] हम जीतेंदर और पाखी को जनमदिन मुबारक करके चल दिये स्टेशन। पत्नी से हमने कहा कि अपना नया मोबाइल दे दें ताकि उसके कैमरे से फोटो-सोटो लेते रहेंगे। लेकिन जैसे विकसित देश अविकसित देशों को , दुरुपयोग की आशंकायें जताते हुये, नयी तकनीक देने से मना कर देते हैं, हमें कैमरा देने से मना कर दिया गया। [...]
  15. श्रीश शर्मा
    सितम्बर में और भी तमाम महान लोग पैदा हुये हैं जैसे हम हैं, देबाशीष हैं (१२ सितम्बर) और भी तमाम लोग अपने बारे में बतायें भाई!
    हम भी हैं लाइन में जी !(4 सितंबर) :)
  16. जाकिर अली "रजनीश"
    आपके सवाल और जीतू जी के जवाब दोनों ही बढिया हैं। लगे रहो मुन्ना भाई।
  17. Shivkant Misra
    Hmm to Bhai Thaggoo ke Laddoo Sabka Khawaibe aur yahe khaibe ki jo khaye wo Pachtaye jo na khaye wohu pachtaye :)
  18. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] आओ ठग्गू के लड्डू खिलायें… [...]

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