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देवलोक में फ़ेसबुक
By फ़ुरसतिया on March 26, 2013
इस बार संजय बेंगानी ने फ़िर हमसे होली के मौके पर लेख मांगा। हमने पुराने लेखों में से कोई देने की पेशकश की तो वे नाराज हो गये -बोले,
क्या हमको किसी नेशनल डेली का संपादक समझ रखा है जो बासी माल अपने अखबार
में छाप लेते हैं और उसको अपने फ़ेसबुक पर लगाकर आप मगन होते हो? हमें कोई
नया लेख चाहिये। हमें अपनी होलीजीन में छापना है। उसके संपादक हम खुद हैं।
इसलिये क्वालिटी लेख चाहिये- कूड़ा नहीं।
हमने सोचा कि जब कूड़ा नहीं चाहिये तो फ़िर हमसे क्यों मांग रहे हैं लेकिन फ़िर याद आया कि अभी संजय बेंगाणी संपादक के रोल में हैं। संपादक जो छापता है उसे उत्कृष्ट और बाकी को कूड़ा समझता है। पहले तो हमने सोचा कि मना कर दें कि भाई उत्कृष्ट लेखन अपन के बस की बात नहीं लेकिन फ़िर उनकी तमाम भावी प्रधानंमंत्रियों में से एक की नजदीकी का लिहाज करके रुक गये। फ़िर हमने कहा समय दो कुछ नया लिखने का तो उन्होंने कहा-ठीक है एकाध घंटे का टाइम दे देते हैं। उत्ती देर में टाइप करके भेजो। और टाइम देने से मना कर दिया।
अब संजय बेंगाणी खाली संपादक होते तो उनको मना किया जा सकता था लेकिन वे ब्लॉगिंग में चिरकुटों के अलम्बरदार भी हैं जिनका कि कहना है-फिकर नॉट, ब्लॉगिंग पर कब्जा रहेगा चिरकुटों का!
अब बताइये ऐसे को कैसे मना किया जाये सो उसके बाद मजबूरी में सब काम छोड़कर जो लिखा वह उन्होंने अपनी होलीजीन में छाप दिया। आज होलीजीन सब जगह अवतरित भी हो गयी। आप भी http://www.chhavi.in/holizine/ यहां जाकर पढिये चाहे आनलाइन चाहे डाउनलोड करके। हमारा जो लेख छापा संपादक साहब ने वह वहां जाकर पढिये क्योंकि वहां उन्होंने हमारी इस्मार्ट फ़ोटू भी लगायी है। अगर वहां जाने का मन न करे तो यहीं बांच लीजिये। शीर्षक है- देवलोक में फ़ेसबुक!
इस बार मृत्युलोक भ्रमण से लौटकर नारद जी देवलोक पहुंचे तो फ़ेसबुक की जानकारी दी। पुराने दोस्तों को खोजने में फ़ेसबुक की उपयोगिता। फ़टाफ़ट स्टेटस बनाने की क्षमता। फोटो, आवाज, वीडियो सटाने की उपयोगिता के बारे में प्रफ़ुल्लमन जानकारी दी तो सबसे साधु-साधु कहकर नारद जी की तारीफ़ की। नये देवताओं के मन फ़ेसबुक खाते बनाने के लिये मचल उठे। देवियां भी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल बनाने के लिये पोज देकर फोटो खिंचवाने लगीं। सबसे ज्यादा खुशी मेनका, रंभा, उर्वशी आदि अप्सराओं को हुई। वे सोचने लगी चिरयुवा देवताओं की सेवा और बुढऊ श्रृषियों की तपस्या भंग करने में सौंदर्य बरबाद हुआ अब तक। इस बहाने कम से कम नये प्रशंसक मिलेंगे। नये देवी/देवता सोचने लगे कि उनके भी फ़ालोवर बढ़ें तो शायद उनके नाम के भी मंदिर-संदिर बनें। पहचान के संकट से जूझते देवगण फ़ेसबुक खाते खुलने की कल्पना से किलकने लगे। देवियां और प्रमुदित हो गयीं।
