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अभय तिवारी से हमारा परिचय हुये तीन साल से ज्यादा हो लिया। शुरुआत ब्लॉग जगत की नोकझोंक से हुई! नोकझोंक के बाद मेल-मुलाकात हुई! पहले मुम्बई में
जहां , अभय और अन्य मित्रों की आत्मीय साजिश के चलते, जबरियन हमसे
जिन्दगी में पहली बार जन्मदिन का केक कटवा लिया गया, और फ़िर कानपुर में कई
बार मिले। कानपुर में मिलने आये तो हमारी श्रीमतीजी ने उनकी उमर पच्चीस साल से अधिक मानने से इन्कार कर दिया।
इसके बाद तो फ़िर मिलना-जुलना चलता रहा। मैं तो फ़िर उसके बाद मुम्बई न जा पाया लेकिन अभय जब कभी कानपुर आये मिलना-जुलना होता रहा । ऐसे ही एक मुलाकात में अभय ने एक दिन मेरे घर आकर अपनी लघु फ़िल्म सरपत भी दिखाई!
अभय अपने ब्लॉग के अलावा दो ब्लॉग और चलाते रहे। एक ब्लॉग में वे अपनी मां की कवितायें छापते रहे और दूसरे में रूमी की विराटता को मूल फ़ारसी से हिन्दी में समेटने की एक कमसिन कोशिश करते रहे। रूमी के अनुवाद के शुरुआत की कहानी बयान करते हुये अभय ने लिखा था:
बताते चलें कि हिन्द पाकेट बुक्स देश ने ही भारत में सबसे पहले पाकेट बुक्स की शुरुआत की। यह बात भी मुझे अभय से ही पता चली थी।
रूमी के काव्य रूपान्तरण पेश करने के पहले अभय ने रूमी की बुनियाद:सूफ़ी मत, रूमी के जीवन, रूमी के जीवन से जु्ड़े किस्से , रूमी की करामातें , रूमी कवि और काव्य के बारे में बताने के साथ-साथ अनुवाद की मु्श्किलें भी बयान की हैं। अनुवाद की मुश्किलें बयान करते हुये अभय लिखते हैं:
रूमी के बारे में जानकारी के देते हुये अभय ने उनका जीवन परिचय किताब में विस्तार से दिया है। रूमी का जन्म 1207 ई. में बल्ख में हुआ। बाकी जानकारी के लिये आप अभय की यह पोस्ट देखिये जिस पर अपनी टिप्पणी देखकर मुझे लग रहा है कि शायद अभय से मेरा पहला परिचय इसी पोस्ट पर हुआ था।
किताब पढ़ते हुये रूमी के जीवन दर्शन का अन्दाजा भी हुआ। रूमी की निगाह में भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है। रूमी के गुस्से का जिक्र करते का एक वाकये का जिक्र किताब में है:
रूमी काव्य की खासियत शायद यह है कि उसमें आध्यात्म की ऊंचाई तो है लेकिन जीवन का निषेध नहीं है। जैसा अभय ने लिखा भी है:
अब देखिये रूमी ने क्या अंदाज से खूबसूरती के किस्से कहे हैं:
किताब के बारे में रवीश कुमार ने लिखा है मोटी किताब है लेकिन हिन्द पाकेट बुक्स ने इसे हल्का कर दिया है। आप आसानी से उठाकर पढ़ सकते हैं। १९५ रुपये की कीमत इस किताब के लिए बिल्कुल ज़्यादा नहीं है। इतनी शानदार रचनाओं का संकलन है कि जब भी और जहां से भी पढ़ेंगे मजा आने लगेगा।
किताब की छपाई बेहतरीन है। कवर पेज शानदार चमकता हुआ एकदम अभय के मेहनत के पसीने की तरह। प्रूफ़ की कमियां कहीं दिखी नहीं मुझे। अभय ने अपने बारे में जहां भी लिखा है वो बेहद विनम्रता से लेकिन वह उसमें कृत्तिम दीनभाव नहीं है। अपनी समझ के हिसाब से अपने काम का आकलन करते हुये और इससे बेहतर करने की खुल्लम-खुल्ला नटखट चुनौती उछालते हुये अभय लिखते हैं –
अगर किताब की भूमिका से गुज़रकर उस काव्यानुवाद का महत्व पता चलता है
तो आभार ज्ञापन वाले हिस्से से अभय के मन का। अपने तमाम मित्रों सहयोगियों
