Monday, August 01, 2005

संस्कार कैसे छोड़ दिये जायें ?













मैं जब भी कुछ लिखने की सोचता हूं तोपिछली पोस्ट याद आती है।लगता है कि कुछ छूट गया जो कि लिखा जाना जरूरी है।इस पोस्ट पर कुछ साथियों के सुझाव भी हैं।स्वामीजी, पद्मजा तथा तरुणका मानना है कि लड़का-लड़की विवाह के बाद घरवालों से अलग रहें।अतुलका कहना है कि अन्तरराज्यीय,अन्तरजातीय संबंध बनाने से स्थितियां सुधर सकती हैं।आलोक का मानना है कि यह लड़के का फर्ज है कि वह मौके की नजाकत को समझे तथा लड़की को लड़की को विश्वास दिलाये कि वह उसका शुभचिंतक है।
लगता है कि कुछ छूट गया जो कि लिखा जाना जरूरी है।इस पोस्ट पर कुछ साथियों के सुझाव भी हैं।
मैं खुद क्या सोच रहा था कहना बड़ा मुश्किल है।जब हम दूर होते हैं समस्याओं के हल बड़े सरल दिखते हैं।पास से देखने पर तमाम पेंच दिखते हैं।समाजशास्त्री हीइसका सम्यक विवेचन कर सकते हैं।पर जो मुझे लगा वह लिखने का प्रयास करता हूं। शुरुआत पात्र-परिचय से:-
लड़का:- लड़का अपने मां-बाप का अकेला पुत्र है। पिता राज्य सरकार में राजपत्रित अधिकारी हैं।बेटे को भरपूर प्यार मिला है। शिक्षा-दीक्षा में बहुत अच्छा न रहा पाने के कारण नौकरी कुछ बहुत अच्छी नहीं मिली।स्वभाव से उग्र-गुस्से को मर्दों का आभूषण मानने वाला।मारपीट से परहेज नहीं।तुनकमिजाजी के कारण कोई स्थायी दोस्त नहीं। ढींग हांकने की आदत से मजबूर। कमाई बहुत अच्छी न होने के कारण आर्थिक रूप से पिता पर काफी कुछ निर्भर। पिता से अल्पसंवाद, डर को श्रवणकुमार का रूप देता है।
लड़की:- तीन बहनों तथा एक भाई में सबसे छोटी।पढ़ी-लिखी,खूबसूरत। शादी के पहले तीन बहनों में सबसे चुलबुली।पिता की बचपन में मृत्यु।दोनों बड़ी बहने तथा भइया का सुखी वैवाहिक जीवन।सीधी तथा डरपोक की हद तक विनम्र।
लड़के के पिता:- स्वभाव से गरम मिजाज के स्वामी। सामंतवादी सोच। लंबे अर्से से एक ही जगह पोस्टेड। दफ्तरी दांव-पेंच के चलते हर बात में शंका करने कीस्वाभाविक आदत। मर्दाने गुणों को धारण करने की आदतन ललक। वायदे के अनुसार काम करने की कोशिश।अधिकार भाव।विरोध सहन करने में कमजोर। अपनी सोचके अनुसार तर्क का जामा पहनाने के लिये सदैव तत्पर। दुनियावी अर्थ में सफल।
लड़के की मां:-आम मध्यम वर्गीय मां। पति की जायदतियों को स्वाभाविक मानकर सहन करने की शिक्षा देने वाली।लड़के के प्रति अतिशय प्रेम। लड़के को हमेशा साथ रखने की कोशिश।
लड़के की बहन:- पढ़ी-लिखी,तेज-तर्रार-स्मार्ट सी युवा कन्या। विवाह होना है। भाभी से बदतमीजी को वह सामान्य व्यवहार मानती है।उम्र में भाभी के लगभग बराबर। भइया से दो साल छोटी।
लड़की के घरवाले:- आम लड़की वालों की तरह। विनम्र, सशंकित,डरे-सहमे।पिता की मौत के बाद सारी जिम्मेदारियां सबसे बड़े लड़के ने पूरी कीं।मां लड़के पर निर्भर।दो दामाद भले- स्वभाव से खुशमिजाज।
