रामनाथ अवस्थी जी के प्रसिद्द गीत का मुखड़ा है:
इसी गीत का एक और अंश है:
"रात लगी कहने सो जाओ,
देखो कोई सपना,
जग ने देखा है बहुतों का
रोना और तड़पना।"
यह पंक्तियां उनपर लागू होती हैं जिनको नींद की समस्या होती है। अपन को तो जब लेट जाएं, नींद आ जाती है। पहले देर में सोते थे। आजकल जल्ली सोना, जल्दी जगना। जगने का मतलब उठ जाना नहीं होता। जग-जग के सोना भी होता है। जगे दो पेज किताब पढ़ी, करवट बदलकर या किताब रखकर 'नींद ब्रेक' ले लिए। फिर जग गए। किताब पढ़ने लगे , सोचते हुए कि अब उठते हैं।
कृष्ण बलदेव जी की डायरी पढ़ते हुए कई रोचक जुमले दिखे। एक जगह अचानक लिख दिया:
"सफलता का अश्लीलतम नमूना, अमिताभ बच्चन।"
इसके अलावा अपने बारे में और उन लेखकों के बारे में जिक्र भी किया है जिनको उन्होंने पढ़ा है। अनाइस नीन का जिक्र करते हुए लिखा:
"नीन से पहले किसी औरत ने अंग्रेजी में इतना खुलकर और इतनी तफसील के साथ नहीं अपनी जज्बाती, नाफ़ियाती, जिनसी जिंदगी के बारे में नहीं लिखा और अपने दोस्तों, आशिकों, पति, पिता को इतनी बारीकी से नहीं कुरेदा या टटोला। मर्दों में भी मिल्लर के अलावा किसी लेखक ने इस तरह की खूबसूरत दिलेरी नहीं दिखाई।"
आगे नीन और मिल्लर का जिक्र करते हुए लिखा :
" अनाइस नीन मर्दबाज औरत थी, उसी तरह जिस तरह हेनरी मिल्लर औरतबाज मर्द। दोनों आजाद इंसान थे। दोनों शादी के घेरे में बन्द होकर नहीं रह सकते थे। इस लिहाज से वे एक-दूसरे के आदर्श थे।"
अपन पहली बार नाम सुन रहे थे इन लेखकों का। नेट पर खोजा तो पता चला कि नीन जी 1903 में पैदा होकर 1977 में रुखसत भी हो गईं। उनके गुजर जाने के 26 साल बाद वैद जी उनके बारे में लिख रहे हैं जिसको हम 19 साल बाद पढ़ रहे हैं। इंसान के अलग हटकर किये काम और कारगुजारियां लंबे समय चर्चा में रहते हैं। यह भी पता चला कि नीन ने 7 डायरियां लिखीं। एक डायरी की कीमत पेपरबैक में कीमत 17 डॉलर मतलब 1300 रुपये। 7 डायरी मतलब 9100 रुपये। टल गई खरीद।
डायरी पढ़ना स्थगित करके घूमने निकले। सड़क गुलजार थी। स्कूल जाते बच्चे उसे और खूबसूरत बना रहे थे। एक बच्ची ऑटो में कॉपी खोले पढ़ती जा रही थी। शायद उसका टेस्ट हो।
पार्क में लोग घूम रहे थे, खेल रहे थे, वर्जिश कर रहे थे। एक पहलवान टाइप आदमी झूले की सीढ़ियों में पैर फँसाये उल्टा लेटा ईंटो पर हथेली रखे वर्जिश कर रहा था। पूरा पार्क चहक रहा था।
रामलीला पार्क में भी लोग खेल, टहल रहे थे। पार्क के एक हिस्से में पानी भरा था। शायद पाइप लीक है। न जाने कब से ऐसा है। देखकर लगा कि कितना पानी बह गया होगा लापरवाही में।
रामलीला मंच के सामने एक बच्चा ईंटों का विकेट लगाए बैटिंग कर रहा था। गेंद फेकने वाली लड़की थी। लड़का बल्ला घुमाता, गेंद कभी बल्ले पर आ जाती, कभी निकल जाती। जब आ जाती तो लड़की भागकर गेंद लाती। फिर फेंकती।
एक दूसरी लड़की भी फील्ड पर है। किसी को ठीक से खेलना नहीं आता। न बच्चियों को गेंद पकड़ना, न बच्चे को देखकर गेंद मारना। लेकिन उत्साह है खेलने का। खेल रहे हैं।
पता चला बच्चे की कल की बैटिंग बकाया थी। आज मिली है। सो बल्ला घुमा रहा है। लड़कियां गेंद फेंक रही हैं। एक बार में छह-छह गेंदे मिलती हैं खेलने को। खेल रहे हैं, तीन लोगों की पूरी टीम।
पता चला बच्चा 9 वीं में पढ़ता है, बच्चियां बीए में। जीएफ कालेज में। कालेज में नई टीम बनी है लड़कियों की क्रिकेट की। बच्चियां भी हैं टीम में। कुछ भी नहीं आता खेलना। लेकिन हौसला है, सीख रही हैं। दो दिन हुये सीखते।
बातचीत में बच्चियां उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज दिखीं। कहा-'हम गांव के हैं। मेहनत करते हैं। बाकी लड़कियां शहर की। मेहनत नहीं करती। हम अभी खेल नहीं पाती लेकिन सीख जाएंगे।'
बच्चियों के हौसले और उत्साह से मन खुश हो गया। एक बार फिर याद आई पंक्तियां -"कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं नहीं मन चाहिए।"
हमारी फैक्ट्री के लोग सिखा देंगे।
बच्चियों में एक के पिता खेती करते हैं, दूसरी के प्राइवेट बैंक में। रंजना राजपूत और अंजली सक्सेना को क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में भी कुछ नहीं पता। क्रिकेट खिलाड़ियों के नाम पूछने पर बताया -सिंधु। नाम न पता हो लेकिन उत्साह तो जबर है।
हमने भी उनको दो-तीन ओवर खिलाये। बच्चों ने लप्पेबाजी करते खेला। कभी गेंद पीछे निकल गयी, कभी बल्ले से लगकर मैदान में।
आगे एक बच्ची को उसका कोच टाइक्वाडो सिखाते मिले। तमाम बच्चे बैट-बाल खेलते।
सड़क पर लोग टहल रहे। कुछ लोगों की चर्बी देखकर लगा कोई जुगत होती कि चर्बी वालों की चर्बी हड्डी वालों को ट्रांसफर हो जाती। दुनिया का बहुत भला हो जाता। लेकिन ऐसा होता कहां है।
स्कूल की दीवार पर लिखा दिखा:
खोल दे पंख मेरे कहता है परिंदा,
अभी और उड़ान बाकी है
जमीन नहीं है, मंजिल मेरी
अभी पूरा आसमान बाकी है।
खरामा-खरामा टहलते हुए घर आ गए। धूप सब जगह खिल गयी थी। अमलतास के पेड़ अपने फूलों के साथ खूबसूरत दिख रहे थे। मौसम खुशनुमा । सुबह हो गयी थी।
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