Wednesday, August 10, 2016

चेहरे पर संतई

आज भी जल्ली ही निकल लिये। जल्ली मल्लब बहुत जल्दी। सबेरे मोतीझील में ’मानस संगम संस्था’ द्वारा आयोजित तुलसी जयन्ती समारोह में भाग लेना था। सबेरे छह बजे से कार्यक्रम होना था इसलिये सुबह तड़के ही चाय पीकर फ़टफ़टिया पर सुबह के नजारे देखते हुये निकल लिये।

घर के बाहर ही एक बच्ची अकेली टहलती हुई जाती दिखी। दोनों हाथ अनुशासित तरीके से आगे पीछे करती हुई। ऐसा लग रहा था मानो हाथों के चप्पू चलाती हुई सड़क रूपी नदी पर शरीर रूपी नौका खेते हुये चली जा रही थी। हाथ के साथ-साथ उसकी चुटिया भी हिल रही थी। बित्ता भर और बड़ी होती चोटी तो हथेलियों के बराबर हो जाती।
एक आदमी शायद लंबा टहलकर आया था। सड़क पर हौले-हौले पैर धरते हुये दौड़ने की अदा में टहल रहा था। जिस तरह सड़क पर पैर धर रहा था उसको देखकर ऐसा लग रहा मानो सड़क पर पंजों से मोहर लगाता जा रहा हो।
आर्मापुर गेट के पास दो कुत्ते आगे-पीछे दुलकी चाल से दौड़ते हुये आते दिखे। आगे वाला कुत्ता पीछे वाले से करीब पचास कदम आगे चल रहा था। मानो पीछे वाले वीआईपी कुत्ते का पायलट कुत्ता हो। दोनों कुत्ते इतने शांत भाव से दौड़ते आ रहे थे कि आकार के अलावा कुत्ते लग ही नहीं रहे थे। उनके चेहरे पर संतई सरीखी पसरी हुई थी। शायद संत कुत्ते थे वे। इतने हल्के से पैर रख रहे थे कुत्ते सड़क पर मानों उनको सड़क को अपने पंजों की खरोच बचा रहा हो। या फ़िर शायद अपने पंजों के नाखून घिसने से बचा रहा हो।
चौराहे पर एक पुलिस वाला मोटरसाइकिल पर बैठा मोबाइल का स्क्रीन देख रहा था। आगे एक सौ नंबर वाली जीप पर बैठा ड्राइवर सामने देख रहा था। उसके साथ वाले सिपाही इधर-उधर टहल रहे थे।



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