जितना मैं समझ पाया वह यह कि सब लोग अपने हिसाब से सही आचरण कर रहे थे। लड़के का पालन-पोषण दुलार-प्यार में हुआ।उसके अवगुणों को बहादुरी से बखाना गया। एकबार लड़के की मां ने बखाना-हमारा लड़का अपने साथ के लड़कों को पीट देता था। बड़े-बड़े गुंडे लड़कों को इसने धूल चटा दी है।आमबात है कि जिस पक्ष की वाह-वाही होती है हम उसका अधिक मात्रा में अंगीकरण करते जाते हैं।इसी तरह के धूल चटाने वाली तमाम आदतों से जाने-अनजाने लड़का विभूषित होता गया।
शादी के बाद अपना कहने को बीबी मिली तो वह सारे गुण अपने बीबी पर प्रदर्शित करने लगा।प्रेम में गहराई लाने के लिये यदा-कदा मारपीट भी करने लगा। जब लड़की ने यह बात अपनी सास को बताई तो उनका कहना था -ये सब तो होता ही है। निभाना ही पड़ेगा।वे शायद भुक्त भोगी थीं। लड़का अपने बाप द्वारा स्थापित स्वर्णिम परम्परा का निर्वाह कर रहा था।
जबतक लड़का बिना किसी रोक-टोक के पीटता रहा तबतक ससुराल वालों का प्यार लड़की के प्रति बना रहा।कुछ दिन बाद रोज-रोज की हरकतों से तंग आकर लड़की अपने मायके चली आयी तब से ससुराल वालों का रुख बदल गया। लड़की में बुराइयां दिखने लगीं। लड़का कुछ दिन बेचैन रहा। रोज-रोज माफी मांगकर तथा आइंदा सही व्यवहार करने का वायदा करके पत्नी को वापस ले आया।अपनी हर बात घर में बताता था लिहाजा इस घटना को उसके घर वालों ने व्यक्तिगत अपमान के रूप में लिया। तथा हर तरह से लड़की वालों को गलत ठहराने के प्रयास शुरु कर दिये।वे उस मानसिकता में जीते हैं -मायके से लड़की की डोली उठती है,ससुराल से लड़की की अर्थी ही निकलती है।
लड़का अमरबेल की तरह पिता पर हर तरह से निर्भर था।वह परतंत्र भारत के पुलिसवालों की तरह देशवासियों पर मजबूरी के अत्याचार करता रहा।लड़की इतनाआतंकित होती गई कि विरोध करने की हिम्मत भी न जुटा पायी। वह ससुराल वालों के रसूख से इतना सहमी थी कि कोई भी कदम उठाने की सोचने के पहले सोचती कि अगर प्रयास असफल रहा तो मायके वाले परेशानी में पड़ जायेंगे। आज कानूनी हालत यह है कि यदि शादी के बाद लड़की ससुराल वालों के खिलाफ किसी भी प्रकार के उत्पीड़न की रिपोर्ट लिखाती है तो सारा परिवार (ससुराल) नाचा-नाचा फिरता है लेकिन उसको इसका अंदाजा नहीं था। जब हालात बहुत बिगड़ गये। लड़की का फोन सुना जाने लगा तब वह चिड़चिड़ी होती गई। जिन घर वालों से बात करने के लिये वह परेशान रहती थी उनका फोन आने पर कहती-आपलोग फोन किसलिये करते हैं? मत किया करें फोन। इसके बाद फिर जो हुआ वह बताया गया।
दुनिया में उस व्यक्ति से अभागा कोईनहीं होता जिसको ,निस्वार्थ भाव से, गलत बात पर टोंकने वाले साथी नहीं मिले होते
घटना के बाद लड़का अगले दिन लड़का मेरे पास आया । पूछा- मैं अपनी पत्नी को बिना कैसे रहूंगा? मैंने कहा-यह तो तुम्हे तय करना होगा। पर यह भी है कि कुछ न कुछ गड़बड़ तुम्हारी तरफ से जरूर है वर्ना तुम्हारी पत्नी तुम्हें इस तरह छोड़ के न जाती। मैंने सलाह भी दी कि उसको अपने पैरों पर खड़े होनेका प्रयास करना चाहिये। उसने माना कि घर में उसकी हालत कमजोर है ।