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चिंता करो, सुख से जियो
By फ़ुरसतिया on July 23, 2007
हमने दोस्त के यहां फोन किया। उसके बच्चे ने उठाया।
मैंने पूछा -पापा कहां हैं।
वो बोला- पापा चिंता कर रहे हैं।
क्यों, क्या हुआ? कोई समस्या है क्या? -मैं चिंतित हो गया।
नहीं,नहीं अंकल कोई परेशानी नहीं। पापा तो आजकल रोज चिंता करते हैं। उनका डेली रूटीन है। कहते हैं इससे तबियत ठीक् रहती है। बच्चा शांत आवाज में बता कम समझा ज्यादा रहा था।
हम बच्चे की समझाइश के झांसे में आने ही वाले थे कि हमारे दिमाग में तुलसीदास् टुनटुनाये- जे न मित्र दुख होंहिं दुखारी/ तिनहिं बिलोकत पातक भारी।
हमारा मित्र रोज डेली चिंता कर रहा है, माने कि दुखी है। उसके दुख में दुखी न हुये तो वो दुख हमारे पास पातक बनकर आयेग। भारी वाला। विलोकेगा। लफ़ड़ा होगा। आफ़त है।
हमने सोचा मित्र् के दुख में दुखी हो आते हैं। अपना पातक बचा लेते हैं। सावधानी सटा के , दुर्घटना घटा लें। प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योरे भी हो जायेगा। इतवार है, छुट्टी है।
चाहे जितना दुखी हो चाय-साय तो पिलायेगा ही। यहां तो अब कोई चौथी चाय पूछने से रहा।
पांच मिनट में हम दुख जाहिर करने के लिये दौड़े। पहुंचे दोस्त-द्वारे। सोचा पूछेंगे-क्या हाल हैं प्यारे। क्या हुआ अब हम इतने गैर हो गये कि बताते भी नहीं और अकेले-अकेले दुखी
हो लेते हो। कम से कम हमारा तो सोचते क्या होगा! ये तो कहों हमने फोन कर लिया वर्ना हम तुम्हारे दुख में दुखी न हो पाते और हमें तो बड़ा दुख पकड़ लेता। तुम इतने खुदगर्ज निकलोगे, सोचा भी न था। तुमसे ऐसी आशा तो न थी।
हम जिसका हाल पूछने आये वह खुद हमारी खैरियत पूंछ रहा है। कौन कहता है दुनिया में साधुवाद युग का श्राद्ध हो गया।
लेकिन हम अपनी सोच को अमली जामा न् पहना पाये। हम कुछ पूंछे इससे पहले ही दोस्त ढीले नाड़े वाला पायजामा संभालते हुये बोला- आओ, आओ। बैठो। इतनी सुबह। सब खैरियत तो है। बेटा मून्नू देखो अंकल आये हैं। चाय-पानी लाओ। मम्मी को बुलाओ। देखते आओ सूरज किधर निकला है।
हम जिसका हाल पूछने आये वह खुद हमारी खैरियत पूंछ रहा है। कौन कहता है दुनिया में साधुवाद युग का श्राद्ध हो गया। ये तो हमींअस्तो, हमीअस्तो वाला सीन है।
हमने पूछना शुरू किया-सुना है आजकल तुम रोज चिंता करते हो!
