खन्नौत नदी के पुल से आगे बढ़कर दायें मुड़ गए। हरदोई की तरफ। सोचा थोड़ी देर और साइकिलियाया जाए। सुबह चकाचक खिली थी। धूप अभी तेज नहीं हुई थी। चलते गए आगे।
सड़क के दोनों छोर पर लोग अपने-अपने हिसाब से दिन शुरू कर चुके थे। कोई कुछ काम करता दिखा, कोई बतियाता हुआ। घरों के बाहर बैठे सड़क से गुजरते लोगों को देखते दिखे। कोई सिर्फ सामने से गुजरते लोगों को देख रहा था, हवाई अड्डे में चेकिंग करते हुए सामान के स्कैनर की तरह।
कोई-कोई लोग नजर की दायरे में आने से देखना शुरू करके तब तक देखते जब तक सड़क से गुजरता इंसान नजरों से ओझल न हो जाए। इससे अलग कुछ लोग ऐसे भी थे जिनकी सड़क से गुजरते लोगों में दिलचस्पी नहीं थी। वे आसामान ताक रहे थे। आसामान की कुछ बदलियाँ उनकी इस ताकाझाँकी से असहज होकर तेज चाल से दूर भागती दिखीं। उनको भागते देख बादल उनके पीछे लग लिए। वो तो कहो आसमान में एंटी रोमियो पुलिस बल नहीं है वरना बीच आसमान बादल को मुर्गा बनाकर बदली से बादल के हाथ में राखी बँधवाकर ही जाने देता दोनों को।
क्या पता आगे जाकर बदली, बादल के कान में फुसफुसा के कहती हो,’ वो देखो चबूतरे पर बैठा आदमी मुझे घूर रहा है। क्या पता इस पर बादल उससे कहता हो ,’ चिल यार, तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि तुमको कोई भी देखते रहना चाहेगा।‘ बदली शायद मुस्कराते हुए उससे कहती हो –‘तुम बहुत बदमाश हो।‘
आगे एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर तमाम लोग बैठे बतियाते दिखे। चबूतरे के पास ही तमाम मिट्टी के बर्तन भी बिक रहे थे। सुराही , गमला , गुल्लक और दीगर बर्तन। आज के समय में जब सिक्के चलन से लगभग बाहर हो गए हैं। ऐसे में गुल्लक बनते और बिकते देख लगा कि एक ही समय में हम एक साथ कितने समयों में जी सकते हैं।
पेड़ के नीचे चबूतरे में बैठे लोगों को तसल्ली से बतियाते देखकर लगा कि आज के समय में नेट एडिक्शन से छुटकारे का उपाय यही है कि जगह-जगह पुलिया, चबूतरे बनवाए जाएं जहां बैठकर लोग आपस में बतियाएं। लेकिन बड़ी बात नहीं कि चबूतरे बनते ही लोग मांग करने लगे कि हर चबूतरे के पास मुफ़्त वाई-फ़ाई की व्यवस्था की जाए ताकि वहां बैठकर तसल्ली से सर्फिंग/चैटिंग की जा सके।
चबूतरे के बगल में ही एक गोशाला दिखी। बड़ी सी गोशाला में करीब सौ के करीब गायें होंगी। बताने वाले ने हालांकि पाँच सौ बताईं। अलग-अलग उम्र की गायें। शुरू में ही बच्चा गायें, आगे बड़ी, बुजुर्ग गायें। तमाम गायों की हड्डियाँ दिख रही थीं। इस तरह कि अगर जरूरत पढे तो बिना एक्सरे के साफ दिख जाएँ, गिनती हो सके। कुछ गायें दूध भी देती होंगी। कई दूधिये दूध के डब्बे/पीपे लिए अंदर आते दिखे। कुछ गायें अपने सुबह का नाश्ता करते दिखीं। नाश्ते में भूसा था। थान के बुफ़े सिस्टम में मुंह से मुंह से सटाये तसल्ली से चारा खाते हुए बछियों के चेहरों को देखकर लगा कि परमानन्द अगर कुछ होता है तो वह यही है जो इन गायों के चेहरों पर पसरा है।