को धन्यवाद देने के साथ अभय ने अपनी पत्नी तनु को के प्रति आभार व्यक्त
करते हुये लिखा- मैं अपनी पत्नी तनु का आभारी हूं जिसने मुझे हमेशा एक नैतिक बल दिया और मेरे ऊपर सांसारिकता की सीढियां चढने का कोई दबाब नहीं बनाया।इसके बाद वे अपनी पेशेवर असफ़लताओं से हिसाब बराबर करने से बाज नहीं आते- अपनी उन पेशेवर असफ़लताओं का भी आभारी हूं जिन्होंने मुझे यह काम करने का आयाम उपलब्ध कराया।
अभय की इस किताब को पढ़कर मुझे रूमी , सूफ़ी परंपरा और उसके शब्दों, दर्शन परिचय हुआ साथ ही यह ललक भी जगी कि कोई एक भाषा और सीखी जा सकती है। इस बेहतरीन काम के लिये पेशेवर रूप से अब तक असफ़ल रहे अभय की इस शानदार सफ़लता पर मैं उनको मन से बधाई देता हूं।
पुस्तक विवरण
पुस्तक का नाम: कलामे रूमी
अनुवाद व संपादन: अभय तिवारी
प्रकाशक : हिन्द पाकेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड
जे-40, जोरबाग लेन, नई दिल्ली-110003
पुस्तक की कीमत: 195 रुपये
ई-मेल: fullcircle@vsnl.com
बेवसाइट:http://artfullcircle.com
यह पुस्तक देश-भर के प्रमुख रेलवे स्टेशनों, रोडवेज स्टेशनों व अन्य बुक स्टालों पर उपलब्ध है। न मिलने पर प्रकाशक को लिखें।
संदर्भित कड़ियां: 1.आया आया कलामे रूमी आया
2.आइए, कलामे रूमी से रूबरू हो लें…
3.पुस्तक अंश : कलामे रूमी
4.‘कलामे-रूमी’ : एक ‘कमाल-किताब’
5.रूमी हिन्दी
कलामे रूमी: एक बेहतरीन काव्य रूपान्तरण
By फ़ुरसतिया on February 7, 2011
इसके बाद तो फ़िर मिलना-जुलना चलता रहा। मैं तो फ़िर उसके बाद मुम्बई न जा पाया लेकिन अभय जब कभी कानपुर आये मिलना-जुलना होता रहा । ऐसे ही एक मुलाकात में अभय ने एक दिन मेरे घर आकर अपनी लघु फ़िल्म सरपत भी दिखाई!
अभय अपने ब्लॉग के अलावा दो ब्लॉग और चलाते रहे। एक ब्लॉग में वे अपनी मां की कवितायें छापते रहे और दूसरे में रूमी की विराटता को मूल फ़ारसी से हिन्दी में समेटने की एक कमसिन कोशिश करते रहे। रूमी के अनुवाद के शुरुआत की कहानी बयान करते हुये अभय ने लिखा था:
लगभग डेढ़ बरस पहले बेरोज़ग़ारी के दिनो में एक रोज़ कहीं रूमी की किसी ग़ज़ल का घटिया हिन्दी अनुवाद पढ़ के बड़ी कोफ़्त हुई.. लगा कि इस से बेहतर अनुवाद तो मैं कर सकता हूँ..तो लग गया..रूमी के मूल फ़ारसी के अंग्रेज़ी अनुवाद से मैंने हिन्दी में कुछ ग़ज़लें तरजुमा कीं.. तक़लीफ़ होती थी..क्योंकि अंग्रेज़ी और फ़ारसी के संसार मे बड़ी दूरियां हैं..तो सोचा कि सीधे फ़ारसी से क्यों ना अनुवाद करूं…तो भई मैंने फ़ारसी सीखने का संकल्प कर लिया..नेऔर इसी संकल्प पर अमल करते हुये अभय ने फ़ारसी के सर्वाधिक चर्चित सूफ़ी कवि रूमी का जीवन, दर्शन एवं उनकी कालजयी रचना ’मसनवी’ काव्यात्मक सरल रूपान्तरण कलामें रूमी के नाम पेश किया जो कि हिन्द पाकेट बुक से प्रकाशित हुआ है।
बताते चलें कि हिन्द पाकेट बुक्स देश ने ही भारत में सबसे पहले पाकेट बुक्स की शुरुआत की। यह बात भी मुझे अभय से ही पता चली थी।
रूमी के काव्य रूपान्तरण पेश करने के पहले अभय ने रूमी की बुनियाद:सूफ़ी मत, रूमी के जीवन, रूमी के जीवन से जु्ड़े किस्से , रूमी की करामातें , रूमी कवि और काव्य के बारे में बताने के साथ-साथ अनुवाद की मु्श्किलें भी बयान की हैं। अनुवाद की मुश्किलें बयान करते हुये अभय लिखते हैं:
