Thursday, November 07, 2013

मंगल अभियान कृष-3 और क्रिकेट मैच

http://web.archive.org/web/20140209191351/http://hindini.com/fursatiya/archives/5113
दो दिन पहले भारत का अंतरिक्ष यान मंगलग्रह के लिये रवाना हुआ। नारियल फोड़कर भेजे गये अंतरिक्ष यान का दिन भर हल्ला मचा रहा। शाम को मीडिया की प्राइमटाइम बहस का हिस्सा बना मंगल अभियान। हम सुकून से सोये कि चलो कम से कम एक दिन तो उपलब्धियों की बात हुई।
सुबह अखबार आया तो सोचा कि देखा जाये और क्या विवरण आया है अखबार में। अखबार के पहले पेज में देखा तो पूरे पेज पर स्टार स्पोर्ट्स का विज्ञापन था जिसमें लिखा था -आज से बदलेगी खेल की परिभाषा।
हमें लगा शायद स्टार स्पोर्ट्स वाले कोई घोषणा करने वाले हों कि वे मंगलग्रह पर खेल के लिये टीम भेजेंगे। पन्ना पलटा तो देखा कि एक बैट्समैन एक बल्ला और एक पांव आधा उठाये भरतनाट्यम मुद्रा में खड़ा था। ये तो क्रिकेट का विज्ञापन निकला भाई। हमे लगा चलो कोई नहीं। अखबार बेचारे गरीब लोग हैं। विज्ञापन से ही पेट का खाना मिलता है उनको। खबर अगले पेज पर देख लेते हैं।
ताज्जुब हुआ अगले पेज पर भी मंगल अभियान की खबर नहीं थी। मोटी हेडिग थी- 199 वें टेस्ट के लिये तेन्दुलकर तैयार। इसके खबर के दांये-बायें सचिन से जुड़ी खेल की खबरें और घटनायें थीं। सचिन के मैच खेलने की तैयारी की खबर ने मंगल अभियान की खबर को धकिया के पीछे कर दिया। एक निठल्ले खेल के नायक के एक मैच में खेलने की खबर ने देश के वैज्ञानिकों की कर्मठता की कहानी को पीछे कर दिया। अपने वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर गर्व का खुमार एक्कै दिन में उतर गया।
चैनलों में देखा तो मंगल अभियान या उपग्रह की कोई खबर नहीं आ रही थी। चैनल सचिन के द्वारा लिये गये एक विकेट का गाना गा रहे थे। मंगल अभियान की खबर नेपथ्य में चली गयी थी। सचिन के द्वारा लिया गया एक विकेट मंगलग्रह पर भेजे गये उपग्रह से ज्यादा चर्चा लायक दिखा मीडिया को।
मंगल अभियान पर खर्चे के बारे में भी कुछ लोग रोना रोते दिखे। कोई बोला इत्ते में ये हो जाता वो हो जाता। जिन बुद्धिजीवियों को मंगल अभियान में चार सौ करोड़ रुपये के खर्चे से दुख हो रहा है उनको जानकारी के लिये बता दें कि इसी गरीब समाज ने कृष-3 पिक्चर देखने के लिये तीन दिन में 75 करोड़ फ़ूंक दिये। तीन हफ़्ते में मंगल अभियान के बराबर पैसा फ़ूंक चुका होगा समाज इस फ़िल्म को देखने के लिये!
वो तो कहो किसी ने ये नहीं कहा कि क्या जरूरत थी चार सौ करोड़ फ़ूंकने की। कृष से कहते तो 68 किलो के यान को मंगल ग्रह की कक्षा में धर के आ जाता। कृष-3 के मानवर को लगा देते तो अपनी जीभ से मंगल की मिट्टी के नमूने जीभ में लपेट के आ जाता जैसे पिक्चर में आइसक्रीम चाट लेता है। मिट्टी टेस्ट करके पता कर लेते कि मंगल पर पानी या मीथेन है कि नहीं।
छोडिये पिक्चर की कमाई को। मान लीजिये कि सौ करोड़ की आबादी में दस करोड़ कामगार हैं और सबको औसतन न्यूनतम वेतन (लगभग 300 रुपये रोज) मिलता है। बकौल परसाई जी पूरा देश खाने के बाद कम से कम दो घंटे ऊंघता है। घंटे भर की मजूरी अगर चालीस रुपये मान लें तो चार सौ करोड़ तो देश ऊंघने में बरबाद कर देता है। जिसको मन आये अपने हिस्से की बरबादी कम करके देश के खाते में जमा कर दे।
ताज्जुब हुआ यह देखकर कि एक बाबा के सपने के आधार गड़े खजाने की खोज में दिन-रात रिपोर्टिंग करता मीडिया मंगल अभियान की खबर पर एकदम उदासीन सा दिखा। खजाने के बारे में बाबा के चेले के नौटंकी भरे बयान बार-बार दिखाने वाले मीडिया को यह सुधि नहीं आयी कि उस वैज्ञानिक से विस्तार से बातचीत करते इस बारे में जिसने इस अभियान के लिये पिछले अठारह माह कोई छुट्टी नहीं ली और काम में लगा रहा। अच्छा होता कि इस मौके पर मीडिया वाले सरल भाषा में बात करने वाले वैज्ञानिकों को बुलाकर बात करते कि कैसे अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में जाते हैं। क्या गति होती है जब जाता है यान। कैसे परिक्रमा करते हैं। कैसे उतरते हैं यान। क्या फ़ायदे हैं इन उपग्रहों के? कैसे कचरा फ़ैल रहा है अंतरिक्ष में।
लेकिन मीडिया की प्राथमिकतायें अलग हैं। उसको क्रिकेट के भगवान के 199 वें टेस्ट में खेलने की खबर ज्यादा दिलचस्पी है बनिस्पत अपने देश के पहले मंगल अभियान के। देश में वैज्ञानिक अभिरुचि कहां से आयेगी?


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