गौशाला के आगे ही एक जगह , जंगले के अंदर कुछ लोग बैठे, बतकही में मशगूल थे। एक बाबाजी धुआँ उड़ाते दिखे। बाहर लिखा था – ‘समाधि श्री उदासी बाबा, राम बाग। ‘ उदासी बाबा के बारे में पहली बार सुना था। पहली नजर में लगा कि समाधि बाबा लोगों की उदासी दूर करते हों या फिर उदास रहते हों। वहाँ मौजूद लोगों से जानकारी ली तो पता चला कि मेरा सोचना गलत था। वहाँ मौजूद लोगों ने बताया कि –“उदासी बाबा नानक जी के पुत्र श्रीचंद के सेवक थे।“
आज जानकारी ली तो पता चला कि उदासी एक अलग संप्रदाय था-‘ सिख धर्म में गुरु नानक के बाद ही एक अलग संप्रदाय का निर्माण हो गया था, जिसका नाम था – उदासी मत। इसकी स्थापना उनके बेटे बाबा श्रीचंद ने ही की थी। सिख संप्रदाय में गृहस्थी व समाज में रह कर जीवन को पवित्र बनाने पर जोर था, जबकि ‘उदासी मत’ में संसार के पूर्ण त्याग पर बल दिया गया।‘
कुछ देर वहाँ रुककर हम आगे चल दिए। बाहर निकलकर देखा तो एक नया आया हुआ आदमी जेब से चिलम निकालकर कुछ धुआँ जैसा उड़ाने लगा। वहाँ मौजूद लोगों ने भी इसमें सहयोग दिया। उदासी दूर करने का हर एक का अपना-अपना अंदाज होता है।
आगे चौराहे पर एक ट्रैक्टर में तमाम लोग बैठे कहीं जा रहे थे। शायद राम नवमी के मौके पर कहीं पूजा करने जा रहे होने। ट्रैक्टर बीच सड़क पर कुछ देर खड़ा रहा। यातायात रुक गया। एक आदमी मोटरसाइकिल पर गैस सिलेंडर लिए ट्रैक्टर के निकलने का इंतजार करता रहा। ट्रैक्टर के मुड़ने , चलने और आगे बढ़ने को जिस अंदाज में वह देख रहा था उससे लगा कि उसकी स्टेअरिंग है जिसको सहारे वह ट्रैक्टर को नियंत्रित कर रहा है। ट्रैक्टर के निकलने के बाद मोटरसाइकिल वाला निकल लिया। हम भी आगे बढ़ गए।
सड़क किनारे एके झोपड़ी में चलती एक दुकान के बाहर खड़े आटो पर बर्फ की कुछ सिल्लियाँ लिए खड़ा था। भारती जी के निबंध , ठेले पर हिमालय की तर्ज पर, आटो पर हिमालय। बर्फ बेचने वाला बच्चा सूजे से छेद करके बर्फ के दुकड़े कर रहा था। एक छोटी सिल्ली के चौथाई हिस्से को दुकान वाले को सौंप दिया। छोटी सिल्ली के चौथाई हिस्से को पाव बताते हुए दाम भी बताए – ‘पौवा साठ।‘ मतलब चौथाई सिल्ली साथ रुपये की।
बर्फ वाला चौथाई सिल्ली के अलावा और भी बर्फ देना चाहता था दुकान वाले को। दुकान वाले ने माना किया। बर्फ वाले ने इस बुजदिली के लिए उसका उपहास टाइप किया। आह्वान किया किया कि बिजनेस में रिस्क लेना आना चाहिए। लेकिन दुकान वाला उसके झांसे में नहीं आया। आटो वाला आटो स्टार्ट करके अपनी बर्फ समेत आगे चल दिया। हम भी आगे निकल लिए !
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