हां यार तुमको बताना भूल गया। आजकल रोज नियम् से चिंतित हो लेता हूं। बड़ा फ़ायदा है। -दोस्त ने बताया।
अबे चिंतित होने से फ़ायदा! ये क्या के रे हो? दिमाग तो नहीं फिर गया! क्या ताजमहल को वोट देने आगरा गये थे और वहीं टिक गये पागलखाने में कुछ दिन और कहीं जगह न मिलने के कारण।-हमने फ़ार्म में आने का प्रयास किया।
अरे हम भी यही सोचते थे। लेकिन जब से चिंतित होना शुरू किया है बहुत फ़ायदा है। वजन कंट्रोल में हैं। टाइम बचता है। घर बैठे सेहत चकाचक। -दोस्त के चेहरे पर हमको मूढ़मति मानने वाली दिव्य मुस्कान विराज रही थी।
चिंतित होने से फ़ायदा! ये क्या पहेलियां बुझा रहे हो? सबेरे से कोई मिला नहीं क्या? -हम पानी पीते हुये बोले।
हां भाई, सच कहता हूं। चिंतित होने से बहुत फ़ायदा होता है। दिखता नहीं तुमको कि मेरा वजन कितना कम हो गया। -दोस्त उवाचा।
हां सो तो देख रहा हूं पहले से आधे हो गये। ऐसा कैसे हुआ? हम जिज्ञासु बन गये।
ये इसी ‘चिंता थेरेपी’ से हुआ। हम रोज नियमित एक घंटा चिंतित हो लेते हैं। नियमित चिंता करने मात्र से वजन कंटोल में है। पहले हम ये मत खाओ, वो मत छुओ, इत्ती कैलोरी, उत्ती वसा के झमेले में हलकान रहते थे। कैलोरी चार्ट रटते-रटते इतना दुखी हुयी जितना बचपन में पहाड़ा रटने में नहीं हुये। अब जब से चिंतित होना शुरू किया सब झंझट से मुक्ति। अब शान से खाते हैं, शान से सोते हैं। मार्निंग वाक, एवनिंग वाक को अपने रूटीन से डिलीट कर दिया। हम तो कहते हैं कि जिसको अपने स्वास्थ्य की रत्ती भर भी चिंता है उसे चिंता करना शुरू कर देना चाहिये। -दोस्त सूचना मोड से प्रवचन मोड में आ रहा था।
तुम यार पहेलिया मत बुझाऒ। सीधे-सीधे काम की बात पर आओ। अपनी बात के पीछे की थ्योरी बताओ। उदाहरण सहित समझाऒ। -दोस्त के सूचना ज्ञान से हम झल्लाने लगे।
यार, बताता हूं। चिंता का ऐसा है कि हमारे यहां सब पुराने लोग बता गये हैं। हम बुड़बक की तरह उसे देखते नहीं और सारी बातों के लिये विकसित देशों की तरफ़ ताकते रहते हैं।
आदमी नियमित चिंता करता रहे तो उसका वजन घटता रहता है। चाहे जो खाये नियंत्रण में रहता है।
हमारे यहां पहले बहुत से लोग बता गये हैं चिंता से आदमी दुबला होता है। कहावत में इशारा भी है- काजी शहर के अंदेशे में दुबला। बीरबल की कहानियों में भी बताया गया है न कि एक बकरे को खूब खिलाया-पिलाया और सामने शेर को बैठा दिया गया। शेर की चिंता में बकरे का वजन रत्ती भर नहीं बढ़ा। माल-मत्ता खाने से जितना बढ़ा उतना ही शेर को देखकर घटता गया। इसी सिद्धान्त पर चिंता थेरेपी की नींव टिकी है। आदमी नियमित चिंता करता रहे तो उसका वजन घटता रहता है। चाहे जो खाये नियंत्रण में रहता है।
इसीलिये ये देखो हमने अपने घर की दीवारों पर चिंता थेरेपी वाले पोस्टर लगा रखे हैं- चिंता करो, सुख से जियो। चिंता सरोवर में डुबकी लगायें, अपना वजन मनचाहा घटायें। बढ़ते वजन से परेशान, नियमित चिंता से तुरंत आराम। चिंतित होते ही वजन की चर्बी गायब।
लेकिन हमने तो देखा है लोग खूब चिंतित रहते हैं फिर भी दुबले नहीं होते। कैसे तुम्हारी बात सच मान लें। -हमने प्रतिवाद किया।
अब ये तो श्रद्धा-विश्वास की बात है। जिसको श्रद्धा होगी उसकी फ़ायदा मिलेगा। जिसको नहीं होगी नहीं मिलेगा। और फिर चिंता में भी ईमानदारी होनी चाहिये। श्रद्धा में खोंट होगी तो चिंता का फ़ायदा नहीं मिलेगा। चिंता शुद्ध होनी चाहिये, २४ कैरेट सोने की तरह तभी आपको लाभ मिलेगा।- दोस्त सांस लेने के लिये रुका।
यार पता नहीं तुम कैसी बातें करते हो। मुझे कुछ समझ में नहीं आता। -हम भ्रमित थे।
हमको भी पहले ऐसा ही लगता था। अच्छा ये बताओ कि ये अमेरिका के राष्ट्रपति इतना स्लिम-ट्रिम, स्मार्ट छैला बाबू टाइप कैसे बने रहते हैं? -दोस्त अब सवाल करने लगा।
उनके खान-पान का ध्यान रखने के लिये डाक्टरों की फ़ौज लगी रहती है। दवा-दारू के लिये उनको किसी सरकारी अस्पताल में लाइन नहीं लगानी पड़ती।नियमित चेकअप होते हैं। व्यायाम-स्यायाम करते रहते हैं। यही कारण होंगे और क्या!
