याज़ाद ने अनिल के एक चिट्ठे के हवाले से हिन्दी ब्लॉग गीत की बात छेड़ी। तो अपन कहां पीछे रहने वाले थे। हाजिर है कुछ ब्लॉग गीतः
ये अपने बाप्पी दा इश्टाईल में:
ब्लॉगिंग बिना चैन कहां रेSSS
कॉमेन्टिंग बिना चैन कहां रेSSS
सोना नहीं चांदी नहीं, ब्लॉग तो मिला
अरे ब्लॉगिंग कर लेSSS
..ये कुछ अल्ताफ राजा की शैली:
तुम तो ठहरे बलॉगवाले
साथ क्या निभाओगे।
सुबह पहले मौके पे
नेट पे बैठ जाओगे।
तुम तो ठहरे बलॉगवाले
साथ क्या निभाओगे।
और ये जॉनी वॉकर का बयानः
जब सर पे ख्याल मंडराएं,
और बिल्कुल रहा ना जाए।
आजा प्यारे ब्लॉग के द्वारे,
काहे घबराए? काहे घबराए?
सुन सुन सुन, अरे बाबा सुन
इस ब्लॉगिंग के बड़े बड़े गुन
हर बलॉगर बन गया है पंडित
गूगल भी थर्राए।
काहे घबराए? काहे घबराए?
बहरहाल देखते-देखते कब हम इस ब्लाग मैदान में कूद गये पता ही चला। दस दिन बाद हमारे ठेलुहा महाराज भी आ गये मैदान में। कुछ इसी के आसपास ही
जीतेन्द्र ने भी अपनी दुकान खोली। हम लिखना तो शुरु कर दिये लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि लिखा क्या जाये(अभी भी हालात वैसे ही हैं)। उस समय तक स्वागत-सत्कार की ऐसी मिसाइलें नहीं दगती थीं दनादन। सो हम आपस में वाह-वाह करके मस्त थे।
फिर हमें हमारे दोस्त ने बताया कि 'काउंटर' कैसे लगता है। लगाया तो देखा कि हमारा 'ब्लाग' तो देश-विदेश में पढ़ा जा रहा है। हम तो बौरा गये अपने 'ग्लोबलाइजेशन' से।हम खुशफहमी के नशे में थे कि हमें झटका मिला एक टिप्पणी से। अश्ररग्राम पर देबाशीष ने हमारा स्वागत-सत्कार करते हुये आशा की कि हम भाषा की शालीनता का ख्याल रखेंगे। हमने अवस्थी को लिखा-देखो ये बालक क्या कह रहा है! बताओ ,मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाये।अवस्थी ने कहा -छोड़ना तो बालक के साथ अन्याय होगा। न्याय की रक्षा की जानी चाहिये। तोहमने तथा अवस्थी ने अपने-अपने ब्लाग पर न्याय किया। लेख लिखा जिसमे मौज तथा खिंचाई थी। देबाशीष ने टिप्पणी लिखी तथा हम अफसोस के शिकार हुये।अगर किसी अपनी एक पोस्ट के लिखे जाने का अफसोस है मुझे तो वह यही पोस्ट है।
इसके बाद तो दनादन सारा जमा पड़ा माल बाहर आता गया।मूल रूप से मौज-मजे के अंदाज में लेखन चलता रहा। एक टिप्पणी में अतुल ने लिखा:-
आपने और जीतेंद्र भाई ने हिंदी चिठ्ठा जगत के शांत तालाब में पत्थर मारकर जो हलचल मचायी तो मजा ही आ गया|
इस बीच दनादन लोग लिख रहे थे तथा टिप्पणियां भी लिखीं जा रहीं थीं। उधर भारतीय ब्लाग मेला में हिंदी के पोस्ट के नामीनेशन शुरु हो गयेथे। किसी एक महीने में हिंदी की कुछ पोस्ट ज्यादा थीं तो अतुल कीउछलती मेल आयी-छा गई रे हिंदी छा गई। हालांकि यह खुशी कुछ दिन बाद ही गायब हो गई जब वहां लोगों ने हिंदी पोस्ट कोशामिल नहीं किया। अतुल ने अक्षरग्राम पर लेख लिखा-तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं? हालांकि लिखा अतुल ने था 'तुझे' लेकिन मुझेलग रहा था कि मिर्ची तो अतुल को लगी हैं। बहरहाल इसपर लेख लिखागया -अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है! तथा कालान्तर में चिट्ठाचर्चा
की शुरुआत की गई।
उधर अनुगूंज की शानदार शुरुआत हुई। कुछ बहुत बेहतरीन पोस्ट अनुगूंज के माध्यम से लिखींगईं। बाद में बुनो कहानी मेंभी तीन कहानियां भी लिखी गईं । कुछशिथिलता फिलहाल बुनो कहानी में चल रही है। शायद समय के साथ कुछ तेजी आये।
इस बीच हिंदी ब्लाग मंडल का आभामंडल तेजी से फैल रहा था। वागर्थ में बहुत उत्साहित करने वाला लेख छपा। अन्य जगह भी जिक्र आया।
