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सीखना है तो खुद से सीखो-रवि रतलामी
By फ़ुरसतिया on August 5, 2006
[लोकप्रिय चिट्ठों छींटे और बौछारें तथा रचनाकार के लेखक तथा अभी हाल ही में माइक्रोसाफ्ट कम्पनी के भाषाइंडिया पुरस्कार से नवाजे गये ,प्रसिद्ध हिंदी वेबपत्रिका अभिव्यक्ति, के नियमित लेखक रविरतलामी
आज अपने जीवन के ४८ वर्ष पूरे करके ४९ में प्रवेश कर रहे हैं। इस अवसर पर
उनको मंगलकामनायें प्रेषित करते हुये उनका इस अवसर पर लिया साक्षात्कार
यहाँ प्रस्तुत है।
रवि रतलामी के बारे में परिचय यहाँ पढ़ें।]
ज्यादा तर लोग हिंदी ब्लागिंग शुरू करने का कारण आपके अभिव्यक्ति पर छपे लेख को बताते हैं। जब यह श्रेय मिलता है तो क्या सोचते हैं?
यह श्रेय मैं अभिव्यक्ति को दे देता हूँ। इंटरनेट पर हिन्दी को स्थापित करने का महत्तम कार्य अभिव्यक्ति का ही रहा है।
ब्लाग लिखना कैसे शुरू किया।
जिओसिटीज़ पर पीडीएफ़ में मेरी हिन्दी रचनाएँ बहुत पहले से थीं। आलोक के सुझाए अनुसार बाद में मैंने अपनी रचनाएँ यूनिकोड हिन्दी में भी वहाँ रखीं। देबाशीष ने उन्हें देखा तो मुझे सुझाया कि क्यों न मैं ब्लॉग के जरिए अपनी हिन्दी रचनाओं को प्रकाशित करूं। तब ब्लॉगर प्रचलित हो चुका था। वर्डप्रेस के कदम जम रहे थे। मूवेबलटाइप, टाइपपैड भी रंगत जमाने में लगे हुए थे।जाहिर है, प्रचलित ब्लॉगर पर ही लिखना शुरू किया।
पहला ब्लाग कौन सा देखा?
देबाशीष ने हिन्दी ब्लॉग लेखन के लिए प्रेरित किया तब तक वे चिट्ठा-विश्व और हिन्दी का वेब-रिंग बना चुके थे। जाहिर है, हिन्दी ब्लॉग चिट्ठा विश्व में दिखे। कोई दर्जन भर रहे होंगे। नुक्ताचीनी और नौ दो ग्यारह ध्यान में हैं। पहला अंग्रेज़ी चिट्ठा तो एण्ड्रयू सुलिवन का देखा जो ईराक युद्ध में अमरीकी सैनिक था और जिसके ब्लॉग को अखबारों ने बहुत उछाला था।
नियमित रूप से ब्लाग कैसे देखते हैं?
ऑपेरा ब्राउज़र के फ़ीड रीडर पर। इसमें ब्लॉग सामग्री ईमेल जैसा दिखता है – लेखक और विषय के साथ संक्षिप्त सामग्री भी दिखाई देती है। यदि विषय आकर्षित करता है तो ब्लॉग स्थल पर जाकर पढ़ता हूँ।
लेखन प्रक्रिया क्या है? सीधे लिखते हैं मानीटर पर या पहले कागज पर?
कागज पर? कागज पर लिखना तो मैंने अरसे से बन्द कर रखा है। अपने सरकारी नौकरी के दिनों में भी मैंने एक पुराना लैपटॉप खरीदा था और तमाम जानकारियाँ, पत्राचार सीधे उससे ही करता था – प्रिंटआउट लेकर। तब विद्युत मंडल में कम्प्यूटरीकरण की शुरूआत भी नहीं हुई थी।
सबसे पसंदीदा चिट्ठे कौन हैं?
जाहिर है, वही, जो आपके भी पसंदीदा हैं।
कोई चिट्ठा खराब भी लगता है?
अवश्य। जादू-टोने, ब्लैक मैजिक युक्त चिट्ठे।
टिप्पणी न मिलने पर कैसा लगता है?
लेखन का उद्देश्य उसका पढ़ा जाना होता है। टिप्पणी या आलोचनाएँ निःसंदेह लेखक के लेखन और सोच को परिष्कृत करती हैं ।परंतु तमाम तरह के स्पैम कमेंटों ने जेनुइन टिप्पणीकारों का टिप्पियाना हराम कर रखा है। टिप्पणी करना अब सचमुच श्रमसाध्य सा हो गया है। मैं स्वयं चाहते हुए भी कई मर्तबा टिप्पणी नहीं कर पाता। वैसे, मैं इस तरह से लिखने की कोशिश करता हूँ कि लेख की प्रासंगिकता दिनों, महीनों, बल्कि वर्षों तक बनी रहे – लोग बाद में भी पढ़ कर आनंद लें। ऐसे में टिप्पणी का अर्थ ज्यादा महत्व नहीं रखता। परंतु यह भी सच है कि टिप्पणियाँ तात्कालिक, क्षणिक आनंद तो देती ही हैं।
एक मां से पूछ रहे हैं कि उसका सबसे प्यारा बच्चा कौन सा है?
सबसे खराब?
एक मां से, दूसरे तरीके से पूछ रहे हैं कि उसका सबसे प्यारा बच्चा कौन सा है?
चिट्ठा लेखन के अलावा और नेट का किस तरह उपयोग करते हैं?
