Sunday, December 24, 2017

भोपाल में प्रवासी मजदूर




सवेरे जब आगे चले से तो देखा एक भाई जी तालाब की मुंडेर पर बैठे दातुन कर रहे थे। पता किया तो मालूम हुआ कि भाई जी बैतूल के एक गांव के रहने वाले हैं । भोपाल काम के सिलसिले में आए थे । यहीं पर रोज मेहनत मजदूरी करके गुजारा करते हैं। पास में केवल एक झोले में कुछ कपड़े थे।
हमने पूछा कैसे गुजारा होता है? रात कहां सोते हैं ? तो सामने के पार्क की तरफ इशारा करके बोले वहीं सो जाते हैं। मजदूरी कभी मिलती है , कभी नहीं मिलती। बैतूल के गांव में पूरा परिवार है। यहां भोपाल में कमाई के लिए आए हैं ।
उनसे बात करके हम आगे ही पड़े थे कि देखा एक भाई जी शीशे में चेहरा देखते हुए बाल काढ़ रहे थे। तल्लीनता से। हमको देखकर थोड़ा ठिठके। लेकिन फिर बाल संवारने में जुट गए। उनको देखकर भी यही लगा वे भी आसपास के किसी इलाके से यहां रोजी-रोटी के चक्कर में आये हैं।
इन दोनों लोगों को देखकर एहसास हुआ कि जिंदगी के कितने रूप हैं। किसी के लिए सुगम, सुखद, सुहानी और किसी के लिए कठिन, जटिल और चुनौती भरी।

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