Sunday, February 13, 2011

देख लूं तो चलूं: उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर, बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागर

http://web.archive.org/web/20140419220103/http://hindini.com/fursatiya/archives/1848

देख लूं तो चलूं: उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर, बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागर

देख लूँ तो चलूँ
पिछले दिनों समीरलाल की किताब ’देख लूँ तो चलूँ’ प्रकाशित हुई! ज्ञानरंजन जी ने उसका विमोचन किया। कई लोगों ने समीक्षायें लिखीं और इस उपन्यासिका के बारे में अपनी राय लिखी। उपन्यासिका के बारे में ज्ञानरंजन जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा था

समीर लाल का उपन्यास पठनीय है, उसमें गंभीर बिंदु हैं और वास्तविक बिंदु हैं. मैं उन्हें अच्छा शैलीकार मानता हूँ. यह शैली भविष्य में बड़ी रचना को जन्म देगी. उन्हें मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामना.
ज्ञानरंजन जी की बात पढ़कर मुझे इसको पढ़ने की उत्सुकता हुई। जब समीरलाल ने इसे हमें सादर सप्रेम भेंट किया तो हम पिछली कोलकता यात्रा के दौरान इसे अपने साथ ले गये। साथ में अभय तिवारी की किताब कलामें रूमी भी ले गये थे। किताबों का साइज और वजन दोनों ब्लागरों के साइज और वजन के व्युत्कमानुपाती था। स्लिम ट्रिम अभय की किताब स्वस्थ शरीर वाली थी और स्वस्थ शरीर वाले समीरलाल की तन्वंगी उपन्यासिका देखकर उनकी कविता जीरो साइज ठानी बाबा याद आ गयी।
समीरलाल की ब्लॉगिंग की शुरुआत कविताओं से हुई। इसके बाद गद्य लेखन की तरफ़ आये। हालांकि समीरलाल को कवितायें लिखना शायद ज्यादा पसंद है और वे जब तब कविता लिख मारते हैं। लेकिन मुझे कविताओं के मुकाबले उनके लेख ज्यादा अच्छे लगते हैं। उनके तमाम लेखों का सहज हास्य बोध बहुत अच्छा है। कुछ हल्की-फ़ुल्की कविताओं और मुंडलिया के अलावा मुझे उनकी कवितायें ज्यादातर कम मजेदार लगी। ऐसा शायद इसलिये भी हो कि उनकी ज्यादातर कविताओं में अपार दुख, अथाह पीड़ा , दर्शन और आध्यात्म बहुत ज्यादा लगता है मुझे। अपार दुख, अकेलापन, पीड़ा, प्रवासी विरह, बुजुर्गों के प्रति संवेदना समीरलाल की कविताओं की कविताओं की कोर कम्पीटेंसी है। उनकी कुछ कविताओं आध्यात्म और दर्शन की ऊंचाई देखकर तो जी दहल जाता है। संभव है उनकी कवितायें कम पसंद करने के पीछे शायद मेरी अपनी कविता की कच्ची समझ भी कारण रही हो। शायद यही कारण रहा हो कि उनकी जिस कविता पंक्ति मेरी मां लुटेरी थी को लोगों ने सबसे बेहतर और लाजबाब माना मेरी समझ में वह उस कविता की सबसे कमजोर पंक्ति थी। इस बारे में मैंने उस समय समीरलाल विस्तार से लिखा भी था।
समीरलाल अक्सर गम्भीर लेखन करते हैं लेकिन मेरी समझ में उनके हास्य व्यंग्य ज्यादा सहज और ज्यादा पठनीय हैं। उनकी इसी क्षमता के चलते मैंने उन पर लिखे एक लेख हास्य व्यंग्य के किंग: समीर लाल में लिखा था:

हलके-फुल्के अंदाज़ में गहरी बात कह जाने वाले समीरजी अपनी बात कहने के नये-नये दिलकश अंदाज़ खोजते रहते हैं। चाहे वह गीता का सार हो या कबीर के दोहे, आधुनिक परिस्थितियों से जोड़कर वे बेहतरीन लेख लिखते रहते हैं।
यह किताब , जिसे समीरलाल और तमाम लोगों ने उपन्यासिका बताया है , समीरलाल की 2006 से लेकर 2010 तक की उनकी कुछ अच्छी पोस्टों का संकलन है। इन ब्लाग पोस्टों को उपन्यासिका का आकार देने में समीरलाल ने एक संचालक की भूमिका निभाई है। जैसे एक संचालक कवियों को बुला-बुलाकर कवितायें पढ़वाता जाता है और एक कवि के आने -जाने के बीच में फ़िलर के रूप में अपना भी कुछ सुनाता चलता है लेखक के तौर पर अपनी पोस्टों को पेश करने में वही भूमिका समीरलाल ने निभाई है।
ब्लागपोस्टों विषय आसपास की छोटी मोटी रोजमर्रा की बातें हैं। उनसे शुरू करके फ़िर हल्के-फ़ुल्के अंदाज में रुचिकर तरीके से पाठक को पूरी पोस्ट पढ़वा ले जाना समीरलाल के लेखन की खास बात है। ये अत्याचारी लड़कियां ले ये अंश देखिये:

  • ईश्वर की विशिष्ट कृपा उस कन्या पर. सुन्दर काया..गोरा रंग और मानक अनुपात शरीर का. मानो ईश्वर के शो रुम का डिसप्ले आईटम हो. हर तरह से फिट और परफेक्ट
  • एक बिस्किट, फ्रूट्स में चार अंगूर, फ्रूट ज्यूस…एक ३० मिलि की बोतल. बिस्किट उसने बारह बार में चबा चबा कर खत्म किया..खाया तो क्या, कुतरा. हमारे तो एक कौर के बराबर था. चार अंगूर खाने में कांख गई. चार अंगूर जो हम एक मुट्ठी में फांक जायें. ज्यूस इतना सा कि मानो वाईन टेस्टिंग कर रहे हों.
  • उस पर से सब खत्म करके हल्की सी डकार भी ली…’एस्क्यूज मी’ न बोलती तो मालूम भी न पड़ता कि डकार ली, मौन की भी आवाज होती है सिद्ध करते हुए. अरे खाया ही क्या है जो डकार रही हो.
  • लगभग यही अंदाज उनकी हास्य बोध वाली कई पोस्टों का है। खिलंदड़ा और चुहलबाज। नटखट। टिपिकल पिंटूनुमा। इसके अलावा उनके लेखों में मध्यवर्गीय समाज के दोहरेपन, प्रवासी बच्चों द्वारा के देश में रह गये मां-पिता के बच्चों से विछोह और उनकी उपेक्षा का दर्द, व्यवस्था और नेता के प्रति आक्रोश और समाज के दकियानूसी रहन-सहन पर हैं। सारी की सारी पोस्टें जब भी पोस्ट हुई थीं उनको पाठकों ने बहुत पसंद किया और बहुत आत्मीय टिप्पणियां की थीं।
    हालांकि यह लेखक का अपना अधिकार है कि वह अपनी रचनाओं को अपने पाठकों के सामने किस तरह पेश करता है लेकिन चूंकि मैंने सारी पोस्टें भी पढ़ी हैं और यह उपन्यासिका भी तो मुझे यह लगता है कि इन पोस्टों को उपन्यासिका के रूप में पेश करने से पोस्टों की सुन्दरता कम हुई है। लगभग सभी पोस्टें अपने में पूरी थीं और एक दूसरे से मुक्त लेकिन शायद कथाकार (लघु कथा संग्रह- मोहे बेटवा न कीजो), कवि (काव्य संग्रह- बिखरे मोती)के बाद ब्लागर समीरलाल अपने नाम के साथ उपन्यासकार भी जोड़ना चाहते होंगे इसलिये इन पोस्टों को मिलाकर एक उपन्यासिका लिख डाली।
    यह भी शायद संयोग ही होगा कि पुस्तक में लेखक या किसी परिचय लेखक ने यह संकेत नहीं किया कि यह उपन्यासिका समीरलाल की चार साल के समयान्तराल में लिखी गयी उनकी ब्लागपोस्टों में कुछ का संकलन है।
    उपन्यासिका में शामिल लेख अलग-अलग समय में लिखे गये। लेख एक सिलसिले में नहीं लिखे गये। न जब शुरुआत हुई होगी तो उपन्यासिका जैसा कुछ लिखने की बात मन में रही होगी ( सिवाय इसके कि इनको भी कभी छपवाया जायेगा)। 2006 का लेख 2008 के लेख के बाद है। मई का लेख जुलाई के लेख के पीछे खड़ा है। इससे साफ़ पता चलता है कि लेखों की असेम्बली का काम सितम्बर 2010 के आसपास कभी शुरु हुआ ( जब समीरलाल ने इस उपन्यासिका का ट्रेलर दिखाया)
    उपन्यासिका में हालांकि ज्यादातर पोस्टें पूरी की पूरी ली गयीं हैं। शुरु या अंत की एकाध लाइनें जोड़ी – घटाई गयीं हैं। एकाध जगह ऐसा भी हुआ है कि उपन्यासिका से मेल न होने के चलते पोस्ट का वह अंश छांट दिया गया जो शायद पोस्ट का सबसे संवेदनशील अंश था और जिस पर पाठकों की बेहद आत्मीय प्रतिक्रियायें आयीं थीं। ऐसी ही एक पोस्ट थी- आज तुमने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!! इस पोस्ट के जिस अंश में पापा का बेहद आत्मीय जिक्र है। पाठकों की बेहद संवेदनशील प्रतिक्रियाये हैं। उन प्रतिक्रियाओं को पढ़कर लेखक की आंख में आंसू तक आ गये। लेकिन इस पर उपन्यासिका के खांचे में फ़िट न हो पाने के चलते इसको उसमें शामिल नही किया जा सका।
    इसको देखकर परसाई जी का लिखा वाक्य याद आ गया- वृक्षारोपण कार्यक्रम के लिये हरे पेड़ काट दिये गये।
    मेरी समझ में पेज 19-22 पर लंबी कविता शामिल करने के मोह से बचकर इस तरह के अंश शामिल करने में थोड़ी मेहनत करनी चाहिये थी समीरलाल को।