अरे भैया की बातें। ये सुविधायें तो किसी भी अमीर आदमी को मिल सकती हैं। लेकिन उससे वो अमेरिकी राष्ट्रपति के तरह स्मार्ट, स्लिम-ट्रिम, छैला बाबू टाइप थोडी़ हो जायेगा। और फिर समझने की बात है कि जो शख्स पूरी दुनिया को अपने ठेंगे रखने की ऐंठ रखता है। जरा-जरा सी बात पर दुनिया भर में जहां मन आये बम की कालीन बिछा देता है जिस देश को मन आये पाषाण युग में ठेले देता है वो भला डाक्टर-हकीम के इशारे पर चलेगा! हमें तुम्हारी अकल पर तरस आता है।- दोस्त हम पर दया भाव दिखाने लगे।
अच्छा तुम ही बताओ भला अमेरिकन राष्ट्रपति की स्लिमनेश का राज- हमने सवाल किया।
वह एक देश में लोकतंत्र बहाल करने के लिये इतना चिंतित होता है कि उस देश को तहस-नहस कर देता है। एक अपराधी को पकड़ने की चिंता में पूरी दुनिया को जहां शक होता है रौंद देता है। पूरी दुनिया भर में शांति बहाल करने के लिये अपनी इतना चिंतित रहता है कि हर जगह अपने हथियार तैनात कर देता है। अपने पास हजारों बम होते हुये भी दूसरे देश के परमाणु परीक्षण को दुनिया भर के लिये खतरा मानकर चिंतित होता रहता है। इसी तरह के तमाम चिंताऒं के कारण ही वह दुबला-पतला, स्लिम-ट्रिम, स्मार्ट-छैला बाबू टाइप बना रहता है।
इसका राज यह है कि वह चिंतित रहता है। उसके जिनती चिंता खुदा भी नहीं करता होगा। वह एक देश में लोकतंत्र बहाल करने के लिये इतना चिंतित होता है कि उस देश को तहस-नहस कर देता है। एक अपराधी को पकड़ने की चिंता में पूरी दुनिया को जहां शक होता है रौंद देता है। पूरी दुनिया भर में शांति बहाल करने के लिये अपनी इतना चिंतित रहता है कि हर जगह अपने हथियार तैनात कर देता है। अपने पास हजारों बम होते हुये भी दूसरे देश के परमाणु परीक्षण को दुनिया भर के लिये खतरा मानकर चिंतित होता रहता है। इसी तरह के तमाम चिंताऒं के कारण ही वह दुबला-पतला, स्लिम-ट्रिम, स्मार्ट-छैला बाबू टाइप बना रहता है।
इसके बाद न जाने कितने उदाहरण से हमारे दोस्त ने यह साबित करने का पूरा इंतजाम किया कि अगर हम ईमानदारी से चिंतित हो सकें तो सारे सुख हमारी झोली में होंगें। चिंता करना शुरू करते ही हम तड़ से खुशहाल हो जायेंगे। उनके वक्तव्य के कुछ अंश जो हमें याद रह गये वे यहां दे रहा हूं।
चिंता करना आजकल स्वास्थ्य के लिये बहुत आवश्यक है। अगर हम ठीक से चिंतित होना सीख गये तो समझिये स्वस्थ हो गये। पुराने समय में भी जितने महान लोग हुये, जितने दीर्घायु हुये वे सब चिंता करने के ही कारण हुये। भगवान रामचंद्र पहले राज्य जाने के कारण दुखी हुये, फिर पत्नी के अपहरण से, फिर धोबी द्वारा अपनी बदनामी से फिर अपने पुत्रों द्वारा अपनी सेना की पराजय से और बाद में सीतागमन से। इन्हीं तमाम बातों के चलते वे चिंतित होते रहे और कालांतर में मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये। यही बात कृष्णजी के बारे में सही है।पहले अनगिनत गोपियों की चिंता फ़िर सोलह हजार पटरानियों के चलते उनकी चिंता की कल्पना ही की जा सकती है। इसी चिंता के चलते वे सोलह कलाऒं युक्त सम्पूर्ण अवतार् माने गये। कबीरदास ने तो डंके की चोट पर कहा- सुखिया सब संसार है खावै अरु सोवै, दुखिया दास कबीर है जागै अरु रोवै। इसी दुखीपने के कारण कबीर दुबले पतले बने रहकर सौ से ज्यादा साल जीये और इतने प्रसिद्ध कवि कहलाये।
