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एक और क्रौंच वध- एक पाठक के नजरिये से
By फ़ुरसतिया on February 21, 2011
´विज्ञान कथा साहित्य की वह विधा है, जो विज्ञान और
प्रौद्योगिकी में सम्भावित परिवर्तनों के प्रति मानवीय प्रतिक्रियाओं को
अभिव्यक्ति देती है।`-आसिमोव
पिछली पोस्ट में मैंने समीरलाल की किताब के बारे में अपने विचार व्यक्त किये थे। उस पर टिपियाते हुये डा.अरविन्द ने लिखा:
इस टिप्पणी के बारे में मुझे दो बाते कहनीं थीं। पहली तो यह कि समीरलाल
ने मुझे अपनी किताब समीक्षा के लिये कत्तई नहीं दी थी। पढ़ने के लिये दी
थी। अब हमने उसे पढ़कर जो कुछ लिख मारा उसको समीक्षा तो माना नहीं जाना
चाहिये। दूसरी और जरूरी बात यह कि डा.अरविन्द मिश्र भले ही अपनी किताब
समीक्षा के लिये न देते हों लेकिन अपनी एक किताब , एक और क्रौंच-वध
हमें 8मई ,2009 को मानार्थ और सादर (एक के साथ एक फ़्री) इलाहाबाद में
भेंट कर चुके थे। किताब की कुछ कहानियां हमने उसी समय पढ़ लीं थी। उनकी
तथाकथित समीक्षा भी करने की भी सोची थी लेकिन की नहीं थी। असल में हमें
अरविन्द जी के गुस्से से बहुत डर लगता है (जितना डरते हैं उससे कई गुना
बताते हैं)। वे जब मन आता है गरम हो जाते हैं। कभी-कभी बेमन भी। खासकर मेरे
प्रति तो गरम होने में मिसिरजी बहुत उदार हैं। मैं तो अपने अपने दोस्तों
से कहता हूं कि मिसिर जी को जब कहो तब दो मिनट में गुस्सा दिला दूं। उनका
सबसे हसीन गुस्सा मुझे तब लगा जब मैंने उनको छेड़ते हुये एक पोस्ट पर खुराफ़ाती टिप्पणी की थी –
और भी न जाने कित्ते किस्से हैं जिनमें मिसिरजी को मैं छेड़ता रहा और वे सीधे-सीधे झल्लाते रहे। अभी दो दिन पहले मैं दिल्ली में जे एन यू में अमरेन्द्र के साथ था तो अचानक मिसिर जी से बात हूई पता नहीं था वर्ना उसी दिन उनको उनकी वैवाहिक वर्षगांठ की बधाई देकर कुछ और मौज ले लेता।
बहरहाल इस बार अभी मैं एक दिन के लिये दिल्ली गया तो अरविन्द मिश्र जी की किताब एक और क्रौंच वध भी अपने साथ ले गया और रास्ते में आद्योपांत बांच भी डाली। आद्योपांत बोले तो शुरु से आखिर तक। पन्ना दर पन्ना। इस किताब में कुल बारह कहानियां संकलित हैं। इनका क्रमवार संक्षिप्त विवरण भी न हो तो देख लीजिये:
इस बारे में कुछ दिन पहले एक रोचक समाचार आया था। जिसके अनुसार अतीत यात्रा फ़ार्मूले के हिसाब से सही सिद्ध की जा सकती है लेकिन व्यवहारिक रूप में इसे सही नहीं माना जा सकता है क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो संभव है कि कोई बेटा अतीत में जाकर अपने बाप का टेटुआ दबा सकता है और खुद अपनी भी कब्र खोद सकता है अपने बाप के साथ!
कहानी लेखक भारतीय है अत: इनमें भारतीय समाज के किस्से भी हैं। इनमें शोध छात्रों की पीड़ाये हैं। वे अपने गाइड की सब्जी लाते हैं, उनके बच्चे खिलाते हैं, आठ-दस साल शोध में लगाते हैं, निराश होते हैं, आई.ए.एस. में चुनाव होने पर शोध छोड़ जाते हैं, (गुरुदक्षिणा ) इसके बाद जब कोई काम का शोध होता है तो जो शोधपत्र छपता है उसमें गुरुजी का नाम प्रमुखता में होता है( एक और क्रौच- वध) !
कहानियों की सबरी(सभी) नायिकायें गजब की सुन्दरियां हैं। कुशाग्र बुद्धि वाली। उनका सौंन्दर्य चौंधियाने वाला है। हर जगह नायक उनके सौंन्दर्य को देखकर हतप्रभ सा रह जाता है:
कहानियों में कहीं-कहीं कुछ और चूलें बैठाने की जरूरत थी शायद। जैसे सम्मोहन कहानी की नायिका जन्मान्ध है लेकिन उसकी बेसिक स्कूलिंग अंग्रेजी मीडियम से हुई। वह लेखक की फ़ैन है। अगले संस्करण में शायद मिश्र जी इस नायिका को और सटीक तरह से पेश करने की सोचें। इस कहानी में जिस कायान्तरण कहानी का जिक्र हुआ है वह कहानी संग्रह में बाद में शामिल है। अगले संस्करण में शायद मिश्र जी अपनी कहानियों का क्रम भी बदलने की सोचें।
नजरिये के लिहाज से भी देखें तो मेरी कई असहमतियां हो सकती हैं कहानी लेखक से। जैसे अंतरिक्ष कोकिला कहानी में जब लेखक कहता है-
लेकिन यह सोच के अन्तर तो व्यक्ति-व्यक्ति के हिसाब से अलग-अलग होंगे। लेखक का उद्धेश्य यहां रोचक तरीके से विज्ञान की अवधारणा के बारे में अपनी बात आम पाठक तक पहुंचाना है उसमें उसको पूरी सफ़लता मिली है।
कहानियों की भाषा तत्सम हिन्दी है। एकदम विज्ञानप्रगति टाइप। लेकिन आसानी से समझ में आने वाली।
भाषा की बात लिखी अभी तो कहीं से तारतम्य न होने भी रागदरबारी उपन्यास के मास्टर मोतीराम की कक्षा का वार्तालाप याद आ गया:
कुल मिलाकर ये सभी कहानियां रोचक हैं और पढ़ी जाने वाली हैं। डा.अरविन्द मिश्र ने जब से ब्लाग लिखना शुरु किया तबसे शायद उनका कहानियां लिखना कम हुआ है। या लिखीं भी होंगी तो मैंने नहीं पढ़ी होंगी। मेरी समझ में तमाम सारी , खाली लिखने के लिये लिखने वाली, पोस्टें लिखने की बजाय वे कुछ और विज्ञान कथायें लिखें तो बेहतर होगा। तब शायद उनकी देखा-देखी और लोग भी इस तरफ़ माउस-की बोर्ड चलायें। अपने इस संग्रह की कहानियां भी वे अपने ब्लाग में पोस्ट करें तो पाठक शायद आनन्दित हों।
लेखक: डा.अरविन्द मिश्र
मूल्य: 125/-रुपये मात्र
प्रकाशक: लोक साधना केन्द्र
3/16, चतुर्थ तल, कबीर नगर,
वाराणसी-221005
वितरक: विश्व हिन्दी पीठ
3/16, आवास विकास कालोनी
कबीर नगर,वाराणसी-221005
वेबसाइट: www.vishwahindipeeth.com
2.पुस्तक समीक्षा : एक और क्रौंच वध !