रविरतलामी के बाद अतुल भी अभिव्यक्ति में अपने संस्मरण लिख कर मिठाई खिलाने लगे थे।कुछ दिन के सलाह-मशवरे के बाद हिंदी जगत की पहली ब्लागजीन 'निरंतर' शुरु हुई। शानदार पत्रिका के बावजूद पाठक बहुत कम तथा काम ज्यादा । फिलहाल पत्रिका निकालना दिन पर दिन मुश्किल लगता जा रहा है।इस बीच ब्लागनाद भी चालू हुआ तथा काफी हल्ला भी हुआ। जीतेन्द्र,अतुल तथा स्वामीजी में। वह भी मजेदार कहानी है।कहानियां तमाम हैं। सिलसिलेवार लिखना काफी मजेदार हो सकता है-हिंदी ब्लागजगत के यादगार विवाद।
जब हमने लिखना शुरु किया था तब ३० के लगभग ब्लाग थे ।अब आंकड़ा लगभग ९० तक आ गया है। जल्द ही मामला तीन अंकों तक पहुंचेगा।
साथी ब्लागर कुछ तो बहुत अच्छा लिखते हैं। मैंने कुछ लेख संकलित करने शुरु किये थे-'हाल आफ फेम टाईप'के।कामआधा ही हो पाया लिहाजा उसे अभी प्रकाशित नहीं कर पा रहा।पहले कमेंट काफी अनौपचारिक तथा बिंदास किस्म के करते थे लोग।अब कुछ सभ्यता की बीमारी लग गई है। इधर कमेंट करने में कंजूसी भी काफी होने लगी है। मुझे लगता है कि यादगार टिप्पणियों का संग्रह भी किया जाना चाहिये।
मैं १ अप्रैल से नियमित रूप से हिंदिनी पर लिखने लगा। यहां कभी-कभी लिखता हूं। हिंदिनी पर शुरुआत भी मजेदार रही। स्वामीजी ने मेरा दिसम्बर में लेख पढ़ा था । फिर वे हिंदी मे ब्लाग लिखने लगे। सनसनीखेज भाषा के मालिक स्वामी शुरु में बराबर यह अवसर उपलब्ध कराते रहे कि लोग समझें कि ये हिंदी सीख रहा है। बाद में कुछ हमपर ज्यादा ही फिदा हो गये ये। एक दिन फोन पर करीब तीन घंटे बातचीत हुई । फिर हम इनके कहने पर हिंदिनी में लिखने लगे। पर मेरा लगाव यहां से बराबर बना हुआ है। जब निर्जीव तथा तकनीकी रूप से कमतर चीजों से लगाव इतना हैतो सजीव लोगों से लगाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि जब मैंने हिंदिनी में लिखना शुरु किया तब जीतेन्द्र-अतुल-स्वामी का प्रेमालाप चरम पर था। जीतेन्द्र ने कभी मुझसे कहा होगा अपनी साइट में लिखने को। मुझे नहीं याद रहा होगा। पर इनको याद था। तो काफी दिन मुंह फुलाये रहे जीतू। कहते थे -तुम तो अजातशत्रु हो। लेकिन तुम भीष्मपितामह की तरह जिस तरफ नहीं जाना चाहिये वहां चले गये। हम भी मौज लेते रहे।
फिलहाल लिखना जारी है। नेट पर, जहां कि लोग कुछ पोस्ट लिखकर ब्लाग बंदकर देते हैं तथा कुछ अंक निकाल कर पत्रिकायें वहां मुझे लगता है कि मैं लिखता रहा साल भर ,काफी है।हां ,भी कभी मन करता है कि मैं भीरविरतलामीजी तथा सुनीलजी की तरह नियमित लिख पाता!
मेरे लेखों के बारे में लोग बतायेंगे। मैं लंबे लेख लिखने के लिये बदनाम रहा ।पर कुछ अपने कुछ लेख बार-बार पढ़ने का मन करता है। तमाम दूसरे लेख भी हैं जिन्हें देखकर कोफ्त भी होती है। कथाकार कृष्णबिहारीजी अक्सर हौसला बढ़ाते हुयेकहते हैं-तुमको तो मुख्यधारा में आकर लिखना चाहिये। पूर्णमा वर्मनजी कहती हैं कि मेरे एक लेख में दो-तीन लेखों की बात मिली होती है।थोड़ा मेहनत से और बेहतर लेख लिखा जा सकता हैं। नंदनजी कहते हैं -तुम लिखते रहो ।दिशा अपने आप तय होती जायेगी।
मैं हर लेख लिखने के बाद यही सोचता हूं कि ये वाला पोस्ट कर दो आगे देखा जायेगा।
आप क्या सोचते हैं?
आप ऐसे ही पढते-पढवाते रहें, यही मनोकामना है. हाल-आफ-फेम वाला विचार जबर्दस्त है, प्रतिक्षा रहेगी इस लेख की! :)
ReplyDeleteअमां यार तुमको टिप्पणियों की जरूरत कब से पड़ने लगी, लिखते रहो और लगातार लिखते रहो. यहाँ लिखो चाहे हिन्दिनी पर या दोनो पर, बस जरूरत है रोज़ाना एक लेख की, दो हो जायें तो और अच्छा.
