Wednesday, October 04, 2023

जीरो प्वाइंट पर शिलाजीत

 



श्रीनगर से सोनमर्ग में रास्ते में जगह-जगह जवान तैनात दिखे। अमरनाथ यात्रा के कारण कड़ी सुरक्षा थी। सड़क पर खड़े, हथियार लिए, चौकन्ने जवानों की सख्त ड्यूटी।
जीरो प्वाइंट सोनमर्ग का पर्यटन स्थल है। लोग घूमने आते हैं। जहां गाड़ियां रुकती हैं उसके थोड़ा आगे जाने पर जमी हुई बर्फ। लोग ऊपर तक जाकर बर्फ देखते हैं। फोटो खिंचवाते हैं। चले आते हैं।
जहां गाड़ियां रुकती हैं और जहां बर्फ शुरू होती है दोनों के दरम्यान तमाम ढाबे, अस्थाई दुकानें हैं। उनमें चाय-पानी, नाश्ते का सामान और दीगर स्थानीय चीजें मिलती हैं। अलावा इसके तमाम फेरी वाले पहुंचते ही पास आकर चीजें दिखाने लगते हैं। जहाँ आदमी वहां बाजार।
गाडी से उतरकर बर्फ के पास जाते हुए आसमान और आसपास ऊंचे-ऊंचे पेड़ देखते हुए आगे बढ़े। थोड़ी ऊंचाई और चढ़ाई पर जाते हुए ऊंचाई के कारण आक्सीजन की कमी लगी। सांस लेने में तकलीफ भी। हम बर्फ की शुरुआत से करीब बीस-पच्चीस मीटर पहले एक ढाबे पर ही बैठ गए। लोगों को जमी हुई बर्फ पर चढ़ते, उतरते,फिसलते और फोटो खिंचाते देखते रहे। चाय के लिए भी बोल दिया ढाबे वाले को।
जीरो प्वाइंट की बर्फ ऐसी जमी हुई थी मानों उसको पीट-पीट कर जमा किया गया हो। पीटते हुए धमकाया भी गया हो-'खबरदार जो धूप की संगत में पिघलने की कोशिश की।'
स्थानीय लोग इस जमी हुई बर्फ से अपने हिसाब से कमाई कर रहे थे। तमाम लोग स्लेज लिए खड़े थे। स्लेज पर बैठाकर बर्फ में फिसलपट्टी की तरह घुमा रहे थे। कई फोटोग्राफर अपने साथ बढिया कैमरे लिए फोटो, वीडियो बना रहे थे। साधारण सी वेशभूषा में स्थानीय लोग हाई क्वालिटी कैमरे लिए अपने मोबाइल स्टूडियो खोले खड़े थे। दो मिनट में खूबसूरत फोटो, वीडियो बनाकर आपके मोबाइल में दे रहे थे। अकेले और जोड़े में लोगों के पोज भी बना रहे थे। एक फ़ोटोग्राफर ने बर्फवारी का सीन बनाने के लिए नीचे झुककर थोड़ी बर्फ खोदी। फोटो खिंचाने वाले के हाथ में ऱखकर उछालने को कहा। बर्फ उछालते हुए उसका फोटो, वीडियो बनाया। कुछ और पोज में फोटो लिए। थोड़ी देर में प्रोसेस करके, सबका वीडियो बनाकर थमा दिया। सबके हजार या शायद पंद्रह सौ लिए। पचीसो फोटोग्राफर वहां यह काम कर रहे थे।
बर्फ में चलते हुए लोग फिसल भी रहे थे। स्लेज वाले और फोटोग्राफर और साथ के लोग उनको संभालकर नीचे ला रहे रहे थे।
हम ढाबे में एक कुर्सी पर बैठे बर्फबाजी, स्लेजबाजी और फोटोबाजी के कौतुक देख रहे थे। हमको अकेला और शायद थका हुआ बैठा देखकर एक आदमी शिलाजीत बेचने आया। शिलाजीत के फायदे और असली शिलाजीत होने की बात बताते हुए उसने शिलाजीत खरीदने के लिए कहा।
