Sunday, December 13, 2015

सुबह हो गयी सूरज जी आये

सुबह हो गयी सूरज जी आये
खींच कम्बलवा हमको जगाये
बोले बाबू बाहर आ भी जाओ
बढिया, ताजी हवा कुछ खाओ।
...
हम जब आये कमरे के बाहर,
किरणें चमक गयी चेहरे पर
चिडियां चीं चीं गुडमार्निंग बोली
पेड़ हिले, हवा इधर-उधर डोली।

भड़भड़ करता टेम्पो दिखा सामने
गया कुचलता सोय़ी पड़ी सड़क को
कार भागती निकली उसके पीछे
सब मिल रौंद रहे सड़क को।

बच्चे हल्ला खूब मचा रहे हैं
धरती को सर पर उठा रहे हैं
सूरज भाई उनको देख मुस्काये हैं
बच्चे अर्से बाद खेलने आये हैं।

हमने दो ठो अंगड़ाई ले लीं
ताजी हवा भर अंदर कर ली
अखबार उठाकर अंदर आये
फ़ोन किये और चाय मंगाये।

बांच रहे अखबार सुबह अब
खबरें हैं दिखती मिक्स्ड वेज सी
हौसले, आरती, रिश्वत के किस्से हैं
आरक्षण, घूस, अदालत के घिस्से हैं।

चाय आ गयी है थरमस में जी
भुजिया का पैकेट धरा बगल में
सूरज भाई भी लपक के आये
आओ आपको भी चाय पिलायें।

-कट्टा कानपुरी

4 comments:

  1. अच्छी कविता है

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  2. क्या बात है..बहुत अच्छे

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  3. Mai ye punch raha hu ki bachche god le sakte hai kya my no.7024091458

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  4. Mai ye punch raha hu ki bachche god le sakte hai kya my no.7024091458

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