    ब्लॉगपोस्टों को उपन्यासिका के रूप में प्रकाशित करने के मोह में बेहतरीन पोस्टों का प्रभाव कम हुआ है। पोस्टें अपने आप में मुकम्मल थीं। उनको उसी रूप में छपवाते शायद तो बेहतर रहता। ब्लागिंग विधा में सिद्धार्थ त्रिपाठी की किताब के बाद एक और बेहतर किताब ब्लागपोस्टों की आती। शायद उनकी ब्लॉगपोस्टों पर छपी किताब पढ़कर लोग ब्लागजगत के बारे में अच्छी राय बनाते क्योंकि लगभग सभी लेख अच्छे लेख हैं। लेकिन अगर ऐसा होता तो फ़िर यह एक नया प्रयोग कैसे कहलाता? फ़िर लेखक मात्र ब्लागर बना रहता उपन्यासकार नहीं कहलाता।
    ज्ञानरंजन जी ने केवल किताब पढ़ी है। अगर उन्होंने पोस्टें भी पढ़ी होती तो शायद वे कभी यह सलाह न देते कि इनको इधर-उधर कट-पेस्ट करके उपन्यासिका छपवाओ। उनकी खुद की किताब कबाड़खाना उनके बेहतरीन लेख, वक्तव्य, संस्मरण और पत्र का शानदार संकलन है। ऐसी ही एक किताब श्रीलाल शुक्ल जी की थी -यह घर मेरा नहीं है। उसमें कहानी, लेख, संस्मरण, रिपोर्ताज सब थे। उस रूप में छपती किताब तो शायद कुछ और अच्छे लेख और कवितायें भी शामिल भी कर सकते थे समीरलाल।
    किताब में आदि से अंत तक ब्लागरों का योगदान है। किताब लिखी ब्लागर समीरलाल ने, आवरण डिजाइन किया ब्लागर विजेन्द्र एस विज ने, भूमिका लिखी ब्लागर राकेश खंडेलवाल और पंकज सुबीर ने, संपादन किया ब्लागर श्रीमती रचना बजाज और श्रीमती अर्चना चाव जी ने। छापने का काम करने वाले भी ब्लागर हैं। पाठक और समीक्षक भी ज्यादातर ब्लागर हैं। इस तरह से इस अद्भुत किताब के लिये कहा जा सकता है- उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर, बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागर। - सच्चे अर्थों में एक लोकतांत्रिक उपन्यासिका।
    किताब की छपाई सुन्दर, रुचिकर और त्रुटिविहीन है। कवर पेज खूबसूरत है। वजन में हल्की इस किताब के कुल 87 पेज एक बैठकी में पढ़े जा सकते हैं। हमको तो खैर मुफ़्त में सादर और सप्रेम भेंट मिली किताब लेकिन जिन लोगों को खरीद कर पढ़नी भी पड़े तो उनके लिये भी 100 रुपये की किताब के बहुत मंहगी नहीं कही जायेगी। इसके बाद भी जिन लोगों को किताब पढ़ने को न मिल पाये और वे किताब पढ़ने के लिये बहुत व्यग्र हों वे नीचे दी गयी लिंक पर जाकर किताब पढ़ने का नब्बे प्रतिशत मजा ले सकते हैं। किताब में लेख इसीक्रम में शामिल किये गये हैं।
    1. मैं नॉन प्रेक्टिकल कहलाया..निहायत फालतू!! :जुलाई 06, 2009
    2. ओ परदेशी, अब बस कर…:मई 07, 2009
    3. मैं अभागा!! जड़ से टूटा!!:मंगलवार, अप्रैल 21, 2009
    4. ये अत्याचारी लड़कियाँ..:अक्‍तूबर 30, 2008
    5. ये कैसा उत्सव रे भाई!!!:नवंबर 07, 2008
    6. कैनिडियन पंडित-विदेशी ब्राह्मण!!!:अगस्त 26, 2008
    7. हम तो चले परदेश रे भईया….:अगस्त 23, 2006
    8. और फिर रात गुजर गई:अगस्त 09, 2007
    9. कुछ तो बदलना चाहिये!!:अगस्त 05, 2008
    10. अरे ओ दकियानुसी!!!:मई 08, 2007
    11. जाओ तो जरा स्टाईल से…:सितंबर 06, 2007
    12. आज तुमने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!!:सितंबर 24, 2007
    13. एक अंश- ट्रेलर ही समझिये!!:सितंबर 23, 2010
    14. साईड मिरर-एक लघु कथा:अक्‍तूबर 15, 2009
    15. द आर्ट ऑफ डाईंग:जून 28, 2010
    16. निंदिया न आये-जिया घबराए:मार्च 25, 2010
    17. अपराध बोध से मुक्ति:अक्‍तूबर 04, 2007
    18. मैं ही थोड़ा सा सिमट जाऊँ:जुलाई 13, 2007
    19. कुत्ते- कैसे कैसे?:अगस्त 12, 2010
    20. पूर्ण विराम…:दिसंबर 06, 2010
    कुल मिलाकर समीरलाल की यह उपन्यासिका एक अच्छी किताब है। मेरी समझ में और बेहतर होता अगर यह उपन्यासिका ब्लागपोस्ट के संकलन के रूप में छपती। लेकिन यह लेखक का विशेषाधिकार है कि वह क्या लिखता है। समीरलाल को इस किताब के प्रकाशन के लिये बधाई। अब उनके द्वारा सप्रेम भेजी जाने वाली चौथी किताब का इंतजार है ।