शिलाजीत की तमाम खूबियां होती हैं। लेकिन उसको मर्दानगी से इतना ज्यादा जोड़ा जाता है कि उसके बाकी सब गुण गुमनाम हो जाते हैं। हाल यह है कि इंसान खुले आम शिलाजीत खरीदते हिचकता है। कहीं लोग उसको कममर्द न समझ लें।
शिलाजीत के बाद उसने पेट कम करने की दवा का विज्ञापन शुरू किया। शायद उसको अंदाजा हुआ होगा कि अगला पेट के कारण दमफूल जाने की वजह से यहीं बैठा है। दवा लेते ही पेट आधा हो जाएगा की गारंटी के बावजूद जब वह असफल रहा तो चुपचाप आगे जाकर दूसरे ग्राहक को शिलाजीत और मोटापा कम करने की दवा बेंचने का प्रयास करने लगा।
घूमने की जगहों और खासकर काश्मीर में मैने पाया कि आप जहाँ पहुंचते हैं, बाजार आपके पास पहुंच जाता है। होटल में, पानी में, नदी किनारे, पार्क में। किसी भी जगह पहुंचे नहीं कि बाजार आपकी मिजाज पुर्सी के लिए हाजिर।
घुमाई और फोटोबाजी के बाद चायपानी करके लौटने की बात होने लगी। आहिस्ते-आहिस्ते लौटने का मन बनाते हुए लोग गाड़ियों तक आते गए। पीछे रह गए साथियों का इंतजार करते हुए फिर से प्रकृति को देखते, निहारते और कैमरे में भर्ती करते रहे। सब लोगों के आ जाने के बाद वापस चल दिये।
वापसी में चिंता थी कि कहीं देर न हो जाए और रात सोनमर्ग में ही गुजारनी पड़े। सोनमर्ग और पहलगाम में एक निश्चित समय के बाद वापस नहीं आने देते। सुरक्षा कारणों से।
रास्ते में एक जगह पत्थर गिर जाने के चलते गाड़ियां रुकी हुईं थीं। लम्बी लाइन लाइन। हम भी रुके। देरी होते हुए लगा कि कहीं यहीं न रुकना पड़े। लेकिन थोड़ी देर बाद जाम खुल गया। गाड़ियां तेज भागी। हम कुछ देर में उस जगह पहुंचे जहां हमारी बस खड़ी थी। गाड़ियों से उतरकर बस में पहुंचे। सरपट भागे। देर तक यही सोचते रहे कि कहीं यहीं न रुकना पड़े।
जिस जगह जाने के लिए हम लोग इतने इंतजाम करते हैं, वहीं ' ठहरना न पड़े ' सोचते हुए परेशान होने वाली बात भी मजेदार है। हम चुपचाप बैठे यही सोचते रहे कि शाम होने के पहले निकल जाएं सोनमर्ग से। रुकना न पड़े।
आगे थोड़ी देर बाद हमने पूछा अभी वह जगह कितनी दूर है जहां तक पहुँचने के बाद सोनमर्ग में रुकने की बन्दिश नही होगी। पता लगा कि वह जगह तो निकल गयी। पन्द्रह बीस मिनट पहले। सुनकर हमने जो सांस ली वह बाकी सांसों की तरह सामान्य ही थी लेकिन तसल्ली वाले भाव के चलते लोग उसको संतोष की सांस कहते हैं।
संतोष की सांस लेने के बाद हमने तसल्ली से बस के बाहर देखना शुरू किया। खूबसूरत नजारे देखते हुए श्रीनगर की तरफ़ बढ़ते गए। एक जगह रुककर नाश्ता-पानी किया। इसके बाद फिर बस में बैठकर चले तो अंधेरा होने लगा था। श्रीनगर पहुंचते-पहुंचते रात ने भी ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी।

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