पिछली पोस्ट में मैंने समीरलाल की किताब के बारे में अपने विचार व्यक्त किये थे। उस पर टिपियाते हुये डा.अरविन्द ने लिखा:
यह तो समीक्षा पूर्णाहुति है ….
शायद इसलिए ही समीक्षकों और आलोचकों की प्रतिमायें नहीं बनती …
आशा है समीर लाल जी सबक लेगें और अगली पुस्तक की थोक भाव में समीक्षाएं कराने के लोभ का संवरण करेगें ..
ये प्रोफेसनल समीक्षक अच्छी खासी पुस्तकों की भी रेड मार देते हैं
मैं अपनी किताबें लोगों को देता हूँ मगर समीक्षा के लिए कभी नहीं कहता ..
पता नहीं ससुरा क्या लिख दे?
अब इंतजार कीजिये वैज्ञानिक चेतना संपन्न विद्वान के संस्कृति मूसल का। वे आयेंगे और आपकी सारी प्रगतिकामना को प्रतिगामी,पश्चिमोन्मुखी और पतनशील ठहराकर धर देंगे।मुझे पूरा विश्वास था कि अरविन्द जी आयेंगे और अपना गुस्सा दिखायेंगे। उन्होंने मेरे विश्वास की रक्षा की और टिप्पणी की- अपनी औकात में रहो अनूप!
और भी न जाने कित्ते किस्से हैं जिनमें मिसिरजी को मैं छेड़ता रहा और वे सीधे-सीधे झल्लाते रहे। अभी दो दिन पहले मैं दिल्ली में जे एन यू में अमरेन्द्र के साथ था तो अचानक मिसिर जी से बात हूई पता नहीं था वर्ना उसी दिन उनको उनकी वैवाहिक वर्षगांठ की बधाई देकर कुछ और मौज ले लेता।
बहरहाल इस बार अभी मैं एक दिन के लिये दिल्ली गया तो अरविन्द मिश्र जी की किताब एक और क्रौंच वध भी अपने साथ ले गया और रास्ते में आद्योपांत बांच भी डाली। आद्योपांत बोले तो शुरु से आखिर तक। पन्ना दर पन्ना। इस किताब में कुल बारह कहानियां संकलित हैं। इनका क्रमवार संक्षिप्त विवरण भी न हो तो देख लीजिये:
- गुरु दक्षिणा: इसमें धरती से पांच प्रकाशवर्ष दूर
सैंटोरी तारामंडल के टेरान ग्रह से एक रोबो धरती की संस्कृति के अध्ययन के
लिये आता है। धरती के प्रोफ़ेसर उदयन के शिष्य हर्ष की एक दुर्घटना में
मौत होने वाली है। यह उस ग्रह के लोगों को पता है। वे हर्ष के दिमाग की
सारी सूचनायें रोबो के दिमाग में फ़ीड करा देते हैं। रोबो नये हर्ष के रूप
में धरती के बारे में नोट्स लेता है। डायरी लिखता है। अन्य बातों के अलावा
डायरी के माध्यम से भारत में शोध की स्थिति का भी वर्णन किया गया है। दो
साल का निर्धारित समय पूरा होने पर जब उस रोबों को लेने यान आता है उस समय
प्रोफ़ेसर उदयन की तबियत खराब हो जाती है। रोबो प्रोफ़ेसर उदयन को ऐसी हालत
में छोड़कर जाने से इंकार कर देता है। वैज्ञानिक प्रमुख उसको आदेश का पालन
करते हुये तुरंत वापस चलने के लिये कहता है क्योंकि शोध का काम पूरा हो
चुका था। इस पर रोबो कहता है –
मैं आदेश का पालन ही कर रहा हूं श्रीमन, उल्लंघन नहीं। नियम नं चार के अनुसार, जो सबसे महत्वपूर्ण है ,मैं किसी पृथ्वीवासी मानव को हानि नहीं पहुंचा सकता। यहां तो मेरे आने से एक मानव की जिन्दगी खतरे में पड़ जायेगी।
इसके बाद यान वापस चला जाता है। -
- देहदान: इस कहानी में पांच करोड़ प्रकाश वर्ष दूर की एक स्त्री की प्रतिच्छाया कथा नायक से देहदान या नहीं तो वीर्यदान ही सही की मांग करती है क्योंकि एक सुदूर अंतरतारकीय आक्रांता ने उसके ग्रह के अंड-वीर्य बैंक को अपनी विकिरण प्रणालियों से तहस नहस कर डाला है। सभी पुरुष विकृत हो चुके हैं। केवल कुछ महिलायें ही विकृत होने से बची हैं। अपने ग्रह की सभ्यता के संकट का हवाला देते हुये स्त्री प्रतिच्छाया कथानायक से प्रजनन की आकांक्षा करती है। कथानायक उसका शिकार बनने से इंकार कर देता है। बाद में वह इस घटना को याद करता है और सोचता है कि क्या वह सत्य घटना थी या एक दु:स्वप्न।
- सम्मोहन: कहानी में एक जन्मान्ध स्त्री अंजली के अनुभवों के माध्यम से ऐसी सभ्यता के लोगों के बारे में बताया गया है जो कि लोहा खाते हैं। वे धरती का सारा लोहा अपने यहां ले जाना चाहते हैं। अंजली अपने अनुभव कथानायक को बताती है और पूछती है कि क्या सच में वह अंतरिक्षवासी था। इस पर कथानायक उसको बताता है कि अभी तक अंतरिक्षवासियों के धरती पर आगमन का कोई ठोस प्रमाण उसकी नजरों से नहीं गुजरा है। इसलिये उनके अस्तित्व के होने या न होने के बारे में मौन ही रहना बेहतर है।
- राज करेगा रोबोट: रोबोट इंसान ने बनाये। वे दिन-प्रतिदिन उन्नत होते गये। उनकी बुद्धि बढ़ गयी और एक दिन ऐसे हालात हुये कि वे अपने निर्माता इंसान को ही नष्ट करने की योजना बनाने लगे। समय रहते मानव वैज्ञानिकों को इस साजिश का पता चला और उन्होंने समय यात्रा (टाइम ट्रेवल) करके अतीत में जाकर रोबोट के निर्माण के मूलभूत सिद्धांतों में हुई भूल को सुधारा और रोबोटों ने मानवता को नष्ट करने का अपना इरादा त्याग दिया। इस कहानी में समय यात्रा और रोबोट निर्माण के सिद्धान्तों का मजेदार जिक्र है।
-
- अनुबंध: मिस रोबिनो एक खूबसूरत रोबो हैं। वे मशहूर इलेक्ट्रानिकी प्रतिष्ठान में चयनित होकर जब ज्वाइन करने के लिये जाती हैं तो पाती हैं कि उनके वहां काम करने से वहां के मानव समुदाय का नुकसान होगा। वे अपने काम से इसीलिये त्यागपत्र दे देती हैं क्योंकि उनकी सेवा नियमावली इसकी अनुमति नहीं देती है कि उनके काम से किसी भी तरह मानव जाति का नुकसान हो।
