चाय का बर्तन थामे पंकज बाजपेयी |
पिछले दिनों पंकज बाजपेयी जी से कई बार मुलाकात हुई। इधर वो हाईटेक हुए हैं। पकड़वाने वालों के भी नए नाम जुड़े हैं। पिछली बार मिसाइल ट्रैप करवाने को बोले। बोले - 'वी के मिसरा को पकड़वाईये। वो मिसाइल अटैक करवा देगा। मिसाइल ट्रैप करना जरूरी है।'
एक दिन हाथ बढाकर पैर छूने की मुद्रा में आ गए। जैसे तमाम कनपुरिये हाथ बढाकर पांव छूने का पोज बनाते हैं। अगला आशीष पोज बनाता है। ' प्रणाम पोज' का जबाब 'आशीर्वाद पोज'। न पूरा प्रणाम होता है न ही पूरा आशीर्वाद । बस पोज होते हैं। बहुत बड़ा पोज घोटाला हो रहा है शहर में। सब देख रहे हैं लेकिन बोलता कोई नहीं है क्योंकि शहर के सब बड़े लोग इस पोज घोटाले में शामिल हैं। शहर में इज्जत बचाये रखने के लिए हवाई इज्जत करने वालों और पांव छूने से बचना बहुत जरूरी है। पांव छूने से बचा लिए समझ लो काम भर की इज्जत बच गयी।
बहरहाल जब पंकज बाजपेयी जी ने पांव छूने का पोज बनाया तो हमने मना किया। गले लगाया तो बोले -'मम्मी जी डांटेंगी कि तुम पैर नहीं छूते हो उनके।' हमने उनके बड़े होने का तर्क देते हुए समझाया तो फिर कोहली की गिरफ्तारी पर जोर देने लगे।
चाय पीने के लिए गए। अपना बर्तन निकालकर चाय ली। चाय की दुकान वाली बोली -'अभी पीकर गए हैं। चाय इनको दिन भर पिलाये रहो। पीते रहेंगे।' हमें और अपनी तरह लगे पंकज बाजपेई ।
महिला उनके बारे में तमाम बातें बताने लगी-' पढने में बहुत होशियार थे। आई ए एस का इम्तहान दिया है। बम्बई गए। दिमाग खराब हो गया। आसपास के सब मकान उनके हैं। रिश्तेदारों का कब्जा है। इलाज कोई नहीं कराता। डरते हैं याददाश्त ठीक हो गयी तो कब्जा चला जायेगा। खाना देते रहते हैं। बस्स।'
मिठाई के शौक़ीन हैं। हमने कहा -'लाएंगे किसी दिन मिठाई।' मुस्कारते हुए बोले -'अच्छा।' फिर बोले -'हम आपके घर आ जाएंगे।'
एक दिन बोले -'हाजी मस्तान ने मेरे बच्चे उठवा लिए। उसको पकड़वाईये।'
हमने कहा -' आपका इलाज करवाते हैं।' बोले -' हम ठीक हैं। आप कोहली को पकड़वाईये। बच्चो को खराब कर रहा है। सीबीआई लगवाइए।'
हमने कहा -'आपकी शादी करवा देते हैं। ' बोले -'हमारी शादी हो गयी। बच्चे भी हैं। हमने कहा -' कहां हैं ?' बोले -बम्बई में।
हमने कहा -' एक शादी और करवा देते हैं।' बोले -'चार शादी हो गईं हमारी।' और कुछ बात करें तब तक बात फिर दाऊद, कोहली , हाजी मस्तान की तरफ मुड़ गयी।
बेसिर-पैर की असंबद्ग बातेँ सुनते हुए लगता हूँ मानो उनका दिमाग फ्रीज हो गया है इन बातों के आसपास। अपना समाज जैसे जकड़ गया है हिन्दू, मुसलमान, मंदिर, मस्जिद, जातिवाद में। वैसे ही पंकज जी के दिमाग का ताना बाना इसी के आसपास घूमता रहता है।