आपका इशारा पॉर्न साइटों की ओर है, तो खेद है। मेरा कम्प्यूटर मेरे लिविंग रूम में रहता है जिसमें ऐसी गुंजाइशें, चाहते हुए भी कभी नहीं हो पातीं। अतः लिनक्स तंत्र के हिन्दी अनुवादों के प्रबंधन तथा ई-पत्र के जरिए मित्रों से संपर्क ही प्रमुख उपयोग है। गपशप (चैट ) ने कभी भी मुझे आकर्षित नहीं किया। नेट अभी भी मेरे लिए खर्चीला साधन है। जब यह मुझे दिनभर के लिए ब्रॉडबैण्ड रूप में उपलब्ध होगा, तब मैं इसके जरिए इंटरनेट रेडियो से तमाम विश्व के संगीत सुना करूंगा।
आपने तमाम काम ऐसे किये हैं हिंदी ब्लागजगत में जो मील के पत्थर हैं। उसके एवज में आपको सिर्फ जबानी तारीफ मिली। इस बारे में क्या लगता है?
पत्थरों के बाबत मुझे कोई जानकारी नहीं है। मील के वे पत्थर किस आकार प्रकार में किधर कहां किस मात्रा में हैं उन्हें मुझे दिखाया, गिनाया जाए, तभी इस बारे में कुछ कहा जा सकता है।
नौकरी छोड़ने का कारण क्या था? स्वास्थ्य के अलावा कुछ और था ?
स्वास्थ्य भी एक कारण था, परंतु प्रमुख वजह रही – घटिया, सड़ता हुआ, भ्रष्ट, बेदिमाग प्रबंधन से लगातार, नित्यप्रति जूझना। यह तो आपको भी पता है कि सरकारी नौकर मजे में बिना कोई काम किए अपनी नौकरी निभा सकता है। परंतु जब वीआरएस की योजना आई तो सबसे पहले मैंने ही आवेदन प्रस्तुत किया। मेरे पास दूसरे कार्यों की योजनाएँ भी थीं। शुरू में मैंने बच्चों को कम्प्यूटर भी सिखाया। परंतु शीघ्र ही पूर्णकालिक तकनीकी अनुवादक-लेखक बन गया।
हिंदी ब्लागिंग का भविष्य क्या है?
भविष्य उज्जवल है। परंतु राह बीहड़, अत्यंत कठिन। अभी भी लोगों को अपने कम्प्यूटर तंत्र में यूनिकोड हिन्दी पढ़ने लिखने के लिए तमाम जुगाड़ बैठाने होते हैं। विंडोज तथा लिनक्स के लिए एक सेटअप /इंस्टालेशन प्रोग्राम बनाया जाना चाहिए जिससे कि सारा सेटअप स्वचालित हो जाए तो राह कुछ आसान होगी।
गुणवत्ता के लिहाज से हिंदी ब्लाग अंग्रेजी ब्लाग के आगे कहां ठहरते हैं?
अंग्रेजी के लाखों ब्लॉगों के साथ हिन्दी के 300 ब्लॉग की तुलना करना तो बेमानी होगी।
आपके लेखों में राजनेताओं,नौकर शाहों पर अक्सर चोट की जाती है। ये वर्ग भारतीय जनता से उपजता है। क्या इसके पीछे जनता की काहिली नहीं है?
निःसंदेह
घर में कितना पापुलर है आपका चिट्ठा?कौन पढ़ता है?
मैं अपने चिट्ठों के किस्से, अन्वेष (पुत्र) अपने गेम के क्रैक और चीट कोड के किस्से, अनुश्री(पुत्री) अपने मित्रों व सहपाठियों के शरारतों के किस्से तथा रेखा (पत्नी) अपने आस-पड़ोस व प्राध्यापकीय जीवन के किस्से एक दूसरे को सुनने-सुनाने की असफल कोशिशें करते रहते हैं। कभी कोई सफल होता है,कभी कोई।
आप इतने लेख लिखते हैं।रचनाकार पर भी लंबी-लंबी रचनायें। अक्सर उन पर कोई टिप्पणी भी नहीं आती। इस बारे में क्या सोचते हैं कभी?
आपने मेरा ‘हिन्दी ब्लॉगिंग कैसे करें’ लेख पढ़ा और उस पर बगैर टिप्पणी किए अपना ब्लॉग बना डाला। मैं अकसर सोचता हूँ कि आपने ऐसा क्यों किया। आपने टिप्पणी क्यों नहीं दी। वैसे,मैंने लिखा भी उसी लिहाज से था – टिप्पणी देकर चुप रह जाने के बजाए आपने अपना ब्लॉग बनाकर उस लेख को सार्थक कर दिया। रचनाकार पर टिप्पणियाँ रविरतलामी के लिए गैर जरूरी हैं। रचनाकार पर रचना संबंधी टिप्पणियाँ व आलोचनाएँ जरूर उस रचना के लेखक के काम की हो सकती हैं।
रचनाकार पर अकसर ऐसे लेखकों की रचनाएँ छपती हैं जिनके पास कम्प्यूटरों तक पहुँच नहीं होती। जब उन्हें पोस्टकार्ड द्वारा उनकी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित होने संबंधी सूचना दी जाती है और फिर जब वे तमाम जुगाड़ लगाकर साइबर कैफ़े या मित्रों के यहाँ अपनी रचना कम्प्यूटर स्क्रीन पर उतरते देखते हैं और प्रत्युत्तर में जो खुशी भरा पत्र लिखते हैं, वह रचनाकार को प्राप्त टिप्पणियाँ जैसा ही प्रतीत होता है। रचनाकार में रचनाएं दस वर्ष बाद भी पढ़ी जा सकेंगी। हो सकता है कि किसी पाठक की टिप्पणी, उस रचना को, तब भी हासिल हो।
आपकी दिनचर्या क्या है?
