Wednesday, June 28, 2017

हमसे बचकर कहां जाइयेगा


ईद वाले दिन सुबह बड़े चौराहे तक गए। ऑटो से किसी को भेजना था। पूछते ही ऑटो वाला बोला -250 लगेंगे। हमने कहा 150 लगते हैं। फ़ौरन बात 200 रूपये में पक्की हो गईं। पाश कहते थे - 'बीच का रास्ता नहीँ होता।' रास्ते की नहीँ कह सकते लेकिन ऑटो जब बिना मीटर के चलें तो किराए बीच के ही तय होते हैं।
चौराहे पर कई रिक्शे वाले अपने रिक्शों पर गुड़ी-मुड़ी हुए सो रहे थे। पीछे जेड स्क्वायर के पास बोर्ड लगा था -50% ऑफ। ये भाई लोग नींद और थकान के लपेटे में 100% ऑफ हो गए थे। बिना नींद की गोली खाये बेसुध सो रहे थे। क्या पता कोई अनिद्रा के मरीज को समझाइश देने लगे -'रिक्शा चलाओ, फायदा होगा।'
बड़े चौराहे के पास की एक बिंदी-टिकुली की दुकान सुबह पांच बजे चमकती हुई खुली थी। रात भर खुली रही। आसपास के लोगों ने ईद की खरीदारी की थी।
परेड चौराहे से होते हुए आये। कई दुकानों में कोल्ड ड्रिंक बिक रही थी। चौराहे पर तमाम लड़के मोटरसाइकिल पर बैठे अपना ईद का प्लान बतिया रहे थे -कहां , कब जाएंगे नमाज अता करने।
मेस्टन रोड के पास मोड़ पर कुछ दुकानदार ठेलियों पर कपडे बेच रहे थे। पास ही हेयर कटिंग सैलून पर खूब भीड़ थी। रात भर खुला रहा। ईद के मौके पर लोग खूब सजे-संवरे।
लौटकर बड़े चौराहे पर फिर आये। रिक्शे वाले अभी तक सो रहे थे। उनको शायद ईद से कोई मतलब नहीँ था। थके सो रहे थे। उसी समय ख्याल आया कि क्या रिक्शे वाले भी जीएसटी के दायरे में आएंगे। आज भले न आएं लेकिन क्या पता कल को आ जाएँ। सर्विस पर टैक्स तो लगेगा ही। आज नहीं तो कल। कहां तक बचोगे। जीएसटी भी गाना गाता होगा (भले ही बेसुरा):
हमसे बचकर कहां जाइयेगा,
जहां जाइयेगा, हमें पाइएगा।
आगे बड़े चौराहे पर कई परिवार सोते दिखे। कुछ जम्हुआई लेते हुए अभी भी सो रहे थे। उजेला फ़ैल रहा था। सड़क पर गाड़ियां हल्ला मचा रहीं थी। उनको भी उठना पड़ रहा था।
मजार के बाहर मांगने वाले अनुशासित होकर बैठ गए थे। ईद के मौके पर ज्यादा मिलने की गुंजाइश थी।
कुछ देर बाद पैसा निकालने गए। हर एटीएम माफ़ी मांग रहा था। पैसा नहीं था उनमें। किसी एटीएम ने यह नहीँ कहा -'बगल के एटीएम ने नहीँ दिया तो हमको काहे हलकान करने आये।' बाद में एक फेडरल बैंक के एटीएम ने पैसा उगला। बहुत पैसा है अमेरिकी बैंक में।
एटीएम से याद आया कि कल पचास साल पूरे हुए एटीएम को पैसा देते-देते। दुनिया भर में 30 लाख से ज्यादा एटीएम हैं। भारत में 2 लाख से ज्यादा एटीएम हैं। इसमें एसबीआई के सबसे ज्यादा 86 हजार एटीएम हैं। 86 करोड़ लोगों के पास एटीएम डेविड कार्ड हैं। पहला एटीएम लन्दन में 1967 में शुरू हुआ। बीस साल बाद भारत में शुरू हुआ एटीएम। इसे बनाने वालों जॉन शेफर्ड और बैरोन की टीम में से बैरोन की पैदाइश मेघालय में हुई थी। मल्लब एक भारतीय।
मॉल रॉड चौराहे पर सिपाही नहीँ था। लोग लाल बत्ती को होने पर भी फर्राटे से चले जा रहे थे। मतलब लोग बत्ती नहीं सिपाही देखते हैं।
गलियों में कटिया लगे तार सेवइयों की तरह आपस में गुंथे हुए थे। पता लगाना मुश्किल कि किस तार से कौन जुड़ा हुआ है।
आगे चौराहे पर कबूतर अपने लिये बिखराया हुआ दाना चुगते हुए गुटरगूं करते हुए गुफ्तगू कर रहे थे। बीच-बीच में खाया हुआ पचाने के लिए थोड़ा उड़कर फिर वापस आ जाते और दाना चुगने लगते।
यह तो रहा इतवार की सुबह का किस्सा। बाकी का किस्सा फिर कभी। शायद जल्दी ही।
तब तक आप मजे करिये।

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