वह यह भी सोच रहा था कि अब दोनों पक्ष केस दायर करेंगे। तथा बीबी से उसकी मुलाकात की संभावनायें कम होती जायेंगी। मैंने आश्वस्त किया कि लड़की वालों की तरफ से ऐसा कुछ नहीं होगा। पर वह डरा हुआ था कि कहीं उसके पिता अपने बचाव में कुछ न लिखा-पढ़ी न कर दें। अनुरोध भी किया कि मैं उसके पिता को समझाऊँ कि वे कुछ बिगाड़ वाला काम न करें। मैंने कहा -ठीक है। तब उसने यह भी कहा -मेरे पिताजी को पता न चले कि मैं आपके पास आया था। मैंने यह भी मान लिया। गया भी तथा समझाने का प्रयास भी किया।अभी तक दोनों पक्ष शान्त हैं।लड़का इधर-उधर से प्रयास करके पत्नी से बात करने की कोशिश करता रहता है।लड़की फिलहाल किसी भी तरह से वापस आने की नहीं सोचती।
जो कारण मुझे पता लगे उससे मेरी धारणाओं की पुष्टि हुई कि लड़का घरवालों पर कई तरह से निर्भर है।इसीलिये भी वह अपनी पत्नी के खिलाफ ऊलजलूल हरकतेंकरता रहता है। लड़के के कोई ऐसे दोस्त भी नहीं हैं जो उसे सही बात के लिये सलाह सकें तथा गलत बात पर टोंक सके।दुनिया में उस व्यक्ति से अभागा कोई नहीं होता जिसको ,निस्वार्थ भाव से, गलत बात पर टोंकने वाले साथी नहीं मिले होते।उसकी बहन भी भाई की कमजोर हालत के चलते भाभी से बदतमीजी करने को स्वाभाविक समझती है। लड़का कुछ दिन घर से बाहर रहा जिस शहर में लड़की का मायका है। इससे लड़के की मां को यह अहसास हुआ कि लड़का जाने-अनजाने हाथ से निकलता जा रहा है ।वह लड़का, जो आर्थिक रूप से बाप पर निर्भर हो,हाथ से निकल जाये यह कोई मां कैसे बरदास्त करसकती है? लिहाजा वे हर संभव प्रयास करती रहीं कि लड़का मजनूपने की हालत से निकले। यह मौका भी जल्द ही आ गया जब लड़के का तबादला दूसरे प्रदेश हो गया। इकलौते लड़के को दूसरे प्रदेश भेजने की बजाय उसको इस्तीफा दिलाकर घर बैठा दिया गया। फिर यही सब हुआ।
जिस देश के मर्यादा पुरुषोत्तम तक ने दुनिया के कहने पर अपनी पत्नी को त्याग दिया उस देश के, बाप पर डरने की हद तक निर्भर ,लड़के बीबी के साथ कैसे खड़े होने का हौसला जुटायेंगे ?
तमाम मत जो व्यक्त किये गये वे सब अलग-अलग हालात के लिये ठीकहो सकते हैं।पर मुझे जो लगता है वह यह है कि लड़की को अपने अधिकार की जानकारी तथा जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की सीख बेहद जरूरी है।आर्थिक आत्मनिर्भरता भी जरूरी है ।हालांकि भारत में आमतौर पर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलायें भी पूरी जिंदगी पिटते हुये बिता देती हैं।मानसिक मजबूती तथा आत्मनिर्भरता ज्यादा जरूरी हैं।लड़के को भी अपनी समझ रखनी चाहिये तथा बीबी को गुलाम न समझ करसाथी समझने की तमीज आनी चाहिये।
पर समस्या यह है कि जिस देश के धर्मराज तक मां के कहने पर बीबी को बांटने के लिये तैयार हो गये तथा जिस देश के मर्यादा पुरुषोत्तम तक ने दुनिया के कहने पर अपनी पत्नी को त्याग दिया उस देश के, बाप पर डरने की हद तक निर्भर ,लड़के बीबी के साथ कैसे खड़े होने का हौसला जुटायेंगे ?वह भी तब जब बीबी को पीटने का संस्कार उन्हें विरासत में मिला है। संस्कारों को कैसे छोड़ दिया जाये?