शब्दों में मेरी दिलचस्पी पहले से थी और इसलिये मुझे लगा कि अगर रूमी का अनुवाद सीधे फ़ारसी से हिन्दी में किया जाय तो वो न्यायसंगत भी होगा और अधिक आसान भी। मुश्किल सिर्फ़ यह थी कि मुझे फ़ारसी क्या उर्दू भी नहीं आती थी। लेकिन कुछ नया करने के आकर्षण में मैंने फ़ैसला किया मैं फ़ारसी सीखूंगा और फ़िर रूमी का अनुवाद करूंगा।फ़ारसी सीखने के लिये बेले गये पापड़ों का हवाला अभय ने तफ़सील से दिया है लेकिन किताब के हिन्दी रूपान्तरण की गुणवत्ता देखकर भरोसा नहीं होता कि सच में अभय को फ़ारसी आती नहीं होगी। लगता है जैसे वे हिन्दी और फ़ारसी बचपन से ही सीखे हैं।
रूमी के बारे में जानकारी के देते हुये अभय ने उनका जीवन परिचय किताब में विस्तार से दिया है। रूमी का जन्म 1207 ई. में बल्ख में हुआ। बाकी जानकारी के लिये आप अभय की यह पोस्ट देखिये जिस पर अपनी टिप्पणी देखकर मुझे लग रहा है कि शायद अभय से मेरा पहला परिचय इसी पोस्ट पर हुआ था।
किताब पढ़ते हुये रूमी के जीवन दर्शन का अन्दाजा भी हुआ। रूमी की निगाह में भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है। रूमी के गुस्से का जिक्र करते का एक वाकये का जिक्र किताब में है:
ऐसा बताया जाता है कि एक रोज रूमी के किसी मुरीद ने कहा कि लोग इस बात पर एतराज करते हैं कि मसनवी को कुरान कहा जा रहा है तो रूमी के बेटे सुल्तान वलेद ने टोंक दिया कि असल में मसनवी कुरान नहीं कुरान की टीका है। तो रूमी थोड़ी देर तो चुप रहे फ़िर कहने लगे,” कुरान क्यों नहीं है, कुत्ते? कुरान क्यों नहीं है, गधे? अबे रंडी के बिरादर, कुरान क्यों नहीं है मसनवी? ये जानो कि रसूलों और फ़कीरों के कलाम के बरतन में खुदाई राज के अलावा और कुछ नहीं होता। और अल्लाह की बात उनके पाक दिलों से होकर उनकी जुबान के जरिये बहती है।”इस फ़ारसी-हिन्दी रूपान्तरण को पढ़ते हुये तमाम बातें पता चलीं जो मैं पहले जानता नहीं था। एक तो यह कि संस्कृत और फ़ारसी में आपस में बहुत गहरा नाता है। और यह भी कि हमारे तमाम के रोजमर्रा शब्द मूल रूप से फ़ारसी से हैं जैसे-खरीदना, रसीद, पेंच, हवा, गुजारना,आमदनी साल, साहब,चाकू, सुबह , बच्चा, जवान आदि। फ़ारसी से हिन्दी रूपान्तरण पढ़ते हुये लगता है जैसे किसी शायर का कलाम अपनी भाषा में ही पेश किया गया है। कहीं अटकाव/खटकाव नहीं लगता। जैसे ये देखिये:
हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,और यह भी:
उतरता है जब भी खाबों की डगर को।
पा गये हो दोस्त तुम कुछ चार दिन केइसी तरह और तमाम रूपान्तरण देखकर अजित वडनेरकर की कही बात-अभय के अनुवाद की सबसे अच्छी बात हमें जो लगी वह यह कि यह सरल ही नहीं, सरलतम है। दोहराने का मन करता है।
भूल गये दोस्त, नाता पुराना साथ जिनके।
रूमी काव्य की खासियत शायद यह है कि उसमें आध्यात्म की ऊंचाई तो है लेकिन जीवन का निषेध नहीं है। जैसा अभय ने लिखा भी है:
रूमी में एक तरफ़ तो माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है; और दूसरी तरफ़ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराईयों से निकाले मोती हैं। रुमी सिर्फ़ कवि ही नहीं हैं , वे सूफ़ी हैं, वे आशिक हैं, वे ज्ञानी हैं और सब से बढ़कर वे गुरु हैं।रूमी काव्य का पूरा मजा लेने के लिये तो पूरी किताब पढ़नी पड़ेगी। कुछ अंश बीच-बीच से जो मुझे पहली नजर में ज्यादा जमें वे यहां पेश करता हूं। रूमी की नजर में देखिये इंसाफ़ क्या है:
इंसाफ़ क्या? किसी को सही जगह देनारूमी कहते हैं- भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है। भूख शीर्षक कविता में देखिये वे क्या कहते हैं:
जुल्म क्या है? उस को गलत जगह देना।
बनाया जो भी खुदा ने बेकार नहीं कुछ है
गुस्सा है, जज्बा है, मक्कारी है, नसीहत है।
इन में से कोई चीज अच्छी नहीं पूरी तरह,
इनमें से कोई चीज बुरी नहीं पूरी तरह।
भूख सब दवाओं की है सुल्तान ,खबरदारये वाकया पढिये मजेदार है:
उसे कलेजे से लगा के रख, मत दुत्कार।
बेस्वाद सब चीजें भूख लगने पर देती मजा,
मगर पकवान सारे बिन भूख हो जाते बेमजा।
कभी कोई बन्दा भूसे की रोटी था खा रहा
पूछा किसी ने तुझे इसमें कैसे मजा आ रहा।
बोला कि सबर से भूख दुगुनी हो जाती है
भूसे की रोटी मेरे लिये हलवा हो जाती है।
अपने आशिक को माशूक़ ने बुलाया सामनेजो लोग अपने पर चुटकुले सुनकर तड़क-भड़क जाते हैं उनको रूमी का लिखा यह पढ़ना चाहिये:
ख़त निकाला और पढ़ने लगा उसकी शान में
तारीफ़ दर तारीफ़ की ख़त में थी शाएरी
बस गिड़गिड़ाना-रोना और मिन्नत-लाचारी
माशूक़ बोली अगर ये तू मेरे लिए लाया
विसाल के वक़त उमर कर रहा है ज़ाया
मैं हाज़िर हूं और तुम कर रहे ख़त बख़ानी
क्या यही है सच्चे आशिक़ों की निशानी?
लतीफ़ा एक तालीम( शिक्षा) है, गौर से उसको सुनोइसी बात को टी.एस.इलियट ने इस रूप में कहा है- ” हास्य गम्भीर बात कहने का एक तरीका है। ”
मत बनो उसके मोहरे,जाहिरा(प्रत्यक्ष) में मत बुनो।
संजीदा(गम्भीर) नहीं कुछ भी लतीफ़ेबाज के लिये
हर लतीफ़ा सीख है एक, आकिलों(ज्ञानियों) के लिये।
अब देखिये रूमी ने क्या अंदाज से खूबसूरती के किस्से कहे हैं:
गुलाबी गाल तेरे जब देख पाते हैं,काव्य के अलावा सवाल-जबाब के रूप में गद्य में भी रूमी ने तमाम बातें कहीं हैं। निषेध के नकारात्मक असर को समझाते हुये रूमी कहते हैं:
झोंके खुशगवार पत्थरों में राह पाते हैं।
इक बार घूंघट जरा फ़िर से हटा दो,
दंग होने का दीवानों को मजा दो।
रूमी का यह उपदेश मजेदार है। यह उन लोगों को शायद कुछ तसल्ली दे सके जो दुनिया के लोगों से भलमनसाहत की सीख देते हुये हलकान होते रहते हैं लेकिन लोग जैसे हैं वैसे ही बने रहते हैं।जितना तुम अपनी बीबी को बोलोगे, “परदे में रहो। ” उसके भीतर अपनी नुमाइश करने और लुभाने की उतनी ही खुजली होगी। और उनके परदे में रहने से (गैर )मर्द उनके लिये और उत्सुक हो जाता है। और तुम बीच में बीच में बैठकर दोनो तरफ़ की आग भड़काये जाते हो और समझते हो कि तुम बड़ा सुधार कर रहे हो! क्यों? यही तो भ्रष्टाचार की जड़ है। अगर उनके अन्दर बुरा करने का कुदरती गुन है तो तुम उन्हें रोको या न रोको वो अपने तबियत और बनावट के मुताबिक चलेंगे। तो आराम से रहो और परेशान न हो। अगर वे हम से उलटे हैं , तो वे अपने ही रास्ते चलेंगे; उनको रोकने से सच्चाई बदलती नहीं बस उनकी चाहत और बढ़ जाती है।