- अंतरिक्ष कोकिला: कोयल एक ’ नेस्ट पैरासाइट’ है। यानि कि वह अपने अंडो-शिशुओं की देखभाल नहीं करते। चोरी छिपे दूसरे मिलते-जुलते पक्षियों के घोसलों में अंडे दे आते हैं। वे बेचारे उनके बच्चे पालते हैं और वे बच्चे एक दिन फ़ुर्र हो जाते हैं। इसी की तर्ज पर धरती से करीब 12 प्रकाशवर्ष दूर ताऊ सेती तारा मंडल से आयी अंतरिक्ष महिलाओं की कथा इस कहानी में बताय़ी गयी। कोयल की तरह भी उनका वात्सल्य बोध मिट चुका है। उनके स्तनों में दूध तक नहीं उतरता। इस उन्नतग्रह की महिलायें धरती पर आती हैं और यहां की आसन्नप्रसवा महिलाओं में अपने शिशुओं को ईप्लांट कर जाती हैं। पैदा होने और कुछ बड़ा हो जाने पर वे उनको लेकर वापस चली जाती हैं। इस रोचक कहानी के माध्यम से प्रजनन से जुड़ी कई जानकारियां दी गयी हैं।
- अंतिम दृश्य: कहानी में मानव शरीर प्रक्षेपण के बारे में जानकारी दी गयी है। मानव शरीर का तरंग ऊर्जा में बदलकर गंतव्य तक पहुंचाना और फ़िर वहां उस तरंग ऊर्जा को वापस मानव शरीर में बदलने की कल्पना की रोचक कहानी है यह।
- कायान्तरण: कहानी में मानव जीवन के विकास की कहानी बताते हुये एक आधुनिक मानव के अनुभवों के माध्यम से येती के बारे में जानकारी दी गयी है। येती के.के. कथालेखक का मित्र है। एक अभियान में वह येतियों के बीच पहुंच जाता है और उसका कायान्तरण हो जाता है। पूरे शरीर पर बाल उग आते हैं। अब वह वापस नहीं आ सकता। अपने अनुभव यती के.के. ने लेखक को लिख भेजे। उसे लेखक ने संपादक को भेज दिया और पत्र रूप में कहानी छप गयी।
- आपरेशन काम दमन: इस कहानी में लेखन ने जीवन , सृजन में कामजीवन के महत्व को स्थापित किया है। काम को झंझट मानते हुये लोग सोचते हैं कि अगर काम वासना न होगी तो बहुत काम कर लेंगे। लेकिन जब वैज्ञानिक तरीके से ऐसे लोगों की कामग्रंथियां आपरेशन करके निकाल दी गयीं तो उनकी सृजन क्षमता भी खतम हो गयी। वे बेचारे न घर के रहे न घाट के। पैसा लेकर लौट आये।
- एक और क्रौंच-वध: इस कहानी पर ही किताब का शीर्षक रखा गया है। वैज्ञानिक डा.अशोक अपनी एक खोज के लिये मैथुनरत मैना युगल को मार देते हैं। लुप्तप्राय नर मैना के गुणसूत्र के अध्ययन पर आधारित उनका शोधप्रबंध प्रख्यात पत्रिका ’नेचर’ में छपने के लिये स्वीकृत हो जाता है। डा.अशोक अपनी सफ़लता पर खुश होते हैं। लेकिन उनकी होने वाली जीवन संगिनी समता उनकी इसी बात (रुचि और मान्यताओं में विभिन्नता के कारण) पर उनसे विवाह न करने का निर्णय लेती है क्योंकि जिस तरह उन्होंने अपने शोध के लिये मैना युगल का वध किया उससे उसको लगता है कि वे क्रूर हृदय और संवेदना रहित व्यक्ति हैं।
इस बारे में कुछ दिन पहले एक रोचक समाचार आया था। जिसके अनुसार अतीत यात्रा फ़ार्मूले के हिसाब से सही सिद्ध की जा सकती है लेकिन व्यवहारिक रूप में इसे सही नहीं माना जा सकता है क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो संभव है कि कोई बेटा अतीत में जाकर अपने बाप का टेटुआ दबा सकता है और खुद अपनी भी कब्र खोद सकता है अपने बाप के साथ!
कहानी लेखक भारतीय है अत: इनमें भारतीय समाज के किस्से भी हैं। इनमें शोध छात्रों की पीड़ाये हैं। वे अपने गाइड की सब्जी लाते हैं, उनके बच्चे खिलाते हैं, आठ-दस साल शोध में लगाते हैं, निराश होते हैं, आई.ए.एस. में चुनाव होने पर शोध छोड़ जाते हैं, (गुरुदक्षिणा ) इसके बाद जब कोई काम का शोध होता है तो जो शोधपत्र छपता है उसमें गुरुजी का नाम प्रमुखता में होता है( एक और क्रौच- वध) !
कहानियों की सबरी(सभी) नायिकायें गजब की सुन्दरियां हैं। कुशाग्र बुद्धि वाली। उनका सौंन्दर्य चौंधियाने वाला है। हर जगह नायक उनके सौंन्दर्य को देखकर हतप्रभ सा रह जाता है:
- कुल मिलाकर ऐसी सुन्दरी मैंने धरती पर तो देखी नहीं थी। मेरे एक अमेरिकी मित्र को यदि उसके बारे में टिप्पणी करनी होती तो वह कहता कि ’व्हाट ए ब्लडी परेफ़ेक्ट ब्यूटी..बक्जम ब्लाण्ड.. पर सौंन्दर्य की मेरी अपनी एक अलग सांस्कृतिक अवधारणा थी- एक सलज्ज नारी सौंन्दर्य की।-देहदान
- वे अत्यन्त रूपवती थीं। गोल गौरवर्ण चेहरा, करीने से बंधे केश, बरबस ही आकर्षित करने वाली करने वाली आँखों में दार्शनिकता का भाव था ..किसी सौंदर्यप्रेमी के शब्द कोष में शायद ऐसी ही आंखों के लिये “झील सी गहराई” का विशेषण दिया जाता हो।-सम्मोहन
- …पर जब दरवाजा खुला तो उनके दिल ने सहसा धड़कना बंद कर दिया। दरवाजा खोलने वाली एक रूपसी थी। एक ताजगी भरा सौंदर्य। डा. विनायक उस अनिंद्य सौंन्दर्य को सहसा आत्मविस्मृत से हो अपलक निहारते रह गये।- अछूत
- …मैंने देखा कि वह लड़का तो एक रूपसी के आगोश में था। वाह! क्या चौंधियाता सा सौंन्दर्य था। उसकी वह देहयष्टि! वह रूपराशि।…उस नील आभा से भी अलग उसकी देह से आलोक रश्मियां सी फ़ूट रहीं थीं… एक मादक गंध भी वातावरण में तिर रही थी। -अंतरिक्ष कोकिला
कहानियों में कहीं-कहीं कुछ और चूलें बैठाने की जरूरत थी शायद। जैसे सम्मोहन कहानी की नायिका जन्मान्ध है लेकिन उसकी बेसिक स्कूलिंग अंग्रेजी मीडियम से हुई। वह लेखक की फ़ैन है। अगले संस्करण में शायद मिश्र जी इस नायिका को और सटीक तरह से पेश करने की सोचें। इस कहानी में जिस कायान्तरण कहानी का जिक्र हुआ है वह कहानी संग्रह में बाद में शामिल है। अगले संस्करण में शायद मिश्र जी अपनी कहानियों का क्रम भी बदलने की सोचें।