देवलोक में फ़ेसबुक की सुविधा शुरु करने पर निर्णय लेने हेतु आम सभा बुलायी गयी। धरती की तरह ही वहां भी प्रमुख बड़े पदों पर बूढे देवताओं का ही कब्जा था। वे सब फ़ेसबुक के खिलाफ़ थे। उनको लग रहा था कि फ़ेसबुक खाता खुलते ही उनको सर्वसुलभ हो जाना पड़ेगा। कोई भी भक्त उनका मित्र बन जायेगा। कोई भी पोक करके चला जायेगा। अभी तो भक्तों को झांसा देकर बच जाते हैं उनकी पुकार उनतक पहुंची नहीं इसलिये उनका कल्याण नहीं हुआ लेकिन जब भक्त फ़ेसबुक पर उनके खाते में खुलेआम अपनी वेदना पोस्ट करेगा तो कैसे उसको नकारेंगे।
नये देवताओं का मानना था कि एकबार जब हम देवता बने हैं तो देवतागिरी भी फ़ुल ईमानदारी से करनी चाहिये। जो भक्त बुलाये उसके कल्याण के लिये जाना चाहिये। दुष्टों का संहार करना चाहिये। धर्म की स्थापना करनी चाहिये। उनका यह भी मानना था कि फ़ेसबुक खाता खुलने से भक्त से सीधा संवाद हो सकेगा। चढ़ावा जो आता है वो सीधा हम तक पहुंचेगा। अभी तो सब पुजारी मार जाते हैं। सुना है अरबों-खरबों का चढ़ावा चढ़ता है, दूध वस्त्र फ़ल मेवा मिष्टान। लेकिन यहां तक केवल किस्से पहुंचते हैं। विष्णुजी तक युगों से एक ही पीताम्बर धारण किये हैं, शिव जी वही बाघांबर पहने हैं, सरस्वती, लक्ष्मी जी अपनी साड़ियां तक नहीं बदल पायी हैं। फ़ेसबुक से जुड़ेंगे तो भक्तों से सीधा संवाद हो सकेगा। उनके स्टेटस से पता चलता रहेगा कि कित्ते का प्रसाद चढ़ाया उन्होंने मंदिर में। हिसाब जमेगा तो चढ़ावे की सीधे अपने खाते में ट्रांसफ़र की सुविधा हासिल की जायेगी जैसी भारत सरकार गरीबों के लिये करने जा रही है।
भक्त के चढ़ावे की सीधी जानकारी से फ़ेसबुक की खिलाफ़त करने वाले सीनियर देवता भी उत्सुक हो गये कि कैसे फ़ेसबुक से यह पता चलेगा कि किसने कित्ता चढ़ावा दिया है मंदिर में। इस पर एक नये देवता ने ,जो कि देवता बनने के पहले साफ़्टवेयर इंजीनियर था, ने जानकारी दी कि मृत्युलोक में अपने किये का गाना गाने का चलन देवलोक की ही तरह है। जैसे देवता लोग भक्त पर एक एहसान करने युगों-युगों तक उससे प्रसाद वसूलते रहते हैं वैसे ही धरती पर भी लोग नेकी कर फ़ेसबुक पर डाल पंरंपरा का पालन करते हैं। इधर प्रसाद चढ़ायेंगे उधर फ़ेसबुक पर गायेंगे- आज बीस आने का प्रसाद चढ़ाया। अब तो बजरंगबली काम कर ही देंगे। भक्तों के चढ़ावे के स्टेटस से देवी/देवता लोग अपने-अपने हिस्से का हिसाब कर लेंगे।
देवलोक के लोग यह सोचकर खुश हुये कि उनको इससे फ़र्जी भक्तों से छुटकारा मिलेगा। सबसे ज्यादा पार्वती जी खुश हुईं कि इससे कम से कम शंकरजी की मेहनत तो कम होगी। अब तक ऐसा होता आया कि जिसने भी देवलोक की तरफ़ मुंह करके कुछ भी प्रार्थना की उसे शंकरजी अपना भक्त समझकर उसका कल्य़ाण कर देते हैं। बाद में पता चलता है कि वो तो किसी और देवता का भक्त है। न जाने कित्ता नुकसान होता है इससे उनका। अब कल्याण करने के बाद शिवजी से यह तो होता नहीं कि दूसरे देवताओं से हिसाब करें बैठ के कि उनके भक्त के कल्याण ये खर्चा आया। एकध बार किसी देवता से जिकर किया भी तो वह हें हें हें करते हुये कहने लगा- प्रभो मैं भी तो आपका ही भक्त हूं। हमारा भक्त भी आपका ही भक्त तो ठहरा। शिवजी बेचारे गरल की तरह नुकसान भी धारण कर गये। कुछ देवता इस बात से खुन्नस खाते हैं शिवजी दूसरे देवताओं के भक्तों का भी भला करके यह संदेश देना चाहते है कि भला करना सिर्फ़ शंकर जी के ही बूते की बात है।
