'तितलियों की बेकरारी और खामोशी के इनाम के तौर पर ही उनको उनके रंग दिए गए हैं, उनके परों पर नक्कासी की गई है।'
'कोई भी लम्बा सहवास कई प्रकार की आपसी तल्खियों, शिकायतों, चिड़चिड़ाहटों, बेवफ़ाइयों के बावजूद और कारण ही बना रह सकता है। सिर्फ आपसी लगाव के कारण नहीं।'
ऊपर के दो पैरा कृष्ण बलदेव वैद की डायरी के हैं। डायरी का शीर्षक है -'अब्र क्या चीज है? हवा क्या है?'
वैद जी की डायरी पढ़ते हुए लगा कि हमको भी डायरी लिखनी चाहिए। वैसे फेसबुक में हम जो लिखते हैं वो डायरी ही तो है। फेसबुक पूछता है -'आपका दिमाग में क्या है?' जबाब में हम जो लिखते हो वही पोस्ट होता है।
कृष्ण बलदेव वैद जी का लेखन अलग तरह का रहा। उनके लेखन पर अश्लीलता का आरोप लगता रहा। अपनी एक बातचीत में उन्होंने कहा जो कहा उसका मतलब यही निकलता है कि उनके लिए अभिव्यक्ति का स्थान सबसे ऊंचा है।
अपने ऊपर अश्लीलता के आरोपों की फिक्र उनकी डायरी में इस बयान से पता चलती है:
'बिमल इन बाग' के प्रूफ तो पढ़ डाले, लेकिन उसके प्रकाशन को लेकर उत्साहित कम हूँ, चिंतित अधिक। उत्साह की कमी का कारण प्रकाशक 'नेशनल'। वहां से प्रकाशित होकर पुस्तक शायद ही कहीं पहुंचे। चिंता का कारण यह कि लोग फिर उसकी अश्लीलता को पकड़कर बैठ जाएंगे: वैद यौन ग्रंथियों का कथाकार है, बीमार है.....। जब तक कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ मैं कोशिश करता रहा। अब वह मिल गया है तो मैं ठंडा हो गया हूँ।'
कृष्ण बलदेव वैद की डायरी पढ़ना रोचक है। अभी तो शुरू की है।
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