नजरिये के लिहाज से भी देखें तो मेरी कई असहमतियां हो सकती हैं कहानी लेखक से। जैसे अंतरिक्ष कोकिला कहानी में जब लेखक कहता है-
…और आज की अत्याधुनिकाओं को भी देखिये। उन्हें अपने बच्चों की कितनी फ़िकर होती है? आज की माताओं में सचमुच वह वात्सल्य भाव नहीं है जिनके लिये कभी वे ममता की देवियां मानी जाती थीं।इससे लगता है कि लेखक आधुनिक जीवन की सारी विसंगतियों का जिम्मेदार मात्र महिलाओं को साबित करना चाहता है।
लेकिन यह सोच के अन्तर तो व्यक्ति-व्यक्ति के हिसाब से अलग-अलग होंगे। लेखक का उद्धेश्य यहां रोचक तरीके से विज्ञान की अवधारणा के बारे में अपनी बात आम पाठक तक पहुंचाना है उसमें उसको पूरी सफ़लता मिली है।
कहानियों की भाषा तत्सम हिन्दी है। एकदम विज्ञानप्रगति टाइप। लेकिन आसानी से समझ में आने वाली।
भाषा की बात लिखी अभी तो कहीं से तारतम्य न होने भी रागदरबारी उपन्यास के मास्टर मोतीराम की कक्षा का वार्तालाप याद आ गया:
एक लड़के ने कहा , “मास्टर साहब, आपेक्षिक घनत्व किसे कहते हैं ?”ये कहानियां अलग-अलग पत्रिकाओं में छपी थीं। इस पुस्तक के रूप में इन बारह कहानियों का पहला संकलन सन 1998 में आया। इसके बाद दूसरा संस्करण सन 2000 में और नव संस्करण सन 2008 में। 94 पेज की किताब ( हार्डबाउंड में) 125 रुपये में मंहगी तो नहीं ही कही जायेगी।
वे बोले, “आपेक्षिक घनत्व माने रिलेटिव डेंसिटी।”
एक दूसरे लड़के ने कहा, “अब आप, देखिए , साइंस नहीं अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं।”
वे बोले, “साइंस साला अंग्रेजी के बिना कैसे आ सकता है?”
कुल मिलाकर ये सभी कहानियां रोचक हैं और पढ़ी जाने वाली हैं। डा.अरविन्द मिश्र ने जब से ब्लाग लिखना शुरु किया तबसे शायद उनका कहानियां लिखना कम हुआ है। या लिखीं भी होंगी तो मैंने नहीं पढ़ी होंगी। मेरी समझ में तमाम सारी , खाली लिखने के लिये लिखने वाली, पोस्टें लिखने की बजाय वे कुछ और विज्ञान कथायें लिखें तो बेहतर होगा। तब शायद उनकी देखा-देखी और लोग भी इस तरफ़ माउस-की बोर्ड चलायें। अपने इस संग्रह की कहानियां भी वे अपने ब्लाग में पोस्ट करें तो पाठक शायद आनन्दित हों।
पुस्तक विवरण
नाम -एक और क्रौंच-वधलेखक: डा.अरविन्द मिश्र
मूल्य: 125/-रुपये मात्र
प्रकाशक: लोक साधना केन्द्र
3/16, चतुर्थ तल, कबीर नगर,
वाराणसी-221005
वितरक: विश्व हिन्दी पीठ
3/16, आवास विकास कालोनी
कबीर नगर,वाराणसी-221005
वेबसाइट: www.vishwahindipeeth.com
सबंधित कड़ियां
1.थोड़ा सा फैंटेसियाना हो जाये…………सतीश पंचम2.पुस्तक समीक्षा : एक और क्रौंच वध !
Posted in बस यूं ही | 76 Responses
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..क्या सौर मंडल मे बृहस्पति से चार गुणा बड़े ग्रह की खोज हो गयी है
सही है। जो किताब तुम पहले पढ़ चुके थे वह हमने भी पढ़ ली। भले ही देर से।
बकिया तो आप शुक्ल और मिसिर का प्रेम कौनो छुपा तो है नाहीं ?
कुलमिलाकर आप अच्छे पाठक हैं ……और सादर मिश्र जी ने जो प्रति आपके हवाले की …..उनका वह निर्णय भी ठीक ही साबित हुआ |
प्राइमरी के मास्साब की हालिया प्रविष्टी..अशोक की कहानी -2
शुक्रिया। वैसे आप एक काम कर सकते हैं कि अच्छे बच्चों को इस किताब की प्रतियां इनाम में दें। बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि बनेगी।
जहां तक शुक्ल और मिसिर प्रेम के छुपा न होने की बात है तो कोई छिपाने लायक काम करते नहीं इसई लिये जो है सब सामने है।
बकिया पाठक जैसे हैं वह सब सामने है। मास्साब जी सब समझते हैं। उनसे क्या छिपा है।
आपकी पिछली पोस्ट पर डॉ अरविन्द मिश्र के इन विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ !
“यह तो समीक्षा पूर्णाहुति है ….
शायद इसलिए ही समीक्षकों और आलोचकों की प्रतिमायें नहीं बनती …
आशा है समीर लाल जी सबक लेगें और अगली पुस्तक की थोक भाव में समीक्षाएं कराने के लोभ का संवरण करेगें ..
ये प्रोफेसनल समीक्षक अच्छी खासी पुस्तकों की भी रेड मार देते हैं
मैं अपनी किताबें लोगों को देता हूँ मगर समीक्षा के लिए कभी नहीं कहता ..
पता नहीं ससुरा क्या लिख दे? ”
समीर लाल की पुस्तक के बारे में मेरे विचार, आपके विचारों से उलट रहे है !
आपने वाकई बहुत बढ़िया रचना की, अच्छी प्रकार धज्जियाँ उड़ाने का प्रयत्न किया है !
“देख लूं तो चलूं: उपन्यासिका आफ़ द ब्लागर, बाई द ब्लागर एंड फ़ार द ब्लागर!”
मेरे विचार से आपकी पिछली पोस्ट सबसे निराशाजनक पोस्ट रही है जिसमें आप अपने ही मित्र पर ” बिलों द बेल्ट ” प्रहार करते हुए खुश हो रहे हैं ! ऐसे विचार कोई नया ब्लोगर लिखता तो क्षम्य था मगर अगर अनूप शुक्ल जैसा ब्लोगर लिखेगा तो कड़ी प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक है ! आप उन लोगों में से हैं जिनका सम्मान होना चाहिए मगर आपका यह रूप निंदनीय है अनूप भाई !अगर मैं आपका सम्मान न करता होता तो यकीन मानिये यह प्रतिक्रिया कभी न देता, इस आदर भाव के कारण ही कष्ट पंहुचा है ! आशा है आप अपनी भूल स्वीकार करेंगे , मुझे विश्वास है ऐसा करने में आपका सम्मान बढेगा !
मेरी उपरोक्त टिप्पणी के कारण आप मुझे अपने प्रसंशको की लिस्ट से धकिया मत दीजियेगा बल्कि मेरी आपके प्रति ईमानदारी मानियेगा !
