Thursday, June 15, 2017

सैंट्रो सुंदरी का उफ्स मूमेंट



'नन्हे मियां के नाम से मशहूर थे हमारे वालिद। वही हमारे उस्ताद थे। 15 साल की उमर से उनके साथ काम करते हुए हमने काम सीखा।'
हमारी गाड़ी का बम्पर गाड़ी से सटाते हुए बताया जाहिद मियाँ ने।
गाड़ी का बम्पर शहर की गाड़ियों की भीड़ में धक्के खाते हुए राणा सांगा पहले ही हो चुका था। हर कोना विद्रोह का झंडा फहराते हुए गाड़ी से बाहर हो जाना चाहता था। लेकिन विविधता में एकता की तरह टिका रहा। कभी कोई कोना ज्यादा बाहर निकलता तो ऐसा लगता जैसे बम्पर सफर में खिड़की से हाथ बाहर निकाल कर बाकी गाड़ियों को टाटा कह रहा हो।
इसी चक्कर में एक दिन भीड़ में फंस गए। किसी गाड़ी को अँधेरे में हमारी गाड़ी का निकला बम्पर दिखा नहीं। उसने धकिया दिया। बम्पर पूरा निकलकर बाहर लटक गया। गाडी का पिछवाड़ा दिखने लगा। ऐसा लगा मानो 'सड़क के रैंप पर' चलते-चलते गाड़ी की चड्ढी भारी होने के कारण सरक गयी हो। बम्पर गाड़ी के अंतर्वस्त्र जैसे ही तो होते हैं।
गाड़ियों की दुनिया के अख़बार होते तो खबर छपती -'बम्पर के मैलफंकन के कारण 18 वर्षीया सैंट्रो सुंदरी उफ्फ्स मूवमेंट की शिकार।' तमाम लोग गाडी की उतरी हुई चड्ढी की फोटो देखने के लिए फड़क उठते।
किसी अखबार में खबर छपती - ’सड़कों पर गाडियांं तक महफ़ूज नहीं। शाम को बीच सड़क आवारा बुलेरो बुजुर्ग सैंट्रो का बम्पर नोचकर फ़रार।’
बहरहाल जो हुआ सो हुआ। अँधेरा होने के चलते ज्यादा किसी ने देखा नहीं इसको और गाडी की इज्जत बच गयी। अगले दिन बम्पर रिपयेर करवाने गए। मालरोड पर ही सड़क किनारे बने एक गैराज में रिपेयर करते हुए मिले जाहिद भाई। उनसे गाडी बनवाते हुए उनके किस्से भी सुनते रहे।
बताया -'हमारे वालिद बहुत नामी कारसाज थे। नन्हे मियां के नाम से मशहूर। बहुत पुराना गैराज है। बताते थे कि अंग्रेजों के जमाने में यहाँ 4 बजे के बाद किसी हिन्दुस्तानी को रुकने की इजाजत नहीं थी।'
जिस तल्लीनता से हमारे जख्मी बम्पर की मरहम पट्टी करते हुए जाहिद भाई ने मरम्मत का काम किया उससे एक बार फिर से स्कूल के दिनों में पढ़ी वह कहानी याद आ गयी जिसमें एक नाई बड़ी तसल्ली से मजदूर के बाल बनाता है यह कहते हुए कि भले ही यहां से जाने के बाद इसमें बाल ख़राब हो जाएँ लेकिन हमको तो अपना काम ठीक से करना है।
किसी सैंट्रो के गैराज में जाते तो पक्का वहाँ पुराना बम्पर नोंचकर फेंक दिया जाता। नया लगा दिया जाता। हम पुराने बम्पर की लाश लिए घर लौटते। दुनिया में प्लास्टिक का कचरा बढ़ता। नया भी बराए शहर ट्रैफिक की मेहरबानी , ठुकठुका कर कुछ दिन में राणा सांगा हो जाता।
गाड़ीसाज ने न केवल बम्पर ठीक किया बल्कि गाड़ी के तमाम गड्ढ़ों को भरकर उनको स्प्रेपेण्ट से चमकाकर गाडी का फेशियल टाइप कर दिया।
नन्हे मियां के बारे में बताते हुए बोले-' कुछ साल पहले इंतकाल हुआ उनका। सिगरेट बहुत पीते थे। इसी चक्कर में बीमार हुए। लंग्स खराब हुए। दस साल पहले सिगरेट छोड़ दिये थे लेकिन इसके पहले इतना धुंआ पी चुके थे कि फ़िर ठीक नहीं हो पाये।
बीहड़ सिगरेट्बाज मरहूम वालिद से एकदम उलट जाहिद मियां किसी नशे की गिरफ़्त में नहीं फ़ंसे। सिगरेट, पान, बीड़ी , मसाला सबसे मुक्त।
बड़ी उमर के दीख्ते जाहिद भाई ने उमर बताई 45 साल। दो छोटी बच्चियां हैं। दस साल से कम उमर की।
घंटे भर से ज्यादा की ठुकठुक के बाद गाड़ी चकाचक टाइप हो गयी। मजदूरी कुल जमा 270/- लगा बहुत सस्ते में काम हो गया।
सात बजे शाम को माल रोड से वापस आते हुये सोचा कभी अंग्रेजों के जमाने में यहां कोई हिन्दुस्तानी शाम चार बजे के बाद दिखता नहीं था। अब हाल यह कि यहां सात बजे सिर्फ़ हिन्दुस्तानी ही नजर आ रहे। कोई अंग्रेज नहीं दिख रहा।
समय होत बलवान !

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