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समझनें में चूक और ययाति के वंशज
By फ़ुरसतिया on November 24, 2013
आजकल
एक पत्रकार का नाम चर्चा में है। बुढौती में जवानी के तेज ने ऐसा जकड़ा कि
साथ की तरुणी को दबोच लिया अगले ने । अकेले में। बच्ची की उमर की साथी से
यौन दुर्व्यवहार किया। पत्रकार की चौतरफ़ा थुड़ी-थुड़ी हो रही है। फ़ुटबाल की
तरफ़ उछलते उनके नये-पुराने कारनामों पर दनादन ‘निंदा-किक’ लग रहे हैं।
खुलासे के बाद अगले ने कहा- “समझने में भयंकर चूक हुयी। अनजाने में (दो दो बार) पाप हो गया। कोई नहीं! हो गया सो हो गया। अब प्रायश्चित कर लेंगे- प्रायश्चित के साबुन में बड़ी जान है।”
अपने पाप को, प्रायश्चित के डिटरजेंट में डालकर, ‘पाप वॉशिंग मशीन’ चलाकर वरिष्ठ पत्रकार छह माह के ‘पश्चाताप अवकाश’ पर चले गये। अपने साबुन और वॉशिंग मशीन पर उनको पक्का भरोसा था। यकीन था कि छह महीने में न पाप रहेगा न पाप का नामोंनिशान।
लेकिन प्रायश्चित का साबुन गांधी जी के जमाने का था। एक्पायरी डेट का साबुन। एक्सपायर्ड दवाओं के रिएक्शन की तरह साबुन भी रिएक्ट कर गया। पाप दुनिया भर में झाग की तरह फ़ैल गया। पत्रकार को एहसास नहीं था कि उनका अकेले में किया पाप दुनिया भर को दिख जायेगा। ‘म्यूट’ किये हुये पाप चीख-चीखकर बोलने लगे। बहरों को भी सुनाई देने लगा कि पाप हुआ है। एक बार उनसे समझने में फ़िर चूक हुई।
खुलासे की पत्रकारिता करने वाले पत्रकार से यह समझने में भी चूक हुई कि दो लोगों के बीच हुआ व्यवहार जितना व्यक्तिगत होता है उससे कहीं ज्यादा उसके सार्वजनिक होने की संभावना होती है।
अब हाल यह है कि एक व्यक्ति की समझने में हुई चूक का सिलसिला जो शुरु हुआ तो तमाम लोगों से धड़ल्ले से समझ में चूक होती जा रही है। हाल यह है कि
‘समझ की चूक अकेले ही चली थी जानिबे मंजिल मगर
चूक मिलती गयी औ (चूक का) कारवां बनता गया।’
जिसे देखो वही इस ‘समझ-चूक-यज्ञ’ में अपनी आहुति डालता जा रहा है। स्वाहा बोलता जा रहा है। पत्रकार से समझने में हुई चूक का सिलसिला एक बार जो शुरु हुआ तो फ़िर तो मत पूछो भैया। एकदम्मै तहलका मच गया। जिसे देखो वही ‘समझने की चूक’ की गंगा में डुबकी लगाने लगा।हर एक की ‘समझ की चूक’ दूसरे की ‘समझ की चूक’ से कह रही है – मुझे भी तू लिफ़्ट करा दे।
ऐसे ही ‘समझने में हुई चूकों’ के कुछ नमूने यहां पेश किये जा रहे हैं:
