समय के साथ तमाम परिभाषायें बदल जाती हैं।
पहले दूरी का मात्रक मील/किलोमीटर हुआ करता था। फ़िर घंटे/दिन हुआ। किदवई नगर से स्टेशन आधा घंटा की दूरी पर है। चमनगंज से फ़जलगंज एक घंटा। भन्नाना पुरवा से माल रोड पौन घंटा।
इधर जाम ने दूरी के सारे मात्रकों का हुलिया बिगाड़ के धर दिया है। हर मात्रक में जाम का हिस्सा शामिल हो गया है। अगर जाम नहीं मिला तो आधा घंटा। अगर जाम मिल गया तो खुदा मालिक। जाम ने दुनिया की सारी दूरियां बराबर कर दी हैं। आप हो सकता है कि लखनऊ से लंदन जित्ते समय में पहुंच जायें उत्ते समय में( जाम कृपा से) लखनऊ से कानपुर न पहुंच सकें। शहरों में रहने वाले लोग जाम से उसी तरह डरते हैं जिस तरह शोले फ़िल्म में गांव वाले गब्बर सिंह से डरते थे। शहरातियों की जिंदगी में ट्रैफ़िक-जाम उसी तरह् घुलमिल गया है जिस तरह नौकरशाही में भ्रष्टाचार।
जाम की खूबसूरती यह है कि यह हर गाड़ी को समान भाव से अटकाता है। मारुति 800 और हीरो हांडा में यह कोई भेदभाव नहीं करता। खड़खड़े और टेम्पो को बराबर महत्व देता है। टाटा का ट्रक और बजाज की मोटरसाइकिल इसको समान रूप से प्रिय हैं। यह सबको समान भाव से अपने प्रेमपास में लपेटता है। जाम के ऊपर कोई यह आरोप नहीं लगा कि उसने कोई गाड़ी घूस लेकर निकाल दी।
जाम का दर्शन दिव्य है। जाम में फ़ंसा हुआ आदमी कोलम्बस हो जाता है। वह दायें-बांये,आगे-पीछे, अगल-बगल से होकर जाम से निकल भागना चाहता है। जाम में फ़ंसा हुआ हर व्यक्ति मुक्ति का अमेरिका पाना चाहता है। लेकिन जाम उसे और फ़ंसा देता है। वापस भारत में पटक देता है। हर गलत साइड से निकलता आदमी दूसरे को रांग साइड चलने के टोंकता है। हर चालक आपसे जरा सा साइड देने की बात करता है।
कुछ गीत अगर आज के समय में दुबारा लिखे जाते तो उनमें जाम जरूर शामिल होता:
हम तुम्हे चाहते हैं ऐसे, मरने वाला कोई जिंदगी चाहता हो जैसे
अगर आज लिखा तो शायद लिखा जाता तो शायद इस तरह बनता-
हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे, जाम में फ़ंसा कोई उससे निकलना चाहता हो जैसे मरने का अनुभव हरेक को नहीं होता। लेकिन जाम के अनुभव की बात से यह गाना ज्यादा अपीलिंग होता। ज्यादा लोगों तक पहुंचता।
अगर आज लिखा तो शायद लिखा जाता तो शायद इस तरह बनता-
हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे, जाम में फ़ंसा कोई उससे निकलना चाहता हो जैसे मरने का अनुभव हरेक को नहीं होता। लेकिन जाम के अनुभव की बात से यह गाना ज्यादा अपीलिंग होता। ज्यादा लोगों तक पहुंचता।
सडकों में जाम लगने के कारण मांग और आपूर्ति वाले घराने के हैं। गाड़ियां ज्यादा सड़कें कम। ज्यादा समय नहीं लगेगा जब शहरों में गाड़ियों का कुल क्षेत्रफ़ल शायद शहरों की सड़कों के क्षेत्रफ़ल से आगे निकल जाये। सड़कें का कुल क्षेत्रफ़ल कम गाड़ियों का ज्यादा। आज भी गाड़ी बेचने वाली कंपनिया तमाम तरह के आफ़र दे रही हैं। कल को शायद वे गाड़ी बेंचने के लिये गाड़ी के साथ एकाध किलोमीटर सड़क भी उपहार में दें। गाड़ी के साथ शहर से साठ किलोमीटर दूर एक किलोमीटर की सड़क आपकी गाड़ी के लिये मुफ़्त में। आप कभी भी वहां ले जाकर अपनी गाड़ी चला सकते हैं। पहली बार गाड़ी ले जाने की व्यवस्था कंपनी की तरफ़ से की जायेगी। इसके बाद आपको खुद ले जानी होगी।