चिंता करना आजकल स्वास्थ्य के लिये बहुत आवश्यक है। अगर हम ठीक से चिंतित होना सीख गये तो समझिये स्वस्थ हो गये। पुराने समय में भी जितने महान लोग हुये, जितने दीर्घायु हुये वे सब चिंता करने के ही कारण हुये।
आजकल भी देखिये ये जो जीवन अवधि बढ़ गयी है, लोग ज्यादा दिन तक जीने लगे हैं तो इसीलिये कि लोग तमाम तरह की चिंतायें करने लगे हैं। दुनिया की हालत से चिंतित हैं, अपने बच्चों से दुखी हैं, बुढ़ापे में जवान पत्नी की बेवफ़ाई से दुखी हैं, जवानी में किसी हसीन, अमीर बुढिया के इश्क में फ़ंसकर दुखी हैं। इन सब चिंताऒं के चलते आदमी दुबला होता है और उसकी जीवन अवधि बढ़ जाती है।
दुनिया जटिल हो रही है। लोगों की चिंतायें भी जटिल हो रही हैं। हर समय अंग्रेजीपूर्ण माहौल में रहने वाला हिंदी की स्थिति के लिये दुखी है। बात-बात पर गाली निकालने वाले को समाज में घटते भाईचारे की भावना चिंतित करती है। कुछ लोग अपनी चिंता का स्तर उठाकर देश तक ले जाते हैं। देश की चिंता के बाद भी जिनकी चिंता का स्टाक खतम नहीं होता वो अपनी चिंता का तंबू पूरे विश्व में तान देते हैं। ब्रह्मांड में अपनी चिंतायें छितरा देते हैं। वे चिंतित रहते हैं ताकि चिंता के चलते वे दुबले रह सकें और सुखी रह सकें। जो शख्स कायदे से चिंतित होना सीख गया उसकी सारी चिंतायें समाप्त हो जाती हैं।
दुनिया जटिल हो रही है। लोगों की चिंतायें भी जटिल हो रही हैं। हर समय अंग्रेजीपूर्ण माहौल में रहने वाला हिंदी की स्थिति के लिये दुखी है। बात-बात पर गाली निकालने वाले को समाज में घटते भाईचारे की भावना चिंतित करती है। कुछ लोग अपनी चिंता का स्तर उठाकर देश तक ले जाते हैं। देश की चिंता के बाद भी जिनकी चिंता का स्टाक खतम नहीं होता वो अपनी चिंता का तंबू पूरे विश्व में तान देते हैं।
चिंता थेरेपी की सम्भावनायें अनन्त हैं। अगर इसे मान्यता मिल सके तो सरकार की तमाम कमियां भगवान की कमियों की तरह छुप सकती हैं। अभी भूख से मरने वालों के लिये सरकार तमाम तरह से साबित करती है कि मरने वाला भूख से नहीं मरा। लेकिन इसके लिए उसकी बहुत छीछालेदर होती है। जैसे ही चिंता थेरेपी को मान्यता मिली सरकार हर मौत के लिये कह सकेगी ये भूख से नहीं अन्न की कमीं की चिंता से मरा है। यह अपनी मौत मरा है। हजारो लाखों लोग जिनको आज असहाय होकर भूख से मरने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है वे चिंतित होकर मरने लगेंगे। इससे सरकारें भी चिंतित हो जायेंगी। बिना किसी खर्च के मरने वाली की भावनाओं और सरकार की स्पिरिट के हो जायेगी।