मैं आपका वैसा ही मित्र हूँ जैसा समीर लाल और डॉ अरविन्द मिश्र का, सो आप लोगों के मध्य, रंजिश करने का प्रयत्न अवश्य करता रहूँगा भले ही आप इन प्रयत्नों की मज़ाक उड़ायें ! मुझे ख़ुशी है कि आपने यह स्वागत योग्य पोस्ट लिखी !
डॉ अरविन्द मिश्र की उपरोक्त टिप्पणी उनके व्यक्तित्व की एक झलक मात्र है ! अरविन्द मिश्र की रचनाओं और ब्लॉग पोस्ट को पढने, समझने के लिए , खुला दिल और मुक्त मन जरूरी हैं ! सामान्य बुद्धि और बंधे मन के लोग अरविन्द मिश्र को समझ पायेंगे, मुझे शक है ! डॉ अरविन्द मिश्र भी आपकी हरकतों के विरोधी रहे हैं मगर आपने आज उनकी पुस्तक पर स्वस्थ प्रतिक्रिया देते हुए अपने दो निशानों में से कम से कम एक पर मोर्चा खोलना स्थगित रखा है,
इस बढ़िया स्वागत योग्य पोस्ट के लिए आपका आभार !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..देख लूं उड़नतश्तरी द्वारा सस्नेह -सतीश सक्सेना
आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिये आभार। आपकी कुछ बातों पर मेरी प्रतिक्रिया इस तरह है।
१.अरविन्द मिश्र की पिछली पोस्ट पर टिप्पणी से आप सहमत हैं। अच्छा है। उसके बारे में मैंने अपनी बात पोस्ट के शुरु में ही कह दी। उसको दोहराने से कोई फ़ायदा नहीं।
२. समीरलाल की रचना पर आपके विचार मेरे विचारों से उलट रहे हैं। अच्छा है। लेकिन आपने अपने कोई विचार रखे कहां? आपने केवल यही कहा है कि किताब अच्छी है, बहुत अच्छा लिखा है। यह सब तो मैंने भी कहा है। इसमें उलटा क्या है? मैंने जो लिखा है उसके बारे में कुछ लिखिये। जो आपने लिखा वह तो बिना पूरी किताब पढ़े भी लिखा जा सकता है। उसमें विचार क्या है यह बताइये अगर संभव हो तो।
३. मैंने किताब के बारे में अपनी राय लिखी है। अगर आपको यह धज्जियां उडाने की कोशिश लगती है तो यह आपका विचार है। मैंने जो लिखा आप उस पर अपने विचार लिखिये और बताइये कि मैंने क्या गलत लिखा है? आप जहां असहमत हैं उसके बारे में असहमति जाहिर करिये।
४. आपने लिखा- “आप अपने ही मित्र पर ” बिलों द बेल्ट ” प्रहार करते हुए खुश हो रहे हैं !”
मैं इस बारे में सिर्फ़ इतना ही कहूंगा कि शब्दों के कुछ मायने भी होते हैं। त्वरित प्रतिक्रिया देने से पहले बेहतर होता कि आप सोचते कि आप क्या कह रहे हैं। उसका मतलब क्या है।
५. आपको कष्ठ पहुंचा इसके लिये मुझे खेद है। बेहद संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते ऐसा होना सहज भी है। लेकिन आपकी जबरियन घेर-घार मुझे भूल स्वीकार करने के लिये कोशिश करके अपना कीमती ,संवेदनशील समय खराब कर रहे हैं। आपको मेरा यह रूप निंदनीय लगता है तो निन्दा करिये। आपको खुशी होनी चाहिये कि इसी बहाने आपके सामने मेरा असली रूप सामने आ गया और अब आगे आप छलावे में नहीं पड़ेंगे। मेरे बारे में तमाम अच्छी-अच्छी बातें कहने में जो आपका समय बेकार होता था वह बचेगा। अपने सोच और सहज व्यवहार से अलग दिखावा करके सम्मान अर्जित करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। आपकी निन्दा भी मेरे लिये उतनी मूल्यवान है जित्ता आपका तथाकथित सम्मान हो सकता है।
६. आपकी ईमानदारी का स्वागत है। जहां तक प्रशंसकों की लिस्ट से धकियाने का सवाल है तो किसी का प्रशंसक कोई यदि बनता है तो अपनी कामना से, अपने सुकून के लिये। यदि मैं किसी का प्रशंसक हूं तो मेरी अपनी खुशी के लिये होता है। इसके लिये अगले की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती। प्रशंसक अप्वाइंट नहीं किये न निकाले जाते हैं। यह स्वत:स्फ़ूर्त प्रक्रिया है।
७. आप समीरलाल, अरविन्द मिश्र और मेरा एकसाथ मित्र होने का दावा इतनी बार दोहरा चुके हैं, दोहराते रहते हैं कि इसको देखकर कभी-कभी लगता है कि आपको अपने पर भरोसा नहीं है कि सही में ऐसा है। इसीलिये आप बार-बार ऐसा कहकर अपने मन को मजबूत करते रहते हैं। आपको बता दें कि और भी हमारे कई कामन मित्र हैं लेकिन उनको अपने पर इत्ता भरोसा है कि वे इसे बार-बार लगातार गाहे-बगाहे दोहराते नहीं। मित्रता एक एहसास है यह महसूस किया जाता है। इसका गाना नहीं गाया जाता। गाना गाने से इसकी महत्ता कम होती है, गरिमा घटती है। आपको यह बात समझने की कोशिश करनी चाहिये।
८. इस पोस्ट से आपको अच्छी लगी इसके लिये आभार! लेकिन यह पोस्ट मैंने अपने सुकून के लिये लिखी। इस पर लिखना बहुत दिन से स्थगित था। मुझे अच्छा लगा कि मैं इस किताब को पढ़कर जैसा मुझे लगा वैसा लिख सका।
९. जहां तक अरविन्द मिश्र को समझने की बात है तो मेरा ख्याल है कि मैं उनको काम भर का समझता हूं। एक आम इन्सान की तरह उनमें कुछ अच्छाइयां हैं और कुछ अलग पहलू भी हैं । मैं अरविन्द मिश्र को आपसे पहले से जानता हूं। खूबियों-खामियों को भी। जहां तक सामान्य मनुष्य द्वारा अरविन्द मिश्र को समझने पर आपको शक है तो यह कहना चाहूंगा कि बेवकूफ़ से बेवकूफ़ व्यक्ति होशियार से होशियार व्यक्ति के बारे में एक सहज धारणा रखता है और यह सहज धारणा ज्यादातर मामलों में सही ही होती है।
१०. अरविन्द मिश्र मेरे कितने विरोधी रहे हैं और कितने समर्थक यह मैं अच्छी तरह जानता हूं। उनसे संवाद स्थापित करने में मुझे न तब कोई समस्या थी जब वे मेरी जबर समर्थक रहे होंगे और न तब जब वे मेरे तथाकथित धुरविरोधी। आपने जो दो मोर्चों में से एक पर मोर्चा खोलना स्थगित रखने की बात लिखी उससे ऐसा लगा कि मैं कोई गठबंधन सरकार बना रहा हूं और उसके लिये अरविन्द मिश्र का समर्थन लेने के लिये यह पोस्ट लिखी है।
११. मैंने यह सब लिखा इसलिये ताकि अपनी बात कह सह सकूं। कल भी लिख सकता था लेकिन नहीं लिखा क्योंकि मैं आपकी तरह भावावेश में आकर टिप्पणी करने का काम नहीं करता। उससे हमेशा गड़बड़ी होती है और बाद में आप भूल सुधार करते हैं जैसे आप लिख गये भावावेश में – ” मैं आपका वैसा ही मित्र हूँ जैसा समीर लाल और डॉ अरविन्द मिश्र का, सो आप लोगों के मध्य, रंजिश करने का प्रयत्न अवश्य करता रहूँगा भले ही आप इन प्रयत्नों की मज़ाक उड़ायें !”