इस समस्या से निपटने के लिये तमाम व्यवहारिक/तकनीकी उपाय भी सोचें जायेंगे। जाम का आने वाले समय में क्या प्रभाव हो सकता है देखिये तो सही:
1. सड़कों पर गाड़ी रखने की जगह कम होने के चलते गड़ियां इस तरह की बनने लगेंगी कि उनको चारपाई की तरह खड़ा करके धर दिया जायेगा।
2. घर आकर जैसे कपड़े खूंटियों पर टांग दिये जाते हैं वैसे ही गाड़ियों को भी दीवारों पर टांगने की व्यवस्था होने लगे।
3. गाड़ियों के फ़ौरन खोलने की व्यवस्था होने लगे। जो हिस्सा अटका जाम में उसको लपेट के अंदर कर लिया और निकल गये।
4. गाडियों को तहाकर होल्डाल की तरह लपेट सकने का जुगाड़ होने लगे गाड़ियों में।
5. गाड़ियां इत्ती हल्की बनने लगें कि चारपाई की तरह उसको सर पर उठाकर जाम के झाम से निकल जाने का जुगाड़ हो।
6.हर गाड़ी अपने साथ एकाध किलोमीटर फ़ोल्डिंग सड़क लेकर चले शायद। जहां फ़ंसे अपनी गाड़ी से सड़क निकाली, बिछायी और फ़ुर्र से निकल लिये।
घर से निकलने से पहले ज्योतिषियों की सेवायें लेने लगें लोग! ज्योतिषी लोग आपके गंतव्य और गाड़ी की कुंडली मिलाकर देखें और बतायें कि कित्ते गुण मिलते हैं। जिस मामले में गुण कम मिलें उस तरफ़ आप न जायें। जिधर मिल जायें उधर निकल लें। क्या पता कल को जाम के कारण हमेशा ठिकाने से दूर रह जाने वाली गाड़ियों के लिये कालसर्प योग पूजा की व्यवस्था भी हो जाये।
लोग जाम के चलते रात-विरात यात्रा करने लगें। फ़िर सूनसान अंधेरे में होने वाले अपराध कम हो जायेंगे। लोग शायद सलाह देने लगें- दिन के उजाले में चलने की क्या जरूरत। रात को निकलना चाहिये जब सड़कों पर खूब गाड़ियां चलती हैं।
शहरों में सड़क के लिये जगह कम होने के कारण गाड़ियों के चलने के लिये गांवों में सड़क बनाई जायें। इससे गांवों का मजबूरी में विकास होने लगे।
शहरों की सड़कों पर जाम के चलते देहात से शहर आने वालों का पलायन रुक जायेगा। लोग कहेंगे कि जब शहर में जाकर जाम में ही फ़ंसना है तो अपना गांव क्या बुरा है। यहां भी तो अब जाम की व्यवस्था करा दी है सरकार ने।
हो सकता है आने वाले समय में शहर में लगने वाला जाम शहर की समृद्धि का पैमाना बन जाये। औसत पांच घंटे वाले जाम को औसत तीन घंटे जाम वाले शहर से ज्यादा समृद्ध माना जाये ।
इन उपायों को देखकर आपको अंदाजा लग गया होगा कि हम जाम की समस्या से कित्ता हलकान हैं।
लेकिन यह पोस्ट करने समय हम यह भी सोच रहे हैं कि कोई मंहगाई/भूख से पटकनी खाया इंसान अगर इसे देखेगा तो शायद कहे, ” ससुर के नाती -जाम की समस्या तो बढ़ती गाड़ियों के चलते हुयी जो कि दो सदी पहले से बनना शुरू हुई। लेकिन आदमी तो न जाने कब से बनना शुरु हुआ था इस दुनिया में। उसके पेट में भूख का जाम तो सदियों से लगा हुआ है। भूख से मरता आदमी कब तुम्हारी चिंता के दायरे में आयेगा?”
हमें कौनौ जबाब नहीं सूझता सिवाय इसे पोस्ट करके फ़ूट लेने के!
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