1. पत्रकार से शुरु हुई समझ के चूक ने सबसे पहले पत्रकार की बॉस को अपनी गिरफ़्त में जकड़ा। समझ में चूक के चलते वे यह समझ बैठीं कि उनके संस्थान में हुआ एक महिला के साथ हुआ यौन अपराध संस्थान का आंतरिक मामला है। बाहर के लोगों को इसमें दखल देने की जरूरत नहीं।
2. ‘समझ चूक वायरल’ ने इसके बाद कुछ समझदार टाइप लोगों को जकड़ा। वे कहते पाये गये कि पत्रकार जरा अलग टाइप का है। बुद्धिजीवी बिरादरी का । सो उसकी हरकत को जरा अलग टाइप से देखा जाये। अपराध के नजरिये से देखने की बजाय मनोविज्ञान के चश्में से देखा जाये इसे। बहुत भलाई के काम किये हैं अगले ने समाज के लिये। लिहाजा उसकी ‘समझने में हुई चूक’ को जरा भली निगाहों से देखा जाये।
3. समझने में चूक समाज के लोगों से भी हुई। पत्रकार खोजी पत्रकारिता के धंधे में लगा था तो लोगों ने यह समझ लिया कि ये जो भी कुछ करेगा सबके भले के लिये ही करेगा। लोगों ने एक पत्रकार की आम इंसान की तरह हरकतें करने की आजादी पर भांजी मारने की कोशिश की। पत्रकार ने अपने साथ हुई नाइंसाफ़ी का बदला ले लिया और दिखा दिया कि उसे मात्र सामाजिक सरोकारी पत्रकार समझकर उसके साथ अन्याय किया गया। लंपट भी अगला किसी से कम नहीं है।
4. कुछ लोगों ने समझा कि पत्रकार ने यौन दुर्व्यवहार किया तो इसका मतलब उसकी पत्रिका के जुड़े सब लोग लंपट है। पत्रकार जिस पत्रिका में है उसे बंद कर दिया जाये। यह कुछ ऐसा ही है जैसे शोले में जय-वीरू को सजा देने के लिये गब्बर सिंह ने पूरे रामगढ़ को सबक सिखाने का प्लान बना डाला था।
5. पत्रकार ने माफ़ी बिना शर्त माफ़ी मांगी तो लोगों से यह समझने में चूक हुई कि वह वाकई अपनी करनी पर शर्मिन्दा है। लेकिन जब पत्रकार ने बाद में बयान जारी किया कि लफ़ड़े में महिला की ‘असहमति नहीं’ थी। तो लोगों को लगा कि पत्रकार की धूर्तता को उसका ‘अपराध बोध’ समझने की चूक हुई।
6. पिछले उदाहरण में पत्रकार ने महिला साथी की ‘असहमति’ में ‘अ’ को शायद उसकी ‘टाइपो’ समझा हो। उसकी अपने बचाने की कोशिशों, पत्रकार को बरजने, मुक्त होने के प्रयासों को पत्रकार सहमति के इशारों के रूप में ले रहा हो। अपने साथ की गयी लंपटता से बचने की कोशिशों को पत्रकार उसकी ‘असहमति नहीं’ ही समझता रहा। समझने में हुई इस चूक के चलते सब लफ़ड़ा हो गया। इसमें वरिष्ठ पत्रकार का क्या दोष?