    पुस्तक विवरण:

    नाम: देख लूं तो चलूं
    लेखक: समीरलाल
    लेखक संपर्क: smeerl.lal@gmail.com
    प्रकाशक:शिवना प्रकाशन
    पीसी लैब , सम्राट काम्प्लैक्स बेसमेंट
    बस स्टैंड सीहोर -466 001
    प्रकाशक संपर्क: shivna.prakashan@gmail.com
    प्रकाशक फोन नं: +91- 9977855399, +91-7562-405545

    मेरी पसंद

    देख लूँ तो चलूँ
    कैसी चढ़ी जवानी बाबा
    मस्ती भरी कहानी बाबा
    भूखी रहकर डायट करती
    फीगर की दीवानी बाबा
    कमर घटायेगी वो कब तक
    जीरो साईज़ ठानी बाबा
    सिगरेटी काया को लेकर
    सिगरेट खूब जलानी बाबा
    डिस्को में वो थिरके झूमे
    सबको नाच नचानी बाबा
    सड़कों पर चलती है ऐसे
    हिरणी हो मस्तानी बाबा
    लड़के सारे आहें भरते
    सबके दिल की रानी बाबा
    गाड़ी लेकर सरसर घूमें
    ईंधन है या पानी बाबा
    बॉयफ्रेंड सब भाग लिये हैं
    खर्चा बहुत करानी बाबा
    शादी करके हुई विदा वो
    छाई है मुर्दानी बाबा!!
    -समीर लाल ’समीर’

    फ़ुरसतिया

    अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

    96 responses to “देख लूं तो चलूं: उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर, बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागर”

    96 responses to “देख लूं तो चलूं: उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर, बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागर”