खाने-पीने, नहाने-धोने से इतर दिनचर्या के बारे में पूछ रहे हैं तो प्रायः सारा समय कम्प्यूटर टर्मिनल के सामने ही बीतता है और मैं अकसर खाने-पीने, नहाने-धोने के बारे में, पत्नी के बार-बार बताए-चेताए जाने के बाद भी भूल जाता हूँ।
हिंदी में किस तरह घर बैठे नेट के माध्यम से लेखन से कमाई हो सकती है?
अंग्रेज़ी में अगर अमित अग्रवाल हैं तो हिन्दी में भी आने वाले दिनों में उम्मीद करते हैं कि कई अमित अग्रवाल होंगे। परंतु इसमें भी कुछ समय लग सकता है। लोग अभी भी अपने नए कम्प्यूटर सिस्टमों में पायरेटेड विंडोज़98 डलवाते हैं, और उसी से खुश रहते हैं। जब तक हिन्दी भाषी कम्प्यूटर उपयोक्ताओं के कम्प्यूटरों से विंडोज़98 का झंडा नहीं उखड़ेगा, बात बनेगी नहीं। नए सिस्टमों को बैकवर्ड अनकंपेटिबल बनाना होगा ताकि वे पुराने ऑपरेटिंग सिस्टमों यथा विंडोज़98 को समर्थन नहीं करें जो हो नहीं सकता।
भाषा इंडिया का इनाम जीतने के बाद रुतबे में कुछ बढ़ोत्तरी हुई?
हाँ, रुतबे में कुछ बढ़ोत्तरी तो हुई है। पहले मुहल्ले के लोग सोचते थे कि क्या फोकटिया है कोई काम धाम नहीं करता। वो अब थोड़ा समझने लगे हैं कि इंटरनेट से भी काम हो सकता है। विद्युत मण्डल के मेरे साथी और सहकर्मी जो मेरे पद के कारण मुझे विश करते थे, मेरे रिटायर हो जाने के बाद पूछते नहीं थे, वे अब कहीं देखते हैं तो मुसकुरा देते हैं। परंतु सब को अंदर की यह बात नहीं पता कि उस दिन सहारा समय , मध्य प्रदेश/ छत्तीसगढ़ चैनल में स्टोरी के लायक कुछ सामग्री ही नहीं थी, सो मेरी स्टोरी ले ली और मुझे भी मुहल्ले का प्रिंस बना डाला। बाकी, माइक्रोसॉफ़्ट के इनाम का किस्सा तो आपको भी पता है –बहिष्कृत घर,खंडहर को पुरस्कृत कर दिया।
भाषा इंडिया में जो साक्षात्कार में कुछ छूट गया कहने से उसे आगे प्रभावी बनाने के लिये क्या कुछ तैयारी चल रही है?
आमतौर पर या तो प्रभाव लेखन में रहता है या वाचन में। खुदा ने मुझे वाचन में प्रभावहीन बना दिया है। मैं कयास लगा सकता हूँ कि आप भी माइक के सामने लड़खड़ाते होंगे। प्रभाव मेरी उंगलियों तक ही सीमित है, और वहीं रहेगा शायद।
हिंदी ब्लागिंग में जो विभिन्न गतिविधियों चल रही हैं-चौपाल, निरंतर, परिचर्चा, नारद, बुनोकहानी, अनुगूँज इनके आगे क्या किया जा सकता है?
इन्हें व्यवसायिक रूप से सफल और वित्तीय रूप से स्व-पोषित बनाने के उपाय किये जाने चाहिएँ। लेखकों से फोकट में बढ़िया नहीं लिखवाया जा सकता। मैं पहले अखबारों में लिखता था। एक लेख का सौ रुपया मिलता था। सौ रुपये में किस तरह के लेख की आशा कर सकते हैं आप?
अभी तक तो मैंने ध्यान नहीं दिया था। आपने पूछा तो आइने के सामने जा खड़ा हुआ। सबसे ज्यादा चमकता तो मेरा सिर का चाँद नजर आया।
और सबसे कमजोर?
जाहिर है, मेरे सिर के बाल।
पसंदीदा हाबी क्या है?
पढ़ना, लिखना और संगीत सुनना। स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के दौरान भी लगातार रेडियो सुनता रहता था। अभी भी जब मैं कभी महानगरों में जाता हूँ मेरी पत्नी ताकीद कर भेजती है कि मैं कोई रेडियो खरीद न लाऊँ।
साहित्य में आपकी पसंदीदा किताबे कौन सी हैं?
हास्य – व्यंग्य हमेशा से मुझे लुभाता रहा है। रतननाथ सरशार का लिखा, मुंशी प्रेमचंद का उर्दू से हिन्दी में अनुवाद किया हास्य प्रधान उपन्यास आजाद कथा (‘फिसाने आजाद’) संभवतः पाठ्य पुस्तकों के अलावा ऐसी पुस्तक है जिसको मैंने एक से अधिक बार पढ़ा है। बचपन में कॉमिक्स और बाल पॉकेट बुक्स अच्छे लगते थे तो जवानी में मिल्ज एंड बून, नैंसी फ्राइडे, गुलशन नंदा, रानू पसंदीदा थे। थोड़ा होश आया तो सुरेन्द्र मोहन पाठक, ओमप्रकाश शर्मा तथा आचार्य चतुरसेन से लेकर परसाईं तक सभी प्रभावित करते थे. वैसे, जेम्स हेडली चेइज़, डेसमंड बाग्ले, फ्रेडरिक फ़ोरसाइथ, इरविंग वैलेस इत्यादि के ‘साहित्य’ खास पसंद हैं. चेइज़ के ‘टॉम लैप्स्की’ जैसे कठिन चरित्र की रचना, जिससे पाठक वास्तविक समझे और प्यार करने लगे, एक लेखक के हिसाब से मैं देखता हूँ, तो पाता हूँ कि यह बहुत ही कठिन है।
दिन भर कम्प्यूटर से जूझते रहने पर घर में क्या प्रतिक्रिया होती है?