7. अब पत्रकार कह रहा है कि उसके खिलाफ़ राजनैतिक साजिश हो रही है। उससे यह समझने में चूक हो रही है कि लोग उसके इस झांसे में आ जायेंगे।
8. अब महिला की मां से पूछा जा रहा है पत्रकार को बचाने के लिये क्या (कीमत) चाहिये? यह भी समझने की चूक ही है शायद कि इससे महिला चुप हो जायेगी।
9. कुछ संस्कारवान भले मानुष सोच रहे हैं अगर अंग्रेजी पत्रकार की जरा भी रुचि शायरी में होती तो उसने नबाज देवबंदी का यह शेर जरूर पढ़ा होता :
बदनजर उठने ही वाली थी किसी की जानिब लेकिन,
अपनी बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप गया।
तो वह अपनी बेटी की उमर की साथिन से जबर्दस्ती ऐसी हरकत न करता। लेकिन यह भी लोगों की समझने की चूक ही है। अगर सूक्ति वाक्यों से लोगों के मन बदलते तो मठ और धर्मस्थल अपराधों के अड्डे न होते।
समझने की चूक के सिलसिले को और आगे बढ़ाने की जगह आइये आपको अपने पूर्वज ययाति की कहानी सुनाते हैं। श्रम को भुलाने के लिये सुनते चलें:
राजा नहुष बहुत वीर टाइप राजा थे। उन्होंने युद्ध में इंद्र को हरा दिया। इंद्र को हराने के बाद इंद्र की पत्नी से संसर्ग करना चाहा। इंद्राणी ने भी शर्त रखी- अगर नहुष सप्तर्षियों की पालकी में बैठकर आयेंगे तो वे नहुष की इच्छा पूर्ति करेंगी। नहुष उतावले। वे बैठकर चल दिये। सप्तर्षि उनकी पालकी ठो रहे थे। कुछ-कुछ ऐसे जैसे आजकल जाने-माने बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञों की पालकी ढोते हैं। ॠषि थोड़ा बुजुर्ग थे। मंथर गति से चल रहे थे। उधर राजा नहुष का जिया बेकरार। इंद्राणी तक शीघ्र पहुंचने उनकी इच्छा ने उफ़ान मारा तो उन्होंने ऋषि अगस्त्य के माथे पर ‘सर्प!’ कहकर जोर से लात मारी । लात लगते ही ऋषि का ऋषित्व जाग उठा और उन्होंने वहीं खड़े-खड़े राजा नहुष को शाप जारी कर दिया- ‘यह नहुष और इसके पुत्र कभी सुखी नहीं होंगे’।
ऋषि अगस्त्य के दिये शाप का ही प्रभाव था कि राजा नहुष के पुत्र राजा ययाति बुढ़ा गये लेकिन उसकी यौन इच्छायें तरुण ही बनीं रहीं। बाद में उसने अपनी यौनेच्छायें पूरी करने के लिये अपने पुत्र से जवानी उधार मांगी।”
अपने समाज से समझने में यह भी भूल हुई कि वह अगस्त्य ऋषि के शाप का प्रभाव राजा ययाति के साथ ही खतम हुआ। सच तो यह है कि ययाति के वंशज होने के चलते वह शाप हम पर आज भी लागू है। पत्रकार ने जो किया वह शाप के प्रभाव के चलते किया। पूर्वजों को दिये शाप के प्रभाव के चलते उसके वंशज पत्रकार द्वारा की गयी गड़बड़ी लिये पत्रकार को दोषी ठहराना भी क्या समझनें में हुई चूक नहीं होगा ?