    1. Suresh Chiplunkar
      पहले आपने उत्सुकता बढ़ाई और फ़िर अन्त में सारी लिंक्स एक साथ देकर उस उत्साह को “डोर” भी पकड़ा दी… क्या कहने…
      अब फ़ुर्सत निकालकर सभी को पढ़ते हैं… (यानी ये कमाए नब्बे रुपये्… :) :) ९०% की बचत भी बुरी नहीं है…
      @ समीर जी :- आपने अनूप जी से समीक्षा करवाई, अब ९०% घाटा झेलिये… :) :)
      Suresh Chiplunkar की हालिया प्रविष्टी..इस्लामिक बैंक की स्थापना हेतु एड़ी-चोटी का “सेकुलर” ज़ोर- लेकिन… Islamic Banking in India- Anti-Secular- Dr SwamiMy ComLuv Profile
    2. ashish Rai
      मैंने देखा , पढ़ा लेकिन गया नहीं , समीर जी किताब की अंशो का लिंक्स देने के लिए हम आपके आभारी है . अब आपके पास सप्रेम भेट है तो हम कभी भी अर्मापुर की तरफ रुख कर सकते है तो लिंक खोलना पड़ेगा ही नहीं . वैसे आपकी समीक्षा शैली मुझे प्रभावशाली लगी .
    3. satish saxena
      भयंकर रिसर्च वर्क किया है आपने ….
      कोई टीचर पढ़ेगा तो आपका मूल्यांकन भी जरूर करेगा !
      फिलहाल शुभकामनायें समीरलाल जी को !
    4. Abhishek
      हम तो अपने सप्रेम भेंट का इंतज़ार कर रहे हैं, रास्ते में कहीं है. आये तो ऑफिस के रास्ते पढ़ी जायेगी.
      बाकी ‘साइज और वजन के व्युत्कमानुपाती’ पर एक ठो इस्माइली :)
      Abhishek की हालिया प्रविष्टी..प्रेम गली अतिMy ComLuv Profile
    5. Gyan Dutt Pandey
      हमारी एक पोस्ट की सम्भावना चौपट कर दी आपने। अब इस अच्छी समीक्षा के समक्ष एक साधारण समीक्षा लिख हम क्या करेंगे? वैसे भी इतने सारे लिंक पिरोने की मेहनत तो नहीं ही हो पाती!
      समीरलाल जी बहुत स्तरीय ब्लॉगर हैं और संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक। यह उपन्यासिका उनके व्यक्तित्व में एक चमकीला तमगा है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।
      बाकी, बतौर ब्लॉगर मैं पुस्तक लेखन को ब्लॉग की अपेक्षा महत्व की चीज नहीं मानता और ब्लॉग का पुस्तकीकरण (यदि होता है तो) ब्लॉग की आत्मा – अर्थात उसपर आई टिप्पणियों/चर्चा को समेटे जरूर।
      शायद पुस्तक के दूसरे संस्करण में श्री समीरलाल इस पर गौर करें!
      Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..करछना का थर्मल पावर हाउसMy ComLuv Profile
    6. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
      पुस्तक पास में ही राखी है.. कल पढ़ने की योजना है.. उसके बाद ही कोइ टिप्पणी की जायेगी.. :)
      समीक्षा तो आपकी जोरदार है ही… उसके बारे में तो मेरी औकात ही नहीं है बोलने की… :)
      सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..यूरोपियन यूनियन पर्यवेक्षक दल को बिनायक सेन के मुकदमे की कार्रवाई के निरीक्षण की अनुमति मिलनी चाहिएMy ComLuv Profile
    7. अभय तिवारी
      रोचक समीक्षा!
      :)
      अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..मिस्र की ‘आज़ादी’My ComLuv Profile
    8. देवेन्द्र पाण्डेय
      इस पोस्ट को पढ़कर लगा कि समीक्षक एक ऐसा दीमक होता है जो पहले किसी किताब को पूरी तरह चाट खाता है फिर उसमें अपना भेजा सानकर सबकुछ इतनी चतुराई से उगल देता है कि पाठक किताब भूल, समीक्षक की ही जै जैकार करने लगता है।
    9. प्रवीण शाह
      .
      .
      .
      वाकई महाभयंकर रिसर्च वर्क किया है आपने ….
      अब मैं तो कुछ भी न कहूँगा अभी… ;)
      फिलहाल शुभकामनायें समीरलाल जी को …
      और आपको भी … :)
      ( रख लीजिये काम आयेंगी )

      प्रवीण शाह की हालिया प्रविष्टी..ओऊर फुतुरे इस भैरी-भैरी दार्क !!!My ComLuv Profile
    10. प्रवीण पाण्डेय
      आपने सुलझाने की जगह गृहकार्य पकड़ा दिया। पिछले दो माह से एकमुश्त समय नहीं मिल पा रहा था। कल यात्रा पर जा रहा हूँ, पढूंगा और संभवतः समझ सकूँ कि पोस्टों से पुस्तक लिखने की संभावना मेरे लिये है कि नहीं?
    11. Khushdeep Sehgal, Noida
      महागुरुदेव,
      इमरजेंसी में 101 नंबर पर डायल कर फायर ब्रिगेड को कहीं भी बुलाया जा सकता है…