कभी नजरें टेढ़ी मिलती हैं, तो कभी भवें चढ़ी हुईं। मैं अपने चिट्ठे की बासी टिप्पणियाँ पढ़वा कर उन्हें सही करने की असफल कोशिशें करता रहता हूँ।
मेरा फंडा है कि सीखना है तो खुद से सीखो नहीं तो मत सीखो। अन्वेष एक्सपर्ट है, अनुश्री एक्सपर्ट इन मेकिंग है, रेखा स्पाइडर-सॉलिटेयर खेलने में एक्सपर्ट है।
आगे जीवन में क्या करने के इरादे हैं?इरादों को कैसे पूरा करने का विचार है?
आगे जीवन का तो पता नहीं, परंतु आने वाले कल का इरादा है कि लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम को अपनी मातृभूमि की भाषा छत्तीसगढ़ी में अनुवाद कर लाया जाए। देखते हैं यह इरादा कब पूरा होता है। वैसे भी जब आप कोई इरादा कर लेते हैं तो विश्व की तमाम अदृश्य शक्तियाँ षडयंत्र करने लगती हैं ताकि आपका इरादा कामयाब हो जाए।
रवि रतलामी के बारे में परिचय यहाँ पढ़ें।]
ज्यादा तर लोग हिंदी ब्लागिंग शुरू करने का कारण आपके अभिव्यक्ति पर छपे लेख को बताते हैं। जब यह श्रेय मिलता है तो क्या सोचते हैं?
यह श्रेय मैं अभिव्यक्ति को दे देता हूँ। इंटरनेट पर हिन्दी को स्थापित करने का महत्तम कार्य अभिव्यक्ति का ही रहा है।
ब्लाग लिखना कैसे शुरू किया।
जिओसिटीज़ पर पीडीएफ़ में मेरी हिन्दी रचनाएँ बहुत पहले से थीं। आलोक के सुझाए अनुसार बाद में मैंने अपनी रचनाएँ यूनिकोड हिन्दी में भी वहाँ रखीं। देबाशीष ने उन्हें देखा तो मुझे सुझाया कि क्यों न मैं ब्लॉग के जरिए अपनी हिन्दी रचनाओं को प्रकाशित करूं। तब ब्लॉगर प्रचलित हो चुका था। वर्डप्रेस के कदम जम रहे थे। मूवेबलटाइप, टाइपपैड भी रंगत जमाने में लगे हुए थे।जाहिर है, प्रचलित ब्लॉगर पर ही लिखना शुरू किया।
पहला ब्लाग कौन सा देखा?
देबाशीष ने हिन्दी ब्लॉग लेखन के लिए प्रेरित किया तब तक वे चिट्ठा-विश्व और हिन्दी का वेब-रिंग बना चुके थे। जाहिर है, हिन्दी ब्लॉग चिट्ठा विश्व में दिखे। कोई दर्जन भर रहे होंगे। नुक्ताचीनी और नौ दो ग्यारह ध्यान में हैं। पहला अंग्रेज़ी चिट्ठा तो एण्ड्रयू सुलिवन का देखा जो ईराक युद्ध में अमरीकी सैनिक था और जिसके ब्लॉग को अखबारों ने बहुत उछाला था।
नियमित रूप से ब्लाग कैसे देखते हैं?
ऑपेरा ब्राउज़र के फ़ीड रीडर पर। इसमें ब्लॉग सामग्री ईमेल जैसा दिखता है – लेखक और विषय के साथ संक्षिप्त सामग्री भी दिखाई देती है। यदि विषय आकर्षित करता है तो ब्लॉग स्थल पर जाकर पढ़ता हूँ।
लेखन प्रक्रिया क्या है? सीधे लिखते हैं मानीटर पर या पहले कागज पर?
कागज पर? कागज पर लिखना तो मैंने अरसे से बन्द कर रखा है। अपने सरकारी नौकरी के दिनों में भी मैंने एक पुराना लैपटॉप खरीदा था और तमाम जानकारियाँ, पत्राचार सीधे उससे ही करता था – प्रिंटआउट लेकर। तब विद्युत मंडल में कम्प्यूटरीकरण की शुरूआत भी नहीं हुई थी।
सबसे पसंदीदा चिट्ठे कौन हैं?
जाहिर है, वही, जो आपके भी पसंदीदा हैं।
कोई चिट्ठा खराब भी लगता है?
अवश्य। जादू-टोने, ब्लैक मैजिक युक्त चिट्ठे।
टिप्पणी न मिलने पर कैसा लगता है?