लेकिन पत्रकार से यह भी समझने में भूल हुई शाप ययाति के वंशजों पर लागू होता है। पीड़ित महिलाओं पर नहीं। उसके पुत्र भले उसको सहयोग करने के लिये अभिशप्त हों। लेकिन पीडित महिलाओं पर शाप लागू नहीं होता। अब राजा-महाराजाओं के जमाने गये जब पीडित महिलायें अपने खिलाफ़ हुई लंपटताओं को राजाओं की कृपा समझकर चुप रह जातीं होंगी। अब महिलायें अपने खिलाफ़ हुये अत्याचार को अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का फ़ल समझकर चुप रह जाने वाली नहीं रहीं। वे जमाने विदा हुये जब अपने खिलाफ़ हुये यौन दुर्व्यवहार के लिये खुद को दोषी मानकर खुद को दुनिया में मुंह दिखाने लायक नहीं समझती थीं। कुओं, तालाबों कूदकर जान दे देतीं थीं। अब उनमें यह ताकत आ गयी है कि वे ययाति के वंशजों के मुखौटे नोचकर उनका असली चेहरा सबको दिखा सकें।
इतना सब हल्ला-गुल्ला होने के बाद भी लग रहा है कि यह सारा मामला भी ऐसे ही रफ़ा दफ़ा हो जायेगा। अब यह पता नहीं जो मुझे लग रहा है वह सच साबित होगा कि समझ की एक और चूक।
खुलासे के बाद अगले ने कहा- “समझने में भयंकर चूक हुयी। अनजाने में (दो दो बार) पाप हो गया। कोई नहीं! हो गया सो हो गया। अब प्रायश्चित कर लेंगे- प्रायश्चित के साबुन में बड़ी जान है।”
अपने पाप को, प्रायश्चित के डिटरजेंट में डालकर, ‘पाप वॉशिंग मशीन’ चलाकर वरिष्ठ पत्रकार छह माह के ‘पश्चाताप अवकाश’ पर चले गये। अपने साबुन और वॉशिंग मशीन पर उनको पक्का भरोसा था। यकीन था कि छह महीने में न पाप रहेगा न पाप का नामोंनिशान।
लेकिन प्रायश्चित का साबुन गांधी जी के जमाने का था। एक्पायरी डेट का साबुन। एक्सपायर्ड दवाओं के रिएक्शन की तरह साबुन भी रिएक्ट कर गया। पाप दुनिया भर में झाग की तरह फ़ैल गया। पत्रकार को एहसास नहीं था कि उनका अकेले में किया पाप दुनिया भर को दिख जायेगा। ‘म्यूट’ किये हुये पाप चीख-चीखकर बोलने लगे। बहरों को भी सुनाई देने लगा कि पाप हुआ है। एक बार उनसे समझने में फ़िर चूक हुई।
खुलासे की पत्रकारिता करने वाले पत्रकार से यह समझने में भी चूक हुई कि दो लोगों के बीच हुआ व्यवहार जितना व्यक्तिगत होता है उससे कहीं ज्यादा उसके सार्वजनिक होने की संभावना होती है।
अब हाल यह है कि एक व्यक्ति की समझने में हुई चूक का सिलसिला जो शुरु हुआ तो तमाम लोगों से धड़ल्ले से समझ में चूक होती जा रही है। हाल यह है कि
‘समझ की चूक अकेले ही चली थी जानिबे मंजिल मगर
चूक मिलती गयी औ (चूक का) कारवां बनता गया।’
जिसे देखो वही इस ‘समझ-चूक-यज्ञ’ में अपनी आहुति डालता जा रहा है। स्वाहा बोलता जा रहा है। पत्रकार से समझने में हुई चूक का सिलसिला एक बार जो शुरु हुआ तो फ़िर तो मत पूछो भैया। एकदम्मै तहलका मच गया। जिसे देखो वही ‘समझने की चूक’ की गंगा में डुबकी लगाने लगा।हर एक की ‘समझ की चूक’ दूसरे की ‘समझ की चूक’ से कह रही है – मुझे भी तू लिफ़्ट करा दे।
ऐसे ही ‘समझने में हुई चूकों’ के कुछ नमूने यहां पेश किये जा रहे हैं:
1. पत्रकार से शुरु हुई समझ के चूक ने सबसे पहले पत्रकार की बॉस को अपनी गिरफ़्त में जकड़ा। समझ में चूक के चलते वे यह समझ बैठीं कि उनके संस्थान में हुआ एक महिला के साथ हुआ यौन अपराध संस्थान का आंतरिक मामला है। बाहर के लोगों को इसमें दखल देने की जरूरत नहीं।