देवलोक में सभी एकमत से फ़ेसबुक की स्थापना से सहमत हो गये लेकिन तभी एक काइयां देवता ने सवाल किया कि इस फ़ेसबुक की कुछ खराबियां भी होंगी। जरा उनके बारे में भी चर्चा हो जाये। इस पर लोगों ने उसको घूरते हुये चुप हो जाने का इशारा किया लेकिन तब तक सवाल चर्चा में आ गया था सो कमियां भी पता की गयीं। देवताओं को पता चला कि:
देवलोक टाइम्स की यह खबर मैं पढ़ ही रहा था कि अभी-अभी हमारे फ़ेसबुक खाते में किसी देवता का मित्रता अनुरोध आया है। क्या आपके यहां भी आया है? देखिये जरा।
हमने सोचा कि जब कूड़ा नहीं चाहिये तो फ़िर हमसे क्यों मांग रहे हैं लेकिन फ़िर याद आया कि अभी संजय बेंगाणी संपादक के रोल में हैं। संपादक जो छापता है उसे उत्कृष्ट और बाकी को कूड़ा समझता है। पहले तो हमने सोचा कि मना कर दें कि भाई उत्कृष्ट लेखन अपन के बस की बात नहीं लेकिन फ़िर उनकी तमाम भावी प्रधानंमंत्रियों में से एक की नजदीकी का लिहाज करके रुक गये। फ़िर हमने कहा समय दो कुछ नया लिखने का तो उन्होंने कहा-ठीक है एकाध घंटे का टाइम दे देते हैं। उत्ती देर में टाइप करके भेजो। और टाइम देने से मना कर दिया।
अब संजय बेंगाणी खाली संपादक होते तो उनको मना किया जा सकता था लेकिन वे ब्लॉगिंग में चिरकुटों के अलम्बरदार भी हैं जिनका कि कहना है-फिकर नॉट, ब्लॉगिंग पर कब्जा रहेगा चिरकुटों का!
अब बताइये ऐसे को कैसे मना किया जाये सो उसके बाद मजबूरी में सब काम छोड़कर जो लिखा वह उन्होंने अपनी होलीजीन में छाप दिया। आज होलीजीन सब जगह अवतरित भी हो गयी। आप भी http://www.chhavi.in/holizine/ यहां जाकर पढिये चाहे आनलाइन चाहे डाउनलोड करके। हमारा जो लेख छापा संपादक साहब ने वह वहां जाकर पढिये क्योंकि वहां उन्होंने हमारी इस्मार्ट फ़ोटू भी लगायी है। अगर वहां जाने का मन न करे तो यहीं बांच लीजिये। शीर्षक है- देवलोक में फ़ेसबुक!
देवलोक में फ़ेसबुक
देवलोक में आजकल फ़ेसबुक की चर्चा है।इस बार मृत्युलोक भ्रमण से लौटकर नारद जी देवलोक पहुंचे तो फ़ेसबुक की जानकारी दी। पुराने दोस्तों को खोजने में फ़ेसबुक की उपयोगिता। फ़टाफ़ट स्टेटस बनाने की क्षमता। फोटो, आवाज, वीडियो सटाने की उपयोगिता के बारे में प्रफ़ुल्लमन जानकारी दी तो सबसे साधु-साधु कहकर नारद जी की तारीफ़ की। नये देवताओं के मन फ़ेसबुक खाते बनाने के लिये मचल उठे। देवियां भी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल बनाने के लिये पोज देकर फोटो खिंचवाने लगीं। सबसे ज्यादा खुशी मेनका, रंभा, उर्वशी आदि अप्सराओं को हुई। वे सोचने लगी चिरयुवा देवताओं की सेवा और बुढऊ श्रृषियों की तपस्या भंग करने में सौंदर्य बरबाद हुआ अब तक। इस बहाने कम से कम नये प्रशंसक मिलेंगे। नये देवी/देवता सोचने लगे कि उनके भी फ़ालोवर बढ़ें तो शायद उनके नाम के भी मंदिर-संदिर बनें। पहचान के संकट से जूझते देवगण फ़ेसबुक खाते खुलने की कल्पना से किलकने लगे। देवियां और प्रमुदित हो गयीं।