आंय-बांय बातें करते हुये एकदम भोले बच्चे जैसे लगते हैं। लंबे कद के पंकज जी जब खड़े होकर बात करते हैं, एक तरफा , तो लगता निराला जी आखिरी दिनों में इनके जैसे ही लगते होंगे। बोलते समय गले की नशे फूल जाती हैं। लंबी नाक वाले बोलते चले जाने वाले पंकज जी को देखते हुए मुझे अक्सर अपने दिवंगत बड़े भाई की याद आती है। उनको तमाम शिकायतें थीं लोगों से। जब कभी बात करते तो बीते हुए समय में चले जाते। सुनने वाले को भी घसीट ले जाते।
पता नहीं किस मौके पर और किस समय इनके दिमाग के तार हिले होंगे। कनेक्शन हिल गया होगा दिमाग से और सीमित रह गया होगा कोहली, दाऊद, हाजी मस्तान , बच्चे और औरतों को खराब करवाने की खतरे में। उनकी बात में आज की कोई चर्चा नहीं होती। न बैंक घोटाले की न, स्पेक्ट्रम घोटाले की। इंडिया टीम की जीत की नहीं और न ही शहर में जाम की।
पता नहीं क्या ताना-बाना बनता हो दिमाग के मदरबोर्ड के तार हिल जाने पर। अनगिनत भावनाओं को कोई स्टेच्यू जैसा बोल देता हो जैसे। अटल जी की याददाश्त चली सी गयी है। सुना है लोगों को पहचान नहीं पाते। उनको कोई उनके भाषण , कविताएं सुनाता होगा तो न जाने कैसे प्रतिक्रिया करते हों। पिछले दिनों बशीर बद्र को देखा एक वीडियो में। अपने ही मशहूर शेर बमुश्किल याद कर पा रहे थे। दिमाग में इस कदर ब्लैक आउट हो गया है कि अपना शेर 'उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो' याद नहीं कर पा रहे थे। दिमाग की गलियों में गहरी रात हो गयी है।
पंकज जी का कोई बचपन का पक्का दोस्त हो तो शायद उनको कुछ याद दिला सके उनसे जुड़ी यादें। उनके पसंदीदा हीरो-हीरोइन। नायक , नेता। बड़े होते हुए उनके क्या सपने , इरादे, अरमान रहे होंगे इस बारे में बता सकता।
पंकज जी तो एक इंसान हैं। उनका अकेले याददाश्त ठहर जाना बड़े समाज के लिए ज्यादा मायने नहीं रखता। लेकिन जब यह बात किसी बड़े समूह, समाज के साथ होती है तब गड़बड़ी की ज्यादा सम्भावना होती है। समझिए कोई समाज 10-12-13 -16-17 सदी की मान्यताएं लिए जी रहा है। आंख के बदले दो आंख, एक गर्दन के बदले हजार मुंडिया को जायज ठहराते हुए उसको अमली जामा पहनाने के लिए तैयार हो रहा हो, उसके लिए तर्क गढ़ रहा हो तो आने वाला समय कितना भयावह हो सकता है इसके बारे में सोचकर डर लगता है।
ऐसे समाज के इलाज के बारे में भी लोग फिकर नहीं करते। उनको डर होगा कि लोगों के सहज हो जाने पर उनकी दुकानें बंद हो सकती हैं।
एक इंसान अपने आप में मुक्कमल इतिहास होता है। उसके जीवन से जुड़ी घटनाओं पर उपन्यास लिखे जा सकते हैं। पंकज जी जैसे अनगिनत लोग हमारे आसपास दिखते, मिलते, रहते हैं। हम उनको अनदेखा करते हुए मजे से जीते रहते हैं, बिना यह एहसास किये कि ऐसा करते हुए हम भी उन्हीं की तरह ठहरे हुए हैं। पंकज भाई दाऊद, कोहली, मिसरा, बच्चे, सीबीआई में ठहरे हुए हैं। समाज के रूप में हम भी इन्ही बातों के आसपास बने हुए हैं। बहुत ज्यादा फर्क नहीं है दोनों की हालत में।
इसी लिए हमको पंकज बाजपेयी अपने जैसे लगते हैं। इसीलिए उनसे बार-बार मिलने का मन होता है। मिलते भी रहते हैं।
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