लेखन का उद्देश्य उसका पढ़ा जाना होता है। टिप्पणी या आलोचनाएँ निःसंदेह लेखक के लेखन और सोच को परिष्कृत करती हैं ।परंतु तमाम तरह के स्पैम कमेंटों ने जेनुइन टिप्पणीकारों का टिप्पियाना हराम कर रखा है। टिप्पणी करना अब सचमुच श्रमसाध्य सा हो गया है। मैं स्वयं चाहते हुए भी कई मर्तबा टिप्पणी नहीं कर पाता। वैसे, मैं इस तरह से लिखने की कोशिश करता हूँ कि लेख की प्रासंगिकता दिनों, महीनों, बल्कि वर्षों तक बनी रहे – लोग बाद में भी पढ़ कर आनंद लें। ऐसे में टिप्पणी का अर्थ ज्यादा महत्व नहीं रखता। परंतु यह भी सच है कि टिप्पणियाँ तात्कालिक, क्षणिक आनंद तो देती ही हैं।
लेखन
का उद्देश्य उसका पढ़ा जाना होता है। टिप्पणी या आलोचनाएँ निःसंदेह लेखक
के लेखन और सोच को परिष्कृत करती हैं।परंतु तमाम तरह के स्पैम कमेंटों ने
जेनुइन टिप्पणीकारों का टिप्पियाना हराम कर रखा है।
अपनी सबसे अच्छी पोस्ट कौन सी लगती है?एक मां से पूछ रहे हैं कि उसका सबसे प्यारा बच्चा कौन सा है?
सबसे खराब?
एक मां से, दूसरे तरीके से पूछ रहे हैं कि उसका सबसे प्यारा बच्चा कौन सा है?
चिट्ठा लेखन के अलावा और नेट का किस तरह उपयोग करते हैं?
आपका इशारा पॉर्न साइटों की ओर है, तो खेद है। मेरा कम्प्यूटर मेरे लिविंग रूम में रहता है जिसमें ऐसी गुंजाइशें, चाहते हुए भी कभी नहीं हो पातीं। अतः लिनक्स तंत्र के हिन्दी अनुवादों के प्रबंधन तथा ई-पत्र के जरिए मित्रों से संपर्क ही प्रमुख उपयोग है। गपशप (चैट ) ने कभी भी मुझे आकर्षित नहीं किया। नेट अभी भी मेरे लिए खर्चीला साधन है। जब यह मुझे दिनभर के लिए ब्रॉडबैण्ड रूप में उपलब्ध होगा, तब मैं इसके जरिए इंटरनेट रेडियो से तमाम विश्व के संगीत सुना करूंगा।
गपशप (चैट ) ने कभी भी मुझे आकर्षित नहीं किया। नेट अभी भी मेरे लिए खर्चीला साधन है।
आपने तमाम काम ऐसे किये हैं हिंदी ब्लागजगत में जो मील के पत्थर हैं। उसके एवज में आपको सिर्फ जबानी तारीफ मिली। इस बारे में क्या लगता है?
पत्थरों के बाबत मुझे कोई जानकारी नहीं है। मील के वे पत्थर किस आकार प्रकार में किधर कहां किस मात्रा में हैं उन्हें मुझे दिखाया, गिनाया जाए, तभी इस बारे में कुछ कहा जा सकता है।
नौकरी छोड़ने का कारण क्या था? स्वास्थ्य के अलावा कुछ और था ?
स्वास्थ्य भी एक कारण था, परंतु प्रमुख वजह रही – घटिया, सड़ता हुआ, भ्रष्ट, बेदिमाग प्रबंधन से लगातार, नित्यप्रति जूझना। यह तो आपको भी पता है कि सरकारी नौकर मजे में बिना कोई काम किए अपनी नौकरी निभा सकता है। परंतु जब वीआरएस की योजना आई तो सबसे पहले मैंने ही आवेदन प्रस्तुत किया। मेरे पास दूसरे कार्यों की योजनाएँ भी थीं। शुरू में मैंने बच्चों को कम्प्यूटर भी सिखाया। परंतु शीघ्र ही पूर्णकालिक तकनीकी अनुवादक-लेखक बन गया।
हिंदी ब्लागिंग का भविष्य क्या है?
भविष्य उज्जवल है। परंतु राह बीहड़, अत्यंत कठिन। अभी भी लोगों को अपने कम्प्यूटर तंत्र में यूनिकोड हिन्दी पढ़ने लिखने के लिए तमाम जुगाड़ बैठाने होते हैं। विंडोज तथा लिनक्स के लिए एक सेटअप /इंस्टालेशन प्रोग्राम बनाया जाना चाहिए जिससे कि सारा सेटअप स्वचालित हो जाए तो राह कुछ आसान होगी।
गुणवत्ता के लिहाज से हिंदी ब्लाग अंग्रेजी ब्लाग के आगे कहां ठहरते हैं?
अंग्रेजी के लाखों ब्लॉगों के साथ हिन्दी के 300 ब्लॉग की तुलना करना तो बेमानी होगी।
आपके लेखों में राजनेताओं,नौकर शाहों पर अक्सर चोट की जाती है। ये वर्ग भारतीय जनता से उपजता है। क्या इसके पीछे जनता की काहिली नहीं है?
निःसंदेह
घर में कितना पापुलर है आपका चिट्ठा?कौन पढ़ता है?
मैं अपने चिट्ठों के किस्से, अन्वेष (पुत्र) अपने गेम के क्रैक और चीट कोड के किस्से, अनुश्री(पुत्री) अपने मित्रों व सहपाठियों के शरारतों के किस्से तथा रेखा (पत्नी) अपने आस-पड़ोस व प्राध्यापकीय जीवन के किस्से एक दूसरे को सुनने-सुनाने की असफल कोशिशें करते रहते हैं। कभी कोई सफल होता है,कभी कोई।
आप इतने लेख लिखते हैं।रचनाकार पर भी लंबी-लंबी रचनायें। अक्सर उन पर कोई टिप्पणी भी नहीं आती। इस बारे में क्या सोचते हैं कभी?