टिप्पणी लम्बी हो गयी इसलिये श्रम को भुलाने से अपनी बात कहते हुये दो शेर ठो शेर और दो ठो सुभाषित भी पढ़वा देता हूं:
* शर्तें लगाई नहीं जाती दोस्तों के साथ
कीजै मुझे कुबूल मेरी हर कमी के साथ।
-वसीम बरेलवी
**गर चापलूस होते तो पुरखुलूस होते
चलते न यों अकेले , पूरे जुलूस होते।
-अजय गुप्त, शाहजहांपुर
*** वह व्यक्ति बड़ा अभागा होगा है जिसे कोई टोंकने वाला नहीं होता।
**** जिसकी जैसी अकल होती है वह वैसी ही बात कर सकता है।
शुभकामनायें आपको !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..देख लूं उड़नतश्तरी द्वारा सस्नेह -सतीश सक्सेना
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..छुट्टी कथा
हां सही है विज्ञान गल्प हमेशा आकर्षित करता है। किताब जानदार है निश्चित रूप से।
Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..काहे नहीं एक शायर रिक्रूट कर लेते
शुक्रिया।
कृपया उक्त कमेन्ट में रंजिश दूर करने का प्रयत्न पढ़ें
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..देख लूं उड़नतश्तरी द्वारा सस्नेह -सतीश सक्सेना
आपकी इस टिप्पणी की आवश्यकता नहीं थी। मैं वही समझा था जो आप कहना चाहते थे। भावावेश में ऐसा अक्सर हो जाता है।
सक्सेना जी हमेशा रंजिश करने का प्रयत्न न करें, कभी-कभी अपने प्रयत्न को रोका भी करिए:-)
सतीशजी ने अपनी बात बताई कि वे क्या कहना चाहते थे। आप भी समझ गये होंगे।
शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिये।
कोशिश करूँगा कि ये पुस्तक कही से प्राप्त कर सकु..
वैसे अच्छा करने के मामले में मैं शिवकुमार मिश्रा जी से असहमत हूँ.. मेरा ऐसा मानना है कि आपने बहुत अच्छा किया
कुश भाई गुलाबी नगरी वाले की हालिया प्रविष्टी..प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो
आप अपनी विज्ञान कथा लिख चुके हैं तो डाल दीजिये ब्लाग पर। किताब के बारे में मैंने लिखा ही है पता वहां से मंगा लो। आपको शिवकुमार मिश्र से असहमत होते देखकर बहुत अच्छा लगा। मुद्दे की बात पर असहमति जरूरी होती है।
विस्तृत रोमांचकारी विवेचना दे आपने उत्सुकता दे दी है…अब तो पढना ही होगा…
बहुत बहुत आभार…
रंजना. की हालिया प्रविष्टी..प्रेम पर्व
शुक्रिया। चलिये अब पढ़ डालिये किताब जुगाड़ करके। प्रकाशक का पता दिया ही है।
आपके इस समीक्षा कर्म से विज्ञान कथा समादृत हुई है ….मेरा अवदान अभी भी बहुत गौण है ….साहित्यकारों के लिए यह विधा अभी भी अछूत बनी हुई है जबकि भविष्य ऐसी ही भविष्य की कहानियों का है -ये कहानियाँ कोई २० साल पहले लिखी गयीं थी -तब भाषा और शैली शिल्प के प्रति कोई आग्रह न होकर जानकारियों के साझा करने की ही प्रवृत्ति मुखर थी जो कमोबेस आज भी बरकरार है ही ….
आपने कहानियों को वैसे ही सहज रूप में लिया है जैसा कि वे अभिप्रेत हैं …और यह मेरे काम की सार्थकता की भी इन्गिति है -आपका अनुमोदन यह बता देता है कि लेखक का श्रम सार्थक हुआ है ….कहानियों में पात्रों के मुखारबिंद से बोले गए सभी वाक्य अनिवार्यतः लेखकीय सहमति लिए नहीं भी हो सकते हैं -वे एक वर्ल्ड व्यू प्रस्तुत करते हैं -परिवेश का एक पहलू भर प्रस्तुत करते हैं …
सौन्दर्य के प्रति लेखकीय व्यामोह को अच्छा पकड़ा है आपने मगर समझता हूँ सौंदर्यप्रेमी होना मानवता के प्रति कोई गुनाह नहीं है …. और न ही कोई महिमा मंडन-बस जो जैसा है वैसा है ….
एक बार इस दस्तावेज को फिर से पढ़कर वर्तनी की कतिपय अशुद्धियाँ दूर कर लें क्योकि यह आगे भी उद्धृत होगी -आगे का मतलब भविष्य के अछोर फैलाव से है -
उपत्स्यते कोपि समान धर्मा कालोवधि निरवधि विपुलांच पृथ्वी …
जब से किताब आपने दी थी तबसे रखी उसको पढ़ने और उस पर लिखने का मन था। इस बार यात्रा में साथ ले गया और पढ़ ली और लिख भी दिया । इससे मुझे सुकून मिला इसके लिये कैसा आभार!
कहानियां पढ़ीं तो जगह-जगह अरविन्द मिश्र के दर्शन हुये। लेकिन उनको उसी रूप में लिया गया जैसा कि वे अभिप्रेत है।
सौंन्दर्य के प्रति व्यामोह की बात कहते हुये मैंने इसे गुनाह नहीं बताया एक प्रवृत्ति बताया लेखक की। इसे लेकर रक्षात्मक होने की जरूरत नहीं है।
वर्तनी जैसा कि आपने इशारा किया सही की गयी। आगे भी देखते रहेंगे।
आपकी प्रतिक्रिया के लिये आभार। देखिये अरविन्द जी आपके लिये किताब का इंतजाम करने के लिये “मैं हूं ना “हो लिये।
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..तिरंगे लहरा ले रे
आभार लेकिन यह सही में गड़बड़ बात है कि मैं समीक्षक होता जा रहा हूं! है न!
हां और पुस्तकें मुझसे मौज ले रही हैं।
Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..बुढ़िया चपरासी – द्रौपदी और मेरी आजी
देखिये आपकी परेशानी अरविन्द जी ने अपनी टिप्पणी हल कर दी है। वैसे किसी व्यक्ति द्वारा प्रयोग की गयी भाषा के पीछे तमाम कारक होते हैं। व्यक्ति कहां रहा, कैसे पढ़ा और भी तमाम बातें। जहां तक मुझे पता है अरविन्द मिश्र जी के पिताजी संस्कृत के विद्वान थे इसलिये उनके भाषाई संस्कार ऐसे हैं कि वे तत्सम शब्दावली प्रयोग करने के हिमायती हैं। वैसे अंग्रेजी में भी उनका हाथ तंग तो नहीं ही है।
Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..बुढ़िया चपरासी – द्रौपदी और मेरी आजी
आप हिडेन मीनिंग न खोजने के लिये आग्रह कर रहे हैं इससे लगता है कि जरूर कोई हिडेन मीनिंग है आपकी टिप्पणी में!
