Saturday, December 31, 2005

कनपुरिया अखबार की कतरन

http://web.archive.org/web/20110101193636/http://hindini.com/fursatiya/archives/96

कनपुरिया अखबार की कतरन

दैनिक जागरण ,कानपुर २३.१२.२००५
दैनिक जागरण ,कानपुर २३.१२.२००५
पिछले दिनों २३.१२.२००५ को कानपुर के दैनिक जागरण में ‘जागरण सिटी’ में ब्लागिंग के बारे में लेख छपा। ‘मनीष त्रिपाठी’ ने लेख लिखा-ब्लाग स्फीयर में अपना शहर। देख सकते हैं कि लेख के तथ्य धर्मराज के सच की तरह हैं। कुछ गलत-कुछ सही। यह बताता है कि:-
१.जीतेन्दर हिंदी के पहले ब्लागर हैं।
२.अतुल फुरसतिया तथा रोजनामचा लिखते हैं।
३.ब्लागिंग की कमान कुछ कनपुरियों के हाथ में हैं।
बाकी की बातें आप खुद पढ़ चुके होंगे। हमने मनीष को सही तथ्य बताये । शायद वो फिर से लिखें।
जीतेंदर से जब फोन पर बात हुई तब जीतू ने कहा इसे ‘स्कैन’ करके चिपकाओ नेट पर। अतुल को भी कौतूहल था। अतुल के ब्लाग के बारे में कहा गया है-अतुल अरोरा के ब्लाग्स का क्या कहना! क्या कहते हो अतुल? अब तो लिखने लगो थोड़ा-थोड़ा सा ही सही! वर्ना कहीं ऐसा न हो कि रोजनामचा का पासवर्ड ही भूल जाओ।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

6 responses to “कनपुरिया अखबार की कतरन”

  1. Debashish
    तथ्य सही हो या गलत, चिट्ठाकारी में कनपुरिया योगदान वाकई काबिले तारीफ है। चलो जीतू भाई का हालिया कानपुर प्रवास कुछ काम तो आया ;)
  2. sanjay | जोग लिखी
    उच्चीत बंधूगणो को उच्चीत सम्मान मिला. आज कानपुर की जय जयकार है, जीतूभाई जैसे लोगों की वजह से. यह कतरन हमारा हौसला बढाने वाली हैं.
  3. Amit
    मुझे इन अख़बार वालों की यही बात बहुत अख़रती है कि ये लोग कुछ भी लिखने से पहले सही जानकारी तो हासिल करते नहीं, बस जो भी आधे अधूरे तथ्यों का ज्ञान होता है वही छाप देते हैं, और अपने को बड़ा फ़न्ने ख़ाँ समझते हैं!! शायद इसलिए पत्रकारिता का स्तर इतना नीचे गिर गया है!!
  4. जीतेन्द्र चौधरी
    सबसे पहले तो मनीष त्रिपाठी का धन्यवाद, आशा है वे लेख मे छपे तथ्यों को सही करके आगे फ़िर से हिन्दी ब्लॉगिंग के बारे मे लिखेंगे।
    तारीफ़ चाहे किसी की भी हो, लेकिन हम सभी का सर गर्व से ऊँचा हुआ है।एक बात तो है ही, दैनिक जागरण की पहुँच बहुत बड़े हिन्दी भाषी क्षेत्र मे हैं। मुझे अचानक भारत जाना पड़ा तो कई लोगों ने मुझे इस छपे लेख के बारे मे बताया। कुछ ऐसे लोगों ने भी जो कम्प्यूटर प्रयोग नही करते,लेकिन लेखन/पाठन के शौकीन है।
    तभी मैने अनूप भाई से निवेदन किया था लेख को स्कैन करके चिपकाओ, देखें तो सही, क्या लिखा है।
    मै आज भी कहता हूँ,भविष्य हिन्दी ब्लॉगिंग का है, समय आयेगा जब हर हिन्दीभाषी विचारशील व्यक्ति अपने विचारों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉगिंग का प्रयोग करेगा। ये क्रान्ति जितनी जल्दी आ सके उतना अच्छा है।
  5. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] 1.हम फिल्में क्यों देखते हैं? 2.रहिमन निज मन की व्यथा 3. (अति) आदर्शवादी संस्कार सही या गलत? 4.(अति) आदर्शवादी संस्कार सही या गलत? 5.(अति) आदर्शवादी संस्कार सही या गलत? 6.गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं! 7.क्षितिज ने पलक सी खोली 8. ‘मुन्नू गुरु’ अविस्मरणीय व्यक्तित्व 9.जाग तुझको दूर जाना! 10.मजा ही कुछ और है 11.इलाहाबाद से बनारस 12.जो आया है सो जायेगा 13.कनपुरिया अखबार की कतरन [...]
  6. शरद कोकास
    चलिये ज्ञान मे वृद्धि हुई । इस बहाने कानपुर याद आया .. और एक पता याद आया बनखंडेश्वर मन्दिर के सामने जहाँ कभी अपनी ननिहाल हुआ करती थी ..।

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