आपने मेरा ‘हिन्दी ब्लॉगिंग कैसे करें’ लेख पढ़ा और उस पर बगैर टिप्पणी किए अपना ब्लॉग बना डाला। मैं अकसर सोचता हूँ कि आपने ऐसा क्यों किया। आपने टिप्पणी क्यों नहीं दी। वैसे,मैंने लिखा भी उसी लिहाज से था – टिप्पणी देकर चुप रह जाने के बजाए आपने अपना ब्लॉग बनाकर उस लेख को सार्थक कर दिया। रचनाकार पर टिप्पणियाँ रविरतलामी के लिए गैर जरूरी हैं। रचनाकार पर रचना संबंधी टिप्पणियाँ व आलोचनाएँ जरूर उस रचना के लेखक के काम की हो सकती हैं।
रचनाकार पर अकसर ऐसे लेखकों की रचनाएँ छपती हैं जिनके पास कम्प्यूटरों तक पहुँच नहीं होती। जब उन्हें पोस्टकार्ड द्वारा उनकी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित होने संबंधी सूचना दी जाती है और फिर जब वे तमाम जुगाड़ लगाकर साइबर कैफ़े या मित्रों के यहाँ अपनी रचना कम्प्यूटर स्क्रीन पर उतरते देखते हैं और प्रत्युत्तर में जो खुशी भरा पत्र लिखते हैं, वह रचनाकार को प्राप्त टिप्पणियाँ जैसा ही प्रतीत होता है। रचनाकार में रचनाएं दस वर्ष बाद भी पढ़ी जा सकेंगी। हो सकता है कि किसी पाठक की टिप्पणी, उस रचना को, तब भी हासिल हो।
आपकी दिनचर्या क्या है?
खाने-पीने, नहाने-धोने से इतर दिनचर्या के बारे में पूछ रहे हैं तो प्रायः सारा समय कम्प्यूटर टर्मिनल के सामने ही बीतता है और मैं अकसर खाने-पीने, नहाने-धोने के बारे में, पत्नी के बार-बार बताए-चेताए जाने के बाद भी भूल जाता हूँ।
हिंदी में किस तरह घर बैठे नेट के माध्यम से लेखन से कमाई हो सकती है?
अंग्रेज़ी में अगर अमित अग्रवाल हैं तो हिन्दी में भी आने वाले दिनों में उम्मीद करते हैं कि कई अमित अग्रवाल होंगे। परंतु इसमें भी कुछ समय लग सकता है। लोग अभी भी अपने नए कम्प्यूटर सिस्टमों में पायरेटेड विंडोज़98 डलवाते हैं, और उसी से खुश रहते हैं। जब तक हिन्दी भाषी कम्प्यूटर उपयोक्ताओं के कम्प्यूटरों से विंडोज़98 का झंडा नहीं उखड़ेगा, बात बनेगी नहीं। नए सिस्टमों को बैकवर्ड अनकंपेटिबल बनाना होगा ताकि वे पुराने ऑपरेटिंग सिस्टमों यथा विंडोज़98 को समर्थन नहीं करें जो हो नहीं सकता।
लोग
अभी भी अपने नए कम्प्यूटर सिस्टमों में पायरेटेड विंडोज़98 डलवाते हैं, और
उसी से खुश रहते हैं। जब तक हिन्दी भाषी कम्प्यूटर उपयोक्ताओं के
कम्प्यूटरों से विंडोज़98 का झंडा नहीं उखड़ेगा, बात बनेगी नहीं।
जब आलोक ने बताया था कि उन्हें गूगल एडसेंस से पान-गुटखे के खर्चे लायक
कुछ कमाई होने लगी है तो मैंने भी रचनाकार में एडसेंस लगाया। अभी मामला
प्रतिदिन सेंट से उठकर डालर में भी नहीं पहुँचा है। परंतु लगता है कि गूगल
एडसेंस हिन्दी में आने पर स्थिति में शीघ्र परिवर्तन आने में देर नहीं
लगेगी। छींटें और बौछारें के लिए ईस्वामी का वीटो है नहीं तो वहाँ कब का एडसेंस लग चुका होता। भाषा इंडिया का इनाम जीतने के बाद रुतबे में कुछ बढ़ोत्तरी हुई?
हाँ, रुतबे में कुछ बढ़ोत्तरी तो हुई है। पहले मुहल्ले के लोग सोचते थे कि क्या फोकटिया है कोई काम धाम नहीं करता। वो अब थोड़ा समझने लगे हैं कि इंटरनेट से भी काम हो सकता है। विद्युत मण्डल के मेरे साथी और सहकर्मी जो मेरे पद के कारण मुझे विश करते थे, मेरे रिटायर हो जाने के बाद पूछते नहीं थे, वे अब कहीं देखते हैं तो मुसकुरा देते हैं। परंतु सब को अंदर की यह बात नहीं पता कि उस दिन सहारा समय , मध्य प्रदेश/ छत्तीसगढ़ चैनल में स्टोरी के लायक कुछ सामग्री ही नहीं थी, सो मेरी स्टोरी ले ली और मुझे भी मुहल्ले का प्रिंस बना डाला। बाकी, माइक्रोसॉफ़्ट के इनाम का किस्सा तो आपको भी पता है –बहिष्कृत घर,खंडहर को पुरस्कृत कर दिया।
भाषा इंडिया में जो साक्षात्कार में कुछ छूट गया कहने से उसे आगे प्रभावी बनाने के लिये क्या कुछ तैयारी चल रही है?