देवलोक में फ़ेसबुक की सुविधा शुरु करने पर निर्णय लेने हेतु आम सभा बुलायी गयी। धरती की तरह ही वहां भी प्रमुख बड़े पदों पर बूढे देवताओं का ही कब्जा था। वे सब फ़ेसबुक के खिलाफ़ थे। उनको लग रहा था कि फ़ेसबुक खाता खुलते ही उनको सर्वसुलभ हो जाना पड़ेगा। कोई भी भक्त उनका मित्र बन जायेगा। कोई भी पोक करके चला जायेगा। अभी तो भक्तों को झांसा देकर बच जाते हैं उनकी पुकार उनतक पहुंची नहीं इसलिये उनका कल्याण नहीं हुआ लेकिन जब भक्त फ़ेसबुक पर उनके खाते में खुलेआम अपनी वेदना पोस्ट करेगा तो कैसे उसको नकारेंगे।
नये देवताओं का मानना था कि एकबार जब हम देवता बने हैं तो देवतागिरी भी फ़ुल ईमानदारी से करनी चाहिये। जो भक्त बुलाये उसके कल्याण के लिये जाना चाहिये। दुष्टों का संहार करना चाहिये। धर्म की स्थापना करनी चाहिये। उनका यह भी मानना था कि फ़ेसबुक खाता खुलने से भक्त से सीधा संवाद हो सकेगा। चढ़ावा जो आता है वो सीधा हम तक पहुंचेगा। अभी तो सब पुजारी मार जाते हैं। सुना है अरबों-खरबों का चढ़ावा चढ़ता है, दूध वस्त्र फ़ल मेवा मिष्टान। लेकिन यहां तक केवल किस्से पहुंचते हैं। विष्णुजी तक युगों से एक ही पीताम्बर धारण किये हैं, शिव जी वही बाघांबर पहने हैं, सरस्वती, लक्ष्मी जी अपनी साड़ियां तक नहीं बदल पायी हैं। फ़ेसबुक से जुड़ेंगे तो भक्तों से सीधा संवाद हो सकेगा। उनके स्टेटस से पता चलता रहेगा कि कित्ते का प्रसाद चढ़ाया उन्होंने मंदिर में। हिसाब जमेगा तो चढ़ावे की सीधे अपने खाते में ट्रांसफ़र की सुविधा हासिल की जायेगी जैसी भारत सरकार गरीबों के लिये करने जा रही है।
भक्त के चढ़ावे की सीधी जानकारी से फ़ेसबुक की खिलाफ़त करने वाले सीनियर देवता भी उत्सुक हो गये कि कैसे फ़ेसबुक से यह पता चलेगा कि किसने कित्ता चढ़ावा दिया है मंदिर में। इस पर एक नये देवता ने ,जो कि देवता बनने के पहले साफ़्टवेयर इंजीनियर था, ने जानकारी दी कि मृत्युलोक में अपने किये का गाना गाने का चलन देवलोक की ही तरह है। जैसे देवता लोग भक्त पर एक एहसान करने युगों-युगों तक उससे प्रसाद वसूलते रहते हैं वैसे ही धरती पर भी लोग नेकी कर फ़ेसबुक पर डाल पंरंपरा का पालन करते हैं। इधर प्रसाद चढ़ायेंगे उधर फ़ेसबुक पर गायेंगे- आज बीस आने का प्रसाद चढ़ाया। अब तो बजरंगबली काम कर ही देंगे। भक्तों के चढ़ावे के स्टेटस से देवी/देवता लोग अपने-अपने हिस्से का हिसाब कर लेंगे।
देवलोक के लोग यह सोचकर खुश हुये कि उनको इससे फ़र्जी भक्तों से छुटकारा मिलेगा। सबसे ज्यादा पार्वती जी खुश हुईं कि इससे कम से कम शंकरजी की मेहनत तो कम होगी। अब तक ऐसा होता आया कि जिसने भी देवलोक की तरफ़ मुंह करके कुछ भी प्रार्थना की उसे शंकरजी अपना भक्त समझकर उसका कल्य़ाण कर देते हैं। बाद में पता चलता है कि वो तो किसी और देवता का भक्त है। न जाने कित्ता नुकसान होता है इससे उनका। अब कल्याण करने के बाद शिवजी से यह तो होता नहीं कि दूसरे देवताओं से हिसाब करें बैठ के कि उनके भक्त के कल्याण ये खर्चा आया। एकध बार किसी देवता से जिकर किया भी तो वह हें हें हें करते हुये कहने लगा- प्रभो मैं भी तो आपका ही भक्त हूं। हमारा भक्त भी आपका ही भक्त तो ठहरा। शिवजी बेचारे गरल की तरह नुकसान भी धारण कर गये। कुछ देवता इस बात से खुन्नस खाते हैं शिवजी दूसरे देवताओं के भक्तों का भी भला करके यह संदेश देना चाहते है कि भला करना सिर्फ़ शंकर जी के ही बूते की बात है।
