अंतरिक्ष बहुतों की तरह हमारे लिये भी जिज्ञासा का विषय रहा है। बचपन से अब तक इत्ती बातें पढ़ीं हैं कि बहुत कुछ तो गड्ड-मड्ड हो गयी हैं। कोई बताता है सारी आकाश गंगायें एक-दूसरे से दूर भागी जा रही हैं। भागी जा रहीं हैं। ऐसी-वैसी स्पीड से नहीं प्रकाश की स्पीड से। मतलब तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड! मतलब अपनी राजधानी एक्सप्रेस भी तेज!
मैं सोचता हूं कब तक भागेंगी ये आकाश गंगायें। काहे को भागी चली जा रही हैं। कहां तक जायेंगी? कभी हांफ़ते हुये सुस्ताने की बात भी करेंगी क्या?
हम तो इस पर कवितागिरी भी कर दिये थे :):
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है ,
बस जीने के खातिर मरती है। पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
बस जीने के खातिर मरती है। पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
हमारी औकात देखिये। ससुर छह फ़िटा आदमी ताजिदगी ऐंठा रहता है। हिटलर की तरह गरदन अकड़ाये! साठ-सत्तर साल में गो-वेन्ट-गान हो लेता है। बड़े उछल के कहते हैं इत्ती स्पीड से गाड़ियां चलती हैं। ये है वो है! ये तीर मार लिया वो जलवे दिखा दिये। ये झगड़े निपटा दिये वो बलवे करा दिये!
मतलब हमका अईसा वईसा न समझो हम बड़े काम की चीज!
तुलना करिये जरा! सबसे पास जो तारा है सूरजजी के बाद वाला उस तक पहुंचने में प्रकाश को चार साल से ज्यादा लगते हैं। तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड के हिसाब से लगातार चार साल से ज्यादा चलो तब पहुंचो उसके द्वारे।
सूरज अपना माल ऊर्जा जो फ़्री में सप्लाई करते हैं उसको हम तक पहुंचने में आठ मिनट लग जाते हैं। लोग कहते हैं अगर हम अपने पास उपलब्ध सबसे तेज साधन से भी चलें तो भी पहुंचने में पचास-साठ पीढ़ियां निपट लेंगी। अब अगर वहां जाने की बात करी जाये जहां से हम तक प्रकाश पहुंचने में हज्जारों साल लेता है तो कित्ते साल में पहुंचेंगे। सोचते हैं और बस सोचते ही रह जाते हैं। सोचने में कुछ पल्ले से जाता नहीं है न!
उधर दूसरे बयान भी हैं! हनुमान जी सूरज को मधुर फ़ल जान कर लील जाते हैं! लक्ष्मण कहते हैं अगर राम जी आज्ञा दें तो इस ससुरे ब्रम्हाण्ड को गेंद की तरह उठाकर कच्चे घड़े की तरह फ़ोड़ दूं:
जौ राउर अनुशासन पाऊं। कंदुक इव ब्रम्हाण्ड उठाऊं॥
कांचे घट जिमि डारौं फ़ोरी। सकऊं मेरू मूलक जिमि तोरी॥
कांचे घट जिमि डारौं फ़ोरी। सकऊं मेरू मूलक जिमि तोरी॥
इसी बहाने हमें आज फ़िर लगा कि जब आदमी गुस्सा होता है तो तर्क उसके पास से विदा हो लेता है। अब बताओ दुनिया को उठाओगे गेंद की तरह और फोड़ोगे घड़े की तरह! दूसरी बात कि जब आप खुद ब्रम्हाण्ड में मौजूद हैं तो उसे उठायेंगे कैसे! हो सकता कि प्रभु भक्तों के पास कोई भक्तिपूर्ण तर्क हो इस बात का। लेकिन सहज बुद्धि की बात है अपनी सो कह गये। भक्तगण क्षमा करेंगे।
लोग कहते हैं कि अगर आदमी की गति प्रकाश की गति से तेज हो तो वह अतीत में जा सकता है। अतीत की घटनाओं को नियंत्रित कर सकता है। गणितीय सूत्रों से भी यह बात तय पायी गई। लेकिन वैज्ञानिको ने शायद इसे सहज बुद्धि के तराजू पर तौल कर खारिज कर दिया। उनका कहना है कि अगर ऐसा होगा तो कोई अतीत में जाकर अपने मां-बाप का टेटुआ दबा देगा। फ़िर उसकी पैदाइश डाउटफ़ुल हो जायेगी।
क्या बतायें बहुत उलझ से गये दुनिया के बारे में सोचते-सोचते। कहते हैं लोग कि ब्रम्हाण्ड में हर क्षण हजारों तारे जन्म ले रहे हैं, हजारों मर रहे हैं। एक दूसरे से दूर भाग रहे हैं! नजदीक भी आ रहे हैं। कृष्णजी तो सब कुछ अपने मुंह में दिखा दिये थे अर्जुन को। बेचारे इत्ता डर गये कि मरने-मारने पर उतारू हो गये।
न जाने कित्ती बड़ी है दुनिया। अभी तो हमारे और हमारी फ़ैक्ट्री तक सीमित है! जा रहे हैं अपनी दुनिया में!
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