व्यंग्यकार जब किसी लेखक की इतनी तारीफ करे तो लेखक के लिए यह वाकई गर्व का विषय है।
शुक्रिया। वैसे जिसको आप कमाल कह रहे हैं उसी को हमारे बहुत से दोस्त धमाल भी कहते हैं। तारीफ़ तो खैर क्या जैसा मैं समझ पाया वैसा लिख दिया!
मेरा निजी मत है कि अरविंद जी ने जो कुछ इस किताब में लिखा है वह भारतीय परिवेश को ध्यान में रखकर लिखा है अन्यथा इस किताब में रॉड्रिग्ज, वॉटसन, एलिसन, सुजैन जैसे नामावली की भरमार होती जो कि अक्सर विज्ञान कथाओं के बारे में चली आ रही पश्चिमी मानसिकता के कारण अब तक होता आया है । इस मामले में अरविंद जी ने बहुत ही सही नज़रिया अपनाया है कि जब वाटसन, रॉड्रिग्ज जैसे विज्ञान पात्र हो सकते हैं तो मोहन और सुभाष क्यों नहीं हो सकते ?
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..गुलज़ार का लिखा कॉमर्शियल Ad और उसकी खूबसूरती
कल आपका लिखा देखा मैंने और उसका लिंक भी लगा दिया अपनी पोस्ट में। आपका मत सही है कि इस किताब में अपने देशकाल के हिसाब से नाम देकर अच्छा किया।
इसी क्रम में कुछ और ब्लोग सह लिखैया हों , उन्हें भी निपटा लीजिये। यह मूड सही चल रहा है।
एक पाठक के तौर पर कहीं कुछ सुधार के मौके अपेक्षित दिखे या नहीं , इसकी चर्चा बची रही।
amrendra nath tripathi की हालिया प्रविष्टी..अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर
हां सही है। सोच रहे हैं कि कुछ और किताबें निपटा ही दें। लेकिन जैसा वन्दना जी ने लिखा कि इसमें खतरा है कि हम समीक्षक जैसे होकर न रह जायें।
उन्मुक्त की हालिया प्रविष्टी..The file Classification of Cyber Crimes was added by unmukt
शुक्रिया। देखिये अरविन्दजी आपको अपनी किताब भेजने के लिये तैयार हैं।
वैसे घुमाते बहुत हैं आप, कहाँ से कहाँ पहुंच गये हम तो लिंक दर लिंक:)
sanjay की हालिया प्रविष्टी..डिफ़रेंट बैंड्स – समापन कड़ी
आभार आपका। किताब के बारे में बताने के दौरान आपको बहुत घुमा दिया। खराब आदत है न यह। थक गये होंगे। आगे से कोशिश करेंगे कम थकना पड़े आ[पको ।
सारस को संस्कृत में क्रौंच (क्रोंच नहीं ) कहते हैं -अब यह मत पूछ लीजियेगा कि सारस किस चिड़िया का नाम है -मैं कदापि नहीं बताऊंगा …
संस्कृत साहित्य का प्रथम अनुष्टुप श्लोक ही इस पक्षी का नाम लिए हुए है -
मा निषाद प्रतिष्ठाम त्वम्गमा शाश्वती समा
यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधी काम मोहितं
हे निषाद तुम्हे अनन्त काल तक प्रतिष्ठा न प्राप्त हो क्योकि तुमने कामरत क्रौंच युगल में से एक को मार दिया है !
वह साहित्य ही क्या जहाँ नए नए शब्द आपसे परिचय की बाट न जोहते रहें ?
आप भी तो नए शब्द गढ़ते रहते हैं -यूपोरियन टाईप !
मुझे आपके लिए अफ़सोस है -मगर अब भी देर नहीं हुयी है -आप की कथा का स्वागत है !
मैं तो हूँ ही ..मैं हूँ ना …किताब प्रकाशक से न मिले तो इस नाचीज को याद करियेगा -काम्प्लिमेंट्री प्रति आपके लिए सुरक्षित है ..
@उन्मुक्त जी ,
अपना पता तो बतायें तुरंत भेजता हूँ आप तो साईंस फिक्शन के चतुर चितेरे हैं -यह मेरा सौभाग्य होगा !
@सतीश पंचम जी ,
आपने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही है ..जो आनन्द देशजता में है वह अन्यत्र कहाँ?
हमेशा की तरह आपकी समीक्षा अच्छा लगा ….बल्कि विज्ञान विषयक समीक्षा होने के कारन विशेष अच्छा लगा…………….
स्तरीय विमर्ष पर नामी किंवा वेनामी के द्वारा व्यक्तिगत लानत-मलानत ……..’ताकि सनद रहे’ …….के लिए
ही रखी जाये………प्रतिउत्तर करने से विमर्श के मूल शील-भंग होने का संभावना प्रबल हो जाता है………….
जानता हूँ…..अपने क्षेत्र एवं अधिकार से अधिक कुछ टिप गया हूँ…….इसके लिए अग्रिम क्षमा………
प्रणाम.
उत्तर-प्रतिउत्तर यहां किसी कटुता के लिये नहीं किये गये। जो सवाल किये गये उनके बारे में अपनी बात रखने के लिये किये हैं। इनकी भी सनद जरूरी है न!
अनूप शुक्ल की हालिया प्रविष्टी..एक और क्रौंच वध- एक पाठक के नजरिये से
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shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..यही होता है रोज
आइये भारत और पढिये किताब! मजे आयेंगे।
अनूप शुक्ल की हालिया प्रविष्टी..एक और क्रौंच वध- एक पाठक के नजरिये से
मित्रता के मामले में लोगों का अपना-अपना अप्रोच होता है. कुछ लोगों से अपने मित्र की बुराई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती, बल्कि वे बुराई सुनकर विचलित से हो जाते हैं. वहीं कुछ लोग अपने मित्र की सभे कमियों को जानते हुए स्वीकार करते हैं और दृष्टिकोण और विचारधारा की भिन्नता के बावजूद दोस्ती बनाए रखते हैं. उपर्युक्त दोनों प्रकार के लोगों की दोस्ती पर कोई शंका नहीं. बस उनका दोस्त को देखने का नजरिया अलग होता है. मेरे विचार से भद्रजन मेरी बात समझ रहे हैं.
aradhana mukti की हालिया प्रविष्टी..वो ऐसे ही थे 2
यह सही बताया कि ये विज्ञान कथायें सरल हैं।
मित्रता के बारे में बड़ी अच्छी बात लिखी। अभी पिछले हफ़्ते जबलपुर गया था तो ज्ञानरंजन जी से मिला था। बातों-बातों में उन्होंने कहा- मेरे लिये अपने से धुरविरोधी विचार और आचरण वाले से मित्रता रखना एक आदर्श चुनौती रहती है। कई मित्रों का हवाला दिला उन्होंने जिनसे उनकी गहरी छनी जबकि वे उनसे बहुत मामलों में अलग थे।
मित्रता के मध्य स्नेह और अपनापन छिपता नहीं है अक्सर महसूस कर लिया जाता है मगर आजकल मित्रता है कहाँ ?