देवलोक में सभी एकमत से फ़ेसबुक की स्थापना से सहमत हो गये लेकिन तभी एक काइयां देवता ने सवाल किया कि इस फ़ेसबुक की कुछ खराबियां भी होंगी। जरा उनके बारे में भी चर्चा हो जाये। इस पर लोगों ने उसको घूरते हुये चुप हो जाने का इशारा किया लेकिन तब तक सवाल चर्चा में आ गया था सो कमियां भी पता की गयीं। देवताओं को पता चला कि:
फ़ेसबुक में खाता खुलने पर लोग सीता और रावण को एक साथ टैग करेंगे, मेनका और रंभा को सरस्वती और लक्ष्मी से ज्यादा लाइक किया जायेगा। कुबेर के आगे शंकर जी को कोई पूछेगा नहीं। माता पार्वती को कोई लंपट सेक्सी और क्यूट बतलायेगा। देवता किसी महिला के फ़ेसबुक स्टेटस पर दयालु होकर उस स्टेटस धारिणी को पुत्रवती बना देंगे लेकिन उधर से साठ साला जवान के मां बनने की खबर आयेगी। इसी तरह की अनगिन समस्याओं से जूझना पड़ेगा। देवलोक की गोपनीयता भंग होगी। देवलोक में फ़ेसबुक की शुरुआत सूचना का अधिकार लागू करने से भी आत्मघाती होगी। देवताओं को भारत में चुनाव की बाद की जनता की तरह कोई पूछेगा तक नहीं।फ़ेसबुक के इतने सारे पंगे सुनकर देवताओं के चेहरे चुनाव में हारे बुजुर्ग नेता के चेहरे की झुर्रियों सरीखे लटक गये हैं। फ़ेसबुक पर तुरंत अमल का प्रस्ताव फ़िलहाल स्थगित हो गया है। युवा देवताओं को देवलोक से मृत्युलोक भेजा गया कि वे वहां जाकर अपना फ़ेसबुक खाता बनायें और फ़ेसबुक के बारे में अपने अनुभव बतायें ताकि इस बारे में अंतिम निर्णय लिया जा सके।
देवलोक टाइम्स की यह खबर मैं पढ़ ही रहा था कि अभी-अभी हमारे फ़ेसबुक खाते में किसी देवता का मित्रता अनुरोध आया है। क्या आपके यहां भी आया है? देखिये जरा।
Posted in बस यूं ही | 23 Responses
हा हा हा …जबरदस्त. आखिर देवलोक भी कैसे बचे इस जंजाल से.
हमारे पास अभी तक किसी देवता की फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं आई है, आएगी तो आपको बताएँगे आखिर उनकी भी चर्चा तो आप ही करेंगे न :).
रंगों की बौछार है
एक चिरकुटों के अलम्बरदार
दूजे चिरकुटई सरदार हैं
देवताओं की मजाल क्या
जो फेसबुक बनायेंगे
जब हर फेस को बुक किये
रँगे हुए सियार हैं :):)
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..पं. पोंगादीन लप्पाचार्य से विस्फोटक बातचीत
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लिखा जोरदार है व्यंग लेखक के रूप में अब आपकी पहचान बननी शुरू हुयी है -मोबाईल थरथराने लगे हैं
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..क्या खाली पीली होली ?
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कल दिनांक28/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
संजय बेंगाणी की हालिया प्रविष्टी..न्याय की जीत या भय की जीत?
देवलोक में फ़ेसबुक पर गंभीर, रोचक प्रस्तुति पढना बहुत अच्छा लगा …होली की शुभकामनायें
सुरेश साहनी,कानपुर की हालिया प्रविष्टी..बेहतर है, आप की पत्नी आप से सिर्फ तलाक चाहती है।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..युक्तं मधुरं, मुक्तं मधुरं