      जय हिंद…
      Khushdeep Sehgal, Noida की हालिया प्रविष्टी..40 करोड़ भूखों के देश में शादी तीन करोड़ कीखुशदीपMy ComLuv Profile
    12. Shiv Kumar Mishra
      बहुत सुन्दर समीक्षा. समीर भाई के लेख अद्भुत होते हैं. ज्यादातर तो पढ़े हुए हैं लेकिन पुस्तक रखना बढ़िया रहेगा. कभी यात्रा में पढने में आनंद आएगा.
      आभार.
      Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..धमकी पुराणMy ComLuv Profile
    13. sanjay jha
      सुन्दर समीक्षा……लिंक देने के लिए साधुवाद……..
      “किताबों का साइज और वजन दोनों ब्लागरों के साइज और वजन के व्युत्कमानुपाती था। ”
      येह, आपके नज़र की फ्रीक्वन्सी कमाल की है……………….
      प्रणाम.
    14. वन्दना अवस्थी
      कमाल की समीक्षा! ऐसी समीक्षा न पहले कभी पढी न सुनी. पंक्ति दर पंक्ति सूत्र और सुराग थमाते चले हैं आप तो! पाठकों के साथ पूरा न्याय किया गया है. निश्चित रूप से समीर जी यदि इसे ब्लॉग पोस्ट्स पर आधारित संकलन घोषित करते या भूमिका में ही लिख देते कि ये उपन्यासिका तमाम पोस्टों पर आधारित, एक नया प्रयोग है, तो समीक्षक को आपत्ति न होती. (वैसे आपत्ति तो अभी भी नहीं है:) )
      समीर जी अच्छा लिखते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है.
      नपी-तुली समीक्षा पुस्तक के गहन अध्ययन को दर्शाती है तो दिये गये लिंक्स समीक्षक की पैनी निगाह को इंगित करते है.
      असल में ऐसे समीक्षक से हमेशा सावधान रहना चाहिये, जो अपनी खुद की धज्जियां उड़ाने की हिम्मत रखता हो. लेखक या रचना की कमज़ोरियों को बताना भी बहुत ईमानदार कोशिश है.
      बधाई, आपको और समीर जी दोनों को.
    15. shikha varshney
      एकदम रिसर्च वाली समीक्षा कर डाली है .समीर लाल जी ने अपने कई सौ रु. का नुक्सान करा लिया आपको उपन्यासिका भेज कर ..बरहाल हम तो अभी इंतज़ार कर रहे हैं .आती होगी फिर पढेंगे.
      shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..प्रेम- रंग और मसालेMy ComLuv Profile
    16. anitakumar
      समीर लाल जी की किताब हमें तो बहुत अच्छी लगी। माना कि उसमें कई पोस्टों का जिक्र है लेकिन इससे अपनी कितनी मेहनत बच गयी। मुझे दूसरों का तो पता नहीं लेकिन कई बार ऐसा होता है कि कुछ पोस्टें याद रह जाती हैं और किसी खास मूड में फ़िर से पढ़ने का मन होता है, लेकिन तब उसे ढूंढने में इतनी मेहनत करनी पड़ती है कि सोचते हैं “छोड़ो यार फ़िर कभी देखेगें” । समीर जी ने बहुत अच्छा रास्ता सुझाया है अपने पाठकों की मुश्किलें आसान करने का।
      मैं तो सजेस्ट करुंगी कि सभी ब्लोगर अपने पाठकों से पूछें कि उनकी कौन सी पोस्ट वो फ़िर से पढ़ना चाहेगें और जिन पोस्टों के लिए सबसे ज्यादा मांग आए उन्हें किताब के रूप में छ्पवा दें( और सादर भेंट में दे दें…॥:)) पाठकों को कंप्युटर से बंधना नहीं पड़ेगा, देश की बिजली की बजत होगी। आप की, ज्ञान जी की, शिव जी की, डा अनुराग के कॉलेज के किस्से, बेजी की, पाबला जी के ट्रेवल के किस्से, और न जाने कितने कितने ब्लोगर मित्र हैं जिनकी रचनाएं हम प्रिंट रुप में भी सहेज कर रखना चाहेगें।
      अनूप जी आप से अनुरोध है कि आप भी जल्द ही अपनी किताब छपवाइए।
      समीर लाल जी को एक बार फ़िर से बधाई
    17. anitakumar
      “व्युत्कमानुपाती” मेरे लिए नया शब्द है, मेरी हिन्दी की वोकेब्लरी में इजाफ़ा करने के लिए धन्यवाद्। ” ऑफ़ द ब्लोगर, फ़ॉर द ब्लोगर, बाय थे ब्लोगर ” खूब कहा।
    18. कुश भाई गुलाबी नगरी वाले
      मैंने भी अपनी पोस्ट्स के प्रिंट आउट ले लिए.. अब बाईंडिंग वाला ढूंढ रहा हु
      कुश भाई गुलाबी नगरी वाले की हालिया प्रविष्टी..ज़िन्दगी में और भी रंग है खुदको रंगने के लिएMy ComLuv Profile
    19. सोमेश सक्सेना
      अब तक मैने समीरलाल जी के इस किताब की जितनी भी समीक्षाएं पढ़ी हैं ये उनमे बेस्ट है। बिल्कुल निष्पक्ष।
      आभार।
      सोमेश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..प्रेम में डूबी हुई लड़की की ब्लॉग कथाMy ComLuv Profile
    20. vijay gaur
      बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ समीर जी को |
      vijay gaur की हालिया प्रविष्टी..I am a painter- I want to become an artistMy ComLuv Profile
    21. आशीष खण्डेलवाल
      अच्छी समीक्षा .. समीरलाल जी की पुस्तक पिछले हफ़्ते ही पढ़ने को मिली और मैं उसे एक बैठक में ही पढ़ गया। यक़ीन मानिए आपकी इस समीक्षा को पढ़ने के बाद भी मेरे मन में उस पुस्तक की छवि लेश मात्र भी नहीं बदली। गोदान इंटरनेट पर काफ़ी समय से उपलब्ध है, लेकिन थूक लगाकर पन्ने पलटने का मज़ा जो पुस्तक में आता है, वह ई-प्रारूप में कभी नहीं आ सकता।
      समालोचना का यह अनिवार्य बिंदु है कि उसमें निष्पक्षता होनी चाहिए। जिस कथित समालोचना में ईर्ष्या अथवा द्वेष का पुट नज़र आए, उसे पढ़ते हुए आम पाठक खुद को ठगा सा महसूस करता है। मुआफ़ कीजिएगा, लेकिन आपकी इस समीक्षा को पढ़कर लगा जैसे समीरलाल जी ने इस पुस्तक को प्रकाशित कर कोई अपराध किया है। पुस्तक में मुझे उनका ऐसा दावा कहीं नज़र नहीं आया कि इसकी सामग्री उन्होंने पिछले दिनों ही और केवल पुस्तक के प्रयोजन से लिखी है।
      मेरे विचार से वह हर प्रयास जो हिन्दी भाषा में अच्छे विचारों का सकारात्मक प्रसार करे, प्रशंसा के योग्य होना चाहिए। इतनी अच्छी पुस्तक को पाठकों तक पहुंचाने के लिए समीरलाल जी निःसंदेह प्रशंसनीय है। आखि़र कुछेक
      ब्लॉगरों के अलावा 2006, 2007 और 2008 की पोस्टों को कितने लोगों ने पढ़ा होगा?
      हैपी ब्लॉगिंग
      आशीष खण्डेलवाल की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉग पर संचालित चित्र पहेलियों का जवाब देना कितना आसान!My ComLuv Profile
    22. zeal
      श्री समीर लाल जी को बधाई . .
      इस बेहतरीन समीक्षा के लिए साधुवाद .
      zeal की हालिया प्रविष्टी..जो डर गया – वो मर गया !My ComLuv Profile
    23. Dr.ManojMishra
      आपनें बेहतरीन समीक्षा प्रस्तुत की है ,कृति को पढने की तात्कालिक उत्सुकता तो बहुत बढी है लेकिन आपकी समीक्षा से मन तृप्त हो गया.
      समीर जी को इस अनुपम कृति के लिए बहुत बधाई.
    24. बलम बेतुके