लड़की की तारीफ मैं इस बात के लिये करूंगा कि मौका मिलने के बावजूद उस दिन पुलिस से तथा आज तक भी उसने ससुराल वालों पर झूठे इल्जाम नहीं लगाये। बहरहाल फिलहाल वह अपने मायके में है । दुबारा चहकना सीख रही है।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

10 responses to “संस्कार कैसे छोड़ दिये जायें ?”

  1. Jitu
    व्देखो भइया, इस समस्या का समाधान थोड़ा विचित्र है
    पहले पहल तो लड़के के बापजी को साधा जाये, और उन्हे दुनियादारी समझायी जाये, कुछ बुजुर्ग लोगो के द्वारा दहेज उत्पीड़न कानून की धाराये, बहुत ही विनम्र शब्दो मे समझायी जाये. साथ ही उनसे बहुत विनम्र अन्दाज मे बताया जाय कि सिर्फ एक रिपोर्ट करने पर पूरा का पूरा परिवार फ्री मे जेल मे हालीडेज मनायेगा, और इज्जत मे वृद्दि होगी सो अलग. तब शायद वे कुछ पिघलें.
    गलती लड़की वालों की भी है, निकम्मे लड़के से अपनी फूल जैसी बेटी ब्याहने के लिये किसी डाक्टर ने कहा था क्या? खैर अब क्या हो सकता है, एक बात तो है, लड़का लड़की को बहुत प्यार करता है, यही प्यार ही इस समस्या के समाधान का बेस बनेगा. लड़की वालों को चाहिये, लड़के को स्वावलम्बी बनाने मे कुछ सहयोग करें और धीरे धीरे समस्या को सुलझाने की कोशिश करें.
    फिर भी समस्या एक दिन मे नही सुलझने वाली, एक जरा सी गलती या जल्दबाजी मे दो दिलो बिछड़ जायेंगे. जो दुनिया का सबसे बड़ा जुर्म होगा.
  2. आलोक कुमार
    आत्मनिर्भरता नहीं होने से ही पङ्गा शुरू हुआ है। अभी भी समय है।
  3. Atul
    कूपमँडूकता
    “इकलौते लड़के को दूसरे प्रदेश भेजने की बजाय उसको इस्तीफा दिलाकर घर बैठा दिया “, यह अनजानी टेरीटरी में पैर जमाने से डरने की सोच हमारे क्षेत्र के लोगो को अपनी चौहद्दी से आगे नही जाने देती। घर के शेर बने रहते हैं और बने रहना चाहते हैं।
  4. आशीष
    सवाल मानसिकता का है। मैं पूछता हूं कि इस समाज में कितने लोगों की शादियां बिना दानदहेज और शोशे बाजी के बिना हुई हैं। जब किसी का लड़का है तो उसको दहेज अच्छा लगता है और जब लड़की की बात आती है तो वही चीज गंदी लगने लगती है। सवाल ये है कि क्या भारतीय लोग इस लेन देन से मुक्ति पा सकते हैं? दहेज धारा वगैरह से कुछ नहीं होने वाला। ऐसी धारायें बनती रहती हैं और लोग दहेज लेते रहते हैं। जैसे कि दलित उत्पीढ़न चलता रहता है जबकि सबको मालूम है कि ये कानूनी अपराध है।
    ये इस पर निर्भर है कि समाज क्या चाहता है?
  5. राजेश कुमार सिंह
    बहुत बढिया कहा , आशीष जी आपने।
    -राजेश

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