ReplyDeleteहाँ ये सच है, धीरे धीरे लोग ब्लाग लेखन कम किये और अब टिप्पणियाँ कम होती जा रही है, लेकिन तुम्हारे ब्लाग को पढने के बाद, आदमी का आधा दिमाग तो यही सोचने समझने मे खत्म हो जाता है कि लिखा क्या है, जब तक समझे समझे, तब तक दूसरी पोस्ट आ जाती है, शायद इसलिये लोग टिप्पणी नही लिख पाते. खैर तुम तम्बू ताने रहो, जल्द ही मै भी अपनी ब्लाग एक्सप्रेस के पंचर ठीक करता हूँ.
आज रविवार है तो कुछ समय है चिट्ठे पढ़ने का, वरना तो रोज काम पर देर न हो जाये इस लिए जल्दी में पूरा देखने का समय ही नहीं मिलता. शाम को कम्प्यूटर पुत्र के हाथ में होता है, तो मौका नहीं मिलता.
ReplyDeleteयह हिंदी चिट्ठों का व्यक्तिगत और सामूहिक इतिहास बहुत अच्छा लगा.
सुनील
फ़ुरसतिया को जन्म-दिन की लख-लख शुभकामनायें ।
ReplyDeleteफुरसतिया में हास्य-व्यंग्य और संवेदनशीलता का दुर्लभ मेल है । बहुत-बहुत बधाई !
स्वामीजी,जीतेंदर,सुनीलजी,अनुनाद भाई, आपकी शुभकामनाओं के प्रति आभार। स्वामीजी,जल्द ही 'हाल आफ फेम 'के बारे में कुछ दिखेगा।
ReplyDeleteजीतेन्दर भाई, इस पोस्ट में जो मैंने लिखा वह चिट्ठाजगत की आम हालत के बारे में लिखा। हम कभी टिप्पणियों के मोहताज नहीं रहे।संयोग कुछ ऐसा कि आज तक मेरी ऐसी कोई पोस्ट नहीं है जो
बिना टिप्पणी के हो। बाकी यह सच है कि हम जो लिखते हैं उस पर आशा करते हैं कि लोग पढ़ें तथा अपने विचार बतायें। जहां तक बात सर से ऊपर निकलने की बात है तो मैं कई बार लिख चुका हूं
कि सीख रहा हूं ऐसा लिखना कि सबको -तुमको भी, समझ में आ सके।
aapki vayangaya purna aur bindas lekhan per to pura Kanpur - Nakhlau kurban !
ReplyDeleteJiya raha, piya raha aur lamba chauda chittha chapa raha.
Oh aur Pradeep kumar type style main:
Hum bhi agar senior hote,
naam hamara hota anup atul
Padhne ko milte tippu(tippani)
Aur duniya kehti happy birthday to you.
हमारी टिप्पणी हम पर ही बूमरैंग हो गयी है।
ReplyDeletefursatiya ko janandin ki bahut bahut badhai....
ReplyDeleteder se hi sahi, kyonki ye nithalle ki teraf se aayi....hey vats tu karam kar (post likh) phal (comment) ki chinta mat kar....yahi karam satya hai.
हम तो इस मंडली(इस्वामी, फुरसतीया, अतुल, सुनिल्,रवी, और जितेन्द्र) के लिखने के तरीको के दिवाने है. हमेशा सोचता हुं मै भी एसा लिख पाता.
ReplyDeleteफ़ुरसतिया को जन्म-दिन की बधाई !
आशिष
फुरसतिया की वर्षगांठ के साथ आज हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास भी पढ लिया।
ReplyDeleteआपके हाल आफ फेम वाले लेख का इंतज़ार रहेगा।
आपका यह लेख आज भी उपयोगी है, अगर हो सके तो दुबारा प्रकाशित करें. नए लोगों को अच्छा लगेगा !
ReplyDeleteनए ब्लागर के लिए आपके पुराने लेख बहुत आवश्यक हैं ! आप से अनुरोध है जो पुराने लेख (जो चार साल की ब्लाग यात्रा का परिचय दें ) एक नयी कड़ी के रूप में जरूर पुनः प्रकाशित करें अथवा उनका लिंक दे सकें तो अच्छा होगा, ऐसा करना आपकी अपनी आत्म कथा नही होगी बल्कि लोगो को हिन्दी ब्लाग की प्रगति से अवगत कराना होगा !
ReplyDelete"साथी ब्लागर कुछ तो बहुत अच्छा लिखते हैं। मैंने कुछ लेख संकलित करने शुरु किये थे-'हाल आफ फेम टाईप'के।कामआधा ही हो पाया" कहाँ है ये लेख ??
रंग लाएगी किसानी!
ReplyDeleteयह धरा होगी सुहानी!!
एक दिन होगी शिखर पर-
शब्द की शुभ बागबानी!!
आपके जन्मदिन पर मंगल
कामनाओं सहित- -डा० डंडा लखनवी