      मेहनत तो खूबई की है भाई जी ने ।
      इसे कहते हैं पानी पी पीकर समीक्षा करना !


    25. चंद्र मौलेश्वर
      `समीरलाल की ब्लॉगिंग की शुरुआत कविताओं से हुई। ‘
      हम तो समझे थे कि ब्लागिंग की उनकी शुरुआत टिप्पणीकार के रूप में हुई…. आखिर जहां देखो ‘उडन तश्तरी’ मौजूद जो रहती थी :)
      एक अच्छी समीक्षा और लिंक के लिए आभार॥
      चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..एक अविवाहित की मौत- The death of a bachelorMy ComLuv Profile
    26. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
      समीरलाल जी ने यह किताब बलॉगरों के लिए तो नहीं ही प्रकाशित करायी है। जो लोग कम्प्यूटर और इंटरनेट से दूर रहते हैं उन्हें यह किताब एक अलग प्रकार का आनंद देगी। आपकी समीक्षा ने निश्चित रूप से पहले से ही ऊँची टीआरपी को और आसमान पर चढ़ा दिया है। आप दोनो की जय हो।
      सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..हे संविधान जी नमस्कार…My ComLuv Profile
    27. Dr. Vijay Tiwari " Kislay"
      आदरणीय
      शुक्ल जी
      सर्व प्रथम अद्भुत समीक्षा क लिए साधुवाद
      फुर्सत से लिखी निर्भीक और गहन अभिव्यक्ति से
      यह स्पष्ट हुआ कि सही मित्र गुड़-पगी ही नहीं
      खरी-खोटी भी लिख सकता है.
      मैं सिद्धार्थ त्रिपाठी जी की बात से भी अंशतः सहमत हूँ पूर्णतः नहीं.
      - विजय तिवारी ‘ किसलय ‘
      Dr. Vijay Tiwari ” Kislay” की हालिया प्रविष्टी..विमोचित पुस्तक देख लूँ तो चलूँ महज यात्रा वृत्तांत न होकर उड़न तश्तरी समीर लाल समीर के अन्दर की उथल-पुथल- समाज के प्रति एक साहित्यकार के उत्तरदायित्व का सबूत है – विजय तिवारी किसलय My ComLuv Profile
    28. विवेक रस्तोगी
      आपकी समीक्षा पढ़कर वाकई लगा कि एक पाठक की समीक्षा है और ऐसे पाठक की जो कि लेखक को कई वर्षों से पढ़ रहा है, और नई रचना के लिये पाठक की उम्मीदें लेखक से बढ़ जाती हैं, जो कि आपको नहीं मिली और आपकी समीक्षा पढ़कर यह तो ज्ञात हो गया कि आप समीरलाल के लेखनी के बहुत बड़े पंखे हैं, वरना तो हमें खुद अपनी ही ३-४ वर्ष प्रकाशित रचना याद नहीं, हम भी अभी तक किताब का इंतजार ही कर रहे हैं, पर आपके द्वारा दी गई लिंकों को पढ़कर ९०% का मजा तो ले ही लेते हैं।
      और जाते जाते एक बात कि पाठक ने अपनी समीक्षा खूब की है।
      विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी का दर्द और कवि शमशेर की शतीMy ComLuv Profile
      1. अनूप शुक्ल
        विवेक रस्तोगी,
        शुक्रिया। रचना के मजे हमने खूब लिये। वैसे नयी लिखी होती तो पढ़ने में और मजा आता शायद।
        मजे लीजिये आप ९०% । इस बीच मैंने आपकी तीन-चार रचनाओं के मजे ले लिये। :)
        अनूप शुक्ल की हालिया प्रविष्टी..देख लूं तो चलूं- उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर- बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागरMy ComLuv Profile
    29. अविनाश वाचस्‍पति
      जिनके पास पुस्‍तक नहीं है, उनमें से जो मित्र पुस्‍तक क्रय करके पढ़ना चाहते हैं, वे तुरंत nukkadh@gmail.com पर मेल भेजकर पूरी प्रक्रिया की जानकारी ले लें। यह सूचना देश में मौजूद देशी साथियों के लिए है। विदेशियों के लिए तो समीर भाई हैं ही।
      वैसे पुस्‍तक क्रय करके पढ़ने का अलग आनंद है,और मैं इस आनंद से इस पुस्‍तक के संबंध में वंचित रहा हूं पर आप इस आनंद से सराबोर हो सकते हैं।
      1. अनूप शुक्ल
        अविनाश जी,
        शुक्रिया। खरीद के आनंद से हम भी वंचित रहे। लेकिन किताब खरीदने के सारे पते दिये हैं मय फ़ोन नंबर के। इससे अधिक कोई सूचना हो तो टिपिया दीजिये यहीं। :)
        अनूप शुक्ल की हालिया प्रविष्टी..देख लूं तो चलूं- उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर- बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागरMy ComLuv Profile
    30. अविनाश वाचस्‍पति
      वैसे क्रय करके पुस्‍तक पढ़ने के आनंद से फुरसतिया जी भी वंचित रहे हैं और वे चाहते हैं कि सभी इसी वंचना में चना चबाते रहें।
      अविनाश वाचस्‍पति की हालिया प्रविष्टी..ब्लागर्स ने मनाया वैलेंटाइन-डेMy ComLuv Profile
      1. अनूप शुक्ल
        अविनाशजी,
        चलिये यह भी सही रहा कि हमारी वंचनायें किताब के मामले में एक हैं। :)
        अनूप शुक्ल की हालिया प्रविष्टी..देख लूं तो चलूं- उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर- बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागरMy ComLuv Profile
    31. विवेक सिंह
      काफी दिन बाद आपकी पोस्ट पढ़ी तो पहले लगा कि फुरसतिया बदल गये शायद । बाद में जब लिंक्स की लिस्ट देखी तो अपनी गलती का अहसास हो गया :)
    32. रंजना.
      समीक्षा तो समीक्षा आपने तो संग्रह के लिंक देकर किताब की कमी को भी पूरा कर दिया…बहुत बहुत आभार आपका…
      अब आराम से लिंक खोल खोल कर किताब पढ़ लिया करेंगे,बस इस एक पोस्ट को सहेज कर रख लेने की जरूरत है…
      सत्य है की समीर भाई के व्यंग्य में जो मारक क्षमता होती है,वह बेजोड़ होती है,लेकिन कविता और कहानी में भी उनकी लेखनी मंजी हुई है..समग्र रूप में बहुत अच्छे कलमकार हैं वे…
      रंजना. की हालिया प्रविष्टी..नेताMy ComLuv Profile
    33. sanjay jha
      आपके अनुसरण कर्ता का कोना नहीं मिल रहा……….?
      प्रणाम
    34. amrendra nath tripathi
      थोड़ा जोखिम होता है ऐसी समीक्षाओं के साथ , पर सत्य जो लगे यानी जिसमें आस्था हो उसके मामले में भी सोचा जा सकता है कि ‘वचने का दरिद्रता’ ! अव्वल तो आपकी मेहनत की सराहना करूंगा , इतनी बारीकी से देखना और लिंकित करके प्रमाण-पुष्टता को बनाए रखना ! ब्लॉग की आभा को पुस्तक में लक्षित किया जाना चाहिए ! जो भूमिका/आमुख में छूटा उसे आपने पूर्ण किया इस तरह से यह पोस्ट उस उपन्यासिका की पूरक सी हुई ! यह गौरतलब है .
      समीर जी ने भेजने का वादा किया था पुस्तक को . भेजा भी उन्होंने पर कोरियर कहीं हबक गया शायद ! अब मौक़ा/संयोग देख पुस्तक देखना होगा , एक दिलचस्पी यह भी है कि इसमें ब्लॉग-विधा के अंश भी है ! शुक्रिया !
    35. सनम भडकीले काली नगरी वाले