किताब के बारे में रवीश कुमार ने लिखा है मोटी किताब है लेकिन हिन्द पाकेट बुक्स ने इसे हल्का कर दिया है। आप आसानी से उठाकर पढ़ सकते हैं। १९५ रुपये की कीमत इस किताब के लिए बिल्कुल ज़्यादा नहीं है। इतनी शानदार रचनाओं का संकलन है कि जब भी और जहां से भी पढ़ेंगे मजा आने लगेगा।
किताब की छपाई बेहतरीन है। कवर पेज शानदार चमकता हुआ एकदम अभय के मेहनत के पसीने की तरह। प्रूफ़ की कमियां कहीं दिखी नहीं मुझे। अभय ने अपने बारे में जहां भी लिखा है वो बेहद विनम्रता से लेकिन वह उसमें कृत्तिम दीनभाव नहीं है। अपनी समझ के हिसाब से अपने काम का आकलन करते हुये और इससे बेहतर करने की खुल्लम-खुल्ला नटखट चुनौती उछालते हुये अभय लिखते हैं –
मैं ये जानता हूं कि रूमी का फ़ारसी से हिन्दी में अनुवाद करने के लिये मैं सबसे योग्य पात्र नहीं हूं। न तो मैं सूफ़ी साधक हूं , न धर्मशास्त्रों का विद्वान हूं , न फ़ारसी भाषा का माहिर हूं और न ही तुक्कड़ या बेतुक्कड़ कवि हूं। लेकिन ये भी सच है कि मैं हर इलाके की कामचलाऊ जानकारी रखता हूं। और मैंने यह पाया कि अभी तक जो भी अनुवाद हुये हैं , उनसे बेहतर अन्जाम दे सकता हूं , इसलिये ऐसी गुस्ताखी की। इस काम की मंजिल तक पहुंच जाने के बाद भी मेरा आकलन यही है, कि शायद ये अनुवाद बहुत बुरा नहीं है। दी हुई सीमाओं -समय, साधन, और प्रतिभा में मैं जितना कर सकता था, ये सर्वश्रेष्ट है। निश्चित ही मेरे इस अनुवाद को देखकर तिलमिलाने वाले लोग होंगे और वे मुझसे बेहतर अनुवाद करेंगे ऐसी मेरी आशा है।
अभय की इस किताब को पढ़कर मुझे रूमी , सूफ़ी परंपरा और उसके शब्दों, दर्शन परिचय हुआ साथ ही यह ललक भी जगी कि कोई एक भाषा और सीखी जा सकती है। इस बेहतरीन काम के लिये पेशेवर रूप से अब तक असफ़ल रहे अभय की इस शानदार सफ़लता पर मैं उनको मन से बधाई देता हूं।
पुस्तक विवरण
पुस्तक का नाम: कलामे रूमी
अनुवाद व संपादन: अभय तिवारी
प्रकाशक : हिन्द पाकेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड
जे-40, जोरबाग लेन, नई दिल्ली-110003
पुस्तक की कीमत: 195 रुपये
ई-मेल: fullcircle@vsnl.com
बेवसाइट:http://artfullcircle.com
यह पुस्तक देश-भर के प्रमुख रेलवे स्टेशनों, रोडवेज स्टेशनों व अन्य बुक स्टालों पर उपलब्ध है। न मिलने पर प्रकाशक को लिखें।
संदर्भित कड़ियां: 1.आया आया कलामे रूमी आया
2.आइए, कलामे रूमी से रूबरू हो लें…
3.पुस्तक अंश : कलामे रूमी
4.‘कलामे-रूमी’ : एक ‘कमाल-किताब’
5.रूमी हिन्दी
amrendra nath tripathi की हालिया प्रविष्टी..कवि रमाशंकर यादव विद्रोही १ – मां
असली आशीष ‘झालिया नरेश’ की हालिया प्रविष्टी..कहां है वे – परग्रही जीवन श्रंखला भाग ४
रूमी के बारे में सिर्फ सुना भर था । आज उनका परिचय पढ़कर जानकारी में वृद्धि हुई , उसके लिए आपका एवं अभय जी का आभार। जहाँ तक बेहतर अनुवाद की बात है , उसके लिए ज्यादा सोचना ही नहीं चाहिए । केवल अपना श्रेष्ठ दे सकें , बस इतना ही ध्येय होना चाहिए।
” मैं पल दो पल का शायर हूँ , पल दो पल मेरी हस्ती है …
कल और आयेंगे कहने वाले , मुझसे बेहतर कहने वाले , तुमसे बेहतर सुनने वाले..”