आमतौर पर या तो प्रभाव लेखन में रहता है या वाचन में। खुदा ने मुझे वाचन में प्रभावहीन बना दिया है। मैं कयास लगा सकता हूँ कि आप भी माइक के सामने लड़खड़ाते होंगे। प्रभाव मेरी उंगलियों तक ही सीमित है, और वहीं रहेगा शायद।
हिंदी ब्लागिंग में जो विभिन्न गतिविधियों चल रही हैं-चौपाल, निरंतर, परिचर्चा, नारद, बुनोकहानी, अनुगूँज इनके आगे क्या किया जा सकता है?
इन्हें व्यवसायिक रूप से सफल और वित्तीय रूप से स्व-पोषित बनाने के उपाय किये जाने चाहिएँ। लेखकों से फोकट में बढ़िया नहीं लिखवाया जा सकता। मैं पहले अखबारों में लिखता था। एक लेख का सौ रुपया मिलता था। सौ रुपये में किस तरह के लेख की आशा कर सकते हैं आप?
लेखकों
से फोकट में बढ़िया नहीं लिखवाया जा सकता। मैं पहले अखबारों में लिखता था।
एक लेख का सौ रुपया मिलता था। सौ रुपये में किस तरह के लेख की आशा कर सकते
हैं आप?
अपने व्यक्तित्व का सबसे मजबूत पहलू कौन सा लगता है आपको?अभी तक तो मैंने ध्यान नहीं दिया था। आपने पूछा तो आइने के सामने जा खड़ा हुआ। सबसे ज्यादा चमकता तो मेरा सिर का चाँद नजर आया।
और सबसे कमजोर?
जाहिर है, मेरे सिर के बाल।
पसंदीदा हाबी क्या है?
पढ़ना, लिखना और संगीत सुनना। स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के दौरान भी लगातार रेडियो सुनता रहता था। अभी भी जब मैं कभी महानगरों में जाता हूँ मेरी पत्नी ताकीद कर भेजती है कि मैं कोई रेडियो खरीद न लाऊँ।
साहित्य में आपकी पसंदीदा किताबे कौन सी हैं?
हास्य – व्यंग्य हमेशा से मुझे लुभाता रहा है। रतननाथ सरशार का लिखा, मुंशी प्रेमचंद का उर्दू से हिन्दी में अनुवाद किया हास्य प्रधान उपन्यास आजाद कथा (‘फिसाने आजाद’) संभवतः पाठ्य पुस्तकों के अलावा ऐसी पुस्तक है जिसको मैंने एक से अधिक बार पढ़ा है। बचपन में कॉमिक्स और बाल पॉकेट बुक्स अच्छे लगते थे तो जवानी में मिल्ज एंड बून, नैंसी फ्राइडे, गुलशन नंदा, रानू पसंदीदा थे। थोड़ा होश आया तो सुरेन्द्र मोहन पाठक, ओमप्रकाश शर्मा तथा आचार्य चतुरसेन से लेकर परसाईं तक सभी प्रभावित करते थे. वैसे, जेम्स हेडली चेइज़, डेसमंड बाग्ले, फ्रेडरिक फ़ोरसाइथ, इरविंग वैलेस इत्यादि के ‘साहित्य’ खास पसंद हैं. चेइज़ के ‘टॉम लैप्स्की’ जैसे कठिन चरित्र की रचना, जिससे पाठक वास्तविक समझे और प्यार करने लगे, एक लेखक के हिसाब से मैं देखता हूँ, तो पाता हूँ कि यह बहुत ही कठिन है।
दिन भर कम्प्यूटर से जूझते रहने पर घर में क्या प्रतिक्रिया होती है?
कभी नजरें टेढ़ी मिलती हैं, तो कभी भवें चढ़ी हुईं। मैं अपने चिट्ठे की बासी टिप्पणियाँ पढ़वा कर उन्हें सही करने की असफल कोशिशें करता रहता हूँ।
जब आप कोई इरादा कर लेते हैं तो विश्व की तमाम अदृश्य शक्तियाँ षडयंत्र करने लगती हैं ताकि आपका इरादा कामयाब हो जाए।
दुनिया भर को कम्प्यूटर की जानकारी देने वाले ने अपने घर वालों को कितना सिखाया कम्प्यूटर?मेरा फंडा है कि सीखना है तो खुद से सीखो नहीं तो मत सीखो। अन्वेष एक्सपर्ट है, अनुश्री एक्सपर्ट इन मेकिंग है, रेखा स्पाइडर-सॉलिटेयर खेलने में एक्सपर्ट है।
आगे जीवन में क्या करने के इरादे हैं?इरादों को कैसे पूरा करने का विचार है?
आगे जीवन का तो पता नहीं, परंतु आने वाले कल का इरादा है कि लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम को अपनी मातृभूमि की भाषा छत्तीसगढ़ी में अनुवाद कर लाया जाए। देखते हैं यह इरादा कब पूरा होता है। वैसे भी जब आप कोई इरादा कर लेते हैं तो विश्व की तमाम अदृश्य शक्तियाँ षडयंत्र करने लगती हैं ताकि आपका इरादा कामयाब हो जाए।
Posted in साक्षात्कार | 168 Responses
एक मां से पूछ रहे हैं कि उसका सबसे प्यारा बच्चा कौन सा है?
सबसे खराब?
एक मां से, दूसरे तरीके से पूछ रहे हैं कि उसका सबसे प्यारा बच्चा कौन सा है?