      हद कर दी हलकटियाई और छिछोरेपन की।
      1. jaunhaitaun
        तो काहे ऐसा काम करते हो, काली नगरी वाले भैया?
    36. सनम भडकीले काली नगरी वाले
      अब तो शर्म से डूब मरो। इस स्तर तक उतरना पड रहा है आपको?
    37. arvind mishra
      यह तो समीक्षा पूर्णाहुति है ….
      शायद इसलिए ही समीक्षकों और आलोचकों की प्रतिमायें नहीं बनती …
      आशा है समीर लाल जी सबक लेगें और अगली पुस्तक की थोक भाव में समीक्षाएं कराने के लोभ का संवरण करेगें ..
      ये प्रोफेसनल समीक्षक अच्छी खासी पुस्तकों की भी रेड मार देते हैं :)
      मैं अपनी किताबें लोगों को देता हूँ मगर समीक्षा के लिए कभी नहीं कहता ..
      पता नहीं ससुरा क्या लिख दे? :)
      arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भोपाल की मेरी प्रस्तावित एक दिनी यात्राMy ComLuv Profile
    38. jaunhaitaun
      magar yahaan bhee nahin dikhaai pad rahe ho aap!! aur neeche ho kya?
    39. Girish Billore
      लिखने का अधिकार कृतिकार को और समीक्षक दौनों को ही है मेरा हस्तक्षेप उतना ज़रूरी नहीं पर पोस्ट पर तो टिपियाना ही है सो अधिकार से वंचित क्यों रहें हम
      शुक्ल जी . मनीष ने किताब पढ़ कर समीर को जाना. वे ब्लागर नहीं है सो मेरी राय में बाय द ब्लागर कुछ ज़्यादा नहीं लग रहा.
      शुक्ल जी आप सुधि पाठक हैं और चिट्ठाकार भी आप को मालूम है कि समीर ने उपन्यास में पोस्ट डालीं हैं. लिंक भी दिये . आपकी पाठकीय सजगता का प्रमाण है. ये कोई बाध्यता नही तभी तो ग्यान जी ने शैलीकार कहा . साथ ही ये सिद्ध नहीं हो रहा कि पूनम के चांद के साथ ईद वाला तारा रखने कीबेमेल कोशिश की समीर ने इसे तो सिद्ध करना ही होगा. यहां मैं आपका अनुज समीर से भी तीन-चार माह छोटा अनुज ही हूं इस अनुजाई बुद्धि ने बताया कि बहस ज़रूरी है “न थिंग इस फ़ायनल ट्रुथ” हो सकता है मैं खुद गम्भीरता से न पढ़ पाया हूं. खैर फ़िर पढ़ता हू दूसरी बार. यानी फ़िर समीर भाई आपको फ़ायादा रीडर शिप में इज़ाफ़ा .
      Girish Billore की हालिया प्रविष्टी..वही क्यों कर सुलगती है वही क्यों कर झुलसती है My ComLuv Profile
    40. Stuti Pandey
      हा हा ..मजा आ गया .. :D :D
      “किताब में आदि से अंत तक ब्लागरों का योगदान है। किताब लिखी ब्लागर समीरलाल ने, आवरण डिजाइन किया ब्लागर विजेन्द्र एस विज ने, भूमिका लिखी ब्लागर राकेश खंडेलवाल और पंकज सुबीर ने, संपादन किया ब्लागर श्रीमती रचना बजाज और श्रीमती अर्चना चाव जी ने। छापने का काम करने वाले भी ब्लागर हैं। पाठक और समीक्षक भी ज्यादातर ब्लागर हैं। इस तरह से इस अद्भुत किताब के लिये कहा जा सकता है- उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर, बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागर। – सच्चे अर्थों में एक लोकतांत्रिक उपन्यासिका।”
      यह पैरा पढ़ के हंस हंस के लोट पोत हो गयी मैं तो :D
    41. busy like a bee
      एक और प्रकाशित पुस्तक के लिए लेखक समीर जी को बधाई .
      ——–
      समीक्षा काबिले तारीफ़ है .
      ———
      निम्नलिखित टिप्पणी के आगे कोई और टिप्पणी करना बेकार लग रहा है –टिप्पणी कर्ता को बधाई.[सौ आने सत्य कही ये बात ]
      —:
      इस पोस्ट को पढ़कर लगा कि समीक्षक एक ऐसा दीमक होता है जो पहले किसी किताब को पूरी तरह चाट खाता है फिर उसमें अपना भेजा सानकर सबकुछ इतनी चतुराई से उगल देता है कि पाठक किताब भूल, समीक्षक की ही जै जैकार करने लगता है।
      ————————–
      मेरा विचार -
      –इस ब्लोगरिया उपन्यासिका से अन्य ब्लोगरों को प्रेरणा मिलेगी कि जल्द ही अपने अपने लेख प्रकाशित करवा लें -एक किताब छापने में ..ब्लोगर भाई बंधु तो नाम छपवाने के बदले मुफ्त में सेवा देने को राज़ी भी हो जाएँगे..
      अनूप जी आप की किताब छपेगी तो मैं भी मुफ्त योगदान देने को हाज़िर हूँ :) [सह -संपादन में?नहीं तो प्रूफ रीडिंग में ?पत्रकारिता पढ़ी है अच्छी प्रूफ रीडिंग का आश्वासन -]
      —वैसे यहाँ छपे लेखों को देखें तो आप की अब तक कोई १००-१५० पन्नों की ५-६ किताब तो आ जानी चाहिए थीं.
    42. jyotisingh
      सबके कमेन्ट भी पढ़े और पोस्ट भी देखी और मजा भी लिया मुझे शायद अब कुछ कहने की जरूरत नहीं क्योंकि उन्ही बातों को क्या दोहराऊ जो पहले कही जा चुकी है ये काम ज्ञानियों का है और इस क्षेत्र से मैं बहार हूँ बस मुंडी बराबर हिला दिया है .
    43. : एक और क्रौंच वध- एक पाठक के नजरिये से
      [...] थे। उस पर टिपियाते हुये डा.अरविन्द ने लिखा: यह तो समीक्षा पूर्णाहुति है …. शायद [...]
    44. प्राइमरी के मास्साब
      हम तो यही सोच के कुप्पा हुए जा रहे हैं कि फिर रुपैया १०० बच ही गए अपने ?
      :-)
      प्राइमरी के मास्साब की हालिया प्रविष्टी..अशोक की कहानी -2My ComLuv Profile
    45. ashish
      फुरसतिया जी हम तो आपकी किताब के इंतजार में है,
      जब पहली बार आपको पढ़ा था तो , मुझे लगा था आपकी दो चार पुस्तकें होंगी मार्केट में.
    46. Ashish
      सही है श्रीमान, अभी वही कर लेते है :)
    47. गौतम राजरिशी
      किताब की हमारी प्रति घर पर पहुंच चुकी है। छुट्टी में बिहार जायेंगे तो पाठन होगा किताब का।
      आपकी मेहनत अचंभित करती है। कहां-कहां से पोस्टों की लिंक ढूंढ़ी होगी आपने।
      गौतम राजरिशी की हालिया प्रविष्टी..तीन ख्वाब- दो फोन-काल्स और एक रुकी हुई घड़ीMy ComLuv Profile
    48. man mohan singh
      खूबसूरत….. गर्वान्वित महसूस करता हूँ की अनूप जी ( फुरसतिया) चमकते मोती हैं …….. मैं भी एक अदना सा मोती…….. हमारी मां एक है .. इलाहाबाद में .. जिसे आंग्ल भाषा में अल्मा मेटर कहते हैं…….. में भी यहाँ लिखूं … वो भी हिंदी में …..शीघ्र ही
      मनमोहन सिंह
    49. rajeev verma
      आप को तो न्यू योर्क टाइम के लिए लिखना चाहिए . बहुत अछा.

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    1. राहुल सिंह
      किताब (हमारी) न पढ़ी होने पर भी आनंददायक-रचनात्‍मक समीक्षा.
      राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..कुनकुरी गिरजाघरMy ComLuv Profile

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