In my humble opinion , one should live in present and enjoy every single moment !
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अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..शब्दों के रहस्यों का पर्दाफ़ाश
सबसे पहले भाई अभय को बहुत बधाई.
और आपको भी कि आपनें बहुत सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत किया है.
Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..बीरबल का ईनाम
कुश भाई गुलाबी नगरी वाले की हालिया प्रविष्टी..ज़िन्दगी में और भी रंग है खुदको रंगने के लिए
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..आईटीबीपी भर्ती से लौट रहे लड़कों के साथ शाहजहांपुर में विकराल हादसा
प्रणाम.
हां जी, हम उसकी घरेलू लाइब्रेरी योजना के बरसों तक मेंबर रहे और द्स रुपये में तीन चार पुस्तकें घर पर आ जाती थीं।… गुज़र गया वो ज़माना कैसा…. कैसा
निर्मल आनंद के तो हम फालोअर थे पर रूमी का पता नहीं था… अब उसके भी फालोअर बन कर उनका पीछा करेंगे:) इसके लिए हम आपके आभारी हैं॥
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..जीवन मूल्य
लेख अनौपचारिक है और कई महत्वपूर्ण प्रश्न अनुत्तरित छोडता है, मसलन-
इस को सॉफ़्ट कॉपी [पीडीएफ़] में भी खरीदा जा सकता है क्या?
भारत के बाहर इसे पाने के स्मगलिंग के आलावा क्या रस्ते हैं?
इस पुस्तक में रूमी की किन-किन पुस्तकों या किसी पुस्तक विशेष को को समेटा गया है?
अभय ने रूमी को ही क्यों चुना? और क्या इनके अलावा किसी और के कृतित्व का अनुवाद करने की योजना है?
क्या अनुवाद के दौरान अभय की बढी दाढी ने सुफ़ियाना माहौल बनाने कोई भूमिका अदा की या उस दौर में उस्तरे/साबून का खर्च कम रखना मात्र ही ध्येय था?
आभार आपका इस सुन्दर पोस्ट के लिए…
अभी लिंकों पर नहीं जा पाई हूँ,पर मेरे रूचि का विषय है यह,सो हाथ में समय रखकर भ्रमण करुँगी…
रंजना. की हालिया प्रविष्टी..नेता
रंजना. की हालिया प्रविष्टी..नेता
Neeraj Basliyal की हालिया प्रविष्टी..प्रेमचंद के देश में
पुस्तक के जिस भाग में अभय जी ने रूमी के गुस्से का ज़िक्र किया है, उस भाषा से मैं सहमत नहीं हो पा रही. रूमी दरवेश थे, सूफ़ी संत थे, तब क्या वे ऐसी भाषा का इस्तेमल करते होंगे? खैर, अनुवाद अभय जी ने किया है, फ़ारसी भी उन्हीं ने पढी है, सो सही ही होगा.
शानदार समीक्षा के लिये बधाई.
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..तिरंगे लहरा ले रे
१. नहीं।
२. नहीं। लेखक या प्रकाशक से आपकी यारी हो तो मैं नहीं जानता।
३. तीनों किताबों के अंश इस अनुवाद में हैं; मसनवी, गज़लों के दीवानों का कुल्लियात, और उपदेशों का संकलन – फ़ी ही मा फ़ी ही।
४. रूमी को चुनने के पीछे शुद्ध सनक। सोचकर प्रेम थोड़ी किया जाता है। और कोई योजना भी नहीं है पर दिल की गति कौन जाने!
५. दाढ़ी तो यूँ भी बढ़ती है, नाई हसरत से आते-जाते देखते हैं।
वन्दना जी के लिए :
सैनिटाईज़्ड भाषा तो आजकल का चलन है। असल में विक्टोरियन अवशेष। नहीं तो न तो अपने वैदिक और पौराणिक साहित्य में ऐसी कोई वर्जना काम करती है और न ही इस्लामिक परम्परा में। अलबत्ता मैंने कई हिस्से इसलिए नहीं डाले कि लोगों की नैतिकता आहत न हो जाय!
अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..एक दिन मौल
इस गंभीर साहित्य (समीक्षा) पर हास्यास्यात्मक टिप्पणी से खीज भी हुई।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..साउथ अफ़्रीका में इंडियन ओपिनियन