जब आलोक ने बताया था कि उन्हें गूगल एडसेंस से पान-गुटखे के खर्चे लायक कुछ कमाई होने लगी है तो मैंने भी रचनाकार में एडसेंस लगाया। अभी मामला प्रतिदिन सेंट से उठकर डालर में भी नहीं पहुँचा है। परंतु लगता है कि गूगल एडसेंस हिन्दी में आने पर स्थिति में शीघ्र परिवर्तन आने में देर नहीं लगेगी। छींटें और बौछारें के लिए ईस्वामी का वीटो है नहीं तो वहाँ कब का एडसेंस लग चुका होता।
जन्मदिन पर हार्दिक बधाई रवि भाई!
हिंदिनी वाले आपस में एक दूसरे का इन्टरव्यू ले रहे हैं ये देख कर मजा आ रहा है!
आपको तो पता है मेरी सोच! हम जतन से सब को घर बुला कर(हिंदिनी पर) अपने बच्चों (पोस्ट्स/लेखों) की मूंह दिखाई करवाएं और मूह दिखाई के वक्त बच्चों गालों पर किसी कंपनी की कडी का लेबल-लोगो चेप दें? भई बच्चे पैदा करने और पालने के खर्चे हैं, क्यों ना पान गुटके की कमाई के ही बनाएं! नेक खयाल है क्या?
किसी ने प्रार्थनापत्र नही दिया की बच्चे पैदा करें हम – फ़िर करें मूंह दिखाई और फ़िर करें एडसेंसबाजी. बच्चे तो क्या घर के पालतू पशु पर भी कोई इश्तेहार लगाता है?
एक समय पर भावुकता और व्यव्हारिकता में से किसी एक को *पूरा* और इमानदारी से चुना जाए! या तो लेख कमाई का जरिया है या वो बच्चा है.
क्या मेरे प्रोग्राम्स मेरे बच्चे हैं या किसी बढाई-मिस्त्री की बनाई मेज उसका बच्चा है? उसी प्रकार बस बच्चा ही बच्चा है बाकी जो है वो वोही है. लेख बस लेख है! शुष्क यथार्थ होगा ना ये भी! अपने सृजन को अपना बच्चा कहें लेकिन कीमत भी वसूलना चाहते हैं ये जायज नही ठहरा पाता.
यूं तो शास्त्र कहते हैं बच्चा भी आत्मसुखाए पैदा किया जाता है – खुद के लिए औरों के लिए नहीं – खुद बच्चे के लिए भी नही. फ़िर भी सोचता हूं मै जो आत्मसुखाए प्रोग्रामिंग करता हूं वो काम मुफ़्त हो बाकी की कीमत हो. हम ब्लागर हैं. ब्लाग बच्चा नही है – खाज है खुजानी होती है, रहा नही जाता – लत है अभिव्यक्ति, आवेग है, राह चाहिए! ये आत्मसुखाए काम भी अगर व्यावसायिक रूप से करना हो और ध्येय पैसा तो वैचारिक स्पष्टता हो और भावुकता पूरी साईड में.
जब मैं उस व्यव्हारिक मोड मे आऊंगा तब पूरा आऊंगा! अभी तो बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो – मज़ा आ रहा है! हम विभिन्न विचारधाराओं वाले साथ-साथ नेट-मजे कर रहे हैं – बिंदास अपने आपको अभिव्यक्त कर रहे हैं. इसका सुख तो उठाएं!
बहुत बहुत धन्यवाद.
भाई ईस्वामी,
आप के हिसाब से ब्लॉग या तो बच्चा है या व्यावसायिक सफलता की सीढ़ी.
पर मेरे विचार से ब्लॉग आपका प्यारा, जीवन में सफल बच्चा तभी है जब वह व्यावसायिक रूप से भी सफल है.
व्यावसायिकता का अर्थ व्यापक है. सिर्फ आर्थिक नहीं. आर्थिकता तो बात में आती है.
समीर
आपका लेखन और हिन्दी सेवा करोडों लोगों को प्रेरणा दें|
इस साक्षात्कार के प्रकाशन के लिए अनूप जी आपको धन्यवाद!
हिन्दी ब्लॉगिंग में व्यावसायिकता की संभावना और उससे जुड़े तमाम पहलुओं पर विचार करने के लिए हमलोग कल 6 अगस्त को दिल्ली में चिट्ठाकारों के एक सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं। जीतू जी ने अगली अनुगूँज का आयोजन भी इसी विषय पर करने का इरादा जाहिर किया है। यह अच्छा है कि इस मुद्दे पर चिट्ठाकारों के बीच बहस शुरू हो गई है। मुझे आशा है कि इस बहस से जो नतीजा निकलेगा, वह हिन्दी चिट्टाकारी के परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में सहायक होगा।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें।
मेरी कामना यही है कि आप सफलता की सीढिया युं ही चढते रहे !
मैने भी चिठ्ठा शब्द ही आपके अभिव्यक्ति के लेख से ही सुना था और शुरूवात की थी।
धन्यवाद
मैंने आपके बहिष्कृत घर,खंडहर से ही प्रेरणा ली थी और यहीं पर ही तो नए बंगले का पता दिया गया था. धीमी गति से ही सही परन्तु आपके पदचिह्नों पर चलने के लिये प्रयत्नशील…
जब बाकी लोगों को यहाँ पर देते देखा तो हम भी क्यों पीछे रहे।
रवि भाई,
तुम जियो हजार साल, साल के दिन हो पचास हजार
लेकिन बस एक बात का जुगाड़ जरुर करना, रिटर्न गिफ़्ट के तौर पर, अपनी व्यंजल वाली मशीन का एक प्रतिरुप हमे भी बनाकर दो।
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