2. ‘समझ चूक वायरल’ ने इसके बाद कुछ समझदार टाइप लोगों को जकड़ा। वे कहते पाये गये कि पत्रकार जरा अलग टाइप का है। बुद्धिजीवी बिरादरी का । सो उसकी हरकत को जरा अलग टाइप से देखा जाये। अपराध के नजरिये से देखने की बजाय मनोविज्ञान के चश्में से देखा जाये इसे। बहुत भलाई के काम किये हैं अगले ने समाज के लिये। लिहाजा उसकी ‘समझने में हुई चूक’ को जरा भली निगाहों से देखा जाये।
3. समझने में चूक समाज के लोगों से भी हुई। पत्रकार खोजी पत्रकारिता के धंधे में लगा था तो लोगों ने यह समझ लिया कि ये जो भी कुछ करेगा सबके भले के लिये ही करेगा। लोगों ने एक पत्रकार की आम इंसान की तरह हरकतें करने की आजादी पर भांजी मारने की कोशिश की। पत्रकार ने अपने साथ हुई नाइंसाफ़ी का बदला ले लिया और दिखा दिया कि उसे मात्र सामाजिक सरोकारी पत्रकार समझकर उसके साथ अन्याय किया गया। लंपट भी अगला किसी से कम नहीं है।
4. कुछ लोगों ने समझा कि पत्रकार ने यौन दुर्व्यवहार किया तो इसका मतलब उसकी पत्रिका के जुड़े सब लोग लंपट है। पत्रकार जिस पत्रिका में है उसे बंद कर दिया जाये। यह कुछ ऐसा ही है जैसे शोले में जय-वीरू को सजा देने के लिये गब्बर सिंह ने पूरे रामगढ़ को सबक सिखाने का प्लान बना डाला था।
5. पत्रकार ने माफ़ी बिना शर्त माफ़ी मांगी तो लोगों से यह समझने में चूक हुई कि वह वाकई अपनी करनी पर शर्मिन्दा है। लेकिन जब पत्रकार ने बाद में बयान जारी किया कि लफ़ड़े में महिला की ‘असहमति नहीं’ थी। तो लोगों को लगा कि पत्रकार की धूर्तता को उसका ‘अपराध बोध’ समझने की चूक हुई।
6. पिछले उदाहरण में पत्रकार ने महिला साथी की ‘असहमति’ में ‘अ’ को शायद उसकी ‘टाइपो’ समझा हो। उसकी अपने बचाने की कोशिशों, पत्रकार को बरजने, मुक्त होने के प्रयासों को पत्रकार सहमति के इशारों के रूप में ले रहा हो। अपने साथ की गयी लंपटता से बचने की कोशिशों को पत्रकार उसकी ‘असहमति नहीं’ ही समझता रहा। समझने में हुई इस चूक के चलते सब लफ़ड़ा हो गया। इसमें वरिष्ठ पत्रकार का क्या दोष?
7. अब पत्रकार कह रहा है कि उसके खिलाफ़ राजनैतिक साजिश हो रही है। उससे यह समझने में चूक हो रही है कि लोग उसके इस झांसे में आ जायेंगे।
8. अब महिला की मां से पूछा जा रहा है पत्रकार को बचाने के लिये क्या (कीमत) चाहिये? यह भी समझने की चूक ही है शायद कि इससे महिला चुप हो जायेगी।
9. कुछ संस्कारवान भले मानुष सोच रहे हैं अगर अंग्रेजी पत्रकार की जरा भी रुचि शायरी में होती तो उसने नबाज देवबंदी का यह शेर जरूर पढ़ा होता :
बदनजर उठने ही वाली थी किसी की जानिब लेकिन,
अपनी बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप गया।
तो वह अपनी बेटी की उमर की साथिन से जबर्दस्ती ऐसी हरकत न करता। लेकिन यह भी लोगों की समझने की चूक ही है। अगर सूक्ति वाक्यों से लोगों के मन बदलते तो मठ और धर्मस्थल अपराधों के अड्डे न होते।
समझने की चूक के सिलसिले को और आगे बढ़ाने की जगह आइये आपको अपने पूर्वज ययाति की कहानी सुनाते हैं। श्रम को भुलाने के लिये सुनते चलें:
राजा नहुष बहुत वीर टाइप राजा थे। उन्होंने युद्ध में इंद्र को हरा दिया। इंद्र को हराने के बाद इंद्र की पत्नी से संसर्ग करना चाहा। इंद्राणी ने भी शर्त रखी- अगर नहुष सप्तर्षियों की पालकी में बैठकर आयेंगे तो वे नहुष की इच्छा पूर्ति करेंगी। नहुष उतावले। वे बैठकर चल दिये। सप्तर्षि उनकी पालकी ठो रहे थे। कुछ-कुछ ऐसे जैसे आजकल जाने-माने बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञों की पालकी ढोते हैं। ॠषि थोड़ा बुजुर्ग थे। मंथर गति से चल रहे थे। उधर राजा नहुष का जिया बेकरार। इंद्राणी तक शीघ्र पहुंचने उनकी इच्छा ने उफ़ान मारा तो उन्होंने ऋषि अगस्त्य के माथे पर ‘सर्प!’ कहकर जोर से लात मारी । लात लगते ही ऋषि का ऋषित्व जाग उठा और उन्होंने वहीं खड़े-खड़े राजा नहुष को शाप जारी कर दिया- ‘यह नहुष और इसके पुत्र कभी सुखी नहीं होंगे’।
ऋषि अगस्त्य के दिये शाप का ही प्रभाव था कि राजा नहुष के पुत्र राजा ययाति बुढ़ा गये लेकिन उसकी यौन इच्छायें तरुण ही बनीं रहीं। बाद में उसने अपनी यौनेच्छायें पूरी करने के लिये अपने पुत्र से जवानी उधार मांगी।”
अपने समाज से समझने में यह भी भूल हुई कि वह अगस्त्य ऋषि के शाप का प्रभाव राजा ययाति के साथ ही खतम हुआ। सच तो यह है कि ययाति के वंशज होने के चलते वह शाप हम पर आज भी लागू है। पत्रकार ने जो किया वह शाप के प्रभाव के चलते किया। पूर्वजों को दिये शाप के प्रभाव के चलते उसके वंशज पत्रकार द्वारा की गयी गड़बड़ी लिये पत्रकार को दोषी ठहराना भी क्या समझनें में हुई चूक नहीं होगा ?
लेकिन पत्रकार से यह भी समझने में भूल हुई शाप ययाति के वंशजों पर लागू होता है। पीड़ित महिलाओं पर नहीं। उसके पुत्र भले उसको सहयोग करने के लिये अभिशप्त हों। लेकिन पीडित महिलाओं पर शाप लागू नहीं होता। अब राजा-महाराजाओं के जमाने गये जब पीडित महिलायें अपने खिलाफ़ हुई लंपटताओं को राजाओं की कृपा समझकर चुप रह जातीं होंगी। अब महिलायें अपने खिलाफ़ हुये अत्याचार को अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का फ़ल समझकर चुप रह जाने वाली नहीं रहीं। वे जमाने विदा हुये जब अपने खिलाफ़ हुये यौन दुर्व्यवहार के लिये खुद को दोषी मानकर खुद को दुनिया में मुंह दिखाने लायक नहीं समझती थीं। कुओं, तालाबों कूदकर जान दे देतीं थीं। अब उनमें यह ताकत आ गयी है कि वे ययाति के वंशजों के मुखौटे नोचकर उनका असली चेहरा सबको दिखा सकें।
इतना सब हल्ला-गुल्ला होने के बाद भी लग रहा है कि यह सारा मामला भी ऐसे ही रफ़ा दफ़ा हो जायेगा। अब यह पता नहीं जो मुझे लग रहा है वह सच साबित होगा कि समझ की एक और चूक।
Posted in बस यूं ही | 8 Responses
समझ समझना भी एक समझ है।
समझ समझ के जो न समझे,
मेरे समझ में वो नासमझ (घाघ) है।
ऐसे घटिया लोगों के पास अगर आप, समझ की पहुँची पहुँचायेंगे, तो वो पहुँची भी कहाँ पहुँचेगी !
गर भूले से वो पहुँच भी गयी तो, पहुँची तक भी न पहुँचेगी
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प्रणाम.
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