शुभकामनायें !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..हताश अपेक्षाएं – सतीश सक्सेना
निराश ना हों. प्रेम और मित्रता किसी युग में अनुपस्थित नहीं होते. अगर ऐसा हो जाए तो दुनिया ही मिट जाए या कम से कम मशीनी बन जाए. बस रूप बदल जाता है, अभिव्यक्ति का तरीका बदल जाता है.
aradhana mukti की हालिया प्रविष्टी..वो ऐसे ही थे 2
मेरे लिये यह नयी जानकारी है कि, डॉ. अरविन्द मिश्र ने कथा कहानियाँ भी लिखी हैं, जो कि प्रकाशित हो चुकी हैं ।
मैं अब तक उनको विज्ञान-प्रगति में ही पढ़ता आया था ।
अब इस पुस्तक की खोज आरँभ करने की मुहिम चलेगी ।
अनूप जी आपने लिखा है, तो सच्चा और अच्छा ही लिखा होगा ।
कितबिया पढ़ते समय आपकी पोस्ट फिर से पढ़ूँगा, तत्पश्चात अँक प्रदान करूँगा ।
डॉ अरविन्द यदि मुझसे पता माँगना चाहें, तो मैं मना नहीं करूँगा ।
अमर की हालिया प्रविष्टी..Comment on श्री अशफ़ाक़ उल्ला खाँ – मैं मुसलमान तुम क़ाफ़िर by shahroz
आशा है जल्द ही पता ले-देकर किताब पढ़ी जायेगी और नम्बर दिये जायेंगे।
किताब पढने की इच्छा जागी है. वैसे साइंस फिक्शन कम ही पढ़ पाता हूँ. साइंस में नॉन-फिक्शन ही ज्यादा पढता रहा हूँ
मतलब मौज लेते रहे!
किताब पढ़ने की इच्छा जागी इसे ही लेख की सफ़लता मान ली जाये क्या?
आपको इस धन्यवाद के लिये प्रति धन्यवाद!
आपका आभार व्यक्त करने का तरीका मजेदार है। शानदार है। आभार।
कृपया अपना पोस्टल एड्रेस मुझें मेरे निम्नांकित पते पर दें ताकि पुस्तक की मानार्थ {समीक्षार्थ नहीं!:) } प्रतियां भेजने की जुगाड़ हो सके …
drarvind3@gmail.com
आपकी समीक्षा जोरदार है। आपके समीक्षक होते जाने में हमें कोई बुराई नहीं दिखती।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..हे संविधान जी नमस्कार…
जल्दी आइये/जाइये किसी यात्रा पर। पढिये कितबिया। लिखिये इसके बारे में।
अनूप शुक्ल की हालिया प्रविष्टी..एक और क्रौंच वध- एक पाठक के नजरिये से
देखिये अपना ईमेल भेजिये मिसिरजी को। मिल जायेगी किताब मानार्थ!
अनूप शुक्ल की हालिया प्रविष्टी..एक और क्रौंच वध- एक पाठक के नजरिये से
दिलचस्प समीक्षा – पढ़ के “टर्मिनेटर” (१९८४) याद आई – आपको याद है – उसकी कहानी “राज करेगा रोबो” से उल्टी थी – वहाँ रोबो [ साइबोर्ग?] आता है सारा को मारने के लिए !
अपने पास भी पंडित मोतीराम वाली साइंस भाषा में एक तो पोथी पड़ी है – कल परसों पढ़ने की ट्राई मारते हैं [ [लड़कउ के लिए लाए रहे - ऊ तो पढ़े नहीं :-)] लेकिन आजकल साइंस फिक्शन बड़ा गूढ़ हो चला है
हाँ और विज्ञान प्रगति वाली भाषा के बारे में और फिर कभी [ :-)]
कहानियों का सार संक्षेप खूब अच्छा लगा।
शुक्रिया
मसिजीवी की हालिया प्रविष्टी..विष्णु खरे हमारी ही बात कर रहे हैं
मिश्र जी के आक्रोश से हम तो ऐसा घबराये हुये हैं कि सिट्टी-पिट्टी गुम है अपनी। इस कदर गुम है कि अब उनके ब्लौग पर जाना ही छोड़ दिये हैं। वैसे भी सतीश सक्सेना जी ने कह ही दिया है कि “अरविन्द मिश्र की रचनाओं और ब्लॉग पोस्ट को पढने, समझने के लिए , खुला दिल और मुक्त मन जरूरी हैं ! सामान्य बुद्धि और बंधे मन के लोग अरविन्द मिश्र को समझ पायेंगे, मुझे शक है “.|
हाँ, आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत की भारत में ऐसी रचनाओं के अभाव के चलते मिश्र जी को अपनी कला और अपना समय तनिक इस तरफ ज्यादा देना चाहिये। ब्लौग से भी कई साल पहले सब उन्हें आखिर विग्यान-प्रगति से ही जानते हैं।
गौतम राजरिशी की हालिया प्रविष्टी..तीन ख्वाब- दो फोन-काल्स और एक रुकी हुई घड़ी
कृष्ण और अर्जुन में सख्य भाव था -मैं तो अनुज गौतम में वही ढूंढता हूँ -
दोस्तों मित्रों में ऐसी वार्तायें होना सहज है पर क्या उसे दिल पर ले लेना चाहिए जबकि वे दिल से कही नहीं गयीं हों ..
भूलिए उसे ….ब्लॉग पर आयें न आयें -मन में कुछ न रखें ….और बड़ा होने के नाते मेरे कुछ अधिकार सुरक्षित हैं ,,अनूप जी को कितना कुछ कह गया हूँ -केवल इसलिए खुद को माफ़ कर देता हूँ कि उनसे भी कई वर्ष बड़ा हूँ ……अब बड़े क्या छोटे से माफी मांगने को बाध्य ही होंगें ? बीच का कोई रास्ता नहीं है ?
अंत में यही कहूंगा -
यत्र योगेश्वरः कृष्णो तत्र पार्थो धनुर्धरः
और आप गांडीवधारी है इसमें भी कोई शक?
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉग स्कूप -एक टीनेजर ब्लॉगर की शादी तय हुई!
आज अचानक फुरसतिया में घूमते टहलते बेधड़क घुस गया और वहां आपके द्वारा समीक्षा की गई पुस्तक “एक और क्रोंच वध” की कहानियो के अंशों को पढ़ा, पढ़ने के बाद मुझे लगा इनमे से कुछ कहानियों को मै बचपन में कोमिक्स के रूप में पढ़ चूका हूँ, जैसे “गुरु दक्षिणा” “धर्म पुत्र”
“राज करेगा रोबोट” राज करेगा रोबोट कहानी पर तो मैंने हालीवुड की एक फिल्म भी देखि है जिसका नाम है “टर्बनेटर” कृपया आप भी देखे….
“गुरु कुम्हार सिष कुम्भ है गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट,
अंतर हाथ सहार दे बहार बाहे चोट.”
shalini kaushik की हालिया प्रविष्टी..ये नौकरी तो कोई भी न करे
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगर-सर्वे – सहयोग की अपील