दुनिया में आज जहां भी परिवर्तन हुये हैं वे सब के सब चिंतित लोगों के कारण हुये। अपने देश की आजादी की लड़ाई में जो भी महान नेता हुये वे देश के लिये चिंतित रहते थे। देश की चिंता में दुबले रहते थे तब जाकर हमें आजादी मिल पायी। गांधीजी देश की इतनी चिंता करते थे। देश की चिंता के ही कारण वे इतने दुबले-पतले थे कि सरपट चलकर हर क्षेत्र में पहुंचकर चिंतित हो जाते थे। इसीलिये देश को आजाद कराने में उनका नाम आदर से लिया जाता है।
इसीलिये यह चिंतित रहना बहुत जरूरी है। अगर अभी तक आप चिंतित रहना नहीं सीख पाये तो समझ लीजिये आपकी जीवन शिक्षा अधूरी है। आप तुरंत उठिये और चिंता करना शुरू कर दीजिये।
उद्बोधन इसके बाद समाप्त हो गया। हम उठकर चल दिये। रास्ते में हमने अपने साथ के युवा दोस्त, जो दोस्त के घर मेरे साथ गया था और जिसने अपने स्वभाव के विपरीत अब तक चुप रहकर अपनी समझदारी का परिचय से दिया था, से पूछा- क्यों यार ये चिंता थेरेपी के बारे में तुम्हारा क्या कहना विचार है?
भाई अगर आप बुरा न मानें तो मुझे तो आपका यह दोस्त सिरफ़िरा लगता है।-युवा साथी ने राय दी!
नहीं यार, इसमें बुरा मानने की क्या बात। जो सच है सो है। सच को कोई थोड़ी झुठला सकता है। लेकिन तुमको मेरा दोस्त क्यों सिरफिरा लगता है?-मैंने कारण जानना चाहा।
अरे उसको ये तक नहीं पता कि आजादी के समय यहां कोई गांधी नहीं थे। प्रियंका, राहुल, वरुण गांधी उस समय पैदा नहीं हुये थे। सोनिया गांधी, मेनका गांधी दोनों की उस समय शादियां हुयीं नहीं थी लिहाजा उनके आजादी दिलाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। फिर कहां से गांधीजी आजादी के समय आ गये। जबकि आपका दोस्त बताता है कि गांधीजी ने देश को आजाद कराने में योगदान दिया। आपके जिस दोस्त की इतिहास की समझ इस हद दर्जे की माशाअल्लाह है उसकी किसी भी बात पर गौर करने के पहले से मैं हजार बार विचार करूंगा। मुझे तो चिंता होने लगी है कि कैसी-कैसी समझ वाले लोग आपके दोस्त हैं।
अपने नौजवान दोस्त की बात सुनकर मैं भी चिंतित होने लगा।
आपके क्या हाल हैं? आपने चिंतित होना शुरू किया कि नहीं!
Posted in बस यूं ही | 13 Responses
@पंकज नरूला, सेठजी ये बात सही है कि चिंता थेरेपी का बाजार बनना तय है। दुबला बनाने वाले सेंटर इसी थेरेपी से आगे बढ़ेंगे।
@श्रीश, भली करी।
@समीरलाल, आप सच्ची में चिंतित होते हैं तभी फ़ायदा मिलेगा। अगर आप् पहले चिंतित् हो लेते तो मोटे होने के फ़ायदे के बजाय् दुबले होने के किस्से लिखते।
@पाण्डेयजी, महाकवि की कविता की पैरोडी बनाने की बात सही है। वैसे आधुनिक युग के लिये अपने ठाकुर प्रमोद सिंह क्या बुरे हैं-
आओ साथी चिंतित हो जायें,
सुख सुविधा की वाट लगायें,
लभ लेटर में घुस-घुस जायें,
पतनशीलता की ध्वजा फ़हरायें।:)